शिक्षा व्यवस्था तकनीकी और विज्ञान की बातें, थोड़ी सी कृषि व्यवस्था की बातें
एक अंग्रेज है जिसका नाम है जी डब्लू लिट्नेर वो भारत में कगी लम्बे समय तक रहा, और एक दूसरा अंग्रेज जिसका नाम थोड़ी देर पहले मैंने लिया थामस मुनरो, ये भी भारत में काफी दिनों तक रहा. ये दोनों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था पर बहुत ज्यादा काम किया है. एक और अंग्रेज है जिसका नाम है?? टेंडरक्रस्ट !!! उसने भारत की टेक्नोलोजी और विज्ञान पर बहुत ज्यादा कम किया है. और एक अंग्रेज है केम्पबेल कर के उसने भी भारत की विज्ञान और तकनिकी पर बहुत ज्यादा काम किया है. केम्पबेल का एक छोटा सा वाक्य मै आपको सुनाता हु वो ये कहता है “जिस देश में उत्पादन सबसे अधिक होता है, ये तभी संभव है जब उस देश में कारखाने हो, और कारखाने किसी देश में तभी संभव है, जब वहां पर कोई तकनीकी हो, टेक्नोलोजी हो, और टेक्नोलोजी किसी देश में तभी संभव है जब वहां पर विज्ञान हो. और विज्ञान किसी देश में मूल रूप से शोध के लिए अगर प्रस्तुत है तो उसमे से तकनीकी का निर्माण होता है.
इस वाक्य को सरल तरीके से हम समझे कि मूल विज्ञान होता है जिसको हम आज की अंग्रेजी भाषा में फंडामेंटल साइंस कहते है फिर उसमे से एप्लाइड साइंस निकलता है वो प्रायोगिक विज्ञान होता है. और उस प्रायोगिक विज्ञान में से तकनीकी निकलती है और उस तकनीकी में से कारखाने निकलते है. और उन कारखानों से फिर उत्पादन होता है, वो उत्पादन फिर सारी दुनिया में बिकता है. तो ये बात अगर केम्पबेल कहता है कि भारत में टेक्नोलोजी हजारो सालो से रही है तो कारखाने भी रहे होंगे तो उसके बारे में जब खोज की गई तो पता चला के १८ वी सताब्दी तक इस देश में इतनी बेहतरीन टेक्नोलोजी रही है स्टील बनाने की जो दुनिया में कोई आज कल्पना नहीं कर सकता. स्टील बनाने की जो टेक्नोलोजी भारत में रही है, लोहा इस्पात बनाने की टेक्नोलोजी जो भारत में रही है, दुनिया में किसी देश के पास नहीं है. अंग्रेजो का ये जो अधिकारी है केम्पबेल वो ये कहता है कि भारत का बनाया हुआ लोहा, भारत का बनाया हुआ इस्पात, सारी दुनिया में सर्वश्रेष्ट माना जाता है. उसके बारे में वो एक मुहावरा दे रहा है और वो ये कह रहा है कि इंग्लैंड में या यूरोप में अच्छे से अच्छा जो लोहा बनता है वो भारत के घटिया से भी घटिया लोहे का भी मुकाबला नहीं कर सकता. ये केम्पबेल सन १८४२ में कह रहा है.
उसके बाद एक जेम्स फ्रेंक्लिन नाम का अंग्रेज है बहुत बड़ा उसको जो है धातु कर्मी विशेषज्ञ माना जाता है. वो ये कहता है कि भारत के कारीगर स्टील को बनाने के लिए भट्टिया तैयार करते है वो भट्टिया जिनको हम अंग्रेजी में ब्लास्ट फर्नेस कहते है वो दुनिया में कोई नहीं बना पाता. वो कहता है कि इंग्लैंड में लोहा बनाना तो हमने १९२५ के बाद शुरु किया भारत में तो लोहा १० वी. सताब्दी से ही हजारो हजारो टन में बनता रहा है और दुनिया के देशो में बिकता रहा है. . वो ये कहता है कि में सन १७६४ में भारत से स्टील का एक नमूना ले के आया था मैंने इंग्लैंड के सबसे बड़े विशेषज्ञ डॉ. स्कॉट को स्टील दिया था, और उनको ये कहा था कि लन्दन रॉयल सोसाइटी की तरफ से आप इसकी जाँच कराइए डॉ स्कॉट ने भारत के उस स्टील की जाँच कराइ तो कहा कि ये भारत का स्टील इतना अच्छा है कि सर्जरी के लिए बनाए जाने वाले सारे उपकरण इससे बनाए जा सकते है. जो दुनिया में किसी दुसरे देश के पास उपलब्ध नहीं है. आप जानते है सर्जरी के लिए जो उपकरण बनाए जाते है चाकू बनाए जाते है, छुरिया बनाई जाती है, कैंचिया बनाई जाती है, टांका लगाने के लिए सुई बनाई जाती है. ऐसे १०० से ज्यादा उपकरण सर्जरी के लिए बनाए जाते है, तो डॉ. स्कॉट कह रहे है इस बात को १७६४ में कि दुनिया में किसी भी देश के पास सर्जरी के लायक बनाने वाला स्टील नहीं है, क्योकि उनकी क्वालिटी अच्छी नहीं है. लेकिन भारत का स्टील जो मेरे पास आया है, ये इतना अदभुत है कि इससे सर्जरी के सारे उपकरण हम बना सकते है. फिर वो अंत में कह रहे है कि मुझे ऐसा लगता है कि भारत का ये स्टील हम पानी में भी डालकर रक्खे तो इनमे कभी जंग नहीं लगेगा, क्योकि इसकी क्वालिटी इतनी अच्छी है.
एक अंग्रेज अधिकारी है उसका नाम है लेफ्टिनेंट कर्नल ए. वाकर, उसने भारत के शिपिंग इंडस्ट्री पर में सबसे ज्यादा रिसर्च किया है. वो ये कहता है कि भारत का जो अदभुत लोहा है, स्टील है ये जहांज बनाने के काम में बहूत ज्यादा आता है. और वो कहता है कि दुनिया में दुनिया में जहांज बनाने की सबसे पहली कला और सबसे पहली तकनिकी भारत में ही विकसित हुई है. और दुनिया के देशो ने पानी के जहांज बनाना भारत से सीखा है. और किसी देश के पास पानी का जहांज बनाने की तकनिकी उपलब्ध ही नहीं रही है. फिर वो कह्ता है कि भारत इतना विशाल देश है इसमें लगभग २ लाख गाँव है, इन २ लाख गावों को समुद्र के किनारे स्थापित हुआ माना जाता है. इन सभी गावों में जहांज बनाने का काम पिछले हजारों वर्षो से चलता है. वो ये कहता है कि हम अंग्रेज लोगों को जहांज खरीदना हो तो हम भारत में जाते है और वहां से जहांज खरीद कर लाते है. फिर वो अपने आगे अख रहा है कि ईस्ट इंडिया कंपनी के जितने भी पानी के जहांज दुनिया में चल रहे है ये सारे के सारे जहांज भारत की स्टील से बने है. ये बात मुझे कहते हुए शर्म आती है के हम अंग्रेज अभी तक इतनी अच्छी क्वालिटी का स्टील बनाना नहीं शुरु कर पाए है.इतनी मजबूत पानी के जहांज बनाने की कला और टेक्नोलोजी भारत के कारीगरों के हाँथ में है. और फिर वो वो कहता है के हम जितने धन में एक नया पानी का जहांज बनाते है, उतने ही धन में भारतवासी चार नए जहांज पानी के बना लेते है. फिर वो अंत में कहता है के हम भारत में पुराने पानी के जहांज ख़रीदे, और उसको ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में लगाए यही हमारे लिए अच्छा है. नया जहांज बना कर हम ईस्ट इंडिया कंपनी को दिवालिया नहीं कर सकते है,
इसी तरह से वो कहता है कि भारत में टेक्नोलोजी के लेवल पर ईंट बनती है, ईंट से ईंट को जोड़ने का चूना बनता है. और उसके अलावा भारत में ३६ तरह के दुसरे टेक्नोलोजिकल इंडस्ट्रीज है, ये सभी उद्योगों में भारत दुनिया में सबसे आगे है. इसलिए हमें भारत से व्यापार कर के ये सब sतकनिकी लेनी है, और इस तकनिकी को इंग्लैंड में ला कर फिर से उसको रिप्रोडूस करना है, पुनरुत्पादित करना है. तो भारत टेक्नोलोजी में बहूत ऊँचा है,
इसी तरह से विज्ञान में भी बहुत ऊँचा है. भारत के विज्ञान के बारे में एक दो नहीं बिसियो अंग्रेजो ने रिसर्च की है, शोध की है, और वो ये कहते है कि भारत में विज्ञान की बीस से ज्यादा शाखाए है, जो बहुत ज्यादा पुष्पित और पल्लवित हुई है. उनमे सबसे बड़ी शाखा है वो खगोल विज्ञान है, दूसरी बड़ी शाखा है वो नक्षत्र विज्ञान है, तीसरी बड़ी शाखा है बर्फ बनाने का विज्ञान है, चौथी बड़ी शाखा है और ऐसे कर कर के धातु विज्ञान है, फिर उसके बाद भवन निर्माण के विज्ञान की है. तो ऐसी बीस तरह की वैज्ञानिक शाखाए पुरे भारत में है. और बोकर लिख रहा है इस बात को कि भारत में ये जो विज्ञान की ऊँचाई है वो कितनी अधिक है, इसका अंदाजा हम अंग्रेजो को नहीं लगता
पहली बार सारी दुनिया को पृथ्वी और सूर्य के अंतर संबंधो के बारे में बताने वाला यूरोप का वैज्ञानिक कोपरनिकस माना जाता है. और उस कोपरनिकस के बारे में ये भी कहा जाता है कि वो पहला यूरोपियन वैज्ञानिक है जिसने सूर्य से पृथ्वी का अनुमान लगाया फिर वो पहला वैज्ञानिक है जिसने सूर्य के उपग्रहों के बारे में जानकारी सारी दुनिया को दी. लेकिन इस कोपरनिकस की बात को अंग्रेज ही कह रहा है कि ये असत्य है झूठ है. वो ये कह रहा है बोकर के अंग्रेजो के हजारो साल पहले, यूरोपियन लोगो के हजारो साल पहले भारत में ऐसे विशेषज्ञ वैज्ञानिक हुए है जिन्होंने सूर्य की दुरी का ठीक ठीक पता लगाया है और भारत के शास्त्रों में उसको दर्ज कराया है
आप जानते है, हमारे वेदों में, यजुर्वेद में विशेष रूप से ऐसे बहुत सारे सूत्र है, श्लोक है, मंत्र है जिनसे बहुत सारा स्पष्ट ज्ञान मिलता है कोपरनिकस का जिस दिन जन्म हुआ था यूरोप में, उससे ठीक लगभग १ हजार साल पहले एक भारतीय वैज्ञानिक ने पृथ्वी से और सूर्य की दुरी कितनी है ठीक ठीक नाप उन्होंने बता दिया था. और हमारे वैज्ञानिक का नाम था आर्यभट्ट. जितनी दूरी श्री आर्यभट्ट जी ने कह दी है उस दुरी में एक इंच इधर और उधर यूरोप का वैज्ञानिक कर नहीं पाया. वही दूरी आज यूरोप में मानी जाती है, अमेरिका में मानी जाती है, प्रमाणित है. तो आप अंदाजा लगाए कि जब इस देश में ऐसे वैज्ञानिक रहे है जिन्होंने धरती से सूर्य की दूरी नाप ली हो, और वो भी यूरोप से हजार साल पहले,
हमारे देश में जो खगोल विज्ञान है , ये बहुत गहरा रहा है और इसी पर से नक्षत्र विज्ञान का विकास हुआ है. ये खगोल विज्ञान और नक्षत्र विज्ञान में शोध करने वाले वैज्ञानिको ने ही दिन और रात कितने बड़े होंगे १२ घंटे का दिन होगा १२ घंटे की रात होगी, १४ घंटे का दिन होगा या १० घंटे की रात होगी या १० घंटे का दिन होगा १४ घंटे की रात होगी, सर्दियों में अलग होगी, गर्मियों में अलग होगी, बरसात में कैसी होगी, ये सारे के सारे आंकड़े दिन और रात के समय के ये भारत के वैज्ञानिको के दारा निकले गए है, और सारी दुनिया में उसका प्रचार और प्रसार हुआ है. हम अभी दिन की गणना करते है कि आज हमारा दिन रविवार है दूसरा दिन सोमवार है तीसरा दिन मंगलवार है चौथा दिन बुधवार है पांचवा दिन गुरुवार है शुक्रवार है शनिवार है ये जो दिनों की हम गिनती करते है और इनके जो नाम जो हमने रखे हुए है वो रवि सोम मंगल बुध आपको शायद ये मालूम होगा नहीं तो मै कहना चाहता हु ये सारे दिनों का नामकरण और इनकी अवधि पूरी की पूरी महान महर्षि आर्यभट्ट की निकली हुई है. और उनके द्वारा ये दिन तय किए हुए है. अंग्रेज जो नक्षत्रविज्ञानी है वो ये बात ईमानदारी से स्वीकार करते है कि भारत का रवि सोम मंगल बुध ही हमने ले लिया है और इसी को संडे, मंडे, ट्यूसडे, थर्सडे, फ्राईडे, सटरडे कर दिया है. ये सब कुछ भारत से उधार लिया हुआ है.
पृथ्वी घुमती है अपने अक्ष पर, और सूर्य के चारो तरफ भी ये बात सबसे पहले भारतीय वैज्ञानिको ने प्रमाणित की थी १० वी. सताब्दी में. और पृथ्वी के घुमने से दिन रात होते है, मौसम और जलवायु बदलते है ये बात भी भारतीय वैज्ञानिको द्वारा प्रमाणित हुई है सारी दुनिया में. तो भारत के वैज्ञानिको ने खगोल शास्त्र में, नक्षत्र विज्ञान में जबरदस्त काम किया है. सूर्य है, सूर्य के कितने उपग्रह है और उन उपग्रहों का सूर्य के साथ अंतर सम्बंध क्या है, ये सारी खोज भारत में तीसरी सताब्दी के आस पास की है.
जब दुनिया में कोई पढना लिखना भी नहीं जानता होगा, उस समय भारत में ये खोज चलती रही है, कि सूर्य क्या है, सूर्य के उपग्रह क्या है, उनके आपस के अंतर सम्बंध क्या है. तो खगोल शास्त्र की, नक्षत्र विज्ञान की विद्या बहुत अदभुत और बहुत ऊँची है. एक अंग्रेज है उसका नाम है डेनिअल डिपो, वो ये कहता है कि ये भारत के वैज्ञानिक कितने ज्यादा पक्के है गणित में, कि चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण का ठीक ठीक पता बता देते है सालों पहले, आज के दिन चन्द्र ग्रहण होगा, आज के दिन सूर्य ग्रहण होगा, और इतने बज कर इतने मिनट पर होगा, ये भारत के वैज्ञानिक कई कई साल पहले बता देते है. १७०८ के समय ये लंदन की संसद में कह रहा है कि मैंने भारत का पंचांग जब भी पढ़ा है मुझे एक प्रश्न का उत्तर कभी नहीं मिला कि भारत के ऋषि, महर्षि, वैज्ञानिक कई कई साल पहले कैसे पता लगा लेते है कि आज चन्द्र ग्रहण पड़ेगा, आज सूर्य ग्रहण पड़ेगा, और इस समय पर पड़ेगा, और सही सही वोही समय पर पड़ता है. इसका माने भारत के वैज्ञानिको की नक्षत्रों के बारे में, खगोल विद्या के बारे में बहुत गहरी गहरी रिसर्च है, शोध है. ये इसी के आधार पर हो सकता है. तो इस तरह का भारत है.
भारत की शिक्षा ...
भारत का अतीत अगर हमें अच्छे से समझना है तो भारत की शिक्षा को समझना पड़ेगा. क्योकि साइंस और टेक्नोलोजी जो भी विकसित होती है, उसका आधार शिक्षा व्यवस्था होती है. किसी देश में खगोल शास्त्र अगर विकसित हुआ है तो उसका आधार भी शिक्षा व्यवस्था होती है. अगर नक्षत्र शास्त्र का विकास हुआ है तो उसका आधार भी शिक्षा व्यवस्था होती है. सभी विज्ञान की विधाओ का, और सभी तकनिकी की विधाओ का मूल आधार शिक्षा होती है. तो भारत में अगर विज्ञान इतना अच्छा है, तकनिकी इतनी अच्छी है तो शिक्षा भी कोई बहुत अच्छी ही रही होगी. बिना उसके तो विज्ञान, तकनिकी आ नहीं सकती, और बिना शिक्षा के उद्योग और व्यापार चल नही सकता. तो भारतीय शिक्षा के बारे सबसे पहला एक प्रमाण मै प्रस्तुत करना चाहता हु, एक जर्मन दार्शनिक हुआ, उसका नाम है मैक्स मुलर.
मैक्स मुलर ने भारत की शिक्षा व्यवस्था पर सबसे ज्यादा शोध कार्य किया है. और वो ये कहता है कि मै भारत की शिक्षा व्यवस्था से इतना प्रभावित हु, शायद ही दुनिया के किसी भी देश में इतनी सुंदर शिक्षा व्यवस्था होगी जो भारत में है और भारत के बंगाल राज्य के बारे में, मैक्स मुलर एक आंकड़ा दे रहा है, कि भारत का जो बंगाल राज्य है, बंगाल प्रान्त है, बंगाल प्रान्त आप जानते है ? भारत का एक प्रान्त है, और ये जब बंगाल की जो ये बात मैक्स मुलर कह रहा है, वो बंगाल है, जिसमे पूरा बिहार है, आधा ओरिसा है, आज का पूरा पश्चिम बंगाल है, और आसाम है, और आसाम के ऊपर के छोटे छोटे सात प्रदेश है. इस बंगाल राज्य के बारे में मैक्स मुलर कह रहा है कि मेरी जानकारी में ८०,००० से अधिक गुरुकुल पुरे बंगाल में सफलता के साथ पिछले हजारो साल से चल रहे है.
मैक्स मुलर ने गिनती करवाई है, और सिर्फ एक राज्य के बारे में, एक राज्य है बंगाल. इसी तरह से एक अंग्रेज विद्वान है, शिक्षाशास्त्री है, उसका नाम है लुद्लो, और लुद्लो आता है भारत में, और करीब सोलह सत्रह साल रहता है इस देश में. और सोलह सत्रह साल रह कर भारत में घुमा है. घुमने के बाद शिक्षा व्यवस्था पर उसने सर्वेक्षण किया है. वो क्या कह रहा है, वो कह रहा है कि भारत में एक भी गाँव ऐसा नहीं है, जहाँ कम से कम एक गुरुकुल नहीं है. कम से कम, माने हर गाँव में कम से कम एक गुरुकुल तो है ही. एक से भी ज्यादा है. फिर वो कह रहा है कि भारत के बच्चे एक भी ऐसे नहीं है जो गुरुकुल में न जाते हों पढाई के लिए, माने सभी बच्चे गुरुकुल में जाते है पढाई के लिए. ये लुद्लो १८ वी. सताब्दी की बात कह रहा है.
उसके अलावा एक और अंग्रेज है जिसका नाम है जी. डब्लू. लिट्नेर, वो ये कहता है कि मैंने भारत के उत्तर वाले इलाके का पूरा सर्वेक्षण किया है शिक्षा का, और मेरे सर्वेक्षण की रिपोर्ट बताती है कि भारत में २०० लोगों पर एक गुरुकुल चलता है. पुरे उत्तर भारत की रिपोर्ट में वो ये निष्कर्ष दे रहा है. इसी तरह से थॉमस मुनरो की रिपोर्ट है, वो ये कह रहा है कि दक्षिण भारत में ४०० लोगों पर कम से कम १ गुरुकुल भारत में है. अब ये उत्तर और दक्षिण को मिला दिया जाए तो सारे भारत के बारे में औसत निकला जाए. तो ये औसत निकलता है कि ३०० लोगों पर कम से कम एक गुरुकुल भारत में है. और जिस ज़माने में ये सर्वेक्षण हुआ है, उस ज़माने में भारत की जनसँख्या लगभग २० करोड़ के आस पास है. तो २० करोड़ की जनसंख्या में ३०० लोगों पर अगर एक गुरुकुल अगर आप निकालेंगे तो कुल २० करोड़ लोगों के ऊपर लगभग ७,३२००० के आस पास गुरुकुल निकलते है.
सन. १८२२ के आस पास के ये आंकड़े है. अंग्रेज दस दस वर्ष में भारत की जनसँख्या का सर्वेक्षण करते रहते थे, तो उस ज़माने के सर्वेक्षण से ये पता चला कि भारत में कुल गाँव की संख्या भी लगभग ७,३२००० ही है. माने जितने गाँव है, उतने ही गुरुकुल इस देश में है, माने हर गाँव में पढने के लिए पूरी की पूरी व्यवस्था है, आज की भाषा में कहें तो कम से कम एक स्कूल हर गाँव में है.
सन. १८६८ तक तो पूरे इंग्लैंड में सामान्य बच्चो को पढ़ाने के लिए एक भी स्कूल नहीं था १८६८ तक, और हमारे यहाँ १८२२ तक पुरे भारत देश में हर गाँव में एक गुरुकुल था, सामान्य बच्चो को पढाने के लिए. मतलब हमारी शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजो से बहुत बहुत बहुत आगे थी. और इसी जी. डब्लू. लिट्नेर रिपोर्ट में में मै आपसे आगे कहू, लिट्नेर कहता है कि सम्पूर्ण भारत देश में ९७ प्रतिशत साक्षरता की दर है,सिर्फ ३ प्रतिशत भारतवासी है जिनको पढने का कोई मौका शायद जीवन में नहीं मिला है.
इन गुरुकुलों को चलने के लिए कभी किसी राजा से कोई दान या अनुदान नहीं लिया जाता,ये सारे गुरुकुल समाज के द्वारा चलाए जाते है. आप बोलेंगे की समाज के द्वारा कैसे चलते है ? हमारे गाँव गाँव में जहाँ जहाँ गुरुकुल रहे है, वहां समाज के लोगों में गुरुकुल के लिए भूमि दान कर रखी है. और उस भूमि पर जितना उत्पादन होता है, उस उत्पादन की आय से गुरुकुल आराम से चलता है. जरुरत पड़े तो गाँव के लोग गुरुकुल के लिए दान इकठ्ठा करते है, और गुरुकुल उसका उपयोग करता है, तो सारे भारत के गुरुकुल साधारण लोगों के दान के पैसे से चलते है, राजा के पैसे से इस देश में एक भी गुरुकुल नहीं चलता है. भारत के गुरुकुलों में समय क्या है पढाई का? तो सूर्योदय से सूर्यास्त का, ये समय है पढाई का.उनमे वो १८ विषय पढ़ते है. गणित पढ़ते है, जिसको वैदिक गणित कहा जाता है, खगोल शास्त्र पढ़ते है, नक्षत्र विज्ञान पढ़ते है, धातु विज्ञान पढ़ते है, जिसको आज हम मैट्रोलोजी कहते है, एस्ट्रो फिजिक्स पढ़ते है, केमिस्ट्री माने रसायन शास्त्र पढ़ते है, ऐसे लगभग १८ विषय विद्यार्थिओं को पढाये जाते है. और आपको ऐसा लगता होगा, कई लोगों के मन में ये भ्रम हो जाता है कि भारत में गुरुकुल माने खाली संस्कृत पढाई जाती होगी, और वेद और उपनिषद पढ़ा दिए जाते होंगे. लेकिन यहाँ दस्तावेज बताते है कि भारत में सभी गुरुकुलों में संस्कृत तो पढाई जाती है माध्यम के लिए और वेद पढाए जाते है और उपनिषद पढाये जाते है विद्यार्थियो में संस्कार देने के लिए, लेकिन विद्या देने के लिए खगोल शास्त्र, नक्षत्र विज्ञान, धातु विज्ञान, धातु कला और फिर शौर्य विज्ञान माने सैन्य विज्ञान जिसको हम कहते है, जिसको मिलिट्री ट्रेनिंग कहते है. इस तरह के १८ विषय अलग अलग विद्यार्थियों को पढाये जाते है.
इन गुरुकुलों में पढने के लिए विद्यार्थी जब आते है, तो उनकी उम्र कितनी होती है ? तो एक अंग्रेज अधिकारी लिख रहा है, उसका नाम है पेंटर ग्रा वो ये कहता है कि कोई बच्चा, भारत में पांच साल, पांच महीने, और पांच दिन का हो जाता है बस उसी दिन उसका गुरुकुल में प्रवेश हो जाता है. पांच साल, पांच महीने, और पांच दिन का हो जाता है उसी दिन बच्चे प्रवेश का गुरुकुल में हो जाता है. लगातार १४ वर्ष तक वो गुरुकुल में पढता है और १४ वर्ष की शिक्षा पूरी कर के वो गुरुकुल से बाहर निकलता है. तो एक सम्पूर्ण मानव बन के निकलता है. और वो जिम्मेदारी परिवार की उठा सकता है, समाज की उठा सकता है और देश की उठा सकता है. और पेंटर ग्रा कहता है कि शिक्षा भारत में इतनी आसान है कि गरीब हो या अमीर हो, पैसे वाला हो या बिना पैसे वाला हो, सबके लिए शिक्षा सामान है और सबके लिए व्यवस्था सामान है.
आपने तो ये बात बहुत बार सुनी होगी कि हमारे देशो में गुरुकुलों की व्यवस्था ऐसी ही रही है, कि भगवान श्री कृष्ण भी जिस गुरुकुल में पढ़े, उसी गुरुकुल में उनके मित्र सुदामा भी पढ़े. और सुदामा की आर्थिक स्तिथि के बारे में आप जानते है कि भगवान कृष्ण को मुट्ठी भर चावल तक नहीं खिला सकते, इतनी आर्थिक स्तिथि कमजोर है, फिर भी सुदामा को गुरुकुल में प्रवेश मिला है और श्री कृष्ण के साथ बैठ कर उन्होंने शिक्षा ग्रहण की है. माने एक तरफ करोडपति का बेटा, दूसरी तरफ रोडपति का बेटा दोनों एक ही जगह बैठ कर सामान शिक्षा ले रहे है. और गुरु उनको सामान भाव से शिक्षा दे रहा है. भारतीय गुरुकुलों की ये अदभुत विशेषता है. सारी दुनिया के विद्वान् इस बात पर भारत की बहुत प्रशंशा करते है. वो ये कहते है कि भारत की शिक्षा हमेशा से निशुल्क रही है.
१४ वर्ष की पढाई सामान्य नहीं होती है. आज की आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में अगर हम देखें तो यहाँ १४ वर्ष की पढाई तो जो प्रोफेशनल एजुकेशन है उसी में होती है. यहाँ तो भारत में सामान्य गुरुकुलों में १४ वर्ष की पढाई होती है. और इसके बाद विशेषज्ञता हासिल करनी है, पंडित होना है, पांडित्य आपको लाना है, तो उसके लिए उच्च शिक्षा के केंद्र इस देश में चलते है. जिनको उच्च शिक्षा केंद्र अंग्रेजो ने कहा है,
आज उनको हम भारत में यूनिवर्सिटी और कॉलेजेस कह सकते है. आज इस भारत देश में, २००९ में, भारत सरकार के लाखो करोड़ो रूपये खर्च होने के बाद लगभग साढ़े तेरह हजार कॉलेजेस है प्राइवेट और सरकारी सब मिलाकर और ४५० विश्वविद्यालय है, निजी और सरकारी कोनो मिलाकर, साढ़े तेरह हजार कॉलेजेस है और ४५० विश्वविद्यालय है. जब लाखो करोड़ो रूपये सरकार ने खर्च किया है. १८२२ में अकेले मद्रास प्रान्त में, मद्रास प्रेसीडेंसी उसको कहा जाता है. मद्रास प्रान्त का मतलब क्या है? आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक का कुछ हिस्सा, ये पूरा मद्रास प्रान्त है. अकेले मद्रास प्रान्त में १८२२ में ११,५७५ कॉलेजेस रहे है और १०९ विश्वविद्यालय रहे है. अकेले मद्रास प्रान्त में,
ऐसे ही मुंबई प्रान्त है, और फिर मुंबई प्रान्त के बाद ऐसे ही पंजाब प्रान्त है. फिर नार्थ – वेस्ट फ्रंटियर है, ये चारो स्थानों को मिला दिया जाये तो भारत में लगभग १४००० से भी ऊपर कॉलेजेस रहे है और लगभग ५०० से सवा ५०० के बीच में विश्वविद्यालय रहे है. अब विश्वविद्यालय आज से ज्यादा, कॉलेजेस भी आज से ज्यादा, सन १८२२ में भारत की ये स्थिति है, माने उच्च शिक्षा भारत में अदभुत रही है, अंग्रेजो के आने के पहले तक, माध्यमिक शिक्षा तो अदभुत है ही, प्राथमिक शिक्षा भी बहुत अदभुत है लेकिन उच्च शिक्षा भी इस देश में अदभुत है. और इन कॉलेजेस में विशेष रूप से जो कॉलेजेस रहे है, अभियांत्रिकी के अलग कॉलेजेस है, इंजीनियरिंग के अलग कॉलेजेस है, सर्जरी के अलग कॉलेज है, मेडिसिन के अलग कॉलेज है. जिनको आज हम कहते है न मेडिकल कॉलेज अलग है, इंजीनियरिंग कॉलेज अलग है. मैनेजमेंट के कॉलेज अलग है, ये तो भारत में १८२२ में भी है,
सर्जरी के विश्वविद्यालय अलग है. और ये हमारे चिकित्सा विज्ञान में जिसको हम आयुर्वेद कहते है, इसके विश्वविद्यालय अलग है, और मैनेजमेंट के विश्वविद्यालय अलग है. ये पुरे भारत में फैले हुए है और पुरे भारत के विद्यार्थियो की व्यवस्था यहाँ पर है. हमने सुना है तक्षशिला एक विश्वविद्यालय कभी होता था, हमने सुना है कभी नालंदा नाम का एक विश्वविद्यालय होता था. ये तक्षशिला नालंदा तो दो नाम है ऐसे तो ५०० से ज्यादा विश्वविद्यालय सम्पूर्ण भारत देश में हमारे आज से लगभग डेढ़ सौ – पोने दो सौ तक रहे है. तक्षशिला नालंदा तो आज से ढाई हजार साल पहले की कहानी है. लेकिन डेढ़ सौ पोने दो सौ साल पहले के भारत में सवा पांच सौ से ज्यादा विश्वविद्यालय है और १४००० के आस पास डिग्री कॉलेजेस है. तो शिक्षा व्यवस्था में भारत मजबूत है पूरी दुनिया में.
पुरे यूरोप में ऐसा माना जाता है कि सबसे पहले शिक्षा व्यवस्था सामान्य लोगों के लिए इंग्लैंड में आई. और वो सन. १८६८ में आई. इसका माने यूरोप के देशो में में तो उसके और बाद में आई. तो आप बोलेंगे १८६८ के पहले इंग्लैंड में स्कूल नहीं थे? स्कूल नहीं थे, ये बात को सही तरह से समझना है, राजाओं के जो बच्चे जो होते थे, राजाओं के जो अधिकारी होते थे, उन्ही के लिए स्कूल होते थे. और वो राजाओं के महल में चला करते थे, वो सामान्य रूप से सार्वजनिक स्थानों पर नहीं चला करते थे. और साधारण लोगों को उनमे प्रवेश भी नहीं था, इंग्लैंड और यूरोप में ये माना जाता था कि शिक्षा जो है वो विशेषज्ञो के लिए है. और राजा विशेषज्ञ है तो राजा को शिक्षा है, उसके बच्चों को शिक्षा है, उसके अधिकारियो के बच्चों को शिक्षा है.
आम आदमी को शिक्षित होने की जरूरत नहीं है. क्यों? तो यूरोप के दार्शनिक कहते है कि आम आदमी को तो गुलाम बन के रहना है, उसको शिक्षित होने से फायदा क्या है. दुनिया में बहुत बड़ा दार्शनिक माना जाता है अरस्तू और उससे भी बड़ा माना जाता है सुकरात. अरस्तू और सुकरात दोनों कहते है कि अन्य बच्चों को शिक्षा नहीं देनी चाहिए, शिक्षा सिर्फ राजा के बच्चों को, राजा के अधिकारियो के बच्चों को ही देनी चाहिए, तो उनके लिए कुछ पढने और पढ़ाने की व्यवस्था है, आम बच्चों के लिए नहीं है. जबकि भारत में बिलकुल उलटा है. शिक्षा आम बच्चों के लिए है, साधारण बच्चों के लिए है, वो गरीब हो, या अमीर हो, ऐसी अदभुत शिक्षा व्यवस्था हमारे देश में रही है.
भारत में कृषि व्यवस्था
. हमारे अतीत में कृषि व्यवस्था के बारे में जिन अंग्रेजो ने बहुत ज्यादा शोध किया है. उनमे से लेस्टर नाम का एक अंग्रेज है, वो ये कहता है कि भारत में कृषि उत्पादन दुनिया में सर्वोच्च है. और अंग्रेजो की संसद में भाषण देते समय वो कह रहा है कि भारत में एक एकड़ में सामान्य रूप से ५६ क्विंटल धान पैदा होता है, एक एकड़ में सामान्य रूप से. वो ये कह रहा है कि ये उत्पादन औसतन है, एवरेज है, वो ये कहता है की भारत के कुछ इलाके तो ऐसे है, जहाँ एक एकड़ में ७० से ७५ क्विंटल तक धान होता है. और कुछ इलाके ऐसे है जहाँ ४५ से ५० क्विंटल धान पैदा होता है. और वो कहता है कि मैंने औसत निकला है पुरे भारत का, तो ५६ क्विंटल धान पैदा होता है भारत की खेती में, इतनी उन्नत कृषि व्यवस्था भारत में है.
आज के अनुसार मै आपको इसको अगर तुलना कर के बताऊ तो आज भारत में सबसे ज्यादा यूरिया, डी. एस. बी., सुपर फास्फेट, डालने के बाद, सबसे ज्यादा रासायनिक खाद डालने के बाद, औसतन एक एकड़ में ३० क्विंटल से ज्यादा धान पैदा नहीं होता, और आज से लगभग १५० साल पहले भारत में एक एकड़ में ५६ क्विंटल धान पैदा हो रहा है. खाली गाय का गोबर और गौमूत्र का उपयोग किया जा रहा है. तो उत्पादन का स्तर ये है.
इसी में गन्ने के उत्पादन के बारे में आंकड़े है, अंग्रेजो की संसद में, वो ये कह रहा है कि भारत में एक एकड़ में १२० मीट्रिक टन गन्ना सामान्य रूप से पैदा होता है, पुरे भारत में. १२० मीट्रिक टन, और आज सन २००९ में, यूरिया, डी. एस. बी., सुपर फास्फेट के बोरे पर बोरे खेत में डालने के बाद, गन्ने का औसत उत्पादन पुरे देश में ३० से ३५ मीट्रिक टन है, एक एकड़ में. महाराष्ट्र का एक इलाका है, जिसको पश्चिम महाराष्ट्र आप कहते है, सांगली है, सतारा है, कोलापुर है, और पुणे के बीच का, इस पुरे इलाके में गन्ना औसतन रूप से एक एकड़ में ८० से ९० मीट्रिक टन है, बस यही क्षेत्र है भारत का जहाँ गन्ने का उत्पादन सबसे ऊँचा है और अंग्रेज उस समय का सर्वेक्षण कर रहे है और कह रहे है कि १२० मीट्रिक टन गन्ने का उत्पादन है भारत में ऐसी खेती है,
फिर वो कह रहे है कि कपास का उत्पादन सारी दुनिया में सबसे ज्यादा है. और एक ख़ास बाद जो अंग्रेज कह रहे है वो ये कि भारत में फसलों की विविधता सबसे ज्यादा दुनिया में भारत में ही है. एक अंग्रेज कह रहा है की भारत में धान के कम से कम १ लाख प्रजाति के बीज है, कम से कम १ लाख प्रजाति के बीज है. और ये बात अंग्रेज कह रहा है सन १८२२ के आस पास कह रहा है. सन १८२२ तक इस देश में धान की १ लाख से ज्यादा प्रजातियाँ मौजूद थी. और आज सन. २००९ के आते आते भी पचास हजार धान की प्रजातियाँ तो अभी भी इस पुरे देश में मौजूद है भारत में सबसे पहला हल बना पूरी दुनिया का, और सारी दुनिया ने हल बनाना और खेत में हल को चलाना भारतवासियो से सिखा है ये भारत का सारी दुनिया को सबसे बड़ा कन्ट्रीब्युसन है.
फिर एक अंग्रेज कहता है कि हल के अलावा खुरपी, निदाई, कुदाई करने के लिए उपयोग में आती है. खुरपी है, खुरपा है, हसिया है, हथोडा है, बेलची है, कुदाली है, फावड़ा है, पवित्र है, रैट है, ये सभी शब्द शायद आपके जाने पहचाने है. अंग्रेज कहते है कि ये सब चीजे दुनिया में बाद में आई है, भारत में सैकड़ो साल पहले ही ये बन चुकी है और इनका उपयोग होता रहा है. माने खुरपी, खुरपा, हसिया, फावड़ा, कुदाली जो सारी दुनिया में आज भी इस्तेमाल होते है खेत के लिए. वो भारत में सबसे पहले विकसित हुई है. और बीज को एक पंक्ति में बोने की जो परंपरा है वो हजारों साल पहले भारत में विकसित हुई है. दुसरे देशो को तो कभी उसकी कल्पना नहीं रही है.
इसी तरह अंग्रेजो के इंग्लैंड में १७५० में पहली बार कुछ किसानो ने भारत आ कर खेती सीखी और यहाँ से जा कर अपने इंग्लैंड में उन्होंने कुछ प्रयोग किये, और उसके बाद खेती का काम थोड़ा बहुत उनके यहाँ आगे बढ़ा. इसके पहले कोई उनके यहाँ रिकॉर्ड नहीं मिलते है कि खेती उनके यहाँ कोई बहुत अच्छी होती थी. तो आप पूछेंगे, १७५० के पहले ये इंग्लैंड वाले जीते कैसे थे, या स्कोटलैंड वाले कैसे जीते थे, अगर उनके यहाँ खेती नहीं थी, वो जंगल के द्वारा होने वाले उत्पादन और पशुओ को शिकार कर के उससे उत्पादित होने वाले मांस पर जिन्दा रहते थे. जंगल से जो कुछ मिल गया और पशुओ को मारकर जो मांस पैदा कर लिया, उसी को खा कर उनका जीवन हजारो साल गुजरा है, और जिस समय इंग्लैंड वाले या यूरोप वाले दो ही चीजें खा पाते थे या तो मांस या तो जंगल के फल. उस समय भारत में खाने के लिए १ लाख किस्म के चावल उपलब्ध हुआ करते थे. तो बाकि चीजो की तो बात छोड़ दीजिए. तो ऐसी अदभुत हमारी कृषि व्यवस्था रही है.,
हजारो साल तक भारत का चावल दुनिया में निर्यात हुआ है, हजारो सालों तक दालें दुनिया को निर्यात की है, हजारो साल तक भारत में बनाया हुआ गुड़, ये जो शक्कर बनती है न चीनी, ये तो अभी सौ साल पहले बनना शुरु हुई है, उसके पहले गुड़ बनता था और गुडीया शक्कर बनती थी. तो गुड़ और गुडीया शक्कर सारी दुनिया को हजारो साल तक भारत ने उत्पादित कर के खिलाई है. और खाने पीने की हजारो हजारो चीज़े दुनिया भर के देश हमसे खरीद्ते रहे है और हमको बदले में सोना, चांदी, हीरे, जवाहरात मिलते रहे है.
किसी भी देश का तरक्की का पैमाना हम जब नापते है न, कि इस देश का कितना विकास है, तो दो ही चीजो से वो पैमाना नापा जाता है और बनता है. पहला होता है स्वास्थ्य और दूसरा होता है चिकित्सा. भारत का स्वास्थ्य दुनिया में सबसे अदभुत रहा है, क्योकि इस देश में चिकित्सा विज्ञान दुनिया में सबसे ज्यादा उन्नत स्थिति में रहा है. चिकित्सा विज्ञान में हजारो हजारो किस्म की आयुर्वेद की जड़ी-बुटिया, और सर्जरी की सारी की सारी विद्या पूरी दुनिया को यही से गई है. और अभी जो सर्जरी के पुराने दस्तावेज मिलते है, वो बताते है कि भारत में हिमांचल प्रदेश और पूरा महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, केरल सात आठ राज्य थे, जहाँ सर्जरी के सबसे बड़े शोध केंद्र चला करते थे, और एक दो नहीं हजारो हजारो सर्जरी के विशेषज्ञ इन केंद्र में पढ़कर तैयार होते थे, और समाज की सेवा करते थे.
आपको सुन कर हैरानी होगी जब दुनिया में कोई नहीं जनता था, आँख में मोतियाबिंद का पहला आपरेशन भारत में हुआ है, और जिसको आज हम राइनोप्लास्टी कहते है, सर्जरी की सबसे आधुनिकतम विद्या उसका सबसे पहला परिक्षण और प्रयोग भी भारत में हुआ है. और इंग्लैंड की जो रॉयल सोसाइटी ऑफ़ सर्जन है वो अपने इतिहास में लिखते है कि हमने सर्जरी भारत से सीखी है. और उसके बाद पुरे यूरोप को हमने ये सर्जरी सिखाई है, तो भारत चिकित्सा में बहुत ऊँचा, भारत तकनीकी में बहुत ऊँचा, भारत विज्ञान में बहुत ऊँचा, भारत उद्योग में बहुत ऊँचा, और इन सबके बाद भारत व्यापार में बहुत ऊँचा, और ये सबका आधार भारत शिक्षा व्यवस्था में सबसे ऊँचा, ऐसा अदभुत देश हमारा भारत रहा है, जो अंग्रेजो के आने के पहले तक था.
आप बोलेंगे इतनी गिरावट भारत में कैसे आई, ये सारी गिरावट भारत में आई, अंग्रेजो की नीतियो के कारण, और अंग्रेजो के कानूनों के कारण, अंग्रेजो ने देखा कि भारत की सारी कि सारी व्यव्स्थाए इतनी अदभुत है, तो इन सारी व्यवस्थाओ को ख़त्म करना है, तोडना है, क्योकि गुलाम बनाना है भारत को, मेकवेल ये कहता है कि भारत को गुलाम बनाना है भारत को तो भारत की संस्कृति, सभ्यता, शिक्षा इन सबका नाश करना पड़ेगा, तो इनका नाश करने के लिए उनलोगों ने कानून बनाए, सबसे पहले एक कानून बनाया इंडियन एजुकेशन एक्ट, और उस कानून के आधार पर भारत के गुरुकुल बंद किए गए, और धीरे धीरे भारत की शिक्षा व्यवस्था का नाश हो गया.
अंग्रेजो ने एक दूसरा कानून बनाया की भारत की वस्तुओ पर ज्यादा से ज्यादा कर लगाओ, और अंग्रेजी वस्तुओ को भारत में टैक्स फ्री कराओ, उससे बाद भारत के कारखाने बंद हो गए, फिर भारत का निर्यात खत्म हो गया, फिर भारत की कृषि व्यवस्था के लिए अंग्रेजो ने कानून बनाया कि किसानो के ऊपर ९० प्रतिशत लगान लगाओ, और किसानो की जमीने छिनने के लिए लैंड ऐक्विजिसन एक्ट बनाओ. उसके बाद हिंदुस्तान के किसान बर्बाद हो गए.
फिर किसानो के काम आने वाली गाय और बैल इनका कत्ल कराओ, और सबसे पहला कत्लखाना अंग्रेजो ने शुरु किया कोलकाता में, जो आज भी चल रहा है, अंग्रेज उसमे ३५० गाय रोज काटते थे, अब उस कत्लखाने में १४००० गाय रोज कट रही है, तो ये सारी की सारी दुर्व्यवस्था जो हमारे यहाँ पैदा हुई वो अंग्रेजो की गलत नितियो के कारण और अंग्रेजो के गलत शासन व्यवस्था के कानूनों के कारण हुई, अगर अंग्रेजी शासन नहीं होता, और अंग्रेजी कानून इस देश में लादे नहीं, तो आज मै इस बात को बहुत विश्वास से कह सकता हु कि आज भी भारत दुनिया का सर्वोच्च शिखर पर बैठा हुआ देश होता,
अब हमें क्या करना चाहिए, भारत स्वाभिमान के कार्यकर्त्ता के नाते मुझे ये लगता है कि हमको जो भारत कभी अंग्रेजो के आने के पहले था, विश्वशिखर में सर्वोच्च सत्ता पर बैठा हुआ सर्वश्रेष्ठ देश, वैसा ही भारत फिर बनाना है, यही हमारे भारत स्वाभिमान के लिए सपना है, और इसी सपने को पूरा करने के लिए हम सब परम पूजनीय स्वामी जी के नेतृत्व में सेना बन कर काम करे, और सेना बनकर अपने सेनापति के आदेश पर वो सब कर डाले जो इस भारत के गौरव को फिर से वापस लाने में हमारी मदद कर सके.
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एक अंग्रेज है जिसका नाम है जी डब्लू लिट्नेर वो भारत में कगी लम्बे समय तक रहा, और एक दूसरा अंग्रेज जिसका नाम थोड़ी देर पहले मैंने लिया थामस मुनरो, ये भी भारत में काफी दिनों तक रहा. ये दोनों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था पर बहुत ज्यादा काम किया है. एक और अंग्रेज है जिसका नाम है?? टेंडरक्रस्ट !!! उसने भारत की टेक्नोलोजी और विज्ञान पर बहुत ज्यादा कम किया है. और एक अंग्रेज है केम्पबेल कर के उसने भी भारत की विज्ञान और तकनिकी पर बहुत ज्यादा काम किया है. केम्पबेल का एक छोटा सा वाक्य मै आपको सुनाता हु वो ये कहता है “जिस देश में उत्पादन सबसे अधिक होता है, ये तभी संभव है जब उस देश में कारखाने हो, और कारखाने किसी देश में तभी संभव है, जब वहां पर कोई तकनीकी हो, टेक्नोलोजी हो, और टेक्नोलोजी किसी देश में तभी संभव है जब वहां पर विज्ञान हो. और विज्ञान किसी देश में मूल रूप से शोध के लिए अगर प्रस्तुत है तो उसमे से तकनीकी का निर्माण होता है.
इस वाक्य को सरल तरीके से हम समझे कि मूल विज्ञान होता है जिसको हम आज की अंग्रेजी भाषा में फंडामेंटल साइंस कहते है फिर उसमे से एप्लाइड साइंस निकलता है वो प्रायोगिक विज्ञान होता है. और उस प्रायोगिक विज्ञान में से तकनीकी निकलती है और उस तकनीकी में से कारखाने निकलते है. और उन कारखानों से फिर उत्पादन होता है, वो उत्पादन फिर सारी दुनिया में बिकता है. तो ये बात अगर केम्पबेल कहता है कि भारत में टेक्नोलोजी हजारो सालो से रही है तो कारखाने भी रहे होंगे तो उसके बारे में जब खोज की गई तो पता चला के १८ वी सताब्दी तक इस देश में इतनी बेहतरीन टेक्नोलोजी रही है स्टील बनाने की जो दुनिया में कोई आज कल्पना नहीं कर सकता. स्टील बनाने की जो टेक्नोलोजी भारत में रही है, लोहा इस्पात बनाने की टेक्नोलोजी जो भारत में रही है, दुनिया में किसी देश के पास नहीं है. अंग्रेजो का ये जो अधिकारी है केम्पबेल वो ये कहता है कि भारत का बनाया हुआ लोहा, भारत का बनाया हुआ इस्पात, सारी दुनिया में सर्वश्रेष्ट माना जाता है. उसके बारे में वो एक मुहावरा दे रहा है और वो ये कह रहा है कि इंग्लैंड में या यूरोप में अच्छे से अच्छा जो लोहा बनता है वो भारत के घटिया से भी घटिया लोहे का भी मुकाबला नहीं कर सकता. ये केम्पबेल सन १८४२ में कह रहा है.
उसके बाद एक जेम्स फ्रेंक्लिन नाम का अंग्रेज है बहुत बड़ा उसको जो है धातु कर्मी विशेषज्ञ माना जाता है. वो ये कहता है कि भारत के कारीगर स्टील को बनाने के लिए भट्टिया तैयार करते है वो भट्टिया जिनको हम अंग्रेजी में ब्लास्ट फर्नेस कहते है वो दुनिया में कोई नहीं बना पाता. वो कहता है कि इंग्लैंड में लोहा बनाना तो हमने १९२५ के बाद शुरु किया भारत में तो लोहा १० वी. सताब्दी से ही हजारो हजारो टन में बनता रहा है और दुनिया के देशो में बिकता रहा है. . वो ये कहता है कि में सन १७६४ में भारत से स्टील का एक नमूना ले के आया था मैंने इंग्लैंड के सबसे बड़े विशेषज्ञ डॉ. स्कॉट को स्टील दिया था, और उनको ये कहा था कि लन्दन रॉयल सोसाइटी की तरफ से आप इसकी जाँच कराइए डॉ स्कॉट ने भारत के उस स्टील की जाँच कराइ तो कहा कि ये भारत का स्टील इतना अच्छा है कि सर्जरी के लिए बनाए जाने वाले सारे उपकरण इससे बनाए जा सकते है. जो दुनिया में किसी दुसरे देश के पास उपलब्ध नहीं है. आप जानते है सर्जरी के लिए जो उपकरण बनाए जाते है चाकू बनाए जाते है, छुरिया बनाई जाती है, कैंचिया बनाई जाती है, टांका लगाने के लिए सुई बनाई जाती है. ऐसे १०० से ज्यादा उपकरण सर्जरी के लिए बनाए जाते है, तो डॉ. स्कॉट कह रहे है इस बात को १७६४ में कि दुनिया में किसी भी देश के पास सर्जरी के लायक बनाने वाला स्टील नहीं है, क्योकि उनकी क्वालिटी अच्छी नहीं है. लेकिन भारत का स्टील जो मेरे पास आया है, ये इतना अदभुत है कि इससे सर्जरी के सारे उपकरण हम बना सकते है. फिर वो अंत में कह रहे है कि मुझे ऐसा लगता है कि भारत का ये स्टील हम पानी में भी डालकर रक्खे तो इनमे कभी जंग नहीं लगेगा, क्योकि इसकी क्वालिटी इतनी अच्छी है.
एक अंग्रेज अधिकारी है उसका नाम है लेफ्टिनेंट कर्नल ए. वाकर, उसने भारत के शिपिंग इंडस्ट्री पर में सबसे ज्यादा रिसर्च किया है. वो ये कहता है कि भारत का जो अदभुत लोहा है, स्टील है ये जहांज बनाने के काम में बहूत ज्यादा आता है. और वो कहता है कि दुनिया में दुनिया में जहांज बनाने की सबसे पहली कला और सबसे पहली तकनिकी भारत में ही विकसित हुई है. और दुनिया के देशो ने पानी के जहांज बनाना भारत से सीखा है. और किसी देश के पास पानी का जहांज बनाने की तकनिकी उपलब्ध ही नहीं रही है. फिर वो कह्ता है कि भारत इतना विशाल देश है इसमें लगभग २ लाख गाँव है, इन २ लाख गावों को समुद्र के किनारे स्थापित हुआ माना जाता है. इन सभी गावों में जहांज बनाने का काम पिछले हजारों वर्षो से चलता है. वो ये कहता है कि हम अंग्रेज लोगों को जहांज खरीदना हो तो हम भारत में जाते है और वहां से जहांज खरीद कर लाते है. फिर वो अपने आगे अख रहा है कि ईस्ट इंडिया कंपनी के जितने भी पानी के जहांज दुनिया में चल रहे है ये सारे के सारे जहांज भारत की स्टील से बने है. ये बात मुझे कहते हुए शर्म आती है के हम अंग्रेज अभी तक इतनी अच्छी क्वालिटी का स्टील बनाना नहीं शुरु कर पाए है.इतनी मजबूत पानी के जहांज बनाने की कला और टेक्नोलोजी भारत के कारीगरों के हाँथ में है. और फिर वो वो कहता है के हम जितने धन में एक नया पानी का जहांज बनाते है, उतने ही धन में भारतवासी चार नए जहांज पानी के बना लेते है. फिर वो अंत में कहता है के हम भारत में पुराने पानी के जहांज ख़रीदे, और उसको ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में लगाए यही हमारे लिए अच्छा है. नया जहांज बना कर हम ईस्ट इंडिया कंपनी को दिवालिया नहीं कर सकते है,
इसी तरह से वो कहता है कि भारत में टेक्नोलोजी के लेवल पर ईंट बनती है, ईंट से ईंट को जोड़ने का चूना बनता है. और उसके अलावा भारत में ३६ तरह के दुसरे टेक्नोलोजिकल इंडस्ट्रीज है, ये सभी उद्योगों में भारत दुनिया में सबसे आगे है. इसलिए हमें भारत से व्यापार कर के ये सब sतकनिकी लेनी है, और इस तकनिकी को इंग्लैंड में ला कर फिर से उसको रिप्रोडूस करना है, पुनरुत्पादित करना है. तो भारत टेक्नोलोजी में बहूत ऊँचा है,
इसी तरह से विज्ञान में भी बहुत ऊँचा है. भारत के विज्ञान के बारे में एक दो नहीं बिसियो अंग्रेजो ने रिसर्च की है, शोध की है, और वो ये कहते है कि भारत में विज्ञान की बीस से ज्यादा शाखाए है, जो बहुत ज्यादा पुष्पित और पल्लवित हुई है. उनमे सबसे बड़ी शाखा है वो खगोल विज्ञान है, दूसरी बड़ी शाखा है वो नक्षत्र विज्ञान है, तीसरी बड़ी शाखा है बर्फ बनाने का विज्ञान है, चौथी बड़ी शाखा है और ऐसे कर कर के धातु विज्ञान है, फिर उसके बाद भवन निर्माण के विज्ञान की है. तो ऐसी बीस तरह की वैज्ञानिक शाखाए पुरे भारत में है. और बोकर लिख रहा है इस बात को कि भारत में ये जो विज्ञान की ऊँचाई है वो कितनी अधिक है, इसका अंदाजा हम अंग्रेजो को नहीं लगता
पहली बार सारी दुनिया को पृथ्वी और सूर्य के अंतर संबंधो के बारे में बताने वाला यूरोप का वैज्ञानिक कोपरनिकस माना जाता है. और उस कोपरनिकस के बारे में ये भी कहा जाता है कि वो पहला यूरोपियन वैज्ञानिक है जिसने सूर्य से पृथ्वी का अनुमान लगाया फिर वो पहला वैज्ञानिक है जिसने सूर्य के उपग्रहों के बारे में जानकारी सारी दुनिया को दी. लेकिन इस कोपरनिकस की बात को अंग्रेज ही कह रहा है कि ये असत्य है झूठ है. वो ये कह रहा है बोकर के अंग्रेजो के हजारो साल पहले, यूरोपियन लोगो के हजारो साल पहले भारत में ऐसे विशेषज्ञ वैज्ञानिक हुए है जिन्होंने सूर्य की दुरी का ठीक ठीक पता लगाया है और भारत के शास्त्रों में उसको दर्ज कराया है
आप जानते है, हमारे वेदों में, यजुर्वेद में विशेष रूप से ऐसे बहुत सारे सूत्र है, श्लोक है, मंत्र है जिनसे बहुत सारा स्पष्ट ज्ञान मिलता है कोपरनिकस का जिस दिन जन्म हुआ था यूरोप में, उससे ठीक लगभग १ हजार साल पहले एक भारतीय वैज्ञानिक ने पृथ्वी से और सूर्य की दुरी कितनी है ठीक ठीक नाप उन्होंने बता दिया था. और हमारे वैज्ञानिक का नाम था आर्यभट्ट. जितनी दूरी श्री आर्यभट्ट जी ने कह दी है उस दुरी में एक इंच इधर और उधर यूरोप का वैज्ञानिक कर नहीं पाया. वही दूरी आज यूरोप में मानी जाती है, अमेरिका में मानी जाती है, प्रमाणित है. तो आप अंदाजा लगाए कि जब इस देश में ऐसे वैज्ञानिक रहे है जिन्होंने धरती से सूर्य की दूरी नाप ली हो, और वो भी यूरोप से हजार साल पहले,
हमारे देश में जो खगोल विज्ञान है , ये बहुत गहरा रहा है और इसी पर से नक्षत्र विज्ञान का विकास हुआ है. ये खगोल विज्ञान और नक्षत्र विज्ञान में शोध करने वाले वैज्ञानिको ने ही दिन और रात कितने बड़े होंगे १२ घंटे का दिन होगा १२ घंटे की रात होगी, १४ घंटे का दिन होगा या १० घंटे की रात होगी या १० घंटे का दिन होगा १४ घंटे की रात होगी, सर्दियों में अलग होगी, गर्मियों में अलग होगी, बरसात में कैसी होगी, ये सारे के सारे आंकड़े दिन और रात के समय के ये भारत के वैज्ञानिको के दारा निकले गए है, और सारी दुनिया में उसका प्रचार और प्रसार हुआ है. हम अभी दिन की गणना करते है कि आज हमारा दिन रविवार है दूसरा दिन सोमवार है तीसरा दिन मंगलवार है चौथा दिन बुधवार है पांचवा दिन गुरुवार है शुक्रवार है शनिवार है ये जो दिनों की हम गिनती करते है और इनके जो नाम जो हमने रखे हुए है वो रवि सोम मंगल बुध आपको शायद ये मालूम होगा नहीं तो मै कहना चाहता हु ये सारे दिनों का नामकरण और इनकी अवधि पूरी की पूरी महान महर्षि आर्यभट्ट की निकली हुई है. और उनके द्वारा ये दिन तय किए हुए है. अंग्रेज जो नक्षत्रविज्ञानी है वो ये बात ईमानदारी से स्वीकार करते है कि भारत का रवि सोम मंगल बुध ही हमने ले लिया है और इसी को संडे, मंडे, ट्यूसडे, थर्सडे, फ्राईडे, सटरडे कर दिया है. ये सब कुछ भारत से उधार लिया हुआ है.
पृथ्वी घुमती है अपने अक्ष पर, और सूर्य के चारो तरफ भी ये बात सबसे पहले भारतीय वैज्ञानिको ने प्रमाणित की थी १० वी. सताब्दी में. और पृथ्वी के घुमने से दिन रात होते है, मौसम और जलवायु बदलते है ये बात भी भारतीय वैज्ञानिको द्वारा प्रमाणित हुई है सारी दुनिया में. तो भारत के वैज्ञानिको ने खगोल शास्त्र में, नक्षत्र विज्ञान में जबरदस्त काम किया है. सूर्य है, सूर्य के कितने उपग्रह है और उन उपग्रहों का सूर्य के साथ अंतर सम्बंध क्या है, ये सारी खोज भारत में तीसरी सताब्दी के आस पास की है.
जब दुनिया में कोई पढना लिखना भी नहीं जानता होगा, उस समय भारत में ये खोज चलती रही है, कि सूर्य क्या है, सूर्य के उपग्रह क्या है, उनके आपस के अंतर सम्बंध क्या है. तो खगोल शास्त्र की, नक्षत्र विज्ञान की विद्या बहुत अदभुत और बहुत ऊँची है. एक अंग्रेज है उसका नाम है डेनिअल डिपो, वो ये कहता है कि ये भारत के वैज्ञानिक कितने ज्यादा पक्के है गणित में, कि चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण का ठीक ठीक पता बता देते है सालों पहले, आज के दिन चन्द्र ग्रहण होगा, आज के दिन सूर्य ग्रहण होगा, और इतने बज कर इतने मिनट पर होगा, ये भारत के वैज्ञानिक कई कई साल पहले बता देते है. १७०८ के समय ये लंदन की संसद में कह रहा है कि मैंने भारत का पंचांग जब भी पढ़ा है मुझे एक प्रश्न का उत्तर कभी नहीं मिला कि भारत के ऋषि, महर्षि, वैज्ञानिक कई कई साल पहले कैसे पता लगा लेते है कि आज चन्द्र ग्रहण पड़ेगा, आज सूर्य ग्रहण पड़ेगा, और इस समय पर पड़ेगा, और सही सही वोही समय पर पड़ता है. इसका माने भारत के वैज्ञानिको की नक्षत्रों के बारे में, खगोल विद्या के बारे में बहुत गहरी गहरी रिसर्च है, शोध है. ये इसी के आधार पर हो सकता है. तो इस तरह का भारत है.
भारत की शिक्षा ...
भारत का अतीत अगर हमें अच्छे से समझना है तो भारत की शिक्षा को समझना पड़ेगा. क्योकि साइंस और टेक्नोलोजी जो भी विकसित होती है, उसका आधार शिक्षा व्यवस्था होती है. किसी देश में खगोल शास्त्र अगर विकसित हुआ है तो उसका आधार भी शिक्षा व्यवस्था होती है. अगर नक्षत्र शास्त्र का विकास हुआ है तो उसका आधार भी शिक्षा व्यवस्था होती है. सभी विज्ञान की विधाओ का, और सभी तकनिकी की विधाओ का मूल आधार शिक्षा होती है. तो भारत में अगर विज्ञान इतना अच्छा है, तकनिकी इतनी अच्छी है तो शिक्षा भी कोई बहुत अच्छी ही रही होगी. बिना उसके तो विज्ञान, तकनिकी आ नहीं सकती, और बिना शिक्षा के उद्योग और व्यापार चल नही सकता. तो भारतीय शिक्षा के बारे सबसे पहला एक प्रमाण मै प्रस्तुत करना चाहता हु, एक जर्मन दार्शनिक हुआ, उसका नाम है मैक्स मुलर.
मैक्स मुलर ने भारत की शिक्षा व्यवस्था पर सबसे ज्यादा शोध कार्य किया है. और वो ये कहता है कि मै भारत की शिक्षा व्यवस्था से इतना प्रभावित हु, शायद ही दुनिया के किसी भी देश में इतनी सुंदर शिक्षा व्यवस्था होगी जो भारत में है और भारत के बंगाल राज्य के बारे में, मैक्स मुलर एक आंकड़ा दे रहा है, कि भारत का जो बंगाल राज्य है, बंगाल प्रान्त है, बंगाल प्रान्त आप जानते है ? भारत का एक प्रान्त है, और ये जब बंगाल की जो ये बात मैक्स मुलर कह रहा है, वो बंगाल है, जिसमे पूरा बिहार है, आधा ओरिसा है, आज का पूरा पश्चिम बंगाल है, और आसाम है, और आसाम के ऊपर के छोटे छोटे सात प्रदेश है. इस बंगाल राज्य के बारे में मैक्स मुलर कह रहा है कि मेरी जानकारी में ८०,००० से अधिक गुरुकुल पुरे बंगाल में सफलता के साथ पिछले हजारो साल से चल रहे है.
मैक्स मुलर ने गिनती करवाई है, और सिर्फ एक राज्य के बारे में, एक राज्य है बंगाल. इसी तरह से एक अंग्रेज विद्वान है, शिक्षाशास्त्री है, उसका नाम है लुद्लो, और लुद्लो आता है भारत में, और करीब सोलह सत्रह साल रहता है इस देश में. और सोलह सत्रह साल रह कर भारत में घुमा है. घुमने के बाद शिक्षा व्यवस्था पर उसने सर्वेक्षण किया है. वो क्या कह रहा है, वो कह रहा है कि भारत में एक भी गाँव ऐसा नहीं है, जहाँ कम से कम एक गुरुकुल नहीं है. कम से कम, माने हर गाँव में कम से कम एक गुरुकुल तो है ही. एक से भी ज्यादा है. फिर वो कह रहा है कि भारत के बच्चे एक भी ऐसे नहीं है जो गुरुकुल में न जाते हों पढाई के लिए, माने सभी बच्चे गुरुकुल में जाते है पढाई के लिए. ये लुद्लो १८ वी. सताब्दी की बात कह रहा है.
उसके अलावा एक और अंग्रेज है जिसका नाम है जी. डब्लू. लिट्नेर, वो ये कहता है कि मैंने भारत के उत्तर वाले इलाके का पूरा सर्वेक्षण किया है शिक्षा का, और मेरे सर्वेक्षण की रिपोर्ट बताती है कि भारत में २०० लोगों पर एक गुरुकुल चलता है. पुरे उत्तर भारत की रिपोर्ट में वो ये निष्कर्ष दे रहा है. इसी तरह से थॉमस मुनरो की रिपोर्ट है, वो ये कह रहा है कि दक्षिण भारत में ४०० लोगों पर कम से कम १ गुरुकुल भारत में है. अब ये उत्तर और दक्षिण को मिला दिया जाए तो सारे भारत के बारे में औसत निकला जाए. तो ये औसत निकलता है कि ३०० लोगों पर कम से कम एक गुरुकुल भारत में है. और जिस ज़माने में ये सर्वेक्षण हुआ है, उस ज़माने में भारत की जनसँख्या लगभग २० करोड़ के आस पास है. तो २० करोड़ की जनसंख्या में ३०० लोगों पर अगर एक गुरुकुल अगर आप निकालेंगे तो कुल २० करोड़ लोगों के ऊपर लगभग ७,३२००० के आस पास गुरुकुल निकलते है.
सन. १८२२ के आस पास के ये आंकड़े है. अंग्रेज दस दस वर्ष में भारत की जनसँख्या का सर्वेक्षण करते रहते थे, तो उस ज़माने के सर्वेक्षण से ये पता चला कि भारत में कुल गाँव की संख्या भी लगभग ७,३२००० ही है. माने जितने गाँव है, उतने ही गुरुकुल इस देश में है, माने हर गाँव में पढने के लिए पूरी की पूरी व्यवस्था है, आज की भाषा में कहें तो कम से कम एक स्कूल हर गाँव में है.
सन. १८६८ तक तो पूरे इंग्लैंड में सामान्य बच्चो को पढ़ाने के लिए एक भी स्कूल नहीं था १८६८ तक, और हमारे यहाँ १८२२ तक पुरे भारत देश में हर गाँव में एक गुरुकुल था, सामान्य बच्चो को पढाने के लिए. मतलब हमारी शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजो से बहुत बहुत बहुत आगे थी. और इसी जी. डब्लू. लिट्नेर रिपोर्ट में में मै आपसे आगे कहू, लिट्नेर कहता है कि सम्पूर्ण भारत देश में ९७ प्रतिशत साक्षरता की दर है,सिर्फ ३ प्रतिशत भारतवासी है जिनको पढने का कोई मौका शायद जीवन में नहीं मिला है.
इन गुरुकुलों को चलने के लिए कभी किसी राजा से कोई दान या अनुदान नहीं लिया जाता,ये सारे गुरुकुल समाज के द्वारा चलाए जाते है. आप बोलेंगे की समाज के द्वारा कैसे चलते है ? हमारे गाँव गाँव में जहाँ जहाँ गुरुकुल रहे है, वहां समाज के लोगों में गुरुकुल के लिए भूमि दान कर रखी है. और उस भूमि पर जितना उत्पादन होता है, उस उत्पादन की आय से गुरुकुल आराम से चलता है. जरुरत पड़े तो गाँव के लोग गुरुकुल के लिए दान इकठ्ठा करते है, और गुरुकुल उसका उपयोग करता है, तो सारे भारत के गुरुकुल साधारण लोगों के दान के पैसे से चलते है, राजा के पैसे से इस देश में एक भी गुरुकुल नहीं चलता है. भारत के गुरुकुलों में समय क्या है पढाई का? तो सूर्योदय से सूर्यास्त का, ये समय है पढाई का.उनमे वो १८ विषय पढ़ते है. गणित पढ़ते है, जिसको वैदिक गणित कहा जाता है, खगोल शास्त्र पढ़ते है, नक्षत्र विज्ञान पढ़ते है, धातु विज्ञान पढ़ते है, जिसको आज हम मैट्रोलोजी कहते है, एस्ट्रो फिजिक्स पढ़ते है, केमिस्ट्री माने रसायन शास्त्र पढ़ते है, ऐसे लगभग १८ विषय विद्यार्थिओं को पढाये जाते है. और आपको ऐसा लगता होगा, कई लोगों के मन में ये भ्रम हो जाता है कि भारत में गुरुकुल माने खाली संस्कृत पढाई जाती होगी, और वेद और उपनिषद पढ़ा दिए जाते होंगे. लेकिन यहाँ दस्तावेज बताते है कि भारत में सभी गुरुकुलों में संस्कृत तो पढाई जाती है माध्यम के लिए और वेद पढाए जाते है और उपनिषद पढाये जाते है विद्यार्थियो में संस्कार देने के लिए, लेकिन विद्या देने के लिए खगोल शास्त्र, नक्षत्र विज्ञान, धातु विज्ञान, धातु कला और फिर शौर्य विज्ञान माने सैन्य विज्ञान जिसको हम कहते है, जिसको मिलिट्री ट्रेनिंग कहते है. इस तरह के १८ विषय अलग अलग विद्यार्थियों को पढाये जाते है.
इन गुरुकुलों में पढने के लिए विद्यार्थी जब आते है, तो उनकी उम्र कितनी होती है ? तो एक अंग्रेज अधिकारी लिख रहा है, उसका नाम है पेंटर ग्रा वो ये कहता है कि कोई बच्चा, भारत में पांच साल, पांच महीने, और पांच दिन का हो जाता है बस उसी दिन उसका गुरुकुल में प्रवेश हो जाता है. पांच साल, पांच महीने, और पांच दिन का हो जाता है उसी दिन बच्चे प्रवेश का गुरुकुल में हो जाता है. लगातार १४ वर्ष तक वो गुरुकुल में पढता है और १४ वर्ष की शिक्षा पूरी कर के वो गुरुकुल से बाहर निकलता है. तो एक सम्पूर्ण मानव बन के निकलता है. और वो जिम्मेदारी परिवार की उठा सकता है, समाज की उठा सकता है और देश की उठा सकता है. और पेंटर ग्रा कहता है कि शिक्षा भारत में इतनी आसान है कि गरीब हो या अमीर हो, पैसे वाला हो या बिना पैसे वाला हो, सबके लिए शिक्षा सामान है और सबके लिए व्यवस्था सामान है.
आपने तो ये बात बहुत बार सुनी होगी कि हमारे देशो में गुरुकुलों की व्यवस्था ऐसी ही रही है, कि भगवान श्री कृष्ण भी जिस गुरुकुल में पढ़े, उसी गुरुकुल में उनके मित्र सुदामा भी पढ़े. और सुदामा की आर्थिक स्तिथि के बारे में आप जानते है कि भगवान कृष्ण को मुट्ठी भर चावल तक नहीं खिला सकते, इतनी आर्थिक स्तिथि कमजोर है, फिर भी सुदामा को गुरुकुल में प्रवेश मिला है और श्री कृष्ण के साथ बैठ कर उन्होंने शिक्षा ग्रहण की है. माने एक तरफ करोडपति का बेटा, दूसरी तरफ रोडपति का बेटा दोनों एक ही जगह बैठ कर सामान शिक्षा ले रहे है. और गुरु उनको सामान भाव से शिक्षा दे रहा है. भारतीय गुरुकुलों की ये अदभुत विशेषता है. सारी दुनिया के विद्वान् इस बात पर भारत की बहुत प्रशंशा करते है. वो ये कहते है कि भारत की शिक्षा हमेशा से निशुल्क रही है.
१४ वर्ष की पढाई सामान्य नहीं होती है. आज की आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में अगर हम देखें तो यहाँ १४ वर्ष की पढाई तो जो प्रोफेशनल एजुकेशन है उसी में होती है. यहाँ तो भारत में सामान्य गुरुकुलों में १४ वर्ष की पढाई होती है. और इसके बाद विशेषज्ञता हासिल करनी है, पंडित होना है, पांडित्य आपको लाना है, तो उसके लिए उच्च शिक्षा के केंद्र इस देश में चलते है. जिनको उच्च शिक्षा केंद्र अंग्रेजो ने कहा है,
आज उनको हम भारत में यूनिवर्सिटी और कॉलेजेस कह सकते है. आज इस भारत देश में, २००९ में, भारत सरकार के लाखो करोड़ो रूपये खर्च होने के बाद लगभग साढ़े तेरह हजार कॉलेजेस है प्राइवेट और सरकारी सब मिलाकर और ४५० विश्वविद्यालय है, निजी और सरकारी कोनो मिलाकर, साढ़े तेरह हजार कॉलेजेस है और ४५० विश्वविद्यालय है. जब लाखो करोड़ो रूपये सरकार ने खर्च किया है. १८२२ में अकेले मद्रास प्रान्त में, मद्रास प्रेसीडेंसी उसको कहा जाता है. मद्रास प्रान्त का मतलब क्या है? आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक का कुछ हिस्सा, ये पूरा मद्रास प्रान्त है. अकेले मद्रास प्रान्त में १८२२ में ११,५७५ कॉलेजेस रहे है और १०९ विश्वविद्यालय रहे है. अकेले मद्रास प्रान्त में,
ऐसे ही मुंबई प्रान्त है, और फिर मुंबई प्रान्त के बाद ऐसे ही पंजाब प्रान्त है. फिर नार्थ – वेस्ट फ्रंटियर है, ये चारो स्थानों को मिला दिया जाये तो भारत में लगभग १४००० से भी ऊपर कॉलेजेस रहे है और लगभग ५०० से सवा ५०० के बीच में विश्वविद्यालय रहे है. अब विश्वविद्यालय आज से ज्यादा, कॉलेजेस भी आज से ज्यादा, सन १८२२ में भारत की ये स्थिति है, माने उच्च शिक्षा भारत में अदभुत रही है, अंग्रेजो के आने के पहले तक, माध्यमिक शिक्षा तो अदभुत है ही, प्राथमिक शिक्षा भी बहुत अदभुत है लेकिन उच्च शिक्षा भी इस देश में अदभुत है. और इन कॉलेजेस में विशेष रूप से जो कॉलेजेस रहे है, अभियांत्रिकी के अलग कॉलेजेस है, इंजीनियरिंग के अलग कॉलेजेस है, सर्जरी के अलग कॉलेज है, मेडिसिन के अलग कॉलेज है. जिनको आज हम कहते है न मेडिकल कॉलेज अलग है, इंजीनियरिंग कॉलेज अलग है. मैनेजमेंट के कॉलेज अलग है, ये तो भारत में १८२२ में भी है,
सर्जरी के विश्वविद्यालय अलग है. और ये हमारे चिकित्सा विज्ञान में जिसको हम आयुर्वेद कहते है, इसके विश्वविद्यालय अलग है, और मैनेजमेंट के विश्वविद्यालय अलग है. ये पुरे भारत में फैले हुए है और पुरे भारत के विद्यार्थियो की व्यवस्था यहाँ पर है. हमने सुना है तक्षशिला एक विश्वविद्यालय कभी होता था, हमने सुना है कभी नालंदा नाम का एक विश्वविद्यालय होता था. ये तक्षशिला नालंदा तो दो नाम है ऐसे तो ५०० से ज्यादा विश्वविद्यालय सम्पूर्ण भारत देश में हमारे आज से लगभग डेढ़ सौ – पोने दो सौ तक रहे है. तक्षशिला नालंदा तो आज से ढाई हजार साल पहले की कहानी है. लेकिन डेढ़ सौ पोने दो सौ साल पहले के भारत में सवा पांच सौ से ज्यादा विश्वविद्यालय है और १४००० के आस पास डिग्री कॉलेजेस है. तो शिक्षा व्यवस्था में भारत मजबूत है पूरी दुनिया में.
पुरे यूरोप में ऐसा माना जाता है कि सबसे पहले शिक्षा व्यवस्था सामान्य लोगों के लिए इंग्लैंड में आई. और वो सन. १८६८ में आई. इसका माने यूरोप के देशो में में तो उसके और बाद में आई. तो आप बोलेंगे १८६८ के पहले इंग्लैंड में स्कूल नहीं थे? स्कूल नहीं थे, ये बात को सही तरह से समझना है, राजाओं के जो बच्चे जो होते थे, राजाओं के जो अधिकारी होते थे, उन्ही के लिए स्कूल होते थे. और वो राजाओं के महल में चला करते थे, वो सामान्य रूप से सार्वजनिक स्थानों पर नहीं चला करते थे. और साधारण लोगों को उनमे प्रवेश भी नहीं था, इंग्लैंड और यूरोप में ये माना जाता था कि शिक्षा जो है वो विशेषज्ञो के लिए है. और राजा विशेषज्ञ है तो राजा को शिक्षा है, उसके बच्चों को शिक्षा है, उसके अधिकारियो के बच्चों को शिक्षा है.
आम आदमी को शिक्षित होने की जरूरत नहीं है. क्यों? तो यूरोप के दार्शनिक कहते है कि आम आदमी को तो गुलाम बन के रहना है, उसको शिक्षित होने से फायदा क्या है. दुनिया में बहुत बड़ा दार्शनिक माना जाता है अरस्तू और उससे भी बड़ा माना जाता है सुकरात. अरस्तू और सुकरात दोनों कहते है कि अन्य बच्चों को शिक्षा नहीं देनी चाहिए, शिक्षा सिर्फ राजा के बच्चों को, राजा के अधिकारियो के बच्चों को ही देनी चाहिए, तो उनके लिए कुछ पढने और पढ़ाने की व्यवस्था है, आम बच्चों के लिए नहीं है. जबकि भारत में बिलकुल उलटा है. शिक्षा आम बच्चों के लिए है, साधारण बच्चों के लिए है, वो गरीब हो, या अमीर हो, ऐसी अदभुत शिक्षा व्यवस्था हमारे देश में रही है.
भारत में कृषि व्यवस्था
. हमारे अतीत में कृषि व्यवस्था के बारे में जिन अंग्रेजो ने बहुत ज्यादा शोध किया है. उनमे से लेस्टर नाम का एक अंग्रेज है, वो ये कहता है कि भारत में कृषि उत्पादन दुनिया में सर्वोच्च है. और अंग्रेजो की संसद में भाषण देते समय वो कह रहा है कि भारत में एक एकड़ में सामान्य रूप से ५६ क्विंटल धान पैदा होता है, एक एकड़ में सामान्य रूप से. वो ये कह रहा है कि ये उत्पादन औसतन है, एवरेज है, वो ये कहता है की भारत के कुछ इलाके तो ऐसे है, जहाँ एक एकड़ में ७० से ७५ क्विंटल तक धान होता है. और कुछ इलाके ऐसे है जहाँ ४५ से ५० क्विंटल धान पैदा होता है. और वो कहता है कि मैंने औसत निकला है पुरे भारत का, तो ५६ क्विंटल धान पैदा होता है भारत की खेती में, इतनी उन्नत कृषि व्यवस्था भारत में है.
आज के अनुसार मै आपको इसको अगर तुलना कर के बताऊ तो आज भारत में सबसे ज्यादा यूरिया, डी. एस. बी., सुपर फास्फेट, डालने के बाद, सबसे ज्यादा रासायनिक खाद डालने के बाद, औसतन एक एकड़ में ३० क्विंटल से ज्यादा धान पैदा नहीं होता, और आज से लगभग १५० साल पहले भारत में एक एकड़ में ५६ क्विंटल धान पैदा हो रहा है. खाली गाय का गोबर और गौमूत्र का उपयोग किया जा रहा है. तो उत्पादन का स्तर ये है.
इसी में गन्ने के उत्पादन के बारे में आंकड़े है, अंग्रेजो की संसद में, वो ये कह रहा है कि भारत में एक एकड़ में १२० मीट्रिक टन गन्ना सामान्य रूप से पैदा होता है, पुरे भारत में. १२० मीट्रिक टन, और आज सन २००९ में, यूरिया, डी. एस. बी., सुपर फास्फेट के बोरे पर बोरे खेत में डालने के बाद, गन्ने का औसत उत्पादन पुरे देश में ३० से ३५ मीट्रिक टन है, एक एकड़ में. महाराष्ट्र का एक इलाका है, जिसको पश्चिम महाराष्ट्र आप कहते है, सांगली है, सतारा है, कोलापुर है, और पुणे के बीच का, इस पुरे इलाके में गन्ना औसतन रूप से एक एकड़ में ८० से ९० मीट्रिक टन है, बस यही क्षेत्र है भारत का जहाँ गन्ने का उत्पादन सबसे ऊँचा है और अंग्रेज उस समय का सर्वेक्षण कर रहे है और कह रहे है कि १२० मीट्रिक टन गन्ने का उत्पादन है भारत में ऐसी खेती है,
फिर वो कह रहे है कि कपास का उत्पादन सारी दुनिया में सबसे ज्यादा है. और एक ख़ास बाद जो अंग्रेज कह रहे है वो ये कि भारत में फसलों की विविधता सबसे ज्यादा दुनिया में भारत में ही है. एक अंग्रेज कह रहा है की भारत में धान के कम से कम १ लाख प्रजाति के बीज है, कम से कम १ लाख प्रजाति के बीज है. और ये बात अंग्रेज कह रहा है सन १८२२ के आस पास कह रहा है. सन १८२२ तक इस देश में धान की १ लाख से ज्यादा प्रजातियाँ मौजूद थी. और आज सन. २००९ के आते आते भी पचास हजार धान की प्रजातियाँ तो अभी भी इस पुरे देश में मौजूद है भारत में सबसे पहला हल बना पूरी दुनिया का, और सारी दुनिया ने हल बनाना और खेत में हल को चलाना भारतवासियो से सिखा है ये भारत का सारी दुनिया को सबसे बड़ा कन्ट्रीब्युसन है.
फिर एक अंग्रेज कहता है कि हल के अलावा खुरपी, निदाई, कुदाई करने के लिए उपयोग में आती है. खुरपी है, खुरपा है, हसिया है, हथोडा है, बेलची है, कुदाली है, फावड़ा है, पवित्र है, रैट है, ये सभी शब्द शायद आपके जाने पहचाने है. अंग्रेज कहते है कि ये सब चीजे दुनिया में बाद में आई है, भारत में सैकड़ो साल पहले ही ये बन चुकी है और इनका उपयोग होता रहा है. माने खुरपी, खुरपा, हसिया, फावड़ा, कुदाली जो सारी दुनिया में आज भी इस्तेमाल होते है खेत के लिए. वो भारत में सबसे पहले विकसित हुई है. और बीज को एक पंक्ति में बोने की जो परंपरा है वो हजारों साल पहले भारत में विकसित हुई है. दुसरे देशो को तो कभी उसकी कल्पना नहीं रही है.
इसी तरह अंग्रेजो के इंग्लैंड में १७५० में पहली बार कुछ किसानो ने भारत आ कर खेती सीखी और यहाँ से जा कर अपने इंग्लैंड में उन्होंने कुछ प्रयोग किये, और उसके बाद खेती का काम थोड़ा बहुत उनके यहाँ आगे बढ़ा. इसके पहले कोई उनके यहाँ रिकॉर्ड नहीं मिलते है कि खेती उनके यहाँ कोई बहुत अच्छी होती थी. तो आप पूछेंगे, १७५० के पहले ये इंग्लैंड वाले जीते कैसे थे, या स्कोटलैंड वाले कैसे जीते थे, अगर उनके यहाँ खेती नहीं थी, वो जंगल के द्वारा होने वाले उत्पादन और पशुओ को शिकार कर के उससे उत्पादित होने वाले मांस पर जिन्दा रहते थे. जंगल से जो कुछ मिल गया और पशुओ को मारकर जो मांस पैदा कर लिया, उसी को खा कर उनका जीवन हजारो साल गुजरा है, और जिस समय इंग्लैंड वाले या यूरोप वाले दो ही चीजें खा पाते थे या तो मांस या तो जंगल के फल. उस समय भारत में खाने के लिए १ लाख किस्म के चावल उपलब्ध हुआ करते थे. तो बाकि चीजो की तो बात छोड़ दीजिए. तो ऐसी अदभुत हमारी कृषि व्यवस्था रही है.,
हजारो साल तक भारत का चावल दुनिया में निर्यात हुआ है, हजारो सालों तक दालें दुनिया को निर्यात की है, हजारो साल तक भारत में बनाया हुआ गुड़, ये जो शक्कर बनती है न चीनी, ये तो अभी सौ साल पहले बनना शुरु हुई है, उसके पहले गुड़ बनता था और गुडीया शक्कर बनती थी. तो गुड़ और गुडीया शक्कर सारी दुनिया को हजारो साल तक भारत ने उत्पादित कर के खिलाई है. और खाने पीने की हजारो हजारो चीज़े दुनिया भर के देश हमसे खरीद्ते रहे है और हमको बदले में सोना, चांदी, हीरे, जवाहरात मिलते रहे है.
किसी भी देश का तरक्की का पैमाना हम जब नापते है न, कि इस देश का कितना विकास है, तो दो ही चीजो से वो पैमाना नापा जाता है और बनता है. पहला होता है स्वास्थ्य और दूसरा होता है चिकित्सा. भारत का स्वास्थ्य दुनिया में सबसे अदभुत रहा है, क्योकि इस देश में चिकित्सा विज्ञान दुनिया में सबसे ज्यादा उन्नत स्थिति में रहा है. चिकित्सा विज्ञान में हजारो हजारो किस्म की आयुर्वेद की जड़ी-बुटिया, और सर्जरी की सारी की सारी विद्या पूरी दुनिया को यही से गई है. और अभी जो सर्जरी के पुराने दस्तावेज मिलते है, वो बताते है कि भारत में हिमांचल प्रदेश और पूरा महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, केरल सात आठ राज्य थे, जहाँ सर्जरी के सबसे बड़े शोध केंद्र चला करते थे, और एक दो नहीं हजारो हजारो सर्जरी के विशेषज्ञ इन केंद्र में पढ़कर तैयार होते थे, और समाज की सेवा करते थे.
आपको सुन कर हैरानी होगी जब दुनिया में कोई नहीं जनता था, आँख में मोतियाबिंद का पहला आपरेशन भारत में हुआ है, और जिसको आज हम राइनोप्लास्टी कहते है, सर्जरी की सबसे आधुनिकतम विद्या उसका सबसे पहला परिक्षण और प्रयोग भी भारत में हुआ है. और इंग्लैंड की जो रॉयल सोसाइटी ऑफ़ सर्जन है वो अपने इतिहास में लिखते है कि हमने सर्जरी भारत से सीखी है. और उसके बाद पुरे यूरोप को हमने ये सर्जरी सिखाई है, तो भारत चिकित्सा में बहुत ऊँचा, भारत तकनीकी में बहुत ऊँचा, भारत विज्ञान में बहुत ऊँचा, भारत उद्योग में बहुत ऊँचा, और इन सबके बाद भारत व्यापार में बहुत ऊँचा, और ये सबका आधार भारत शिक्षा व्यवस्था में सबसे ऊँचा, ऐसा अदभुत देश हमारा भारत रहा है, जो अंग्रेजो के आने के पहले तक था.
आप बोलेंगे इतनी गिरावट भारत में कैसे आई, ये सारी गिरावट भारत में आई, अंग्रेजो की नीतियो के कारण, और अंग्रेजो के कानूनों के कारण, अंग्रेजो ने देखा कि भारत की सारी कि सारी व्यव्स्थाए इतनी अदभुत है, तो इन सारी व्यवस्थाओ को ख़त्म करना है, तोडना है, क्योकि गुलाम बनाना है भारत को, मेकवेल ये कहता है कि भारत को गुलाम बनाना है भारत को तो भारत की संस्कृति, सभ्यता, शिक्षा इन सबका नाश करना पड़ेगा, तो इनका नाश करने के लिए उनलोगों ने कानून बनाए, सबसे पहले एक कानून बनाया इंडियन एजुकेशन एक्ट, और उस कानून के आधार पर भारत के गुरुकुल बंद किए गए, और धीरे धीरे भारत की शिक्षा व्यवस्था का नाश हो गया.
अंग्रेजो ने एक दूसरा कानून बनाया की भारत की वस्तुओ पर ज्यादा से ज्यादा कर लगाओ, और अंग्रेजी वस्तुओ को भारत में टैक्स फ्री कराओ, उससे बाद भारत के कारखाने बंद हो गए, फिर भारत का निर्यात खत्म हो गया, फिर भारत की कृषि व्यवस्था के लिए अंग्रेजो ने कानून बनाया कि किसानो के ऊपर ९० प्रतिशत लगान लगाओ, और किसानो की जमीने छिनने के लिए लैंड ऐक्विजिसन एक्ट बनाओ. उसके बाद हिंदुस्तान के किसान बर्बाद हो गए.
फिर किसानो के काम आने वाली गाय और बैल इनका कत्ल कराओ, और सबसे पहला कत्लखाना अंग्रेजो ने शुरु किया कोलकाता में, जो आज भी चल रहा है, अंग्रेज उसमे ३५० गाय रोज काटते थे, अब उस कत्लखाने में १४००० गाय रोज कट रही है, तो ये सारी की सारी दुर्व्यवस्था जो हमारे यहाँ पैदा हुई वो अंग्रेजो की गलत नितियो के कारण और अंग्रेजो के गलत शासन व्यवस्था के कानूनों के कारण हुई, अगर अंग्रेजी शासन नहीं होता, और अंग्रेजी कानून इस देश में लादे नहीं, तो आज मै इस बात को बहुत विश्वास से कह सकता हु कि आज भी भारत दुनिया का सर्वोच्च शिखर पर बैठा हुआ देश होता,
अब हमें क्या करना चाहिए, भारत स्वाभिमान के कार्यकर्त्ता के नाते मुझे ये लगता है कि हमको जो भारत कभी अंग्रेजो के आने के पहले था, विश्वशिखर में सर्वोच्च सत्ता पर बैठा हुआ सर्वश्रेष्ठ देश, वैसा ही भारत फिर बनाना है, यही हमारे भारत स्वाभिमान के लिए सपना है, और इसी सपने को पूरा करने के लिए हम सब परम पूजनीय स्वामी जी के नेतृत्व में सेना बन कर काम करे, और सेना बनकर अपने सेनापति के आदेश पर वो सब कर डाले जो इस भारत के गौरव को फिर से वापस लाने में हमारी मदद कर सके.
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