'टाटा सूमो' की कहानी
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सुमंत मूलगांवकर
टाटा मोटर्स के चीफ आर्किटेक्ट माने जाते हैं। 1949 से 1989 के बीच अपनी चार दशकों की कठोर मेहनत और लगन के दम पर वो टाटा मोटर्स के "चीफ एग्जेक्युटिव" के पद तक पहुंचे। टाटा मोटर्स, जिसे पहले टेल्को (TELCO) के नाम से जाना जाता था, को उन्होंने दुनियाभर के चोटी के वाहन निर्माताओं के समकक्ष खड़ा कर दिया।
जैसी कि परंपरा थी हर दिन "टाटा मोटर्स प्रबंधन" के शीर्ष अधिकारी और कर्मचारी फैक्ट्री कैंटीन में साथ साथ बैठ कर लंच करते थे। किंतु उन्ही में से एक प्रबंधक "सुमंत मूलगांवकर" कुछ दिनों से सबके साथ बैठकर लंच नही कर रहे थे। वो मध्यान्ह भोजनावकाश के समय अपनी कार लेकर कहीं बाहर निकल जाते थे किंतु लंच ब्रेक खत्म होते ही वो अपने काम पर पूरे अनुशासन से उपस्थित हो जाते थे।
शुरुआत में दो तीन दिन तो किसी ने कोई ध्यान नही दिया किन्तु जब अक्सर ऐसा होने लगा तो टाटा कम्पनी में एक अफवाह तैरने लगी कि "टाटा मोटर्स" का कोई डीलर 'मूलगांवकर' को किसी पांच सितारा होटल में रोज लंच कराता है!!
टाटा मोटर्स के चीफ आर्किटेक्ट माने जाते हैं। 1949 से 1989 के बीच अपनी चार दशकों की कठोर मेहनत और लगन के दम पर वो टाटा मोटर्स के "चीफ एग्जेक्युटिव" के पद तक पहुंचे। टाटा मोटर्स, जिसे पहले टेल्को (TELCO) के नाम से जाना जाता था, को उन्होंने दुनियाभर के चोटी के वाहन निर्माताओं के समकक्ष खड़ा कर दिया।
जैसी कि परंपरा थी हर दिन "टाटा मोटर्स प्रबंधन" के शीर्ष अधिकारी और कर्मचारी फैक्ट्री कैंटीन में साथ साथ बैठ कर लंच करते थे। किंतु उन्ही में से एक प्रबंधक "सुमंत मूलगांवकर" कुछ दिनों से सबके साथ बैठकर लंच नही कर रहे थे। वो मध्यान्ह भोजनावकाश के समय अपनी कार लेकर कहीं बाहर निकल जाते थे किंतु लंच ब्रेक खत्म होते ही वो अपने काम पर पूरे अनुशासन से उपस्थित हो जाते थे।
शुरुआत में दो तीन दिन तो किसी ने कोई ध्यान नही दिया किन्तु जब अक्सर ऐसा होने लगा तो टाटा कम्पनी में एक अफवाह तैरने लगी कि "टाटा मोटर्स" का कोई डीलर 'मूलगांवकर' को किसी पांच सितारा होटल में रोज लंच कराता है!!
बार बार अपनी इस गतिविधि से मूलगांवकर, कम्पनी के संदेह के घेरे में तो आ ही गये थे पर जब शक और अविश्वास अपने चरम पर पहुंच गया तो मैनेजमेंट के कुछ अफसरों ने चुपचाप उनकी जासूसी करने का निर्णय किया।
अगले दिन जैसे ही सुमन मूलगांवकर लंच ब्रेक के अंतराल में अपनी गाड़ी से बाहर निकले तो कई शीर्ष प्रबंधक चुपचाप दूसरी गाड़ी में उनका पीछा करने निकल पड़े ।
पर सभी तब भौंचक्के रह गये जब उन्होंने ये देखा कि आगे आगे जा रहे मूलगांवकर ने सड़क के किनारे एक साधारण से ढाबे पर अपनी गाड़ी रोकी और वहाँ बैठ कर खाना खा रहे!! ट्रक ड्राइवरों, के बीच जा बैठे और अपने भी खाने का आर्डर कर दिया। सुमंत, उन ड्राइवरों के साथ बैठ कर खाना खाने के साथ साथ उनसे टाटा ट्रकों की खूबियों और कमियों के बारे में भी चर्चा करते जा रहे थे और ड्राइवरों द्वारा साझा किए जा रहे अनुभवों के महत्वपूर्ण बिंदुओं को अपनी डायरी में लिखते भी जा रहे थे।
यह एक तरह से मूलगांवकर की रोज की दिनचर्या बन गयी थी, और अलग अलग ट्रक चालकों द्वारा साझा किए गए अनुभवों का उपयोग वो टाटा ट्रकों में निरंतर सुधार के लिए किया करते थे।
कुछ इस तरह का जुनून और उत्साह था सुमंत मूलगांवकर का!! टाटा ट्रकों में लगातार सुधार करते रहने का, जिससे टेल्को आज इतनी ऊंचाइयों पर है।
अगले दिन जैसे ही सुमन मूलगांवकर लंच ब्रेक के अंतराल में अपनी गाड़ी से बाहर निकले तो कई शीर्ष प्रबंधक चुपचाप दूसरी गाड़ी में उनका पीछा करने निकल पड़े ।
पर सभी तब भौंचक्के रह गये जब उन्होंने ये देखा कि आगे आगे जा रहे मूलगांवकर ने सड़क के किनारे एक साधारण से ढाबे पर अपनी गाड़ी रोकी और वहाँ बैठ कर खाना खा रहे!! ट्रक ड्राइवरों, के बीच जा बैठे और अपने भी खाने का आर्डर कर दिया। सुमंत, उन ड्राइवरों के साथ बैठ कर खाना खाने के साथ साथ उनसे टाटा ट्रकों की खूबियों और कमियों के बारे में भी चर्चा करते जा रहे थे और ड्राइवरों द्वारा साझा किए जा रहे अनुभवों के महत्वपूर्ण बिंदुओं को अपनी डायरी में लिखते भी जा रहे थे।
यह एक तरह से मूलगांवकर की रोज की दिनचर्या बन गयी थी, और अलग अलग ट्रक चालकों द्वारा साझा किए गए अनुभवों का उपयोग वो टाटा ट्रकों में निरंतर सुधार के लिए किया करते थे।
कुछ इस तरह का जुनून और उत्साह था सुमंत मूलगांवकर का!! टाटा ट्रकों में लगातार सुधार करते रहने का, जिससे टेल्को आज इतनी ऊंचाइयों पर है।
1989 में मूलगांवकर का निधन हो गया किन्तु आपको ये जान कर हर्षमिश्रित विस्मय होगा कि वर्ष 1994 में प्रथम बार लांच की गई टाटा के अग्रणी वाहनों में से एक 'टाटा सूमो' उद्योग जगत में किसी भी कम्पनी द्वारा अपने किसी कर्मचारी को दी गयी अबतक की सबसे बड़ी श्रद्धांजलि है।
टाटा "सूमो"का नाम सुमंत का "सु" और मूलगांवकर के "मो" को जोड़ कर बना है ।
ठीक इसी तरह कोई भी देश अपने सभी नागरिकों के ऐसी ही निष्ठा, समर्पण और जूनून के साथ अपनी अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन से ही महान बनता है, न कि एक दूसरे के सर ठीकरा फोड़ने और सिर्फ सरकार पर ही सारी जिम्मेदारी थोपने से।
ठीक इसी तरह कोई भी देश अपने सभी नागरिकों के ऐसी ही निष्ठा, समर्पण और जूनून के साथ अपनी अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन से ही महान बनता है, न कि एक दूसरे के सर ठीकरा फोड़ने और सिर्फ सरकार पर ही सारी जिम्मेदारी थोपने से।
आइए हम सब मिल कर संकल्प करें कि भारत को दुनिया का महानतम देश बनाने के लिए अपना अपना योगदान अपने अपने कर्तव्यों का सही तरीके से निर्वहन करके देंगे।
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