Monday 14 March 2016

कोलाहल के बीच ‘ओम’ का स्वर सुनाई देने लगे तब समझना की यह ध्यान अब सही गति और दिशा में है…
            हमारी पांच प्रत्यक्ष इंद्रियां हैं:- आंख, कान, नाक, जीभ और स्पर्श। छठी अप्रत्यक्ष इंद्री है मन। इन  छह इंद्रियों से ही हम ध्यान कर सकते हैं या इन छह में इंद्रियों के प्रति जाग्रत रहना ही ध्यान है। इनमें से जो छठी इंद्री है, वह पांच इंद्रियों का घालमेल है या यह कहें कि यह पांचों इंद्रियों का मिलन स्थल है। यही सबसे बड़ी दिक्कत है। मिलन स्थल को मंदिर बनाने के लिए ही ध्यान किया जाता है। जब हम कहते हैं साक्षी ध्यान तो उसमें आंखों का उपयोग ही अधिक होता है। उसी तरह जब हम कहते हैं श्रवण ध्यान तो उसका मतलब है सुनने पर ही ध्यान केंद्रित करना। जब व्यक्ति निरंतर जाग्रत रहता है किसी एक इंद्री के प्रति तो मन की गति शून्य हो जाती है और वह मन फिर सिद्धिग्राही हो जाता है। भगवान महावीर की ध्यान विधियों का केंद्र बिंदू था श्रवण ध्यान। यह बहुत ही प्राचीन ध्यान है। प्रकृति का सं‍गीत, दिल की धड़कन, खुद की आवाज आदि को सुनते रहना। सुनते वक्त सोचना या विचारना नहीं यही श्रवण ध्यान है। मौन रहकर सुनना। सुनकर श्रवण बनने वाले बहुत है। कहते हैं कि सुनकर ही सुन्नत नसीब हुई। सुनना बहुत कठीन है। सुने ध्यान पूर्वक पास और दूर से आने वाली आवाजें। कैसे करें यह ध्यान : 1. पहले आप किसी मधुर संगीत को सुनने का अभ्यास करें। फिर अपने आसपास उत्पन्न हो रही आवाजों को होशपुर्वक से सुने। सुनने वक्त सोचना नहीं है। विश्लेषण नहीं करना है कि किसकी आवाज है। कोई बोल रहा है तो उसे ध्यानपूर्वक सुने। रात में पंखे आवाज या दूर से आती ट्रक के हॉर्न की आवाज सुने। सुने चारो तरफ लोग व्यर्थ ही कोलाहल कर रहे हैं और व्यर्थ ही बोले जा रहे हैं हजार दफे बोली गई बातों को लोग कैसे दोहराते रहते हैं। आंख और कान बंदकर सुने भीतर से उत्पन्न होने वाली आवाजें। जब यह सुनना गहरा होता जाता है तब धीरे-धीरे सुनाई देने लगता है- नाद। अर्थात ॐ का स्वर। जब हजारों आवाजों या कोलाहल के बीच ‘ओम’ का स्वर सुनाई देने लगे तब समझना की यह ध्यान अब सही गति और दिशा में है। 

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”जो व्यक्ति ॐ और ब्रह्म के पास रहता है वह नदी के पास लगे वृक्षों की तरह है जो कभी नहीं मुर्झाते।”- हिंदू नियम पुस्तिका ओ, उ और म- उक्त तीन अक्षरों वाले शब्द की महिमा अपरम्पार है। यह नाभि, हृदय और आज्ञा चक्र को जगाता है। इसे प्रणव साधना भी कहा जाता है। इसके अनेकों चमत्कार है। प्रत्येक मंत्र के पूर्व इसका उच्चारण किया जाता है। योग साधना में इसका अधिक महत्व है। इसके निरंतर उच्चारण करते रहने से सभी प्रकार के मानसिक रोग मिट जाते हैं। ॐ को अनाह्त नाद कहते हैं जो प्रत्येक व्यक्ति के भीतर और इस ब्रह्मांड में सतत गूँजता रहता है। इसके गूँजते रहने का कोई कारण नहीं। सामान्यत: नियम है कि ध्‍वनी उत्पन्न होती है किसी की टकराहट से, लेकिन अनाहत को उत्पन्न नहीं किया जा सकता। विधि : प्राणायाम या कोई विशेष आसन करते वक्त इसका उच्चारण किया जाता है। केवल प्रणव साधना के लिए ॐ (ओम्) का उच्चारण पद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं। इसका उच्चारण 5, 7, 10, 21 बार अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं। ॐ जोर से बोल सकते हैं, धीरे-धीरे बोल सकते हैं। बोलने की जरूरत जब समाप्त हो जाए तो इसे अपने अंतरमन में सुनने का अभ्यास बढ़ाएँ। सावधानी : उच्चारण करते वक्त लय का विशेष ध्‍यान रखें। इसका उच्चारण सुप्रभात या संध्याकाल में ही करें। उच्चारण करने के लिए कोई एक स्थान नियुक्त हो। हर कहीं इसका उच्चारण न करें। उच्चारण करते वक्त पवित्रता और सफाई का विशेष ध्यान रखें। ॐ का लाभ : संसार की समस्त ध्वनियों से अधिक शक्तिशाली, मोहक, दिव्य और सर्वश्रेष्ठ आनंद से युक्त नाद ब्रह्म के स्वर से सभी प्रकार के रोग और शोक मिट जाते हैं। इससे मानसिक बीमारियाँ दूर होती हैं। इससे हमारे शरीर की उर्जा बेलेंस में आ जाती है। इसके बेलेंस में आने पर चित्त शांत हो जाता है। व्यर्थ के मानसिक द्वंद्व, तनाव और नकारात्मक विचार मिटकर मन की शक्ति बढ़ती है। मन की शक्ति बढ़ने से संकल्प और आत्मविश्वास बढ़ता है। सम्मोहन साधकों के लिए इसका निरंतर जाप करना उत्तम है। 

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