Thursday, 28 December 2017


माफ़ी प्रायश्चित का मौका देती है
 पर दुःख है कि आपके पाप बहुत हैं....
2007 में राजस्थान के जयपुर में 'धर्म संस्कृति संगम' नामक संगठन ने दुनिया भर के उन लोगों का एक कार्यक्रम आयोजित किया था..जो थे तो ईसाई या मुस्लिम...पर उनके मन में ये प्रश्न था कि ठीक है आज हम ईसाई या मुसलमान हैं पर ईसा और मुहम्मद साहब से पहले हम क्या थे ? हमारी संस्कृति और परम्परायें क्या थीं .? और किन परिस्थितियों में हमें अपना मत-मजहब छोड़ना पड़ा था..?
इस कार्यक्रम के एक सत्र में जब उस समय के सरसंघचालक के० एस० सुदर्शन ईसाई चर्चों द्वारा दुनिया भर में किये गये विध्वंस लीलाओं का वर्णन कर रहे थे..उस वक़्त मंच पर बैठे ईसाई पादरी ये सब सुनकर स्तंभित थे---
सुदर्शन जी के बाद एक अमेरिकी ईसाई विद्वान् फादर कोमेल्ला की जब बोलने की बारी आई तो उन्होंने बड़े कातर और रूँधे गले के साथ ये कहा कि सुदर्शन जी के द्वारा चर्च की विनाश लीला सुनने के बाद आज मैं खुद को उन सारे अपराधों में शरीक मानता हूँ..जिसे आज तक चर्चों ने दुनिया भर में किया है. यह स्वीकारोक्ति अनायास या तथ्यहीन नहीं थी कि ईसाई चर्चों ने दुनिया भर में अनगिनत संस्कृतियों और सभ्यताओं का विनाश करने के साथ धर्मान्तरण, अत्याचार और जनसंहार किया है और झूठ फैलायें हैं. 
इसकी पुष्टि अब चर्च के प्रधान पोप और दुनिया भर के अनेक ईसाई पादरियों की स्वीकारोक्तियों और क्षमायाचनाओं से हो रही है और माफी मांगने का ये सिलसिला लगातार चल रहा है-----
1992 में चर्च ने 1642 में गैलीलियो के साथ किये गए अपने अपराध के लिये 350 साल बाद माफी माँगी थी.
दुनिया भर के कई चर्चों के फादरों के ऊपर बाल यौन शोषण के बीस हज़ार से अधिक मुकदमें चल रहे थे..जिससे छुटकारा पाने के लिये कैथोलिक चर्च ने कुछ साल पहले पीड़ित बच्चों के परिवारों से न सिर्फ माफी माँगी...बल्कि बतौर मुआवजा उन्हें हजारों करोड़ डॉलर की एकमुश्त राशि भी दी---
यही नहीं 2001 में पोप जान पॉल द्वितीय ने एक मेल के माध्यम से उन तमाम कैथोलिक फादरों की ओर से माफी माँगी....जिनके यौन शोषण के चलते कई मासूमों की जिंदगियाँ नरक हो गई थी.
पिछले साल जब पोप फ्रांसिस अमेरिका और लैटिन अमेरिका की यात्रा पर थे तब उन्होंने उपनिवेश काल में अमेरिका के मूल निवासियों के खिलाफ चर्च द्वारा किए अत्याचारों में रोमन कैथलिक चर्च की भूमिका के लिए माफी माँगी.
इससे पहले लैटिन अमेरिका के बोलिविया में भी पोप ने इसी तरह की माफी माँगी थी.
अभी पिछले साल 26 नवंबर को पोप ने 1954 में रवांडा में किये ईसाई मत प्रचार के लिये की गई 08 लाख हत्यायों के लिये सार्वजनिक क्षमायाचना की.
एक घटना 27 सितम्बर, 2006 की है........जब उस वक़्त के पोप बेनेडिक्ट XVI ने एक बयान जारी करते हुए कहा था कि सीरियन क्रिस्चियन ईसा के जिस शिष्य थोमा (संत थॉमस) के भारत आने की बात कहतें हैं....वो कभी भारत आये ही नहीं थे...बल्कि वो सुसमाचार प्रचार के लिए पर्शिया गए थे.
पोप की इस स्वीकारोक्ति से सीरियन ईसाइयों में आक्रोश की भयंकर लहर दौड़ गई......क्योंकि भारत के दक्षिणी भाग में उन्होंने सदियों से यह भ्रम फैलाया हुआ है कि ईसवी सन 52 में ईसा के शिष्य संत थोमा (दिदुमस) सुसमाचार फैलाने भारत आ गए थे......20 साल बाद जिनकी हत्या वहाँ के दुष्ट ब्राह्मणों ने कर दी थी.
अब उनके इस झूठ ने दक्षिण भारत में ब्राह्मण-विरोधी अभियान को हवा दी थी तथा धर्मान्तरण के लिये जमीन तैयार करने में मदद की थी.
इस झूठ को आधार बनाकर उन्होंनें वहाँ के मछुआरों को ब्राह्मणों के खिलाफ भड़काया था. अब जाहिर था कि पोप की यह स्वीकारोक्ति सीरियन चर्च के दो हज़ार सालों के झूठ को नंगा कर देती इसलिए फ़ौरन मालाबार चर्च के मुखपत्र "सत्य दीपक" में रोम की ओरियंटल पोंटीफिकल इंस्टीटूट के सदस्य जार्ज नेदुनगान ने कड़े शब्दों में सीरियन ईसाइयों के आक्रोश को व्यक्त किया और साथ ही सीरियन ईसाइयों का एक प्रभावी समूह पोप के पास पहुँचा तथा उनपर बयान बदलने के लिए दबाब डाला.
अप्रत्याशित हमले से घबराए पोप ने तुरंत अपना बयान वापस ले लिया पर इसमें महत्त्व की बात ये है कि पोप ने पहले इस झूठ को फैलाने के लिये माफ़ी माँगी थी.
वैसे ये लोग अपने अपराधों के लिये माफी माँग कर किसी पर एहसान नहीं कर रहें हैं....बल्कि ये लोग अपने ही पापों का बोझ कुछ हल्का कर रहें हैं, इनके निर्देशों के कारण इनके लोगों ने दुनिया की जितनी संस्कृतियाँ को निगला है, जितनी बर्बर हत्यायें की हैं, यूरोप में चुड़ैल कहकर महिलाओं पर जितने अत्याचार कियें हैं और फिर उन अत्याचारियों को संत की उपाधि दी है वो सारे पाप इतने ज्यादा हैं कि उन सबके लिये अगर ये लोग प्रलय के दिन तक भी रोज़ माफी माँगेंगे तब भी उसका प्रायश्चित संभव नहीं है और हाँ, हमारे भारत में गोवा में की गई नृशंसता, उत्तर-पूर्व, झारखण्ड, छतीसगढ़, उड़ीसा आदि राज्यों में किये इनके पापों का हिसाब तो अभी इनसे माँगा ही नहीं है.
अभी तो इनको दुनिया के कई मत पंथों से, अपने अंदर के ही विभिन्न संप्रदायों से, यहूदियों से और हिन्दुओं से माफी माँगनी बाकी है.
बेहतर है समय रहते आप चेत जायें और कम से कम अपने पापों के लिए माफी माँगने की गति को और तीव्र करें ही....साथ ही अपने असहिष्णु और विस्तारवादी चरित्र को भी पूरी तरह बदलें अन्यथा पाप बटोरने का सिलसिला कभी खत्म नहीं होगा.
महान दार्शनिक वाल्टेयर के शब्दों में कहें तो आपके ईसाइयत प्रसार ने काल्पनिक सत्य के लिए धरती को रक्त से नहला दिया है.
आपने 2000 साल के अपने जीवन काल में पूरी दुनिया में जितने भ्रम फैलाएं हैं और जितनी सभ्यताओं को नष्ट करते हुए मानव-जाति का संहार किया है....वो तमाम पाप अब अपना हिसाब माँग रहा है.
माफ़ी प्रायश्चित का मौका देती है पर दुःख ये है कि आपके पाप बहुत हैं....इसलिये यहोवा के लिये, अपने जीसस के लिये और सारी मानव जाति के लिये अब कम से कम इस विस्तारवाद, पशुता, रक्त-चरित्र और असहिष्णुता को विराम दीजिये---!
पंडित मधु सूदन व्यास जी के वॉल पर Abhijeet Singh जी के पोस्ट: महेश सिन्हा जी की वाल से साभार !

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