स्वास्तिक
अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वास्तिक चिन्ह अंकित करके उसका पूजन किया जाता है।
स्वास्तिक शब्द सु अस क से बना है। ‘सु’ का अर्थ अच्छा, ‘अस’ का अर्थ ‘सत्ता’ या ‘अस्तित्व’ और ‘क’ का अर्थ ‘कर्त्ता’ या करने वाले से है। इस प्रकार ‘स्वास्तिक’ शब्द का अर्थ हुआ ‘अच्छा’ या ‘मंगल’ करने वाला।
स्वस्तिक में एक दूसरे को काटती हुई दो सीधी रेखाएँ होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएँ अपने सिरों पर थोड़ी और आगे की तरफ मुड़ी होती हैं।
स्वास्तिक की यह आकृति दो प्रकार की हो सकती है।
प्रथम स्वास्तिक - जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे ‘स्वास्तिक’ (卐) कहते हैं।
द्वितीय स्वास्तिक - आकृति में रेखाएँ पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारे बायीं ओर मुड़ती हैं। इसे ‘वामावर्त स्वस्तिक’ (卍) कहते हैं। जर्मनी के हिटलर के ध्वज में यही ‘वामावर्त स्वास्तिक’ अंकित था, जिसने उसका अंत किया।
बुल्गारिया में 7000 वर्ष पहले इस्तेमाल होता था, आपको आश्चर्य होगा लेकिन यह सत्य है पश्चिमी बुल्गारिया के Vratsa नगर के संग्रहालय मे चल रही एक प्रदर्शनी मे 7000 वर्ष प्राचीन कुछ मिट्टी की कलाकृतियां रखी गईँ हैं जिसपर स्वास्तिक (卍) का चिन्ह बना है|
Vratsa शहर के ही निकट Altimir नामक गाँवके एक धार्मिक यज्ञ कुण्ड की खुदाई के समय ये कलाकृतियाँ मिली थी
स्वास्तिक का महत्व:-
स्वास्तिक को चित्र के रूप में भी बनाया जाता है और लिखा भी जाता है जैसे "स्वास्ति न इन्द्र:" आदि। स्वास्तिक भारतीयों में सभी मांगलिक कार्यों मेँ प्रयोग किया जाता है, जैसे - विवाह आदि घर के अन्दर कोई भी मांगलिक कार्य होने पर "ऊँ" और स्वास्तिक का दोनोँ का अथवा एक एक का प्रयोग किया जाता है। हिन्दू समाज में किसी भी शुभ संस्कार में स्वास्तिक का अलग अलग तरीके से प्रयोग किया जाता है, बच्चे का पहली बार जब मुंडन संस्कार किया जाता है तो स्वास्तिक को बुआ के द्वारा बच्चे के सिर पर हल्दी रोली मक्खन को मिलाकर
बनाया जाता है,स्वास्तिक को सिर के ऊपर बनाने का अर्थ माना जाता है कि धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों का योग रूप सिर पर
हमेशा प्रभावी रहे,
स्वास्तिक के अन्दर चारों भागों के अन्दर बिन्दु लगाने का मतलब होता है कि व्यक्ति का दिमाग केन्द्रित रहे, चारों तरफ़ भटके नही, वृहद रूप में स्वास्तिक की भुजा का फ़ैलाव सम्बन्धित दिशा से सम्पूर्ण ऊर्जा को एकत्रित करने के बाद बिन्दु की तरफ़ इकट्ठा करने से भी माना जाता है, स्वास्तिक का केन्द्र जहाँ चारों भुजायें एक साथ काटती है,उसे सिर के बिलकुल बीच में चुना जाता है, बीच का स्थान बच्चे के सिर में परखने के लिये जहाँ हड्डी विहीन हिस्सा होता है और एकतरह से ब्रह्मरंध के रूप में उम्र की प्राथमिक अवस्था में उपस्थित होता है और वयस्क होने पर वह हड्डी से ढक जाता है,
स्वास्तिक संस्कृत भाषा का अव्यय पद है,पाणिनीय व्याकरण के अनुसार इसे व्याकरण कौमुदी में ५४ वें क्रम पर अव्यय पदों में गिनाया गया है। यह स्वास्तिक पद ’सु’ उपसर्ग तथा ’अस्ति’ अव्यय (क्रम ६१)के संयोग से बना है, इसलिये ’सु अस्ति=स्वास्तिक’ इसमें ’इकोयणचि’ सूत्र से उकार के स्थान में विकार हुआ है। ’स्वास्ति’ में भी’अस्ति’ को अव्यय माना गया है और ’स्वास्ति’ अव्यय पद का अर्थ ’कल्याण’ ’मंगल’’शुभ’ आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है। जब स्वास्ति में ’क’ प्रत्यय का समावेश हो जाता है तो वह कारक का रूप धारण कर लेता है और उसे ’स्वास्तिक’ का नाम दे दिया जाता है।
स्वास्तिक का चिन्ह भारत के अलावा विश्व मेँ अन्य देशों में भी प्रयोग में लाया जाता है, जर्मन देश में इसे राजकीय चिन्ह से शोभायमान किया गया है, हिटलर का यह फ़ौज का निशान था, कहा जाता है कि वह इसे अपनी वर्दी पर दोनो तरफ़ बैज के रूप में प्रयोग करता था, लेकिन उसके अंत के समय भूल से वर्दी के बेज में उसे टेलर ने उल्टा लगा दिया था, जो उसके विनाश का कारण बना, जितना अर्थ सीधे स्वास्तिक का शुभ कार्योँ मेँ लगाया जाता है, उससे भीअधिक उल्टे स्वास्तिक का अनर्थ
भी माना जाता है।
स्वास्तिक की भुजाओं का प्रयोग अन्दर की तरफ़ गोलाई में लाने पर वह सौम्य माना जाता है, बाहर की तरफ़ नुकीले हथियार के रूप में करने पर वह रक्षक के रूप में माना जाता है। काला स्वास्तिक शमशानी शक्तियों को बस में करने केलिये किया जाता है, लाल स्वास्तिक का प्रयोग शरीर की सुरक्षा के साथ भौतिक सुरक्षा के प्रति भी माना जाता है, भी स्वास्तिक का प्रयोग आदि काल से
किया है, लेकिन वहां सौम्यता और दिशा निर्देश नही होता है। केवल धन (+) का निशान ही मिलता है। पीले रंग का स्वास्तिक धर्म के मामलों में और संस्कार के मामलों में और संस्कार के मामलों में किया जाता है, विभिन्न रंगों का प्रयोग विभिन्न कारणों के लिये किया जाता स्वास्तिक के चारो और सर्वाधिक पॉजीटिव ऊर्जा पाई गई है दूसरे नंबरपर शिवलिँग है इसे वोविस नाम के वैज्ञानिक ने अपनी तकनीक से नापा इसलिये इसे वोविस एनर्जी कहते है । अधिक पाजिटिव एनर्जी की वजह से स्वास्तिक किसी भी तरह का वास्तुदोष तुरंत समाप्त कर देता है।
अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वास्तिक चिन्ह अंकित करके उसका पूजन किया जाता है।
स्वास्तिक शब्द सु अस क से बना है। ‘सु’ का अर्थ अच्छा, ‘अस’ का अर्थ ‘सत्ता’ या ‘अस्तित्व’ और ‘क’ का अर्थ ‘कर्त्ता’ या करने वाले से है। इस प्रकार ‘स्वास्तिक’ शब्द का अर्थ हुआ ‘अच्छा’ या ‘मंगल’ करने वाला।
स्वस्तिक में एक दूसरे को काटती हुई दो सीधी रेखाएँ होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएँ अपने सिरों पर थोड़ी और आगे की तरफ मुड़ी होती हैं।
स्वास्तिक की यह आकृति दो प्रकार की हो सकती है।
प्रथम स्वास्तिक - जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे ‘स्वास्तिक’ (卐) कहते हैं।
द्वितीय स्वास्तिक - आकृति में रेखाएँ पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारे बायीं ओर मुड़ती हैं। इसे ‘वामावर्त स्वस्तिक’ (卍) कहते हैं। जर्मनी के हिटलर के ध्वज में यही ‘वामावर्त स्वास्तिक’ अंकित था, जिसने उसका अंत किया।
बुल्गारिया में 7000 वर्ष पहले इस्तेमाल होता था, आपको आश्चर्य होगा लेकिन यह सत्य है पश्चिमी बुल्गारिया के Vratsa नगर के संग्रहालय मे चल रही एक प्रदर्शनी मे 7000 वर्ष प्राचीन कुछ मिट्टी की कलाकृतियां रखी गईँ हैं जिसपर स्वास्तिक (卍) का चिन्ह बना है|
Vratsa शहर के ही निकट Altimir नामक गाँवके एक धार्मिक यज्ञ कुण्ड की खुदाई के समय ये कलाकृतियाँ मिली थी
स्वास्तिक का महत्व:-
स्वास्तिक को चित्र के रूप में भी बनाया जाता है और लिखा भी जाता है जैसे "स्वास्ति न इन्द्र:" आदि। स्वास्तिक भारतीयों में सभी मांगलिक कार्यों मेँ प्रयोग किया जाता है, जैसे - विवाह आदि घर के अन्दर कोई भी मांगलिक कार्य होने पर "ऊँ" और स्वास्तिक का दोनोँ का अथवा एक एक का प्रयोग किया जाता है। हिन्दू समाज में किसी भी शुभ संस्कार में स्वास्तिक का अलग अलग तरीके से प्रयोग किया जाता है, बच्चे का पहली बार जब मुंडन संस्कार किया जाता है तो स्वास्तिक को बुआ के द्वारा बच्चे के सिर पर हल्दी रोली मक्खन को मिलाकर
बनाया जाता है,स्वास्तिक को सिर के ऊपर बनाने का अर्थ माना जाता है कि धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों का योग रूप सिर पर
हमेशा प्रभावी रहे,
स्वास्तिक के अन्दर चारों भागों के अन्दर बिन्दु लगाने का मतलब होता है कि व्यक्ति का दिमाग केन्द्रित रहे, चारों तरफ़ भटके नही, वृहद रूप में स्वास्तिक की भुजा का फ़ैलाव सम्बन्धित दिशा से सम्पूर्ण ऊर्जा को एकत्रित करने के बाद बिन्दु की तरफ़ इकट्ठा करने से भी माना जाता है, स्वास्तिक का केन्द्र जहाँ चारों भुजायें एक साथ काटती है,उसे सिर के बिलकुल बीच में चुना जाता है, बीच का स्थान बच्चे के सिर में परखने के लिये जहाँ हड्डी विहीन हिस्सा होता है और एकतरह से ब्रह्मरंध के रूप में उम्र की प्राथमिक अवस्था में उपस्थित होता है और वयस्क होने पर वह हड्डी से ढक जाता है,
स्वास्तिक संस्कृत भाषा का अव्यय पद है,पाणिनीय व्याकरण के अनुसार इसे व्याकरण कौमुदी में ५४ वें क्रम पर अव्यय पदों में गिनाया गया है। यह स्वास्तिक पद ’सु’ उपसर्ग तथा ’अस्ति’ अव्यय (क्रम ६१)के संयोग से बना है, इसलिये ’सु अस्ति=स्वास्तिक’ इसमें ’इकोयणचि’ सूत्र से उकार के स्थान में विकार हुआ है। ’स्वास्ति’ में भी’अस्ति’ को अव्यय माना गया है और ’स्वास्ति’ अव्यय पद का अर्थ ’कल्याण’ ’मंगल’’शुभ’ आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है। जब स्वास्ति में ’क’ प्रत्यय का समावेश हो जाता है तो वह कारक का रूप धारण कर लेता है और उसे ’स्वास्तिक’ का नाम दे दिया जाता है।
स्वास्तिक का चिन्ह भारत के अलावा विश्व मेँ अन्य देशों में भी प्रयोग में लाया जाता है, जर्मन देश में इसे राजकीय चिन्ह से शोभायमान किया गया है, हिटलर का यह फ़ौज का निशान था, कहा जाता है कि वह इसे अपनी वर्दी पर दोनो तरफ़ बैज के रूप में प्रयोग करता था, लेकिन उसके अंत के समय भूल से वर्दी के बेज में उसे टेलर ने उल्टा लगा दिया था, जो उसके विनाश का कारण बना, जितना अर्थ सीधे स्वास्तिक का शुभ कार्योँ मेँ लगाया जाता है, उससे भीअधिक उल्टे स्वास्तिक का अनर्थ
भी माना जाता है।
स्वास्तिक की भुजाओं का प्रयोग अन्दर की तरफ़ गोलाई में लाने पर वह सौम्य माना जाता है, बाहर की तरफ़ नुकीले हथियार के रूप में करने पर वह रक्षक के रूप में माना जाता है। काला स्वास्तिक शमशानी शक्तियों को बस में करने केलिये किया जाता है, लाल स्वास्तिक का प्रयोग शरीर की सुरक्षा के साथ भौतिक सुरक्षा के प्रति भी माना जाता है, भी स्वास्तिक का प्रयोग आदि काल से
किया है, लेकिन वहां सौम्यता और दिशा निर्देश नही होता है। केवल धन (+) का निशान ही मिलता है। पीले रंग का स्वास्तिक धर्म के मामलों में और संस्कार के मामलों में और संस्कार के मामलों में किया जाता है, विभिन्न रंगों का प्रयोग विभिन्न कारणों के लिये किया जाता स्वास्तिक के चारो और सर्वाधिक पॉजीटिव ऊर्जा पाई गई है दूसरे नंबरपर शिवलिँग है इसे वोविस नाम के वैज्ञानिक ने अपनी तकनीक से नापा इसलिये इसे वोविस एनर्जी कहते है । अधिक पाजिटिव एनर्जी की वजह से स्वास्तिक किसी भी तरह का वास्तुदोष तुरंत समाप्त कर देता है।
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