अगर प्रधानमंत्री मोदी ने समय रहते हुए उचित कार्यवाही ना की होती तो राष्ट्र बिखरने के कगार पर होता..?
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संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के तीन विभाग - DPA (राजनीतिक)... DPKO (पीस कीपिंग) और DFS (फील्ड सपोर्ट) - विश्व कि शांति और सुरक्षा से सम्बंधित मामलो को सँभालते है.
डीपीए के विभागाध्यक्ष - जो एक तरह से संयुक्त राष्ट्र के विदेश मंत्री है - ने संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशो के समक्ष सदैव इस बात पे दुःख व्यक्त किया है कि हम विभाग द्वारा किये जा रहे प्रिवेंशन - हिंसक झगड़ो और विवादों को बढ़ने से रोकने के प्रयास - को कैसे मापेंगे ? कैसे हम यह सिद्ध करेंगे कि हमारे द्वारा किए गए प्रयासों के कारण ही फलाना देश एक और सीरिया नहीं हो गया?
यह तो सबको पता चल जाता है कि संयुक्त राष्ट्र की प्रिवेंटिव डिप्लोमेसी फेल हो गयी है.लेकिन यह कैसे पता चलेगा कि डीपीए ने किसी राष्ट्र या भूभाग में हिंसक झगड़ो और विवादों को बढ़ने से रोक दिया ? हमने फलाने राष्ट्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष में समझौता करवाया, राष्ट्र में शांतिपूर्ण चुनाव करवाए, राष्ट्र में राष्ट्रपति को संविधान के अनुसार कार्यकाल पूरा करने के बाद सत्ता छोड़ने के लिए प्रेरित किया. लेकिन यह कैसे प्रूव करेंगे कि यह हमारे ही प्रयास से हुआ ?यही समस्या प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों के लेकर है.,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,intro,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
यह तो सब मानते है कि सोनिया सरकार ने 9 लाख करोड़ से अधिक का एनपीए छोड़ा था, 1.44 लाख करोड़ रुपया ऑयल बॉन्ड का ऋण ले रखा था, 6.5 अरब डॉलर ईरान का बकाया छोड़ रखा है, और 34 लाख करोड़ रुपया ऋण के रूप में बांटा था.
लेकिन कुछ लोग इस बात की आलोचना करते है कि प्रधानमंत्री मोदी को इन्हीं चार पांच वर्षो में ऋण चुकाने की क्या आवश्यकता थी ? या फिर एनपीए की समस्या सुलझाने की क्या जल्दी पड़ी थी?
लेकिन यह कैसे सिद्ध करेंगे कि अगर प्रधानमंत्री मोदीं ने इस जर्जर व्यवस्था को सुधारने का प्रयास ना किया होता तो उसके क्या दुष्परिणाम होते ? क्या उसके लिए हमें भारत को वेनेजुएला बनने का इंतजार करना होता ? या फिर अर्जेंटीना ? या फिर पड़ोस के आतंकी देश की तरह कटोरा लेकर सबके सामने भीख मांगने को खड़ा होना पड़ता.
शायद तब आपको विश्वास हो जाता की पिछली सरकार के चोरों ने भारत का सारा पैसा लूट कर राष्ट्र को कंगाली के कगार पर छोड़ दिया था. लेकिन तब तक बहुत देर हो जाती. क्योंकि भारत में बदहाली, लूटमार, खाद्य और आवश्यक वस्तुओं को लेकर मारामारी तथा विश्व के सामने कटोरा लेकर बैठने को मजबूर हो जाता.
यह कहना तो बहुत आसान है कि प्रधानमंत्री मोदी को लोन चुकाने तथा अन्य सुधारों को करने के लिए 10 से 15 साल लेने चाहिए थे. अब उनके प्रयासों का लाभ अगले वर्ष कांग्रेसी ले जाएंगे. एक तरह से आप यह मानते हैं कि उन्हें अच्छे कार्य करने की सजा मिलेगी.?
लेकिन क्या यही सजा आप अपने माता-पिता को देने को तैयार हैं जिन्होंने स्वयं कष्ट सहकर, स्वयं सूखी रोटी खाकर हम सब को शिक्षा दिलायी, हमारी सुख-सुविधा में कोई कमी नहीं आने दी, जिससे हमारा भविष्य सुरक्षित हो सके. क्या हमें अपने माता पिता को उस समय उचित कार्यवाही करने का दोषी ठहराना चाहिए?
समस्या यही है कैसे सिद्ध करेंगे कि अगर प्रधानमंत्री मोदी ने समय रहते हुए उचित (प्रिवेंटिव) कार्यवाही ना की होती तो राष्ट्र बिखरने के कगार पर होता?
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संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के तीन विभाग - DPA (राजनीतिक)... DPKO (पीस कीपिंग) और DFS (फील्ड सपोर्ट) - विश्व कि शांति और सुरक्षा से सम्बंधित मामलो को सँभालते है.
डीपीए के विभागाध्यक्ष - जो एक तरह से संयुक्त राष्ट्र के विदेश मंत्री है - ने संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशो के समक्ष सदैव इस बात पे दुःख व्यक्त किया है कि हम विभाग द्वारा किये जा रहे प्रिवेंशन - हिंसक झगड़ो और विवादों को बढ़ने से रोकने के प्रयास - को कैसे मापेंगे ? कैसे हम यह सिद्ध करेंगे कि हमारे द्वारा किए गए प्रयासों के कारण ही फलाना देश एक और सीरिया नहीं हो गया?
यह तो सबको पता चल जाता है कि संयुक्त राष्ट्र की प्रिवेंटिव डिप्लोमेसी फेल हो गयी है.लेकिन यह कैसे पता चलेगा कि डीपीए ने किसी राष्ट्र या भूभाग में हिंसक झगड़ो और विवादों को बढ़ने से रोक दिया ? हमने फलाने राष्ट्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष में समझौता करवाया, राष्ट्र में शांतिपूर्ण चुनाव करवाए, राष्ट्र में राष्ट्रपति को संविधान के अनुसार कार्यकाल पूरा करने के बाद सत्ता छोड़ने के लिए प्रेरित किया. लेकिन यह कैसे प्रूव करेंगे कि यह हमारे ही प्रयास से हुआ ?यही समस्या प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों के लेकर है.,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,intro,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
यह तो सब मानते है कि सोनिया सरकार ने 9 लाख करोड़ से अधिक का एनपीए छोड़ा था, 1.44 लाख करोड़ रुपया ऑयल बॉन्ड का ऋण ले रखा था, 6.5 अरब डॉलर ईरान का बकाया छोड़ रखा है, और 34 लाख करोड़ रुपया ऋण के रूप में बांटा था.
लेकिन कुछ लोग इस बात की आलोचना करते है कि प्रधानमंत्री मोदी को इन्हीं चार पांच वर्षो में ऋण चुकाने की क्या आवश्यकता थी ? या फिर एनपीए की समस्या सुलझाने की क्या जल्दी पड़ी थी?
लेकिन यह कैसे सिद्ध करेंगे कि अगर प्रधानमंत्री मोदीं ने इस जर्जर व्यवस्था को सुधारने का प्रयास ना किया होता तो उसके क्या दुष्परिणाम होते ? क्या उसके लिए हमें भारत को वेनेजुएला बनने का इंतजार करना होता ? या फिर अर्जेंटीना ? या फिर पड़ोस के आतंकी देश की तरह कटोरा लेकर सबके सामने भीख मांगने को खड़ा होना पड़ता.
शायद तब आपको विश्वास हो जाता की पिछली सरकार के चोरों ने भारत का सारा पैसा लूट कर राष्ट्र को कंगाली के कगार पर छोड़ दिया था. लेकिन तब तक बहुत देर हो जाती. क्योंकि भारत में बदहाली, लूटमार, खाद्य और आवश्यक वस्तुओं को लेकर मारामारी तथा विश्व के सामने कटोरा लेकर बैठने को मजबूर हो जाता.
यह कहना तो बहुत आसान है कि प्रधानमंत्री मोदी को लोन चुकाने तथा अन्य सुधारों को करने के लिए 10 से 15 साल लेने चाहिए थे. अब उनके प्रयासों का लाभ अगले वर्ष कांग्रेसी ले जाएंगे. एक तरह से आप यह मानते हैं कि उन्हें अच्छे कार्य करने की सजा मिलेगी.?
लेकिन क्या यही सजा आप अपने माता-पिता को देने को तैयार हैं जिन्होंने स्वयं कष्ट सहकर, स्वयं सूखी रोटी खाकर हम सब को शिक्षा दिलायी, हमारी सुख-सुविधा में कोई कमी नहीं आने दी, जिससे हमारा भविष्य सुरक्षित हो सके. क्या हमें अपने माता पिता को उस समय उचित कार्यवाही करने का दोषी ठहराना चाहिए?
समस्या यही है कैसे सिद्ध करेंगे कि अगर प्रधानमंत्री मोदी ने समय रहते हुए उचित (प्रिवेंटिव) कार्यवाही ना की होती तो राष्ट्र बिखरने के कगार पर होता?
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