Monday, 21 March 2016

एक शब्द है “आचार्य” आपने शायद सुना होगा. आम तौर पर इसका अर्थ Teacher लिया जाता है. लेकिन इसका मतलब समझना हो तो आपको थोड़ा सा महाभारत देखना होगा. इस शब्द का सबसे ज्यादा इस्तेमाल आपने महाभारत के टीवी सीरियल में ही सुना होगा. महाभारत काल में ज्यादातर आचार्य युद्ध कला सिखा रहे होते थे. उनके नाम में ही जुड़ा हुआ आचार्य सुना होगा आपने.
अब महाभारत के युद्ध में योद्धाओं को याद कीजिये. तीन ऐसे नाम याद करने की कोशिश कीजिये जिन्हें लड़ते हुए हराया नहीं जा सकता था. उनसे जीतने के लिए अर्जुन और कृष्ण को मिलकर किसी ना किसी तरह उनका हथियार रखवाना पड़ा था. ऐसा सबसे पहला नाम आपको भीष्म का याद आएगा. भीष्म दस दिन तक कौरवों के सेनापति थे. उन्हीं के आहत होने की सूचना लेकर संजय जब धृतराष्ट्र के पास गए थे तब युद्ध के दसवें दिन से उन्होंने धृतराष्ट्र को भी युद्ध का आँखों देखा हाल सुनाना शुरू किया था.
जिस हिस्से को आज भगवतगीता के नाम से जानते हैं वो युद्ध के दसवें दिन संजय ने धृतराष्ट्र को सुनाना शुरू किया था. भीष्म का हथियार नीचे करवाने के लिए शिखंडी को बीच में लाना पड़ा था. दुसरे थे द्रोण, उनके नाम में खुद ही आचार्य जुड़ा होता है, सब द्रोणाचार्य ही बताते हैं. उनका हथियार रखवाने के लिए युधिष्ठिर को झूठ बोलना पड़ा था. कहते हैं इस एक झूठ की वजह से युधिष्ठिर का जो रथ हमेशा धरती से छह अंगुल ऊपर चलता था, वो जमीन पर आ गया था. तीसरे किरदार भी वैसे ही हैं, कर्ण के रथ का पहिया फंसने पर उन्होंने भी हथियार रखा, तभी वो मारे जा सके थे.
अब इन तीनों में कॉमन क्या था ? तीनों में एक ही चीज़ कॉमन थी, उनके आचार्य. तीनों को एक ऐसे आदमी ने सिखाया था जो खुद कभी हारा ही नहीं था. परशुराम कभी युद्ध नहीं हारे थे, और उन्होंने आचार्य होने पर अपने ही जैसे कभी ना हारने वाले योद्धा बना डाले थे. अगर आचार्य शब्द को उसके असली रूप में देखेंगे तो वो “आ” + “चर्” = “आचरणम्” से आचार्य बनता है. इसका मतलब होता है ऐसा व्यक्ति जो अपने पढ़ाये हुए को आचरण के जरिये सिखाता है. ये Teacher या Professor की तरह सिर्फ लेक्चर देकर निकल जाने वाला जीव नहीं होगा.
इसलिए जब आप किसी भी अनुवाद में आचार्य की जगह अंग्रेजी का Teacher / Professor जैसा कुछ लिख डालते हैं तो आप गलत अनुवाद करते हैं. जिस शब्द की परिभाषा ही अंग्रेजी में ना मौजूद हो उसे सीधा ही उठा कर अंग्रेजी लिखते समय इस्तेमाल करना चाहिए. अगर Et cetra का etc इस्तेमाल होता है या फिर faux pas इस्तेमाल होता है ताकि सही भाव जताया जा सके तो हमारे ही शब्द हमें वापिस क्यों नहीं करना चाहते हैं लोग ? बरसों से गलत अनुवाद करके भारतीय दर्शन, विज्ञान, न्याय जैसे विषयों में धोखे में क्यों रखा जा रहा है ?
अगर आपको भी ऐसे कोई शब्द याद आते हैं जिनका अनुवाद गलत होता हो तो उन्हें भी लिखिए. कमेंट में डाल दीजिये, अपनी पोस्ट में लिखिए, इनबॉक्स में छोड़ जाइए. एक जगह इकठ्ठा कीजिये इन्हें सबके देखने के लिए. आपकी भाषा आपकी संस्कृति आपकी जिम्मेदारी है. विदेशियों के भरोसे काम छोड़कर निकम्मों की तरह कब तक बैठे रहना चाहते हैं ?
बाकी “कायर मन कंह एक अधारा, दैव-दैव आलसी पुकारा” तो याद ही होगा?

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