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अक्सर आपने “बुद्धिपिशाचों” को ये कहते सुना-पढ़ा होगा, कि हिंदुओं में दलितों की स्थिति बहुत खराब है और उनके साथ होने वाले भेदभाव एवं अत्याचारों के कारण वे चर्च के प्रलोभनों (Conversion in Dalits) में आ जाते हैं और धर्म परिवर्तन कर लेते हैं.
(हालाँकि ईसाईयत को धर्म कहना भी अपने-आप को धोखा देने समान है, क्योंकि ईसाईयत कोई धर्म नहीं बल्कि “पंथ” है, यानी Religion है). बहरहाल, सच बात तो ये है कि चर्च वाले दलितों और आदिवासियों को बहला-फुसलाकर अपने खेमे में ले तो जाते हैं (Conversion in India), लेकिन वहाँ भी उनके साथ वही भेदभाव एवं अन्याय जारी रहता है. कुछ कन्वर्टेड दलित इसके खिलाफ आवाज़ तो उठाते हैं, लेकिन वह चर्च द्वारा अनसुनी कर दी जाती है.
दूसरी बात यह है कि दलितों को पैसा और नौकरी का लालच देकर ईसाई बना लिया जाता है, लेकिन चूँकि संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि किसी ईसाई को धर्म के आधार पर आरक्षण दिया जाए, इसलिए धोखाधड़ी करते हुए चर्च इन दलितों से उनका मूल नाम वैसे ही रखने का आग्रह करता है, ताकि हिन्दू दलितों के हिस्से के आरक्षण की मलाई भी खाई जा सके. परन्तु अब कन्वर्टेड दलितों में भी धीरे-धीरे जागृति आ रही है और वे वापस अपने मूल धर्म अर्थात हिन्दू धर्म में वापस आने लगे हैं (Reconversion of Dalits). हालाँकि अभी यह अधिक संख्या में नहीं है, परन्तु जिस तरह से चर्च में मूल सीरियन ईसाईयों और कन्वर्टेड दलित ईसाईयों के बीच खाई चौड़ी होती जा रही है, कब्रिस्तान अलग-अलग हैं... चर्च भी अलग हैं... उसे देखते हुए यह “घरवापसी” और तेज़ होगी. केरल के कोट्टायम से जीमोन जैकब की यह रिपोर्ट बताती है कि “उस तरफ गए दलितों की किस्मत में अथवा उनके सम्मान में कोई खास बदलाव नहीं आया है, उल्टा उनके हाथ से आरक्षण जाता रहा”...
कोट्टायम के 66 वर्षीय मैसन जैकब कहते हैं कि उन्हें ईसाई धर्म छोड़ कर हिन्दू धर्म में वापसी की खुशी है, मेरे पिता ने वर्षों पहले ईसाई पंथ अपनाया था, लेकिन अब मैं वापस हिन्दू धर्म अपना रहा हूँ. हम लोग वहाँ केवल नाम भर के “कैथोलिक” थे, लेकिन हम आजीवन गरीब ही बने रहे, ईसाई बनने के बाद हमारे परिवारों की आर्थिक स्थिति में कतई बदलाव नहीं आया. चर्च ने कभी भी हमारी कोई मदद नहीं की...”. इसी प्रकार केरल के पोंकुन्नाम मंदिर की हिन्दू हेल्पलाइन में आने वाले मणिदास का कहना है कि उनके पुरखों ने लगभग सौ वर्ष पहले ईसाई पंथ अपनाया था, हमें कैथोलिक भी कहा गया, लेकिन इतने वर्षों से हम लगातार देख रहे हैं कि हमारे साथ सरकारों और चर्च का भेदभाव जारी ही है. उच्च वर्ग के ईसाई से हम से सामान्य सम्बन्ध ही नहीं रखते तो रोटी-बेटी का क्या रखेंगे. अब चूँकि हम वापस “हिन्दू दलित” बन गए हैं तो हमें शासकीय मदद, आरक्षण वगैरह मिलने की संभावना बढ़ गई है. चूँकि संविधान में ऐसा माना गया है कि ईसाईयों में जातिभेद नहीं होता है, इसलिए उन्हें धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं मिल सकता. संविधान में केवल “हिन्दू दलितों” के लिए यह प्रावधान है. अब हम हिन्दू बनकर खुश हैं. मणिदास की पत्नी थान्कम्मा कहती हैं कि जब हम कैथोलिक थे और गरीब थे तब चर्च ने हमारी कोई मदद नहीं की.
हिन्दू दलित भाई, "सफ़ेद चोगे" वालों की बातों में आकर... या फिर मल-मूत्र निवासियों के बीच "छिपे बैठे मिशनरी एजेंटों" के बहकावे में आकर ईसाई तो बन जाते हैं, लेकिन उन्हें वहाँ भी भेदभाव और छुआछूत का शिकार होना पड़ता है... ईसाई बनने के बाद भी दलितों का चर्च अलग... चर्च में दलितों के बैठने का स्थान अलग... उनके कब्रिस्तान अलग... प्रशासनिक, अकादमिक और प्रमुख पदों पर सिर्फ मूल कैथोलिक बिशपों की नियुक्ति जैसे कई भेदभाव सहने पड़ते हैं... स्थिति यह है कि जहाँ पर 70% "दलित ईसाई"(??) हैं, वहाँ पर भी नेतृत्त्व एवं सत्ता में उनकी भागीदारी सिर्फ 4% है... वेटिकन से शिकायत करने पर भी इनकी कोई सुनवाई नहीं होती... मजे की बात यह है कि "प्रगतिशीलों" और "दलित चिंतकों" को यह सब दिखाई-सुनाई नहीं देता... उन्हें तो सिर्फ हिन्दू धर्म को गरियाने से काम है... "पुअर दलित क्रिश्चियन मूवमेंट" ऐसे भेदभाव से लगातार जूझ रहा है, संघर्ष कर रहा है. हाल ही में इस समूह ने संयुक्त राष्ट्र में वेटिकन के इस भेदभाव के खिलाफ शिकायत भी की है. Copy from desicnn.com/:
पिछले क्रिसमस के दिन 46 ईसाई परिवारों ने वापस अपने मूल अर्थात “हिन्दू दलित” बनने का फैसला किया था, उस समय कई ईसाई समूहों ने विहिप की इस पहल का जोरदार विरोध किया था और इसे नरेंद्र मोदी की साज़िश बताया था. हालाँकि घरवापसी करने वाले दलित बंधुओं ने कार्यक्रम स्थल पर ही उन्हें खरीखोटी सुना दी थी. आर्चबिशप जोसेफ पोवाथिल के अनुसार हिन्दू संगठनों द्वारा ईसाईयों के खिलाफ घृणा अभियान चलाया जा रहा है, जिसके कारण घबराकर वर्षों पुराने ये कैथोलिक हिन्दू बन रहे हैं. इसकी खिल्ली उड़ाते हुए केरल के हिन्दू नेताओं ने कहा है कि हम तो आज और अभी, आपके सामने इन्हें ले जाने की अनुमति देते हैं, आप चेक कर लीजिए कि वे आपके साथ जाना चाहते हैं या नहीं. भारत में कई स्थानों पर अब कन्वर्टेड ईसाईयों में उनके साथ होने वाले भेदभावों के कारण जागरूकता बढ़ रही है इसीलिए चर्च बौखलाया हुआ है. इस वर्ष भी क्रिसमस पर कुछ और परिवारों ने वापस “हिन्दू दलित” बनने में अपनी रूचि दर्शाई है. इस अवसर पर उनका शुद्धिकरण करके अर्थात उनके शरीर से चर्च के समस्त निशान मिटाकर उन पर गंगाजल छिड़का जाएगा, तथा ईसाई बनने से पहले वे जिस भी समुदाय अथवा जाति के थे वापस उसी में शामिल कर लिए जाएँगे. “हिन्दू दलित” बनने के बाद जैसा कि आजकल हिन्दू दलितों को मिलने वाले अधिकार, शिक्षादीक्षा और आरक्षण का लाभ मिलते हैं, वैसे ही उन्हें भी मिलने लगेंगे.
सैंतालीस वर्षीय परमेश्वरन साबुराज केरल के कंजीर्पल्ली नगर में विहिप कार्यकर्ताओं के साथ हिन्दू हेल्पलाइन का काम देखते हैं. उनका आरोप है कि कोट्टायम जिले में “घरवापसी” के लिए कई कन्वर्टेड ईसाई इच्छुक हैं, परन्तु मीडिया इन बातों का हल्ला मचाकर उन्हें वापस चर्च की तरफ धकेल देता है. जब हिन्दू अपना धर्म परिवर्तन करके ईसाई या मुस्लिम बनता है उस समय मीडिया के ये कथित पत्रकार (जो कि वास्तव में या तो ब्लैकमेलर हैं या दलाल हैं) चुप्पी साधे हुए रहते हैं, परन्तु जैसे ही हमारे प्रयासों से कोई ईसाई वापस हिन्दू दलित बनने लगता है, तो इन्हें कष्ट होने लगता है और चर्च के हाथों बिके हुए ये समाचारपत्र इस कार्यवाही को “सांप्रदायिक” और “विभाजनकारी” चित्रित करने लगते हैं.Copy from desicnn.com/:
परमेश्वरन साबुराज के पास इस समय लगभग सौ परिवारों का “लिखित बयान” है जिसमें उन्होंने वापस अपने मूल हिन्दू दलित बनने के लिए आवेदन किया है, परन्तु वे कोई विवाद अथवा दगाबाजी नहीं चाहते, इसलिए वे स्वयं अपने कार्यकर्ताओं की मदद से एक-एक करके सभी से गहन संपर्क में हैं और पूर्ण संतुष्टि के बाद ही इन परिवारों की “घर-वापसी” करवाई जाएगी. साबुराज का कहना है कि जिस प्रकार चर्च वाले किसी दलित बंधु को कन्वर्ट करवाते समय, “संविधान में किसी भी धर्म या पंथ को अपनाने के अधिकार की दुहाई देते हैं, वही तर्क हम उनके माथे पर मारेंगे...”. साबुराज आगे बताते हैं कि घरवापसी करने वाले अधिकाँश ईसाई बेहद गरीब हैं और धनी तथा उच्च वर्गीय ईसाईयों द्वारा इनके साथ बहुत बुरा बर्ताव किया जाता है. कोट्टायम से आठ किमी दूर रहने वाले 57 वर्षीय फिलिप फिलिपोस कहते हैं कि पिछले वर्ष मैं दर्शनों के लिए सबरीमाला मंदिर गया था, वहाँ मुझे किसी ने नहीं रोका और ना ही किसी ने मेरी जाति पूछी... वहीं से मेरे दिल में वापस अपने मूल धर्म में वापस लौटने की इच्छा जागृत हुई.
साबुराज कहते हैं कि हम इन आए हुए आवेदनों को जल्दबाजी में “घरवापसी” करवाने की इच्छुक नहीं हैं. पहले हम इन्हें पूरा समय देंगे ताकि वर्षों से हिन्दू धर्म से दूर रहने के कारण सब कुछ भूल चुकी परम्पराओं एवं रीतियों को जान-समझ लें. यदि इनके परिवार में एकाध-दो सदस्य ही हिन्दू बनना चाहते होंगे तब भी हमें कोई ऐतराज नहीं है. हम तो इन पर कोई नाम भी नहीं थोपेंगे, इन्हें जो भी पसंद हो वह नया नाम वे रख सकते हैं. कुछ ईसाई संगठन इन घटनाओं को अधिक तूल देने के पक्ष में नहीं हैं, सायरो-मालाबार चर्च के सचिव वीसी सेबस्टियन का कहना है कि यदि चंद परिवार वापस हिन्दू बनना चाहते हैं तो ये कोई बड़ी बात नहीं है, हम इस पर कुछ नहीं कहना चाहते. इसी प्रकार केरल के मुख्यमंत्री ने भी इस मामले से अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा है कि यह मामला उन व्यक्तियों के “स्व-विवेक” पर निर्भर करता है कि उन्हें किस धर्म या पंथ में रहना है, अथवा नहीं रहना है. संविधान इस मामले में बिलकुल स्पष्ट है कि यदि कोई दबाव या प्रलोभन नहीं है तो कोई भी नागरिक किसी भी धर्म में आ-जा सकता है.
फिलहाल केरल-झारखंड सहित कुछ राज्यों के कई दर्जन परिवारों को इस क्रिसमस का इंतज़ार है, ताकि वे अपने साथ चर्च में होने वाले भेदभाव, उच्च कुलीन कैथोलिक ईसाईयों द्वारा हीन व्यवहार तथा अलग चर्च, अलग कब्रिस्तान जैसी बुराईयों से मुक्ति पा सकें और “हिन्दू दलित” बनकर आरक्षण का लाभ भी ले सकें.
अक्सर आपने “बुद्धिपिशाचों” को ये कहते सुना-पढ़ा होगा, कि हिंदुओं में दलितों की स्थिति बहुत खराब है और उनके साथ होने वाले भेदभाव एवं अत्याचारों के कारण वे चर्च के प्रलोभनों (Conversion in Dalits) में आ जाते हैं और धर्म परिवर्तन कर लेते हैं.
(हालाँकि ईसाईयत को धर्म कहना भी अपने-आप को धोखा देने समान है, क्योंकि ईसाईयत कोई धर्म नहीं बल्कि “पंथ” है, यानी Religion है). बहरहाल, सच बात तो ये है कि चर्च वाले दलितों और आदिवासियों को बहला-फुसलाकर अपने खेमे में ले तो जाते हैं (Conversion in India), लेकिन वहाँ भी उनके साथ वही भेदभाव एवं अन्याय जारी रहता है. कुछ कन्वर्टेड दलित इसके खिलाफ आवाज़ तो उठाते हैं, लेकिन वह चर्च द्वारा अनसुनी कर दी जाती है.
दूसरी बात यह है कि दलितों को पैसा और नौकरी का लालच देकर ईसाई बना लिया जाता है, लेकिन चूँकि संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि किसी ईसाई को धर्म के आधार पर आरक्षण दिया जाए, इसलिए धोखाधड़ी करते हुए चर्च इन दलितों से उनका मूल नाम वैसे ही रखने का आग्रह करता है, ताकि हिन्दू दलितों के हिस्से के आरक्षण की मलाई भी खाई जा सके. परन्तु अब कन्वर्टेड दलितों में भी धीरे-धीरे जागृति आ रही है और वे वापस अपने मूल धर्म अर्थात हिन्दू धर्म में वापस आने लगे हैं (Reconversion of Dalits). हालाँकि अभी यह अधिक संख्या में नहीं है, परन्तु जिस तरह से चर्च में मूल सीरियन ईसाईयों और कन्वर्टेड दलित ईसाईयों के बीच खाई चौड़ी होती जा रही है, कब्रिस्तान अलग-अलग हैं... चर्च भी अलग हैं... उसे देखते हुए यह “घरवापसी” और तेज़ होगी. केरल के कोट्टायम से जीमोन जैकब की यह रिपोर्ट बताती है कि “उस तरफ गए दलितों की किस्मत में अथवा उनके सम्मान में कोई खास बदलाव नहीं आया है, उल्टा उनके हाथ से आरक्षण जाता रहा”...
कोट्टायम के 66 वर्षीय मैसन जैकब कहते हैं कि उन्हें ईसाई धर्म छोड़ कर हिन्दू धर्म में वापसी की खुशी है, मेरे पिता ने वर्षों पहले ईसाई पंथ अपनाया था, लेकिन अब मैं वापस हिन्दू धर्म अपना रहा हूँ. हम लोग वहाँ केवल नाम भर के “कैथोलिक” थे, लेकिन हम आजीवन गरीब ही बने रहे, ईसाई बनने के बाद हमारे परिवारों की आर्थिक स्थिति में कतई बदलाव नहीं आया. चर्च ने कभी भी हमारी कोई मदद नहीं की...”. इसी प्रकार केरल के पोंकुन्नाम मंदिर की हिन्दू हेल्पलाइन में आने वाले मणिदास का कहना है कि उनके पुरखों ने लगभग सौ वर्ष पहले ईसाई पंथ अपनाया था, हमें कैथोलिक भी कहा गया, लेकिन इतने वर्षों से हम लगातार देख रहे हैं कि हमारे साथ सरकारों और चर्च का भेदभाव जारी ही है. उच्च वर्ग के ईसाई से हम से सामान्य सम्बन्ध ही नहीं रखते तो रोटी-बेटी का क्या रखेंगे. अब चूँकि हम वापस “हिन्दू दलित” बन गए हैं तो हमें शासकीय मदद, आरक्षण वगैरह मिलने की संभावना बढ़ गई है. चूँकि संविधान में ऐसा माना गया है कि ईसाईयों में जातिभेद नहीं होता है, इसलिए उन्हें धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं मिल सकता. संविधान में केवल “हिन्दू दलितों” के लिए यह प्रावधान है. अब हम हिन्दू बनकर खुश हैं. मणिदास की पत्नी थान्कम्मा कहती हैं कि जब हम कैथोलिक थे और गरीब थे तब चर्च ने हमारी कोई मदद नहीं की.
हिन्दू दलित भाई, "सफ़ेद चोगे" वालों की बातों में आकर... या फिर मल-मूत्र निवासियों के बीच "छिपे बैठे मिशनरी एजेंटों" के बहकावे में आकर ईसाई तो बन जाते हैं, लेकिन उन्हें वहाँ भी भेदभाव और छुआछूत का शिकार होना पड़ता है... ईसाई बनने के बाद भी दलितों का चर्च अलग... चर्च में दलितों के बैठने का स्थान अलग... उनके कब्रिस्तान अलग... प्रशासनिक, अकादमिक और प्रमुख पदों पर सिर्फ मूल कैथोलिक बिशपों की नियुक्ति जैसे कई भेदभाव सहने पड़ते हैं... स्थिति यह है कि जहाँ पर 70% "दलित ईसाई"(??) हैं, वहाँ पर भी नेतृत्त्व एवं सत्ता में उनकी भागीदारी सिर्फ 4% है... वेटिकन से शिकायत करने पर भी इनकी कोई सुनवाई नहीं होती... मजे की बात यह है कि "प्रगतिशीलों" और "दलित चिंतकों" को यह सब दिखाई-सुनाई नहीं देता... उन्हें तो सिर्फ हिन्दू धर्म को गरियाने से काम है... "पुअर दलित क्रिश्चियन मूवमेंट" ऐसे भेदभाव से लगातार जूझ रहा है, संघर्ष कर रहा है. हाल ही में इस समूह ने संयुक्त राष्ट्र में वेटिकन के इस भेदभाव के खिलाफ शिकायत भी की है. Copy from desicnn.com/:
पिछले क्रिसमस के दिन 46 ईसाई परिवारों ने वापस अपने मूल अर्थात “हिन्दू दलित” बनने का फैसला किया था, उस समय कई ईसाई समूहों ने विहिप की इस पहल का जोरदार विरोध किया था और इसे नरेंद्र मोदी की साज़िश बताया था. हालाँकि घरवापसी करने वाले दलित बंधुओं ने कार्यक्रम स्थल पर ही उन्हें खरीखोटी सुना दी थी. आर्चबिशप जोसेफ पोवाथिल के अनुसार हिन्दू संगठनों द्वारा ईसाईयों के खिलाफ घृणा अभियान चलाया जा रहा है, जिसके कारण घबराकर वर्षों पुराने ये कैथोलिक हिन्दू बन रहे हैं. इसकी खिल्ली उड़ाते हुए केरल के हिन्दू नेताओं ने कहा है कि हम तो आज और अभी, आपके सामने इन्हें ले जाने की अनुमति देते हैं, आप चेक कर लीजिए कि वे आपके साथ जाना चाहते हैं या नहीं. भारत में कई स्थानों पर अब कन्वर्टेड ईसाईयों में उनके साथ होने वाले भेदभावों के कारण जागरूकता बढ़ रही है इसीलिए चर्च बौखलाया हुआ है. इस वर्ष भी क्रिसमस पर कुछ और परिवारों ने वापस “हिन्दू दलित” बनने में अपनी रूचि दर्शाई है. इस अवसर पर उनका शुद्धिकरण करके अर्थात उनके शरीर से चर्च के समस्त निशान मिटाकर उन पर गंगाजल छिड़का जाएगा, तथा ईसाई बनने से पहले वे जिस भी समुदाय अथवा जाति के थे वापस उसी में शामिल कर लिए जाएँगे. “हिन्दू दलित” बनने के बाद जैसा कि आजकल हिन्दू दलितों को मिलने वाले अधिकार, शिक्षादीक्षा और आरक्षण का लाभ मिलते हैं, वैसे ही उन्हें भी मिलने लगेंगे.
सैंतालीस वर्षीय परमेश्वरन साबुराज केरल के कंजीर्पल्ली नगर में विहिप कार्यकर्ताओं के साथ हिन्दू हेल्पलाइन का काम देखते हैं. उनका आरोप है कि कोट्टायम जिले में “घरवापसी” के लिए कई कन्वर्टेड ईसाई इच्छुक हैं, परन्तु मीडिया इन बातों का हल्ला मचाकर उन्हें वापस चर्च की तरफ धकेल देता है. जब हिन्दू अपना धर्म परिवर्तन करके ईसाई या मुस्लिम बनता है उस समय मीडिया के ये कथित पत्रकार (जो कि वास्तव में या तो ब्लैकमेलर हैं या दलाल हैं) चुप्पी साधे हुए रहते हैं, परन्तु जैसे ही हमारे प्रयासों से कोई ईसाई वापस हिन्दू दलित बनने लगता है, तो इन्हें कष्ट होने लगता है और चर्च के हाथों बिके हुए ये समाचारपत्र इस कार्यवाही को “सांप्रदायिक” और “विभाजनकारी” चित्रित करने लगते हैं.Copy from desicnn.com/:
परमेश्वरन साबुराज के पास इस समय लगभग सौ परिवारों का “लिखित बयान” है जिसमें उन्होंने वापस अपने मूल हिन्दू दलित बनने के लिए आवेदन किया है, परन्तु वे कोई विवाद अथवा दगाबाजी नहीं चाहते, इसलिए वे स्वयं अपने कार्यकर्ताओं की मदद से एक-एक करके सभी से गहन संपर्क में हैं और पूर्ण संतुष्टि के बाद ही इन परिवारों की “घर-वापसी” करवाई जाएगी. साबुराज का कहना है कि जिस प्रकार चर्च वाले किसी दलित बंधु को कन्वर्ट करवाते समय, “संविधान में किसी भी धर्म या पंथ को अपनाने के अधिकार की दुहाई देते हैं, वही तर्क हम उनके माथे पर मारेंगे...”. साबुराज आगे बताते हैं कि घरवापसी करने वाले अधिकाँश ईसाई बेहद गरीब हैं और धनी तथा उच्च वर्गीय ईसाईयों द्वारा इनके साथ बहुत बुरा बर्ताव किया जाता है. कोट्टायम से आठ किमी दूर रहने वाले 57 वर्षीय फिलिप फिलिपोस कहते हैं कि पिछले वर्ष मैं दर्शनों के लिए सबरीमाला मंदिर गया था, वहाँ मुझे किसी ने नहीं रोका और ना ही किसी ने मेरी जाति पूछी... वहीं से मेरे दिल में वापस अपने मूल धर्म में वापस लौटने की इच्छा जागृत हुई.
साबुराज कहते हैं कि हम इन आए हुए आवेदनों को जल्दबाजी में “घरवापसी” करवाने की इच्छुक नहीं हैं. पहले हम इन्हें पूरा समय देंगे ताकि वर्षों से हिन्दू धर्म से दूर रहने के कारण सब कुछ भूल चुकी परम्पराओं एवं रीतियों को जान-समझ लें. यदि इनके परिवार में एकाध-दो सदस्य ही हिन्दू बनना चाहते होंगे तब भी हमें कोई ऐतराज नहीं है. हम तो इन पर कोई नाम भी नहीं थोपेंगे, इन्हें जो भी पसंद हो वह नया नाम वे रख सकते हैं. कुछ ईसाई संगठन इन घटनाओं को अधिक तूल देने के पक्ष में नहीं हैं, सायरो-मालाबार चर्च के सचिव वीसी सेबस्टियन का कहना है कि यदि चंद परिवार वापस हिन्दू बनना चाहते हैं तो ये कोई बड़ी बात नहीं है, हम इस पर कुछ नहीं कहना चाहते. इसी प्रकार केरल के मुख्यमंत्री ने भी इस मामले से अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा है कि यह मामला उन व्यक्तियों के “स्व-विवेक” पर निर्भर करता है कि उन्हें किस धर्म या पंथ में रहना है, अथवा नहीं रहना है. संविधान इस मामले में बिलकुल स्पष्ट है कि यदि कोई दबाव या प्रलोभन नहीं है तो कोई भी नागरिक किसी भी धर्म में आ-जा सकता है.
फिलहाल केरल-झारखंड सहित कुछ राज्यों के कई दर्जन परिवारों को इस क्रिसमस का इंतज़ार है, ताकि वे अपने साथ चर्च में होने वाले भेदभाव, उच्च कुलीन कैथोलिक ईसाईयों द्वारा हीन व्यवहार तथा अलग चर्च, अलग कब्रिस्तान जैसी बुराईयों से मुक्ति पा सकें और “हिन्दू दलित” बनकर आरक्षण का लाभ भी ले सकें.
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