Sunday, 20 November 2016


कालेधन के विरुद्ध लड़ाई में नोटबंदी के निर्णय पर प्रतिपक्ष के नेता एक से बढ़कर एक कुतर्क प्रस्तुत कर रहे हैं। उनके कुतर्क यह भी साबित कर रहे हैं कि वह जमीन से जुड़े नेता नहीं हैं। उन्हें भारतीय जन के मानस की बिल्कुल भी समझ नहीं है। विपक्षी नेताओं के बयानों को सुनकर यह समझना मुश्किल हो रहा है कि वह आम जनता के शुभचिंतक हैं या फिल कालेधन वालों के? उनकी बौखलाहट देखकर संदेह यह भी है कि उनके पास भी कालेधन का भंडार है। वरना क्या कारण है कि नोटबंदी की वापसी के लिए चेतावनी जारी की जा  रही हैं? साफ नजर आ रहा है कि विपक्षी नेता आम जनता की परेशानी की आड़ में अपने कालेधन की चिंता कर रहे हैं? तथाकथित पढ़े-लिखे नेता चौहारों की भाषा इस्तेमाल कर रहे हैं। कुतर्क देखिए कि पाँच सौ और दो हजार रुपये का नया नोट चूरन की पुडिय़ा में निकलने वाले नकली नोट जैसा है। आश्चर्य है इनकी समझ पर।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, जो कभी कालेधन के खिलाफ लड़ाई लडऩे की बात किया करते थे, समय आया तो कालेधन के पक्ष में खड़े दिखाई दे रहे हैं। उनको बिना कुछ विचारे बोलने की बीमारी हो गई है। उन्होंने आरोप जड़ दिया कि नोटबंदी की जानकारी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहले ही भाजपा और तथाकथित अपने व्यापारी मित्रों को दे दी थी। मोदी गरीबों का पैसा एकत्र करके अमीरों को दे देंगे। वह यह भी कह रहे हैं कि गरीब तो कतार में लगा है, लेकिन अंबानी और अड़ानी क्यों नहीं लगे? इस तरह तो फिर यह भी सवाल उठाना चाहिए कि कितने नेताओं ने कतार में लगकर नोट बदलवाए हैं? दरअसल, अरविंद केजरीवाल मोदी विरोधी की बीमारी के कारण इस बार गलत दिशा में चले गए हैं। जनता के विरोध के बाद भी उन्हें यह अब तक समझ नहीं आया है। बीते दिन बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल दोनों को जनता के विरोध का सामना करना पड़ा था।
Sanjeev Tripathi

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