Monday, 21 November 2016

गढ़ आया पर सिंह गया ...

 एक थे मिर्ज़ा जयसिंह | सिंह कम और मिर्ज़ा ज्यादा थे | मुगलों का सिंघगढ़ का किला होता था और इनके ही अधिकार में था |
शिवाजी का संदेशा पहुँचते पहुँचते शाम ढल गई थी, तानाजी अपने भाई सूर्याजी के साथ थे | आख़िर बेटे की बारात थी, शादी रोज़ कहाँ होती है ! कुल मिला के 300 ही लोग थे बाराती और शराती मिला के, और साथियों को जुटाने का अवसर नहीं था | रास्ता एक ही बचता था अब, सिंघगढ़ का किला तोपों से पूरी तरह सुरक्षित था, परिंदे के पर मारने से पहले ही गिरा देता कोई मुग़ल तोपची | सिर्फ़ एक कम्बूरा था जहाँ सुरक्षा ढीली होती थी | बिलकुल सीधी चढ़ाई पर, तानाजी ने “यशवंती” को बुलाया, प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फेरा |
मुस्कान कुछ मूछों के पीछे चमकी, कुछ हाथ तलवार की मूठ से मूछों को बल देने के लिए उठे | दुल्हन तो सुबह आएगी, फैसले के साथ ही तीन सौ मराठा शूरों ने इजाज़त ली | गोह (घोड़पड़) एक ख़ास किस्म की छिपकली होती है, क़रीब सवा दो फुट तक बढती है, पंजे इतने तेज़ की एक बार अगर पकड़ बना ले पत्थर पर तो दो तीन लोग मिलकर भी नहीं उखाड़ सकते | संदूक में से गोह को बाहर निकाला गया, तानाजी ने कहा, यशवंती अब तेरा ही आसरा ! यशवंती नाम के गोह की कमर से रस्सी बाँध कर उसे उछाला गया | पहली बार में उसके भी पंजे सीधी चढ़ाई से फिसल गए | सारे रणबांकुरों ने सर हिलाया और दोबारा गोह को उछाला गया, पंजे इस बार भी फ़िसल गए | तानाजी शायद बहु घर लाने की जल्दी में थे, भड़क उठे, सौगंध माता विंध्यवासिनी की !! इस बार जो “यशवंती” असफल लौटी तो तत्काल इसके दो टुकड़े करूँगा !! अँधेरे में काली की लपलपाती जिह्वा सी तलवार म्यान से बाहर आ गई |
यशवंती फिर दीवार की तरफ लपकी, इस बार पंजे पत्थरों पे जम गए, आन की आन में एक मराठा दीवार पर था | बाकि सारे साथी भी उसकी फेंकी रस्सियों के साथ चढ़ने लगे | थोड़ी ही देर में तीन सौ से ज्यादा मराठा किले की दीवार पर थे | कोंधना नाम से जाने जाने वाले इस किले पे हमले की ख़बर सुन के और भी मराठा योद्धा आ जुटे थे, लेकिन 342 योद्धाओं के ऊपर चढ़ने तक रस्सी टूट गई और करीब 60 योद्धा युद्ध किये बिना ही खेते रहे |
सूर्याजी को कल्याण द्वार से हमले का इशारा कर के तानाजी मुग़ल चमचों पे टूट पड़े | देर रात और “जय भवानी” का उद्घोष!! सुरा-सुंदरी से मतवाले हुए 5000 मुगलों का खून तो आवाज़ पर ही जम गया | कुछ महादेव कोली किले में थे, तानाजी को पहचानते ही वो सूर्याजी की मदद के लिए कल्याण दरवाजे की तरफ बढ़े | तलवार संभालते तानाजी ने साथियों को किले के अलग अलग इलाकों पर हमला करने के आदेश देना शुरू किया | मिर्जा जय सिंह की ओर से उदयभान किला संभालता था | इस से पहले की तानाजी अपनी पीठ से ढाल पूरी तरह उतार पाते करीब सौ किलो के उदयभान का “जनेऊ हाथ” उन पर पड़ा |
खनकती ढाल ज़मीन पे जा पड़ी, उदयभान के अंगरक्षकों ने सिदी हिलाल को खुला छोड़ दिया | सिदी हिलाल करीब करीब पागल हाथी था | शराब के नशे में चूर पागल हाथी ने शत्रु सेना पर धावा बोल दिया | अपने साथियों को पीछे हटाते तानाजी ने एक ही वार में सीदी हिलाल की सूंड काट दी | छटपटाता हाथी पलटा भी न था की तानाजी की तलवार उसकी पसलियों में जा घुसी | इधर मुग़ल सैनिक कट रहे थे उधर सिदी हिलाल गिरा | मुग़ल सैनिक एक अकेले मराठा को हाथी मारता देखते सदमे में आ गए ! उनके कदम उखाड़ते देख कर उदयभान आगे आया और तानाजी पर सीधा हमला किया |
उदयभान पुराना राजपूत था, उसपर तलवार का धनी | तलवार ढाल के साथ लड़ते हुए सिर्फ एक हाथ में तलवार पकड़े तानाजी पर वो भारी पड़ने लगा | तानाजी ने अपनी पगड़ी बाएं हाथ में बंधी, और दोगुने जोश से उदयभान का मुकाबला करने में जुटे | उदयभान के दो कदम पीछे हटते ही किसी मुग़ल सैनिक की गिरी हुई तलवार तानाजी ने उठा ली | चढ़ती साँसों और माँ भवानी के जय जय कार के साथ दोनों योद्धा गुत्थम गुत्था, टक्कर बराबर की थी | एक शरीर से तगड़ा तो दूसरा मनोबल से ! एक साथ ही एक दुसरे पे प्राणघातक प्रहार दोनों ने किया | उदयभान के गिरते ही मुग़ल सैनिकों के पाँव उखड़ गए | दुम दबा कर जहाँ हो पाया सब भागे |
सूर्याजी ने कंगूरे पर टंगी रस्सियाँ हटा दी थी, या तो विजय या मृत्यु दो ही विकल्प थे मराठों के पास |मराठे जान हथेली पर ले कर लड़े, “मर-हट्टा” ऐसे ही तो नहीं कहते थे | जो मरा नहीं वो युद्ध से हटा नहीं | कुल पांच सौ से कम मराठों ने पांच हज़ार से ज्यादा मुगलों को धूल चटा दी | सुबह होने से पहले दुदुम्भी कंगूरे से बज रही थी, भगवा सबसे ऊँची चोटी पर फहराता था | गढ़ जीतने की खबर पहले पहुंची शिवाजी के पास, उछल कर सिंघासन से खड़े ही हुए थे की तानाजी के खेते रहने की ख़बर सुनाई गई | शिवाजी वापिस सिंघासन पर बैठ गए, कहा “गढ़ आया पर सिंह गया” |
सैन्य शक्ति बराबर न होने पे भी लड़ाई जीती जाती है, और हर बार लड़ाई मैदान में ही नहीं कई बार दिमाग में ही लड़ी और जीती जाती है | आक्रमणकारी अभी भी पीछे नहीं हटे हैं, मिर्ज़ा जय सिंह भी हैं साथ देते हुए उनका, इस बार गढ़ आने में सिंह न जाए !!
जय भवानी, जय जय भवानी !

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