कुत्तों को खिला दी थी आतंकियों की लाश :ऐसे 'आज़ाद' हुआ था ये गांव
ये है कश्मीर का हिल काका। पहाड़ की चोटी पर बसे इस गांव को कभी आतंकी जन्नत कहते थे। एलओसी से घुसपैठ कर आतंकियों को यहां से कश्मीर घाटी जाने में आसानी होती थी। खूंखार आतंकी उमर मूसा का अड्डा था यहां। एक महीने से ज्यादा लड़ाई कर यहां के गांव वालों ने आतंकियों को मार भगाया। लोगों में गुस्सा इस कदर था कि मूसा की लाश को यहां दफनाने तक नहीं दिय गया। उसे कुत्तों को खिला दिया गया था।
- लोगों ने बताया कि हिलकाका में 2003 तक आतंकियों की तूती बाेलती थी। उन दिनों को याद कर आज भी हम सिहर जाते हैं।
- आतंकी यहां के लाेगों को जिहादी बनाने के लिए लालच देते तो कभी जबरदस्ती करते।
- यहां के गुज्जर कम्युनिटी के लोगों ने आतंकियों के खिलाफ जम्मू पीस मिशन बनाया।
- इसी के चलते आतंकियों ने गुज्जर हाजी माेहम्मद आरिफ को मौत के घाट उतार दिया। लेकिन लोगों ने हार नहीं मानी।
- हाजी माेहम्मद की जंग को उनके छोटे भाई ताहिर हुसैन ने भी जारी रखा।
- ताहिर ने बताया कि तब आतंकियों ने 52 लाख रुपए देने को लालच भी दिया। लेकिन हमने नहीं लिया, क्योंकि हम हिंदुस्तानी हैं।
700 आतंकी का था अड्डा...
- ताहिर ने बताया कि 26 जनवरी 2003 को आतंकियों के खिलाफ गांव वालों ने सेना के साथ मिलकर ऑपरेशन सर्प विनाश शुरू किया।
- तब पता चला कि हिल काका पर 700 से ज्यादा आतंकी मौजूद हैं। सेना ने गांव खाली कराया।
- एक माह से ज्यादा हम लोग जंगल में रहे। सेना हेलिकाॅप्टर से खाना पहुंचाती थी।
- यहां के गुज्जरों ने 2003 में ही 17 अप्रैल को आतंकियों पर हमला कर दिया।
- 27 मई तक उनसे लड़ते रहे और उन्हें यहां से उखाड़कर ही दम लिया।
भविष्य की चिंता
दसवीं तक पढ़ चुके जावेद अहमद अपने भविष्य को लेकर बेहत चिंतित है। यहां छोटी-छोटी खानापूर्ति भी बड़ी मुसीबत बन जाती हैं। कुछ ऐसी ही हालत 12 वीं कक्षा की परीक्षा दे रहे यहां के स्टूडेंट लियाकत की है।
(चर्चा क्यों- आतंकियों के ठिकानों को नेस्तनाबूद कर देने वाले हिल काका के गांव वाले सड़क और बेसिक फैसिलिटीज की मांग कर रहे हैं। दिल्ली तक कई बार गुहार लगाने वाले इन लोगों को अपने बच्चों के भविष्य के लिए अब परिवहन मंत्री नितीन गडकरी से उम्मीद है। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे भी खूब पढ़ें और देश की रक्षा के लिए सेना के साथ कदम से कदम मिलाएं। लेकिन इसके लिए पहले सड़क बन जाए।)
गिलानी अपने बच्चों को जिहादी क्यों नहीं बनाते?
हिल काका के लोग भारतीय सेना को भगवान मानते हैं। करीब 200 घर वाले इस गांव के बच्चों को पढ़ने के लिए 25-30 किलोमीटर दूर सूरनकोट तक जान पड़ता है। वो भी पहाड़ी पगडंडियों से। क्योंकि सड़क नहीं है। कश्मीर के अलगाववादी यहां के लोगों को पसंद नहीं करते। गुस्साए ताहिर चुनौती देते हुए कहते हैं कि गिलानी साहब अलगाववादियों के नेता बने फिरते हैं, फिर वे अपने बच्चों को ही जिहादी क्यों नहीं बनाते। उनके बच्चे तो मजे से लंदन में पढ़ रहे हैं।
http://www.bhaskar.com/…/MH-MUM-OMC-hill-kaka-terror-area-5…
वंदना सोनीMar 18, 2016dainikbhaskar.com के अनुसार << सूर्य की किरण >>
- लोगों ने बताया कि हिलकाका में 2003 तक आतंकियों की तूती बाेलती थी। उन दिनों को याद कर आज भी हम सिहर जाते हैं।
- आतंकी यहां के लाेगों को जिहादी बनाने के लिए लालच देते तो कभी जबरदस्ती करते।
- यहां के गुज्जर कम्युनिटी के लोगों ने आतंकियों के खिलाफ जम्मू पीस मिशन बनाया।
- इसी के चलते आतंकियों ने गुज्जर हाजी माेहम्मद आरिफ को मौत के घाट उतार दिया। लेकिन लोगों ने हार नहीं मानी।
- हाजी माेहम्मद की जंग को उनके छोटे भाई ताहिर हुसैन ने भी जारी रखा।
- ताहिर ने बताया कि तब आतंकियों ने 52 लाख रुपए देने को लालच भी दिया। लेकिन हमने नहीं लिया, क्योंकि हम हिंदुस्तानी हैं।
700 आतंकी का था अड्डा...
- ताहिर ने बताया कि 26 जनवरी 2003 को आतंकियों के खिलाफ गांव वालों ने सेना के साथ मिलकर ऑपरेशन सर्प विनाश शुरू किया।
- तब पता चला कि हिल काका पर 700 से ज्यादा आतंकी मौजूद हैं। सेना ने गांव खाली कराया।
- एक माह से ज्यादा हम लोग जंगल में रहे। सेना हेलिकाॅप्टर से खाना पहुंचाती थी।
- यहां के गुज्जरों ने 2003 में ही 17 अप्रैल को आतंकियों पर हमला कर दिया।
- 27 मई तक उनसे लड़ते रहे और उन्हें यहां से उखाड़कर ही दम लिया।
भविष्य की चिंता
दसवीं तक पढ़ चुके जावेद अहमद अपने भविष्य को लेकर बेहत चिंतित है। यहां छोटी-छोटी खानापूर्ति भी बड़ी मुसीबत बन जाती हैं। कुछ ऐसी ही हालत 12 वीं कक्षा की परीक्षा दे रहे यहां के स्टूडेंट लियाकत की है।
(चर्चा क्यों- आतंकियों के ठिकानों को नेस्तनाबूद कर देने वाले हिल काका के गांव वाले सड़क और बेसिक फैसिलिटीज की मांग कर रहे हैं। दिल्ली तक कई बार गुहार लगाने वाले इन लोगों को अपने बच्चों के भविष्य के लिए अब परिवहन मंत्री नितीन गडकरी से उम्मीद है। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे भी खूब पढ़ें और देश की रक्षा के लिए सेना के साथ कदम से कदम मिलाएं। लेकिन इसके लिए पहले सड़क बन जाए।)
गिलानी अपने बच्चों को जिहादी क्यों नहीं बनाते?
हिल काका के लोग भारतीय सेना को भगवान मानते हैं। करीब 200 घर वाले इस गांव के बच्चों को पढ़ने के लिए 25-30 किलोमीटर दूर सूरनकोट तक जान पड़ता है। वो भी पहाड़ी पगडंडियों से। क्योंकि सड़क नहीं है। कश्मीर के अलगाववादी यहां के लोगों को पसंद नहीं करते। गुस्साए ताहिर चुनौती देते हुए कहते हैं कि गिलानी साहब अलगाववादियों के नेता बने फिरते हैं, फिर वे अपने बच्चों को ही जिहादी क्यों नहीं बनाते। उनके बच्चे तो मजे से लंदन में पढ़ रहे हैं।
http://www.bhaskar.com/…/MH-MUM-OMC-hill-kaka-terror-area-5…
वंदना सोनीMar 18, 2016dainikbhaskar.com के अनुसार << सूर्य की किरण >>
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