कृषि क्षेत्र में उनकी उपलब्धि "जीरो बजट में प्राकृतिक कृषि"को सन्मानित किया मोदी सरकार ने
श्री पालेकर आजादी के बाद इस कृषिप्रधान देश में "पद्मश्री"जैसा प्रतिष्ठित पुरूस्कार पाने वाले पहले किसान है .
कौन हैं सुभाष पालेकर?
- 1949 में महाराष्ट्र के अमरावती में जन्में पालेकर एग्रीकल्चर ग्रेजुएट हैं।
- वह पिछले 35 साल से नेचुरल फार्मिंग के लिए एक आंदोलन चला रहे हैं।
- पालेकर के मार्गदर्शन में राज्य के हजारों किसान अब तक प्राकृतिक खेती का नि:शुल्क प्रशिक्षण हासिल कर चुके हैं।
- उन्होंने 'जीरो बजट' खेती की सोच से खेती की दुनिया में क्रांतिकारी परिवर्तन किया है।
- पालेकर बेहद शास्र संगत तरीके से किसानों को रासायनिक खाद के इस्तेमाल के खतरों और प्राकृतिक खेती के फायदों की जानकारी देते हैं।
- जिस वक्त पद्मश्री पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई पालेकर आंध्रप्रदेश के काकीनाड़ा में किसानों को प्रशिक्षण देने में व्यस्त थे।
कौन हैं सुभाष पालेकर?
- 1949 में महाराष्ट्र के अमरावती में जन्में पालेकर एग्रीकल्चर ग्रेजुएट हैं।
- वह पिछले 35 साल से नेचुरल फार्मिंग के लिए एक आंदोलन चला रहे हैं।
- पालेकर के मार्गदर्शन में राज्य के हजारों किसान अब तक प्राकृतिक खेती का नि:शुल्क प्रशिक्षण हासिल कर चुके हैं।
- उन्होंने 'जीरो बजट' खेती की सोच से खेती की दुनिया में क्रांतिकारी परिवर्तन किया है।
- पालेकर बेहद शास्र संगत तरीके से किसानों को रासायनिक खाद के इस्तेमाल के खतरों और प्राकृतिक खेती के फायदों की जानकारी देते हैं।
- जिस वक्त पद्मश्री पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई पालेकर आंध्रप्रदेश के काकीनाड़ा में किसानों को प्रशिक्षण देने में व्यस्त थे।
इसलिए शुरू की नेचुरल फार्मिंग
- पालेकर के चार कृषि सिद्धांतों ने किसानों को आर्थिक मजबूती प्रदान की है।
- उनकी राय में संकरित अनाज में पौष्टिकता, स्वाद, सुगंध, प्रतिरोधात्मक शक्ति और टिकाऊपन नहीं होता।
- इसलिए यह अनाज खाने वाला कुपोषण का शिकार होता है और उसका शरीर अनेक रोगों का घर बनकर रह जाता है।
- साथ ही यह संकरित प्रजातियां कभी भी देसी प्रजातियों की तुलना में ज्यादा शुद्ध लाभ भी नहीं देती, इसलिए उन्होंने गांव-गांव जाकर हाईब्रिड फसल का बहिष्कार कर प्राकृतिक खेती की अलख जगाई।
- पालेकर के चार कृषि सिद्धांतों ने किसानों को आर्थिक मजबूती प्रदान की है।
- उनकी राय में संकरित अनाज में पौष्टिकता, स्वाद, सुगंध, प्रतिरोधात्मक शक्ति और टिकाऊपन नहीं होता।
- इसलिए यह अनाज खाने वाला कुपोषण का शिकार होता है और उसका शरीर अनेक रोगों का घर बनकर रह जाता है।
- साथ ही यह संकरित प्रजातियां कभी भी देसी प्रजातियों की तुलना में ज्यादा शुद्ध लाभ भी नहीं देती, इसलिए उन्होंने गांव-गांव जाकर हाईब्रिड फसल का बहिष्कार कर प्राकृतिक खेती की अलख जगाई।
कृषि को लेकर सोच में किया बदलाव
- पालेकर के मुताबिक फसलों की सिंचाई यह पूरी तरह से मानवीय सोच है।
- कोई भी फसल मूलत: सिंचाई से नहीं होती। अगर ऐसा होता तो पहाड़ों पर भरी गर्मी में हरियाली नहीं होती। जंगल तैयार ही नहीं होते। फलों से लदे पेड़ जिंदा ही नहीं रहते।
- बारिश के पानी को पूरी तरह से जमीन में ही समाहित करके खेत में एक आर्द्रता चक्र (ह्यूमिडिटी साइकिल) तैयार किया जा सकता है जिसमें बिना सिंचाई ही भौगोलिक परिस्थिति व बारिश के मुताबिक खेती की जा सकती है।
- पालेकर के मुताबिक फसलों की सिंचाई यह पूरी तरह से मानवीय सोच है।
- कोई भी फसल मूलत: सिंचाई से नहीं होती। अगर ऐसा होता तो पहाड़ों पर भरी गर्मी में हरियाली नहीं होती। जंगल तैयार ही नहीं होते। फलों से लदे पेड़ जिंदा ही नहीं रहते।
- बारिश के पानी को पूरी तरह से जमीन में ही समाहित करके खेत में एक आर्द्रता चक्र (ह्यूमिडिटी साइकिल) तैयार किया जा सकता है जिसमें बिना सिंचाई ही भौगोलिक परिस्थिति व बारिश के मुताबिक खेती की जा सकती है।
क्या है जीरो बजट नेचुरल खेती?
- ऐसी खेती जिसमें सब कुछ प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर होता है।
- इस तरह की खेती में कीटनाशक, रासायनिक खाद और हाईब्रिड बीज किसी भी आधुनिक उपाय का इस्तेमाल नहीं होता है।
- इस तकनीक में किसान भरपूर फसल उगाकर लाभ कमा रहे हैं, इसीलिए इसे जीरो बजट खेती का नाम दिया गया है।
- इसमें रासायनिक खाद के स्थान पर देशी खाद जिसका नाम 'घन जीवा अमृत' का इस्तेमाल होता है।
- यह खाद गाय के गोबर, गौमूत्र, चने के बेसन, गुड़, मिट्टी तथा पानी से बनती है। इसे तैयार करने वाले सुभाष ही हैं।
- इस खाद से फसल को कीड़ा नहीं लगता है।
- जीरो बजट खेती में खेतों की सिंचाई, मड़ाई और जुताई का सारा काम बैलों की मदद से किया जाता है। इसमें किसी भी प्रकार के डीजल या ईधन से चलने वाले संसाधनों का प्रयोग नहीं होता है जिससे काफी बचत होती है।
- ऐसी खेती जिसमें सब कुछ प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर होता है।
- इस तरह की खेती में कीटनाशक, रासायनिक खाद और हाईब्रिड बीज किसी भी आधुनिक उपाय का इस्तेमाल नहीं होता है।
- इस तकनीक में किसान भरपूर फसल उगाकर लाभ कमा रहे हैं, इसीलिए इसे जीरो बजट खेती का नाम दिया गया है।
- इसमें रासायनिक खाद के स्थान पर देशी खाद जिसका नाम 'घन जीवा अमृत' का इस्तेमाल होता है।
- यह खाद गाय के गोबर, गौमूत्र, चने के बेसन, गुड़, मिट्टी तथा पानी से बनती है। इसे तैयार करने वाले सुभाष ही हैं।
- इस खाद से फसल को कीड़ा नहीं लगता है।
- जीरो बजट खेती में खेतों की सिंचाई, मड़ाई और जुताई का सारा काम बैलों की मदद से किया जाता है। इसमें किसी भी प्रकार के डीजल या ईधन से चलने वाले संसाधनों का प्रयोग नहीं होता है जिससे काफी बचत होती है।
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