Monday, 28 March 2016

कांधार से लेकर तक्षशिला तक फैला था मौर्यकालीन भारत, लगातार हमलों में खोई है जमीन

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मौर्यकालीन भारत कांधार से लेकर तक्षशिला तक फैला हुआ था। मौर्य राजवंश की समाप्ति के करीब 1 हजार साल बाद भी भारत की सीमा यही रही थी और इसे भारतीय इतिहास का स्वर्णिम काल कहा जा सकता है। लेकिन बाद में विदेशी आक्रमणकारियों की वजह से भारत ने अपनी जमीन लगातार खोई है।

भारत पर पहला विदेशी आक्रमण 326 ईसा पूर्व में यूनान के राजा सिकन्दर ने किया था। विश्व विजय की तमन्ना लिए हुए सिकन्दर मिस्र और फारस को रौंदता हुआ तक्षशिला तक आ पहुंचा। युवराज आम्भी से संधि कर उसने तक्षशिला पर अधिकार कर लिया।

भारत की अकूत सम्पदा से प्रभावित सिकन्दर ने इस देश के अंदर तक आक्रमण किए, लेकिन चाणक्य ने भारतीयों में नवचेतना का संचार किया। इससे एक नए राजनीतिक शक्ति का सूत्रपात हुआ। इसको आधार बना कर चाणक्य के शिष्य चंद्रगुप्त ने भारत को एक सूत्र में बांधकर मौर्य साम्राज्य की नींव रखी, जिसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी।

सम्राट चन्द्रगुप्त ने अपने जीवनकाल में भारत की सीमा का उत्तरी और पश्चिमी भाग में तक्षशिला से लेकर कांधार तक विस्तार किया। उनका राज्य सुदूर दक्षिण में ब्रह्मगिरी, और हिमालय की तराई में लुम्बिनी से लेकर श्रावस्ती तक फैला हुआ था।

मौर्यकाल में भारत कुछ ऐसा दिखता था।

मौर्यवंश की समाप्ति के करीब 600 साल बाद तक भारत पर विदेशी आक्रमण नहीं हुए। लेकिन 711 ई. में इस्लामिक आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम ने राज दाहिर को युद्ध में हरा दिया और सिन्ध और मुल्तान को जी भर कर लूटा। यह वक्त भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लाम की शुरुआत का था।

इसके बाद मुहम्मद गजनवी, मुहम्मद गौरी, चंगेज खान और बाबर सरीखे बर्बर आक्रमणकारियों की वजह से भारत लगातार अपनी जमीन खोता चला गया।

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