Saturday 9 December 2017

वीर नारायण सिंह 
10 दिसंबर : बलिदान पर्व 

छत्तीसगढ़ स्थित सोनाखान जमींदारी बिंझवार जमींदारों के अधीन थी। 1857 के विप्लवकाल में यहाँ वीर नारायण सिंह जमींदार थे जो न्यायप्रिय और दयालु थे। जनता में वे बहुत लोकप्रिय थे।
1856 में भीषण अकाल पड़ा जिसके निवारण हेतु वीर नारायण ने अन्य रियासतों से मदद मांगी। इसी बीच सूचना मिली कि एक लालची व्यापारी माखन ने अपने गोदामों में अनाज को ऊंचे दाम पर बेचने के लिए जमा कर रखा था। तत्काल ही अपनी मौजूदगी में वीर नारायण ने गोदाम में जाकर सारा अनाज जनता में बंटवा दिया।इसकी शिकायत व्यापारी माखन ने अंग्रेजों को दी और वे गिरफ्तार कर लिए गए। उन पर डकैती, हिंसा और देशद्रोह का आरोप लगाकर रायपुर सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया।
इसी बीच देश में विद्रोह की चिंगारी लग चुकी थी। वीर नारायण भी अपने साथियों के साथ सुरंग खोदकर भाग निकले। वापस सोनाखान पहुंचकर उन्होंने 500 लड़कों की फ़ौज तैयार कर ली।इसकी खबर देवरी के जमींदार ने अंग्रेजों को पहुंचा दी। रायपुर डिप्टी कमिश्नर ने ब्रिटिश फ़ौज और देश के गद्दार जमींदारों की मदद से सोनाखान पर चढ़ाई कर दी। कड़े संघर्ष, वीरों की बलिदान के बाद वीर नारायण गिरफ्तार कर लिए गए। उनपर देशद्रोह का मुकदमा चला और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। आज ही के दिन 10 दिसंबर 1857 को रायपुर में आज जहाँ जयस्तंभ चौक है, उन्हें तोप के मुंह से बांधकर उड़ा दिया गया... !

इस तरह मानवता के रक्षक, प्रजावत्सल वीरनारायण सिंह 1857 की क्रांति मे छत्तीसगढ़ के प्रथम बलिदानी हुए...

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