Saturday, 12 March 2016

कम्युनिस्ट गद्दारी का यह लेखा-जोखा
          सच के आइने में आपकी सोच बदल जाएगी, आपकी सोच में कम्युनिस्टों द्वारा देश के साथ की गई गद्दारी शामिल हो जाएगी, आप भी कम्युनिस्टों को देशद्रोही स्वीकार कर लेंगे। सिर्फ आपको निष्पक्ष होना होगा,, तथ्यों का विश्लेषण करने और स्वीकार करने की क्षमता आपके अंदर होनी चाहिए
         कम्युनिस्टों की देश के साथ गद्दारी का इतिहास तो आजादी की लड़ाई से ही शुरू हो जाती है। आजादी की लड़ाई महात्मा गांधी के हाथों में थी, महात्मा गांधी देश की आजादी के आंदोलन के नायक थे, दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने पर उन्होंने यह देखा कि देश की जनता भुखमरी की शिकार है। देश की जनता के शरीर पर आधी वस्त्र भी नहीं है, इससे महात्मा गांधी मर्माहत हुए थे, उन्होंने अपने कपड़े उतार कर लगोटी धारण कर ली थी। उस महात्मा गांधी को कम्युनिस्टों ने कहा था ये महात्मा गांधी अग्रेजों का दलाल और एजेंट है, लगोटी धारण करना सिर्फ नौटंकी है।               महात्मा गांधी की लंगोटी में कम्युनिस्टों ने समाजवाद नहीं देखी थी, कम्युनिस्टों को महात्मा गांधी की लगोटी साम्राज्यवाद की प्रतीक लगती थी, कम्युनिस्ट सिर्फ अपनी महंगी सिगरेट-सिगार, महंगी टाई और डिजाइनदार कुर्ते-पायजामे में ही समाजवाद देखते थे। अगर कम्युनिस्टों ने गांधी की लंगोटी में समाजवाद देख लिया होता तो कम्युनिस्टों की यह दुर्गति नहीं हुई होती। सबसे बड़ी बात यह है कि कम्युनिस्टों ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया था। महात्मा गांधी ने 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का श्रीगणेश कर अंग्रेजी शासन पर निर्णायक चाबुक चलाया था। कम्युनिस्टों ने आज तक यह स्पष्टीकरण नहीं दिया है कि उन्होंने 1842 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध क्यों किया था। यह विरोध प्रमाणित करने के लिए काफी है कि कम्युनिस्टों ने देश की आजादी के आंदोलन के साथ गद्दारी की थी।
         कम्युनिस्टों की सबसे बड़ी हिंसक-वीभत्स गद्दारी तो 1962 में सामने आयी थी, आज तक उस गद्दारी पर कम्युनिस्ट मुंह छिपाए रखते हैं, इनके पास कोई जवाब नहीं होता है, कोई जवाब मांगता है, कोई इन्हें गद्दार कहता है, कोई इन्हें देशभक्त मानने से इनकार करता है तब ये हिंसक और आतंकवादी की तरह चिल्लाने लगते हैं, गुस्से से लाल हो जाते हैं, गालियां बकने लगते है, मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। कम्युनिस्ट पार्टियों ने 1962 में चीन के तानाशाह माओत्से तुंग द्वारा भारत पर किए गए हमले का समर्थन किए थे, चीन की पागल, विस्तारवादी, उपनिवेशवादी, साम्राज्यवादी सेना द्वारा हमारे पांच हजार सैनिकों के कत्लेआम और हमारी 90 हजार वर्ग मिल भूमि कब्जाने पर कम्युनिस्टों ने खुशियां मनाई थी, असम सहित कई जगहों पर चीनी सेना के समर्थन में बैनर लगाए गए थे। चीन के तानाशाह और आक्रमणकारी माओत्से तुंग को कम्युनिस्टों ने जवाहर लाल नेहरू की जगह भारत का प्रधानमंत्री कहा था। कम्युनिस्टों की मानसिकता थी कि भारत पर कब्जा करने के बाद माओत्से तुंग भारत पर कम्युनिस्ट-तानाशाही राज कायम कर उन्हें सौंप देंगे। सिर्फ घिनौनी बात यहीं तक सीमित नहीं थी। कम्युनिस्टों ने सामरिक कारखाने में हड़ताल करा दिए थे, इसलिए कि भारतीय सैनिकों को हथियार और बारूद की आपूर्ति बाधित हो जाए और भारतीय सैनिक चीनी सैनिकों के हाथों बेमौत मारे जाएं। दुनिया के इतिहास में यह पहली घटना थी जब युद्ध के समय अपने ही सैनिकों को हथियार और बारूद की आपूर्ति हड़ताल कर रोकी गई हो। सीपीएम आज तक यह नहीं कहती कि चीन ने 1962 में भारत पर आक्रमण किया था और माओत्से तुंग आक्रमणकारी था। कम्युनिस्टों के प्रेरणास्रोत माओत्से तुंग ने हमारे पांच हजार से अधिक सैनिकों की हत्या की थी उस माओत्से तुंग को कोई देशभक्त कैसे और क्यों अपना प्रेरणास्रोत मानेगा।
          नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को कम्युनिस्टों ने जापान और हिटलर का दलाल कह कर आजाद हिंद फौज के खिलाफ अभियान चलाया था। कारगिल युद्ध के दौरान कम्युनिस्टों ने अप्रत्यक्षतौर पर पाकिस्तान समर्थन रैली निकाली थी और भारतीय सैनिकों की जवाबी कार्रवाई रोकने के लिए नारेबाजी की थी।
       कम्युनिस्टों का पूजनीय महापुरूष रहे हैं तानाशाह स्तालिन। स्तालिन सोवियत संघ के तानाशाह थे। स्तालिन के प्रेरणास्रोत रहे हैं हिटलर। हिटलर के साथ स्तालिन ने अनाक्रमणसंधि की थी। स्तालिन ने हिटलर के साथ अनाक्रमण संधि क्यों की थी? इसका कोई कम्युनिस्ट उत्तर नहीं देता है। अनाक्रमण संधि का अर्थ था हिटलर की हिंसक विस्तार नीति को स्वीकार करना। हिटलर ने अगर अनाक्रमण संधि को तोड़ कर सोवियत संघ पर हमला नहीं करता तो कम्युनिस्ट कभी भी हिटलर के आलोचक नहीं होते। हिटलर की सेना सोवियत रूस की माइनस 150 हिग्री के ठंड में ठिठुर कर मरी थी। फिर भी कम्युनिस्ट अपने आपको फासिस्ट विरोधी कहते हैं।
           इंदिरा गांधी के अधिनायकवाद का सीपीआई ने समर्थन किया था। कम्युनिस्टों ने इन्दिरा गांधी की मुखवीर बनकर इमरजेंसी विरोधी लोगों को जेल भेजवाये थे और उन पर हिंसा ढहवाई थी। अफजल गुरू इनका वर्तमान में प्रेरणास्रोत और आईकॉन हैं। अफजल गुरू कौन था? सुप्रीम कोर्ट तक उसे आतंकवादी माना और फांसी की सजा दी थी। अफजल गुरू ने अपने लाइव इंटरव्यू में स्वयं को आतंकवादी कहा था, स्वयं को आतंकवाद की खौफनाक-खौफनाक घटनाओं का मास्टर मांइड होने का दावा किया था, अफजल गुरू का यह टीवी लाइव साक्षात्कार नवीन कुमार नामक टीवी पत्रकार ने लिया था। 
         यह टीवी लाइव साक्षात्कार आज भी देखा जा सकता है। देश में अब तक दर्जनों लोगों को फांसी पर चढ़ाया गया पर सिर्फ अफजल गुरू पर ही कम्युनिस्टों ने बरसी क्यों मनाई, इसलिए कि अफजल गुरू आतंकवादी था और वह भारत विखंडन के लिए हिंसक था। जेएनयू के रजिस्टार ने साफ कर दिया है कि अफजल गुरू की बरसी मनाने की स्वीकृति नहीं मिलने पर कन्हैया नाराज था। कम्युनिस्ट आज तक इसलिए केन्दीय सत्ता के लायक नहीं समझेंगे। कम्युनिस्टों को आगे भी देशभक्त जनता ही सबक सिखाएगी।
http://www.khabarlive.in/…/information-of-communist-t…/11690

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