"हिंदुत्व को ईश्वर और देवताओं का अंतर स्पष्ट है तभी ईश्वर के एक स्वरुप को मानते हुए भी इसे विविध आराध्यों के अस्तित्व की स्वीकृति और उपासना से कोई शिकायत नहीं।
सत्य की धर्म के रूप में स्वीकृति ताकि एक न्यायप्रिय व् सत्यनिष्ठ समाज की स्थापना संभव हो सके, यही हिंदुत्व के जीवन शैली का उद्देश्य है और चूँकि सत्य, धर्म, न्याय और प्रेम ही किसी भी धर्म का आधार है, अतः हिंदुत्व का किसी अन्य मान्यताओं अथवा धर्म से किसी भी तरह का कोई वैचारिक मतभेद या घर्षण नहीं, हाँ, धर्म के उचित समझ के आभाव से यह भले हो सकता है, फिर धर्म चाहे जो हो।
देवता हों या असुर दोनों ही ईश्वर की रचना है, दोनों में अंतर केवल कर्म का होता है; वास्तव में, श्रिष्टि ने अपनी समस्त रचनाओं को किसी न किसी रूप में विशिष्टता प्रदान की है , कौन अपनी विशिष्टता का प्रयोग किस उद्देश्य से करता है यही वह कारक है जो देवताओं और असुर में अंतर है ;
जब तक हम दिव्यता की आराधना करते रहेंगे हमारे लिए उसकी अनुभूति कठिन होगी इसीलिए हमारे शास्त्रों ने भी कहा है 'शिवो भूत्वा शिवं यजेत' अर्थात शिव बनकर ही शिव की पूजा करें।
जीवन रूपी अवसर तो सभी को प्राप्त है और जीवन पर्यन्त प्रयास भी सभी करते हैं; प्रयास का उद्देश्य व्यक्तिगत समझ के परिक्षेत्र का परिचायक होता है। महत्वपूर्ण क्या है और प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए यही विकास की दृष्टि से शिक्षा और ज्ञान का महत्व भी है।
जब शिक्षा का ज्ञान ही व्यक्ति की समझ को सीमित कर दे तो गलती व्यक्ति की नहीं बल्कि उस व्यवस्था की होती है जो कुंठा से ग्रसित है और इसलिए मानवीय चेतना की उत्क्रांति के लिए व्यवस्था परिवर्तन अपरिहार्य हो जाता है !"
No comments:
Post a Comment