"भूख नहीं, अज्ञान मिटाओ, गरीबी खुद ख़त्म हो जाएगी; अगर वर्त्तमान की व्यवस्था ने ही आरक्षण को महत्वपूर्ण बनाकर प्रतिभा को अवसर से वंचित कर रखा है, तो प्रयास सत्ता बदलने तक सीमित न रहकर व्यवस्था परिवर्तन पर केंद्रित होना चाहिए। फिर यह महत्वपूर्ण नहीं की सरकार किसकी है, महत्व केवल इस बात का होना चाहिए की सरकार कैसी है।
जब प्रतिभा को योग्यता के आधार पर अवसर सामान रूप से सहज और सुलभ होगा तो आरक्षण का प्रावधान भी आप्रासंगिक हो जाएगा पर जब तक तुष्टिकरण की राजनीति से प्रभावित होकर शाशन तंत्र जातिवाद को प्रेरित व् प्रोत्साहित करती रहेगी, सामाजिक समता की प्राप्ति असंभव होगा।
शिक्षा का व्यवसायीकरण लाभकारी भले हो पर दीर्घकाल में शिक्षा के प्रावधान को ही निरर्थक बना देगा; क्या हम अपने वर्त्तमान की सहूलयतों के लिए इस देश के भविष्य को भ्रष्ट करने का निर्णय ले सकते हैं; और नहीं तो क्या... जब महत्व का निर्धारण भी मूल्य ही करेगा तो सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण क्या बचेगा?
अर्थव्यवस्था द्वारा पूंजीवाद का पोषण विकास का आस्वाशन नहीं हो सकता बल्कि ऐसे किसी ही प्रयास की स्वीकृति सामाजिक जीवन को और भ्रष्ट बना देगा।
व्यवस्था परिवर्तन के लिए आज आवश्यक है की सामाजिक जीवन के सामाजिक, आर्थिक व् शैक्षणिक मूलभूत ढांचों का नए सिरे से पुनर्निर्माण किया जाए तभी हम इस वर्त्तमान के प्रयास से हम एक बेहतर भविष्य की संभावनाओं को सुनिश्चित कर सकेंगे , पर आज हो क्या रहा है, क्या सब के समक्ष यह स्पष्ट नहीं !
प्रचार जब अपने विषय से भ्रमित हो तो प्रचारतंत्र का प्रभाव ही समाज के लिए समस्या बन जाती है क्योंकि तब सस्ती लोकप्रियता को भी योग्यता का विकल्प मानकर महत्वपूर्ण दायित्व के लिए पात्र के चयन का आधार बना दिया जाता है ; प्रचार काम का होना चाहिए नाम का नहीं और अगर ऐसा नहीं होता है तो यही सिद्ध होगा की प्रचार की प्राथमिकताएं भ्रमित है।
महत्वपूर्ण क्या होना चाहिए, राष्ट्र या राजनीति, सत्ता या व्यवस्था, व्यक्ति या विचारधारा, योग्यता या लोकप्रियता, आवश्यकता या आकांक्षा आज समय हम से यही निश्चित करने की अपेक्षा रखता है क्योंकि जब तक हमारे निर्णय का आधार गलत होगा, हमारे निर्णय का निष्कर्ष सही हो ही नहीं सकता; वर्त्तमान के परिस्थितियों का परिदृश्य इसी तथ्य का प्रमाण है ; अगर आज हम अपनी प्राथमिकताओं के सही निर्धारण से चूक गए तो भविष्य की परिस्थितियों को दोष देना व्यर्थ होगा; वर्त्तमान की समस्याओं के निदान और भविष्य की अनिश्चितता के समाधान की दृष्टि से नेतृत्व के निर्णय की समीक्षा और भूल सुधार के किसी भी सम्भावना का यही समय है।“
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