क्या वैटिकन का हाथ सोनिया गांधी को गांधी परिवार मे भेजने के पीछे है?
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ईश्वरी कार्य वैटिकन की रहस्य सेवा और कैथोलिक चर्चों में सबसे अधिक विवादित दबाव है। पिछले सप्ताह, मैं टीवी पर 2006 में आयी एक रहस्य रोमांच से भरी हॉलीवुड की एक अतिलोकप्रिय फिल्म, द विंसी कोड देख रहा था। यह फिल्म 2003 में डान ब्राउन के सबसे अधिक बिकने वाले उपन्यास पर आधारित और उसी नाम से बनायी गयी है। इस फिल्म में ईश्वर के कार्यों, वैटिकन की रहस्यमयी सेवाओं और कैथोलिक चर्चों में बहुत विवादित दबावों को कई बार संदर्भित किया गया है। जब मैंने इन कैथोलिक दबावों के बारे में जानने के लिये गहन छानबीन किया, तो मैं कुछ चौकाने वाली सूचानाओं को जानकर चकरा गया जो भारत की ओर इशारा कर रही थी। एक ब्लॉग लिखने वाले भूतपूर्व रॉ अधिकारी ने इंदिरा गांधी, भारत की सबसे अधिक शक्तिशाली प्रधानमंत्री, के परिवार में हुई मृत्युओं के बारे में बहुत सी “विशिष्ट सूचनाओं” का खुलासा किया है। ब्लॉग लिखने वाला स्पष्ट रूप से भारतीय खुफिया का, इंदिरा गांधी और उनके पुत्र राजीव गांधी के समय, अंग था। उसने सत्याभास कराने वाले अनुमान को बताया कि किस प्रकार पाश्चात्य खुफिया संस्थाये एंटोनिया अल्बिना मायनो उर्फ सोनिया गांधी को लगाकर भारतीय राजनीति को आकार दे रहा है। जब प्रथम विश्व युद्ध के बाद सम्पूर्ण यूरोप साम्यवाद के वशीभूत हो रहा था, तब एंटॉनियों के पिता स्टेफनो मायनो, जो रोमन कैथोलिक के प्रति निष्ठावान थे, मुसोलिनी द्वारा दिखाये गये फासिस्ट दबावों के प्रति अपनी निष्ठा प्रकट किया।
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स्टेफनो मायनो, सोनिया के पिता, मुसोलिनी के फासिस्ट दबावों के प्रति अपनी निष्ठा को प्रकट किया जब मुसोलिनी हटाये गये और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मारे गये तो स्टेफनो मायनो बहुत अधिक खतरे में थे। लेकिन ठीक उसी समय वैटिकन ने मामले में दखलंदाजी किया और उन्हें बचा लिया। बहुत आश्चर्यजनक था कि एक सीमित पहुंच वाले व्यक्ति को वैटिकन से सीधे आशीर्वाद कैसे प्राप्त हुआ। यह मामला तब ज्यादा स्पष्ट हुआ जब यह पता लगा कि स्टेफनो मायनो के एक चाचा ने इस शक्तिशाली ईश्वरी कार्य के लिये काम किया और यह वही थे जिन्होंने अपनी नातिन एंटोनियो को कैम्ब्रिज में शिक्षा के लिये सहायता उपलब्ध करायी थी। जब इंदिरा गांधी के बड़े पुत्र राजीव 1960 में कैम्ब्रिज में एंटोनियो से मिले, तब उन्होंने इस मौके को प्रसिद्धि के साथ भुना लिया, एक प्रेम कहानी जो सही होने का एहसास दे रही थी। इस प्रेम कहानी को युवा गांधी के पश्चात्य जगत के दोस्तों के समूह द्वारा अत्यधिक समर्थन दिया जा रहा था। मजे की बात यह है कि उन दोस्तों में से एक बाद में वैटिकन के लिये खुफिया सेवा में भी शामिल था। इस प्रकट प्रेम कहानी में दिखायी देता है कि दो अलग राष्ट्र और भिन्न सामाजिक वातावरण के लोगों के बीच इस प्रेम कहानी की शुरुआत से ही मजबूत राजनैतिक सम्बंध है।
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सोनिया और राजीव गांधी के प्रेम सम्बंध को कैम्ब्रिज में पाश्चात्य मित्रों के छोटे समूह द्वारा समर्थन दिया गया। भारतीय खुफिया तंत्र ने भारत की बहू के भविष्य के बारे में बहुत सारी सूचनायें इकट्ठा किया और उस समय पर एक महत्वहीन चित्र सबके सामने प्रस्तुत किया। एंटोनियो का वैटिकन से सम्बन्ध महज एक सन्योग दिखाया गया, और उस जवान खूबसूरत विदेशी को भारत के सबसे प्रभावशाली वंश में 1968 में मिलाया गया, जब उसका विवाह राजीव गांधी के साथ हुआ था।
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सोनिया की शादी राजीव के साथ फरवरी 1968 में हुयी और खूबसूरत जवान विदेशी को भारत में एक सबसे शक्तिशाली राजवंश में शामिल कराया गया। क्रूर इंदिरा गांधी और उनके दो पुत्रों के अंत की यह तो महज एक शुरुआत है। मेरे अगले लेख में, हम यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि कैसे नियत के कई खेलों के कारण, बड़े गांधी की बहू भारतीय राजनीति की सबसे शक्तिशाली कुर्सी पर बैठी।
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ईश्वरी कार्य वैटिकन की रहस्य सेवा और कैथोलिक चर्चों में सबसे अधिक विवादित दबाव है। पिछले सप्ताह, मैं टीवी पर 2006 में आयी एक रहस्य रोमांच से भरी हॉलीवुड की एक अतिलोकप्रिय फिल्म, द विंसी कोड देख रहा था। यह फिल्म 2003 में डान ब्राउन के सबसे अधिक बिकने वाले उपन्यास पर आधारित और उसी नाम से बनायी गयी है। इस फिल्म में ईश्वर के कार्यों, वैटिकन की रहस्यमयी सेवाओं और कैथोलिक चर्चों में बहुत विवादित दबावों को कई बार संदर्भित किया गया है। जब मैंने इन कैथोलिक दबावों के बारे में जानने के लिये गहन छानबीन किया, तो मैं कुछ चौकाने वाली सूचानाओं को जानकर चकरा गया जो भारत की ओर इशारा कर रही थी। एक ब्लॉग लिखने वाले भूतपूर्व रॉ अधिकारी ने इंदिरा गांधी, भारत की सबसे अधिक शक्तिशाली प्रधानमंत्री, के परिवार में हुई मृत्युओं के बारे में बहुत सी “विशिष्ट सूचनाओं” का खुलासा किया है। ब्लॉग लिखने वाला स्पष्ट रूप से भारतीय खुफिया का, इंदिरा गांधी और उनके पुत्र राजीव गांधी के समय, अंग था। उसने सत्याभास कराने वाले अनुमान को बताया कि किस प्रकार पाश्चात्य खुफिया संस्थाये एंटोनिया अल्बिना मायनो उर्फ सोनिया गांधी को लगाकर भारतीय राजनीति को आकार दे रहा है। जब प्रथम विश्व युद्ध के बाद सम्पूर्ण यूरोप साम्यवाद के वशीभूत हो रहा था, तब एंटॉनियों के पिता स्टेफनो मायनो, जो रोमन कैथोलिक के प्रति निष्ठावान थे, मुसोलिनी द्वारा दिखाये गये फासिस्ट दबावों के प्रति अपनी निष्ठा प्रकट किया।
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स्टेफनो मायनो, सोनिया के पिता, मुसोलिनी के फासिस्ट दबावों के प्रति अपनी निष्ठा को प्रकट किया जब मुसोलिनी हटाये गये और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मारे गये तो स्टेफनो मायनो बहुत अधिक खतरे में थे। लेकिन ठीक उसी समय वैटिकन ने मामले में दखलंदाजी किया और उन्हें बचा लिया। बहुत आश्चर्यजनक था कि एक सीमित पहुंच वाले व्यक्ति को वैटिकन से सीधे आशीर्वाद कैसे प्राप्त हुआ। यह मामला तब ज्यादा स्पष्ट हुआ जब यह पता लगा कि स्टेफनो मायनो के एक चाचा ने इस शक्तिशाली ईश्वरी कार्य के लिये काम किया और यह वही थे जिन्होंने अपनी नातिन एंटोनियो को कैम्ब्रिज में शिक्षा के लिये सहायता उपलब्ध करायी थी। जब इंदिरा गांधी के बड़े पुत्र राजीव 1960 में कैम्ब्रिज में एंटोनियो से मिले, तब उन्होंने इस मौके को प्रसिद्धि के साथ भुना लिया, एक प्रेम कहानी जो सही होने का एहसास दे रही थी। इस प्रेम कहानी को युवा गांधी के पश्चात्य जगत के दोस्तों के समूह द्वारा अत्यधिक समर्थन दिया जा रहा था। मजे की बात यह है कि उन दोस्तों में से एक बाद में वैटिकन के लिये खुफिया सेवा में भी शामिल था। इस प्रकट प्रेम कहानी में दिखायी देता है कि दो अलग राष्ट्र और भिन्न सामाजिक वातावरण के लोगों के बीच इस प्रेम कहानी की शुरुआत से ही मजबूत राजनैतिक सम्बंध है।
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सोनिया और राजीव गांधी के प्रेम सम्बंध को कैम्ब्रिज में पाश्चात्य मित्रों के छोटे समूह द्वारा समर्थन दिया गया। भारतीय खुफिया तंत्र ने भारत की बहू के भविष्य के बारे में बहुत सारी सूचनायें इकट्ठा किया और उस समय पर एक महत्वहीन चित्र सबके सामने प्रस्तुत किया। एंटोनियो का वैटिकन से सम्बन्ध महज एक सन्योग दिखाया गया, और उस जवान खूबसूरत विदेशी को भारत के सबसे प्रभावशाली वंश में 1968 में मिलाया गया, जब उसका विवाह राजीव गांधी के साथ हुआ था।
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सोनिया की शादी राजीव के साथ फरवरी 1968 में हुयी और खूबसूरत जवान विदेशी को भारत में एक सबसे शक्तिशाली राजवंश में शामिल कराया गया। क्रूर इंदिरा गांधी और उनके दो पुत्रों के अंत की यह तो महज एक शुरुआत है। मेरे अगले लेख में, हम यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि कैसे नियत के कई खेलों के कारण, बड़े गांधी की बहू भारतीय राजनीति की सबसे शक्तिशाली कुर्सी पर बैठी।
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