अभी तो हम इसी में खुश हैं कि चलो विदेशियों ने हमारे राम-सेतु को भगवान राम से जोड़ा और इसके प्राकृतिक न होने तथा मानवनिर्मित होने का सर्टिफिकेट तो दे ही दिया , भले ही इसे मात्र पाँच हजार साल ही पुराना माना । अब बेचारा हिन्दु पाँच हजार साल को थोड़ा पीछे ले जाकर दस-बीस हजार साल तक तो मान सकता है , पर वैज्ञानिक सोच को धारण करते हुए वह कैसे माने कि हमारे आराध्य भगवान श्री राम सत्रह लाख साल पहले इस धरा पर अवतरित हुए थे । ऐसा कहते ही उसे घोर पुरातनपंथी और दकियानूसी सोच रखने वाला घोषित कर दिया जायेगा ।
ऐसे भय के माहौल में मेरी हिम्मत नहीं हो पा रही है कि मैं लाखों नहीं बल्कि करोड़ों साल पहले देवों और असुरों के बीच हुए समुद्र-मंथन के सत्यता पर बहस छेड़ूँ । लगभग पाँच करोड़ साल तो हिमालय को उत्पन्न हुए हुआ है । उससे पहले वहाँ टेथिंस सागर का अस्तित्व था । प्लेट टेक्टॉनिक थियरी के आधार पर इस सागर के ऊपर दबाव के परिणामस्वरूप हिमालय की उत्पत्ति हुई ।
जब उस स्थान पर समुद्र हुआ करता था , तभी उसी समुद्र में अमृत की प्राप्ति के लिए देवताओं और दानवों द्वारा समुद्र-मंथन किया गया । ये घटना करोड़ वर्ष पहले की है या अरब वर्ष पहले की है , इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता । इस समुद्र-मंथन से मुख्य रूप से चौदह रत्न निकले थे ।
अभी पिछले महीने मैं बाँका में मंदार पर्वत पर किसी कार्यक्रम में गया था । यह वही मंदार पर्वत है जिसका प्रयोग समुद्र-मंथन के समय मथनी के रूप में किया गया था , इसे सुमेरु पर्वत के नाम से भी जाना जाता है । यहाँ संयोग से एक स्वंयसेवक मित्र राहुल डोकानिया जी से परिचय हुआ । ये बहुत अध्यात्यमिक और गुरू भक्त हैं । इन्होंने मुझे बताया कि इनके गुरू जी ने इनसे बताया है कि समुद्र-मंथन के परिणामस्वरूप मात्र चौदह रत्न ही नहीं निकले थे बल्कि हजार से अधिक वस्तुएं निकली थीं जो आज भी इस पर्वत में छिपी हुई हैं । इसके प्रमाण में उनके गुरू जी ने एक विशाल शंख का पता बताया कि एक निश्चित स्थान पर जल के भीतर एक प्राचीन शंख है । उनके बताए मार्गदर्शन के आधार पर राहुल डोकानिया जी ने उस विशाल शंख को खोज निकाला ।
इसके बाद राहुल डोकानिया जी ने बहुत प्रयास करके पुरातत्व विभाग के सर्वेक्षण दल को वहाँ बुलवाया । सर्वेक्षण दल ने शंख प्राप्ति की सूचना को सूचीबद्ध तो कर लिया है पर वर्षों से मंदार पर्वत पर अन्य किसी भी प्रकार के नये खोज में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है । इसके साथ ही पुरातत्व विभाग ने मंदार पर्वत पर किसी भी प्रकार के नये खोज करने से राहुल डोकानिया जी पर प्रतिबंध लगा रखा है । वे अब इस दैविय विषय को लेकर केंद्र सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि शायद ये हिन्दुवादी सरकार अपने प्राचीन वैभवशाली स्वर्णिम इतिहास को संसार के सामने उजागर होने का अवसर प्रदान करे ।
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