Thursday 20 September 2018




सोहराबुद्दीन के भाई ने किया

कांग्रेस का पर्दाफाश...//

बहुचर्चित सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर केस में सोहराबुद्दीन शेख के भाई नयाबुद्दीन शेख ने सीबीआई कोर्ट में बेहद चौंकाने वाला खुलासा करते हुए बताया कि CBI ने अपने आप ही भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह और गुजरात पुलिस ऑफिसर अभय चुडास्मा का नाम इस मामले में जोड़ा था.




आज तक मीडिया रिपोर्ट मुताबिक नयामुद्दीन ने हादसे के दिन का जिक्र करते हुए कोर्ट को बताया कि उसने अपने भाई और भाभी को बस स्टैंड पर छोड़ा था. वो दोनों हैदराबाद जा रहे थे. उन्होंने कहा कि सीबीआई ने इस केस में तुलसीराम का नाम भी जानबूझ कर प्लांट किया.




नयाबुद्दीन शेख ने अपने जबरन लिए गए बयान पर कहा मैंने उस बयान में इस हिस्से को कभी बोला ही नहीं. बता ये बयान सीबीआई अफसर डीएस डागर ने लिया था.

जबरन बयान दिलवाये गए




याद दिला दें साल 2010 में नयाबुद्दीन शेख से ये बयान दिलवाया गया था “जब मैंने चुडास्मा को बताया कि हम अपनी याचिका वापस नहीं लेंगे, तब उन्होंने मुझे धमकाया और कहा कि मेरा हाल भी सोहराबुद्दीन जैसा ही होगा. मैं इस बारे में अमित भाई(अमितशाह) से बात करूंगा और ये मध्यप्रदेश में ही हो जाएगा. वहां पर भी उनकी ही सरकार है.”




अमित शाह ने कभी नहीं धमकाया




इस बयान पर नयामुद्दीन ने खुलासा करते हुए कहा कि उसपर कभी भी बीजेपी की तरफ से दबाव नहीं बनाया गया था, मैंने कभी नहीं कहा कि चूड़ास्मा ने उन्हें 50 लाख का ऑफर दिया और याचिका वापस लेने की बात कही थी. नयामुद्दीन ने साफ कहा कि अमित शाह और चुडास्मा ने कभी भी उसे नहीं धमकाया.




यानी कि अब ये केस आईने की तरह साफ़ हो गया है कांग्रेस ने ही मुस्लिम तुष्टिकरण व वोट बैंक के लिए सीबीआई का गलत इस्तेमाल किया और सीबीआई अफसरों ने इस एनकाउंटर को फर्जी एनकाउंटर बना दिया. साथ ही झूठे बयान दिलवाकर अमितशाह और अमितशाह से नरेंद्र मोदी तक को गिरफ्तार करने की बेहद सनसनीखेज़ साज़िश रची गयी थी.

आखिर कौन था सोहराबुद्दीन शेख?




सोहराबुद्दीन मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले के झिरन्या गाँव का रहने वाला एक हिस्‍ट्रीशीटर था। गुजरात पुलिस ने 26 नवंबर 2005 को उसे एक कथित फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया था। उसकी पत्‍नी कौसर बी को भी गुजरात पुलिस ने मुठभेड़ में मार दिया था. इसके एक साल बाद 26 दिसंबर 2006 को शेख के अंडवर्ल्‍ड साथी तुलसीराम प्रजापति को भी एक मुठभेड़ में गुजरात पुलिस ने मार गिराया था. तुलसी प्रजापति को सोहराबुद्दीन शेख के मुठभेड़ का चश्‍मदीद गवाह बनाकर पेश किया गया था। सोहराबुद्दीन शेख पर 90 के दशक में ही हथियारों की तस्‍करी का मामला दर्ज था.




सोहराबुद्दीन शेख के मप्र के झिरन्‍या गांव स्थित घर से वर्ष 1995 में 40 एके-47 राइफल बरामद हुआ था.उस पर गुजरात व राजस्‍थान के मार्बल व्‍यापारियों से हफ्ता वसूली और हत्‍या का मुकदमा भी दर्ज था। सोहराबुद्दीन अंडवर्ल्‍ड डॉन दाउद इब्राहिम के गुर्गे छोटा दाउद उर्फ शरीफखान पठान, अब्‍दुल लतीफ, रसूल पर्ती और ब्रजेश सिंह से जुड़ा था। लश्‍कर-ए-तोइबा व पाकिस्‍तान के आईएसआई से भी उसके संबंध थे.




1992 में बाबरी मस्जिद ढहने के बाद आतंक फैलाने के लिए अब्‍दुल लतीफ ने करांची में रह रहे छोटा दाउद उर्फ शरीफ खान से 40 एके 47 मंगवाया था, जिसे सोहराबुद्दीन ने रउफ नामक एक अन्‍य व्‍यक्ति के साथ मिल कर अमहमदाबाद स्थित दरियापुर से अपने गांव झिरन्‍या पहुंचा और वहां उसने हथियारों को कुएं में छिपा दिया था.




अपने शासन वाल महाराष्‍ट्र के थाने में सोहराबुद्दीन शेख के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बावजूद कांग्रेस सीबीआई के जरिए सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर को फर्जी साबित करने में लगी रही और इसके लिए उसने सीबीआई का गलत इस्‍तेमाल किया.

सोहराबुद्दीन को कांग्रेस ने बताया था शहीद




2007 में पूर्व डीआईजी डी.जी बंजारा सहित कई वरिष्‍ठ पुलिस अधिकारियों को इसमें गिरफ्तार किया गया था। भाजपा का आरोप था कि कांग्रेस गुजरात के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी व अमित शाह को फंसाने के लिए एक खतरनाक अपराधी के नाम पर राजनीति कर रही है. गुजरात सरकार को बदनाम करने के लिए दोनों सोहराबुद्दीन को ‘मौलाना’ यानी अपराधी की जगह ‘एक शहीद’ बनाने की कोशिश में लगे रहे, जो देश की सुरक्षा के लिए बेहद घातक था. इस केस को खोलने का श्रेय दैनिक भास्‍कर अखबार को जाता है.

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