फ़ौज ..
आम जनमानस में फौजी शब्द बड़ा सम्मानित है ........निसंदेह सम्मान होना भी चाहिए .क्योकि एक फौजी प्रत्यक्ष रूप से देश की रक्षा करता है ....................ये एक सामान्य तथ्य है ..............लेकिन उसी फ़ौज में बहुत से पद तथा श्रेणिया होती है तथा अलग अलग जिम्मेदारियां भी ........फ़ौज में क्लर्क भी होते है तथा आफिसियल काम करने वाले भी ..........ड्राइवर भी होते है और कर्नल ब्रिगेडियर भी .........कुल मिला के किसी भी फ़ौज में देश की सुरक्षा व्यबस्था को सुनिश्चत करने वाले असंख्य कारक होते है ..............अर्थात सेना के साधारण सिपाही से लेकर सेनाध्यक्ष तक .......लेकिन
इन सबके इतर फ़ौज में सामान्य कमांडो भी होते है और उसके बाद सुपर इलीट कमांडो भी .तथा फ़ौज की अपनी खुद की कई इंटेलिजेंस एजेंसियां भी ...........फ़ौज में किसी भी असाध्य या दुरूह मिशन को पूरा करने के लिए .तीन तत्व शामिल होते है .सबसे पहले इंटेलिजेंस एजेंसिया दुश्मन के खिलाफ इनपुट एकत्र करने का कठिन काम करती है ........फिर ये सूचना सम्बंधित मिलिट्री यूनिट के अधिकारी के पास जाती है और फिर ये विवरण आगे के उच्च अधिकारियों से शेयर किया जाता है ............अगर इनपुट और मिशन ऐसा है जिससे राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव होने की संभावना हो तो ऐसे विषय सेनाध्यक्ष से होते हुए ............रक्षामंत्री , प्रधानमन्त्री तथा देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के संज्ञान में लाए जाते है फिर आगे के निर्णय की प्रक्रिया में इंटेलिजेंस ब्यूरो , मिलट्री इंटेलिजेंस , रिसर्च एंड एनालिसिस विंग सहित कई ज्ञात अज्ञात एजेंसियों एजेंसियों के शीर्ष अधिकारियों के साथ चर्चा कर बड़े मिशनो को चलाने या कुछ समय रोकने अथवा स्थगित अवस्था में रखने के निर्णय लिए जाते है ......... ...कहने का आशय यह भी की अगर कोई फ़ौज में काम कर रहा है तो जरुरी नही की उसे हर विषय की जानकारी हो .फ़ौज में एक यूनिट को दूसरी यूनिट के बारे में समग्र जानकारी नही होती ....................पाकिस्तान में की गयी सर्जिकल स्ट्राइक में शामिल इलीट कमांडो कश्मीर के अलग अलग स्थानों पर विभिन्न मिलिट्री यूनिटों में आपरेशन से पहले की रात रुके थे उन यूनिटों के लोगो को भी ये नही पता था की ये इलीट कमांडो देश भर के बिभिन्न इलाको से कश्मीर घाटी में किस मिशन को अंजाम देने आये है ..........इसके अलाबा अगर मिशन सामान्य है तो यूनिट या ब्रिगेड मुख्यालय से ही सारे निर्णय ले लिए जाते है ..
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नया दोस्त : Chetan Kamble ये मेरे नए मित्र हैं जो मुम्बई के परेल इलाके में मिले, मैं टाटा हॉस्पिटल में था कि अचानक मेरी चप्पल ने रिपेयरिंग माँग ली, बाहर निकला तो मोची को ढूंढ रहा था, सड़क किनारे एक दुकान दिखी तो उस पर पहुँच गया, देखा तो एक स्मार्ट सा नवयुवक बैठा एंड्राइड मोबाइल चला रहा था, एक मिनट को मुझे समझ नही आया कि ये मोची है या कस्टमर, पर जिस हिसाब से वो बैठा था मैंने संकोच करते हुए पूछा "भैया इधर आप ही हैं क्या?" कान में से इयर फोन निकालते हुए वो बोला जी कहिये, मैंने बड़ी विनम्रता के साथ कहा मेरी चप्पल रिपेयर होनी है आप कर सकते हैं क्या?
उन्होंने झट से मोबाइल साइड में रखा और जिन हाथों में अभी महँगा मोबाइल पकड़ा हुआ था उन्ही हाँथो में अब मेरी चप्पल थी, देख कर बोले सर इसकी सिलाई होगी, मैंने पूछा आप कर लेंगे? जी बिल्कुल कर दूँगा, मैंने कहा ठीक है कर दीजिए......
अब आदत से मजबूर मैं भला चुप कहाँ रहने वाला था सो बातों का सिलसिला शुरू कर दिया, थोड़ी देर बाद पूछा अगर आप बुरा ना माने तो क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ, और दुकान पर एक जगह कपड़े से साफ कर के बैठ गया, पूछा घर मे कौन कौन है? पता चला पिताजी ओला कैब चलाते हैं और एक भाई जूता बनाने की कला सीख रहा है ....
मुझे लगा ये कुछ ना कर पाए होंगे इसलिए इन्हें इस दुकान पर मोचिगिरी करने बैठा दिया गया होगा, फिर भी मैंने पूछा तो पता चला कि अगला 12th पास है वो भी इंग्लिश मीडियम से, अभी B.Com पढ़ रहे हैं, अब तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही रहा, मेरी आँखों मे चमक आ चुकी थी और ढेर सारे प्रश्न दाग दिए ...
मैंने पूछा आपको तो रिजर्वेशन मिलता है फिर सरकारी नौकरी क्यो नही करते? तो पता चला उनके बाप दादाओं ने किसी ने सरकारी नौकरी नही करी, ऊपर से चेतन भाई ने यह भी कह दिया कि नौकरी मिलती ही कहाँ है? वो तो सिर्फ कुछ खास लोगों को मिलती है, आरक्षण का फायदा उन्हें या उनके परिवार को तो आज तक नही मिला ....
मैंने समझाया कि कुछ लोग बार बार फायदा ले जाते हैं जिस से आपको आरक्षण का फायदा नही मिल पा रहा, इसपर चेतन जी का जवाब सुनकर मैं हैरान रह गया, वे बोले सब राजनीति है साहब हमें ना तो आज तक कोई फायदा मिला ना आगे उम्मीद और ना ही चाहिए, ना मुझे सरकारी नौकरी की आस है, मैं तो अपनी दुकान चला रहा हूँ, मेरा भाई जिस दिन जूते बनाने का काम सीख जाएगा हम जूते बनाएंगे ....
यानी लाख समझाने और आरक्षण का लालच देने पर भी चेतन जी को सरकारी नौकरी से ज़्यादा अपना स्वाभिमान प्रिय है, उन्हें स्वावलंबी बनने में फक्र महसूस होता है, नौकरी नही स्वरोजगार में विश्वास रखते हैं, वे खुद नौकरी नही ढूंढ रहे बल्कि वो रास्ते ढूंढ रहे हैं जिन से वे औरों को नौकरी दे सकें, वे खुद के परिवार के साथ अन्य कई परिवारों को पालने का सपना देखते हैं, वे इस देश के GDP में अपना योगदान देना चाहते हैं, इस देश की रीढ़ को मजबूत करना चाहते हैं ।
कमाल है आज जहां एक तरफ आरक्षण के लिए कुछ लोग मरे जा रहे हैं, जहाँ आज राजनैतिक पार्टियां आरक्षण के नाम पर देश मे आग लगा रही हैं, वहीं चेतन जैसे युवा इस अंधियारे में आशा की एक किरण नही बल्कि पूरी मशाल की तरह उजियारा फैला रहे हैं, चेतन गर्व से कहते हैं काम कोई भी हो छोटा बड़ा नही होता, मुझे इस काम मे शर्म क्यो महसूस हो? शर्म तो उन बड़े लोगों को आनी चाहिए जो बेईमानी करते हैं, दूसरों का हक़ मरते हैं, बड़ी बड़ी गाड़ियों में घूमते हैं लेकिन टैक्स की चोरी करते हैं ।
बातचीत के बाद मैं उठा चप्पल पहनी, हाँथ मिलाया और आगे बढ़ गया ये सोचते हुए की "मेरा देश बदल रहा है" और हाँ एक बात तो मैं आपको बताना ही भूल गया, बतौर मित्र चेतन जी ने मुझे डिस्काउंट भी दिया ।
अगर आप भी टाटा हॉस्पिटल या परेल इलाके में जाएं तो चेतन भाई से मिल कर उनका हौसला अवश्य बढ़ायेगा ।
मेरे पास शब्द नही हैं चेतन की तारीफ करने के लिए, हे राष्ट्रवादी चेतन, नितिन शुक्ला आपको सैलूट करता है ।
Nitin Shukla जी की पोस्ट
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