पूर्वाग्रहों से मुक्ति पाना बहुत मुश्किल काम होता है. शायद यही कारण रहा होगा जब कई विद्वानों ने ये माना होगा कि रिलिजन और विज्ञान साथ साथ नहीं चल सकते. रिलिजन हमेशा आस्था की बात करता है, वहीँ विज्ञान प्रश्न करने को कहता है. लेकिन यही विश्वास जब भारत आया तो एक और समस्या खड़ी हो गई. यहाँ पर धर्म कभी भी रिलिजन वाले अर्थ में था ही नहीं ! इसलिए जब धर्म को विज्ञान से अलग माना गया तो ना चाहते हुए भी वस्तुनिष्ठ सत्य में भी द्वन्द घुस आया.
इसकी वजह से भारतीय ग्रंथों के अनुवाद कई बार विदेशी पूर्वाग्रहों से युक्त मिलते हैं. ग्रंथों का शब्दानुवाद तो हुआ मगर भावार्थ खो गया. विजेता का गर्व भी कई बार हारी हुई सभ्यता के गुणों को कबूलने नहीं देता. इसके चलते भारतीय वैज्ञानिकों के या गणितज्ञों के प्रयासों को कभी भी स्वीकारा नहीं गया. स्त्री शिक्षा के मामलों में भी भारत को पिछड़ा कहा गया है. आम तौर पर मान्यता है कि प्राचीन वैदिक काल में कभी दो चार वैदिक ऋचाएं स्त्रियों ने भी लिखे थे मगर बाद के समय में स्त्री शिक्षा का भारत में लोप हो गया. असल में सच्चाई इस से कोसों दूर है.
गणित के प्रमुख भारतीय आचार्यों में से एक थे भास्कराचार्य. उनका समय 1114 से 1185 CE का बताया जाता है, एक अन्य गणितज्ञ से उन्हें अलग दर्शाने के लिए उन्हें भास्कर द्वित्तीय कहा जाता है. लीलावती उनके प्रमुख ग्रन्थ, सिद्धांत शिरोमणि का पहला हिस्सा है. लीलावती उनकी पुत्री का नाम था और माना जाता है कि लीलावती ने भी इस ग्रन्थ के कुछ श्लोक लिखे हैं. श्लोकों की रचना ऐसी है जिस से लगता है कि लीलावती नाम की किसी लड़की से सवाल किये जा रहे हों और इसी सवाल-जवाब के जरिये “लीलावती” के तेरह अध्यायों में गणित पढ़ाया गया है. जिन श्लोकों की रचना स्वयं लीलावती द्वारा मानी जाती है उनमें से एक है :-
इन्द्र: वायुर्यमश्चैव नैरृतो मध्यमस्तथा ।
ईशानश्च कुबेरश्च अग्निर्वरुण एव च ॥
ईशानश्च कुबेरश्च अग्निर्वरुण एव च ॥
इसे एक बार पढ़ते ही इसमें कई देवताओं के नाम नजर आ जाते हैं. संस्कृत ना जानने वालों के लिए भी इंद्र, वायु, कुबेर, अग्नि और वरुण के नाम तो स्पष्ट हैं. आप सोच सकते हैं कि भारतीय धर्मभीरु लोग थे इसलिए गणित की किताबों का भी भगवाकरण कर डाला होगा ! मगर ऐसा नहीं है.
इस श्लोक को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि ये दरअसल देवताओं के नाम नहीं है बल्कि दिक्पालों के नाम हैं. हिन्दुओं में दिशाएं दस मानी जाती है. ऊपर और नीचे, दो दिशाएं छोड़ दे तो आठ दिशाएं बचती हैं. उत्तर के देवता हैं कुबेर, उत्तर-पूर्व के लिए इशान, पूर्व के इंद्र, दक्षिण-पूर्व के अग्नि, दक्षिण के लिए यम, दक्षिण-पश्चिम के लिए नैऋत्य, पश्चिम के लिए वरुण, और उत्तर पश्चिम के देवता हैं वायु. अगर इन्हें एक नक़्शे पर सजाएँ तो ये कुछ ऐसा दिखेगा :-
वायु | कुबेर | इशान |
वरुण | इंद्र | |
नैऋत्य | यम | अग्नि |
अब सवाल उठता है कि लीलावती को इन सब दिक्पालों के नाम एक श्लोक की तरह लिखने की क्या जरुरत पड़ गई ? तो इसका उत्तर इस नामों के क्रम में छुपा है. जैसे जैसे श्लोक में इनका नाम आया है वो संख्या एक चतुर्भुज में सजाते जाइए. जैसे इंद्र का नाम सबसे पहले आया है तो उनकी संख्या एक हुई, वायु की संख्या दो है, यम तीसरे हैं. बीच का खाना, यानि पांचवा घर खाली रह जायेगा, तो वहां उस खाने का ही स्थान यानि पांच भर दीजिये.
2 | 7 | 6 |
9 | 5 | 1 |
4 | 3 | 8 |
ये 3 X 3 का मैजिक स्क्वायर (Magic Square) है. किसी भी तीन खानों को लेंगे तो उनका जोड़ 15 आता है. 2 + 7 + 6 = 15, या फिर 2 + 5 + 8 = 15, या 4 + 5 + 6 = 15, चाहे जैसे भी जोड़ें तो नतीजा पंद्रह ही आएगा. ऐसे ही कई और भी गणितीय सूत्र लीलावती में हैं. ज्यादातर ये उचित अनुवाद और ध्यान ना देने के कारण खो गए हैं. लीलावती बीजगणित के सूत्रों की किताब है, इसमें ज्यामिति (geometry), शून्य से सम्बंधित सिद्धांत, पाई (π) की गणना, गुणनफल और वर्ग के नियम, ऋणात्मक संख्याओं, ब्याज और मूलधन जैसे कई सिद्धांतों की चर्चा है.
बरसों तक ये किताब कई गुरुकुलों में पढाई जाने वाली प्रमुख किताब थी. भारत में स्त्रियों की शिक्षा की बात हो या फिर गणित के विकास की चर्चा हो, “लीलावती” के श्लोकों की चर्चा के बिना वो सारी चर्चा पक्षपातपूर्ण रह जाती है. भारत को समग्र भारतीय दृष्टिकोण से देखने की जरुरत है.
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