Thursday, 10 March 2016

हिन्दू धर्म के देवता और उनके वाहन


हिंदू धर्म में विभिन्न देवताओं का स्वरूप अलग-अलग बताया गया है। हर देवता का स्वरूप उनके आचरण व व्यवहार के अनुरूप ही हमारे धर्म ग्रंथों में वर्णित है। स्वरूप के साथ ही देवताओं के वाहनों में विभिन्नता देखने को मिलती है। हर देवता प्रकृति के एक विशिष्ट गुण का प्रतिनिधित्व करता है ,तदनुरूप ही उनके स्वरुप की परिकल्पना और प्रकृति का विवरण होता है | धर्म ग्रंथों के अनुसार अधिकांश देवताओं के वाहन पशु ही होते हैं। यह धार्मिक अर्थों में कुछ और परिभाषित करते हैं ,सामाजिक परिभाषा कुछ और होती है तथा तात्विक अर्थ कुछ और होता है |यह वाहन देवता के अनुसार विशिष्ट गुण -स्वभाव और कर्म प्रदर्शित करते हैं |
भगवान श्रीगणेश का वाहन मूषक

भगवान श्रीगणेश का वाहन है मूषक अर्थात चूहा। चूहे की विशेषता यह है कि यह हर वस्तु को कुतर डालता है। वह यह नही देखता की वस्तु आवश्यक है या अनावश्यक, कीमती है अथवा बेशकीमती। इसी प्रकार कुतर्की भी यह विचार नही करते की यह कार्य शुभ है अथवा अशुभ। अच्छा है या बुरा। वह हर काम में कुतर्कों द्वारा व्यवधान उत्पन्न करते हैं। श्रीगणेश बुद्धि एवं ज्ञान के देवता हैं तथा कुतर्क मूषक है, जिसे गणेशजी ने अपने नीचे दबा कर अपनी सवारी बना रखा है। यह हमारे लिए भी शिक्षा है कि कुतर्कों को परे कर उनका दमन कर ज्ञान को अपनाएं।अब इसकी अगर हम तात्विक व्याख्या करें तो पाते हैं की चूहा महा चंचल जीव है जो कभी स्थिर नहीं रहता ,इसके अंग अवश्य हिलते रहेंगे |यह जीव इधर उधार फुदकता रहता है और चलायमान रहता है |गणेश आज्ञा चक्र के स्वामी हैं ,जहाँ की तरंगे कभी स्थिर नहीं रहती ,हमेशा विभिन्न दिशाओं में अनियंत्रित दौड़ती रहती हैं |यह चूहे की तरह चंचल भी होती हैं और यह नुक्सान भी अक्सर करती रहती हैं |व्यक्ति को स्थिर और नियंत्रित नहीं रहने देती |गणेश इस चूहे [तरंग] को नियंत्रित करते हैं |यही तरंगें आज्ञा चक्र तक संकेत लाती भी हैं और ले भी जाती हैं ,जैसे चूहा गणपति का प्रतिनिधित्व करता है छोटा सा जीव ,वैसे ही यह तरंगे जो बहुत मामूली होती हैं किन्तु गणेश अर्थात आज्ञा चक्र का भार वहां करती हैं और जीवन नियंत्रित करती हैं |अतः गणेश को साधने से मानसिक तरंगों का चूहा भी नियंत्रित हो जाता है और जीवन भी नियंत्रित हो जाता है |...
भगवान विष्णु का वाहन गरुड़
भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ है। इसे पक्षियों का राजा भी कहते हैं। गरुड़ की विशेषता है कि यह आसमान में बहुत उंचाई पर उड़कर भी धरती के छोटे-छोटे जीवों पर नजर रख सकता है। उसमें अपरिमित शक्ति होती है।भगवान विष्णु का वाहन गरुड सांपों का शत्रु है। इस कारण यह कहा जाता है कि गरुड विष को खत्म करने वाला अर्थात आतंक को नष्ट करने वाला पक्षी है। वैसे ही भगवान विष्णु सबका पालन करने वाले तथा प्रत्येक जीव का ध्यान रखने वाले होते हैं। उनकी नजर सदा प्रत्येक जीव पर होती है। उन पर सबकी रक्षा का भार भी है। इसलिए वह परम शक्तिशाली हैं।
भगवान शंकर का वाहन बैल
धर्म ग्रंथों में भगवान शंकर का वाहन बैल है। बैल बहुत ही मेहनती जीव होता है। वह शक्तिशाली होने के बावजूद शांत एवं भोला होता है। वैसे ही भगवान शिव भी परमयोगी एवं तप के बल पर शक्तिशाली होते हुए भी परम शंात एवं इतने भोले हैं कि उनका एक नाम ही भोलेनाथ जगत में प्रसिद्ध है। भगवान शंकर ने जिस तरह काम को भस्म कर उस पर विजय प्राप्त कि थी, उसी तरह उनका वाहन भी कामी नही होता। उसका काम पर पूरा नियंत्रण होता है। कृषक का प्रिय वृषभ (बैल) श्रमशीलता का प्रतीक है। जन-जन के आराध्य शिव जी का वाहन बैल भी उनके साथ पूजा जाता है। यह हमारी संस्कृति में श्रम की उपासना का अप्रतिम उदाहरण है।
देवी दुर्गा का वाहन शेर
शास्त्रों में देवी दुर्गा का वाहन सिंह यानी शेर बताया गया है। शेर एक संयुक्त परिवार में रहने वाला प्राणी है। वह अपने परिवार की रक्षा करने के साथ ही सामाजिक रूप से वन में रहता है। वह वन का सबसे शक्तिशाली प्राणी होता है, किंतु अपनी शक्ति को व्यर्थ में व्यय नही करता। आवश्यकता पडऩे पर ही उसका उपयोग करता है। देवी के वाहन शेर से यह संदेश मिलता है कि घर की मुखिया स्त्री को अपने परिवार को जोड़कर रखना चाहिए तथा व्यर्थ के कार्यों में अपनी बुद्धि को न लगाकर घर को सुखी बनाने के लिए लगातार प्रयास करना चाहिए। देवी दुर्गा का वाहन वनराज सिंह शक्ति का प्रतीक है, तभी तो स्वामी विवेकानंद उद्घोष करते हैं - हे युवाओं, तुम सिंह की तरह निर्भय बनो और आगे बढे चलो। इस प्रतीक को वैदिक, बौद्ध, जैन तीनों धर्र्मो में अपनाया गया है।
लक्ष्मी का वाहन हाथी एवं उल्लू
माता लक्ष्मी का एक वाहन सफेद रंग का हाथी है। हाथी परिवार के साथ मिल-जुलकर रहने वाला सामाजिक एवं बुद्धिमान प्राणी है। उनके परिवार में मादाओं को प्राथमिकता दी जाती है तथा सम्मान किया जाता है। हाथी हिंसक प्राणी नही होता। उसी तरह अपने परिवार वालों को एकता के साथ रखने वाला तथा अपने घर की स्त्रियों को आदर एवं सम्मान देने वालों के साथ लक्ष्मी का निवास होता है।गज अर्थात हाथी वैभव का सूचक है। पुराणों में कहा गया है कि धन-संपन्नता की देवी लक्ष्मी की अर्चना गजराज जल से करते रहते हैं। गज को बुद्धि के देवता गणपति का प्रतीक भी माना गया है।
लक्ष्मी का वाहन उल्लू भी होता है। ऊल्लू सदा क्रियाशील होता है। वह अपना पेट भरने के लिए लगातार कर्म करता रहता है। अपने कार्य को पूरी तन्मयता के साथ पूरा करता है। इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति रात-दिन मेहनत करता है, लक्ष्मी सदा उस पर प्रसन्न होती हैं तथा स्थाई रूप से उसके घर में निवास करती हैं।
सरस्वती का वाहन हंस
मां सरस्वती का वाहन हंस है। हंस का एक गुण होता है कि उसके सामने दूध एवं पानी मिलाकर रख दें तो वह केवल दूध पी लेता हैं तथा पानी को छोड़ देता है। यानी वह सिर्फ गुण ग्रहण करता है व अवगुण छोड़ देता है। इसलिए वह विवेक का प्रतीक है। इसी कारण देवी सरस्वती ने उसे अपना वाहन बनाया है। हंस मोती चुगकर सर्वश्रेष्ठ को ग्रहण करने का संदेश देता है देवी सरस्वती विद्या की देवी हैं। गुण व अवगुण को पहचानना तभी संभव है, जब आपमें ज्ञान हो। इसलिए माता सरस्वती का वाहन हंस है।
हनुमानजी का आसन पिशाच
हनुमानजी पे्रत या पिशाच को अपना आसन बनाकर उस पर बैठते हैं। इसी को वह अपने वाहन के रूप में भी प्रयोग करते हैं। पिशाच या प्रेत बुराई तथा दूसरों का भय एवं कष्ट देने वाले होते हैं। इसका अर्थ है कि हमें कभी भी बुराई को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए।
सूर्य का वाहन रथ
भगवान सूर्य का वाहन रथ है। इस रथ में सात घोड़ें होते हैं। जो सातों वारों का प्रतीक हैं। रथ का एक पहिया एक वर्ष का प्रतीक है जिसमें बाहर आरे होते हैं तथा छ: ऋतु रूपी छ: नेमीयां होती हैं। भगवान सूर्य का वाहन रथ इस बात का प्रतीक होता है कि हमें अपना कर्म करते हुए सदैव आगे बढ़ते रहना चाहिए, तभी जीवन में प्रकाश आता है अश्व (घोडा) को स्फूर्ति एवं शक्ति का प्रतीक माना जाता है। हमारी सृष्टि के साक्षात देवता माने जाने वाले सूर्य के रथ में सात घोडे होते हैं, जो सात किरणों के प्रतीक हैं। अश्वमेध यज्ञ से संबद्ध होने के कारण भी इसे पूज्य माना गया है।
यमराज का वाहन भैंसा
यमराज भैंसे को अपने वाहन के रूप में प्रयोग करते हैं। भैंसा भी सामाजिक प्राणी होता है। भैंसों के झुंड के सदस्य मिलकर एक-दूसरे की रक्षा करते हैं। उनका रूप भयानक होता है और उनमें शक्ति भी बहुत होती है, लेकिन वे इस शक्ति का दुरुपयोग नहीं करते। इसका अर्थ है कि यदि हम अपने परिवार के साथ मिल-जुलकर रहें तो बड़ी समस्याओं का सामना भी आसानी से कर सकते हैं। अत: यमराज उसको अपने वाहन के तौर पर प्रयोग करते हैं।
भगवान कार्तिकेय का वाहन मोर
भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय देवताओं के सेनापति कहे जाते हैं। इनका वाहन मोर है। धर्म ग्रंथों के अनुसार कार्तिकेय ने असुरों से युद्ध कर देवताओं को विजय दिलाई थी। अर्थात इनका युद्ध कौशल सबसे श्रेष्ठ है। अब यदि इनके वाहन मोर को देखें तो पता चलता है कि इसका मुख्य भोजन सांप है। सांप भी बहुत खतरनाक प्राणी है। इसलिए इसका शिकार करने के लिए बहुत ही स्फूर्ति और चतुराई की आवश्यकता होती है। इसी गुण के कारण मोर सेनापति कार्तिकेय का वाहन है।
मां गंगा का वाहन मगर
धर्म ग्रंथों में माता गंगा का वाहन मगरमच्छ बताया गया है। इससे अभिप्राय है कि हमें जल में रहने वाले हर प्राणी की रक्षा करनी चाहिए। अपने निजी स्वार्थ के लिए इनका शिकार करना उचित नहीं है, क्योंकि जल में रहने वाला हर प्राणी पारिस्थितिक तंत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इनकी अनुपस्थिति में पारिस्थितिक तंत्र बिगड़ सकता है।.

No comments:

Post a Comment