Sunday 6 March 2016

जे. नंदा कुमार, आरएसएस के सह प्रचार प्रमुख।

ईनाडु इंडिया से विशेष बातचीत में आरएसएस के सह प्रचार प्रमुख जे नंदा कुमार ने कहा कि केरल में दलितों, गरीबों पर जुल्म ढाहने वाली सीपीएम जेएनयू के चंद देशद्रोही छात्रों के साथ खड़ी होकर अपने कुकर्मों को छुपाने की कोशिश कर रही है। नंदा कुमार ने बताया कि 60 के दशक से ही सीपीएम केरल में राजनीतिक हत्याओँ को अंजाम देती आ रही है। उनके मुताबिक 60 के दशक से लेकर पीवी सुजित कुमार की हत्या तक दौ सौ से ज्यादा राजनीतिक हत्याएं सामने आ चुकी हैं, जिनमें सीपीएम का सीधा हाथ है।

नंदा कुमार कहते हैं कि मीडिया के टीवी डिबेट्स में जेएनयू या देश के दूसरे विश्वविद्यालय में दलित छात्रों पर कथित अत्याचार के विषय पर चर्चा होती है, लेकिन जमीनी हक़ीकत को बयां नहीं किया जाता है। कुमार कहते हैं कि टीवी स्क्रीन पर वामपंथ समर्थक नेता, बुद्धीजीवी आदर्श बातें करते हैं लेकिन जमीन पर वामपंथी ही दोहरा चरित्र रखते हैं।

 नंदा कुमार ने बताया कि पहली बार साल 1968 में केरल के थिरिचेरी कस्बे में संघ के एक कार्यकर्ता रामाकृष्णा ओढुल की हत्या का मामला सामने आया था। नंदा कुमार ने आरोप लगाया कि रामकृष्णा की हत्या में शामिल आधा दर्जन लोगों में सीपीएम के पूर्व राज्य सचिव और वर्तमान में सीपीएम पोलित ब्यूरो के सदस्य पिनारी विजेयन भी शामिल थे। नंदा कुमार के मुताबिक सीपीएम ने रामाकृष्णा की हत्या इसलिए नहीं की थी कि वे आरएसएस में शामिल हो गए थे, बल्कि सीपीएम को छोड़ने के लिए ही उन्हें मौत के घाट उतारा गया था।

नंदा कुमार ने कहा कि सीपीएम वैचारिक रूप से तो गरीब, शोषित और दलितों के हक की राजनीति करती है, लेकिन केरल में सीपीएम अपनी राजनीति में दोहरा चरित्र रखती आई है। नंदा कुमार के मुताबिक सीपीएम नेता घोर जातिवादी हैं और दशकों से गरीब और दलितों का शोषण करते आ रहे हैं। अपनी बातों का आधार देने के लिए नंदा कुमार ने प्रखर स्वतंत्रता सेनानी और गांधीवादी नेता एपी उदयभानु का उल्लेख किया और कहा कि उदयभानु ने अपने कई लेखों और बयानों में माना है कि सीपीएम को छोड़कर आरएसएस का दामन थामने वाले लोगों में 80 फीसदी दलित और गरीब परिवारों के सदस्य रहे हैं।

अपने दावों को जोर देने के लिए नंदा कुमार ने वरिष्ठ नेता और केरल में वामपंथ आंदोलन की प्रणेता रही केआर गौरीअम्मा का जिक्र किया। नंदा ने कहा कि गौरीअम्मा 1957 में केरल की पहली वामपंथी सरकार में मंत्री रही हैं। यही नहीं कई मौकों पर उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाता रहा है। लेकिन गौरीअम्मा की दलित पृष्ठभूमि की वजह से सीपीएम में उन्हें हाशिए पर खड़ा कर दिया। नंदा कुमार ने कहा कि गौरीअम्मा सार्वजनिक रूप से कह चुकी हैं कि ईएमएस नंबूदरीपाद घोर जातिवादी थे और उन्हें दलित होने की वजह से पार्टी में आगे नहीं बढ़ने दिया जिसकी वजह से उन्हें 1994 में सीपीएम से बेदखल कर दिया गया।

नंदा कुमार ने कहा कि जैसे जैसे केरल के बाकि जिलों में संघ का प्रभाव बढ़ा और उसका आधार मजबूत हुआ तो ज्यादातर राजनीतिक हत्याओँ का सिलसिला कन्नूर जिले तक सीमित होकर रह गया है। कुमार के मुताबिक केरल की वामपंथी राजनीति में कन्नूर की अलग पहचान है। ये सीपीएम का गढ़ है और पूरे जिले में ग्राम पंचायत से विधानसभा तक सीपीएम का ही दबदबा है। यही नहीं सीपीएम की सर्वोच्च राष्ट्रीय ईकाई पोलित ब्यूरो में कन्नूर से दो नेता शामिल हैं। जिनमें पिनरी विजेयन सबसे वरिष्ठ हैं। लेकिन पिछले दिंनों कन्नूर के 13 ग्राम पंचायतों में बीजेपी को मिली जीत ने सीपीएम को झकझोर कर रख दिया है। यही वजह है कि कन्नूर में एक बार फिर संघ नेताओँ को निशाना बनाया जा रहा है।

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