Monday, 21 November 2016

किसान संकटों से बच सकते हैं बशर्ते वो एक व्यवसाय़ी की तरह सोचना शुरू करें। उसे एक बार में एक के बजाय तीन-चार फसलें लेना होगी। अभी किसान जिस भी खाद्य वस्तु के दाम बढ़ते हैं, उसे बड़ी मात्रा में बो देते हैं। ऐसे में निश्चित तौर पर उत्पादन ज्यादा होता है और मांग कम हो जाती है। मांग घटते ही, दाम कम मिलते हैं फिर किसान सर धुनता रह जाता है।
श्रेय हूमड़ 29 साल के रफ्तार के शौकीन नवयुवक हैं। इंदौर से प्रबंधन की पढ़ाई करने के बाद श्रेय ‘फटाफट किसान’ बन गए। 2010-11 में इंदौर से एमबीए करने के बाद खंडवा में पिता का बिजनेस संभाला। इस दौरान देखा कि ऑटोमोबाइल से लेकर अन्य सेक्टरों में मंदी का दौर आया है। लेकिन कृषि में आज तक कभी ऐसा नहीं आया। श्रेय ने हिसाब लगाया कि आने वाले समय में फूड में अच्छा स्कोप है। वो तमिलनाडु के मदुराई व अन्य शहरों में गए। यहां टैरेस गार्डन और पॉली हाउस देखे और खंडवा लौटकर इसके बारे में तीन महीने तक रिसर्च किया।
उन्होंने लीज पर एक एकड़ जमीन ली। शासन की योजना का लाभ लिया। आधे एकड़ में पॉली हाउस और आधे में नेट हाउस खोल दिया। पॉली हाउस से श्रेय ने 40 दिन में 14 टन खीरे का उत्पादन लिया। पॉली हाउस में जो भी सब्जियां लगाई जाती हैं, उसे किसान जितना भी खाद, पानी और ऑक्सीजन देगा, उतना ही फसलों को मिलेगा। इसमें बारिश का पानी भी अंदर नहीं जा सकता। नेट हाउस में भी प्रकाश और बारिश का पानी आधा अंदर आता है और आधा बाहर जाता है। यह गर्मी और ठंड में फसलों के लिए अच्छा होता है, जबकि पॉली हाउस सभी सीजन में फसलों के लिए फायदेमंद होता है।
एक तरफ जहाँ किसानों के खेती छोड़ने की ख़बरें आम हैं, वहीँ श्रेय जैसे युवक खेती से जुड़ते भी जा रहे हैं। शायद परंपरागत रूप से खेती से जुड़े लोगों को युवाओं से सीखने की जरूरत है।
(तस्वीरें और जानकारी इफकोटोक्यो से साभार।)

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