Saturday, 9 December 2017

संस्कार क्या है ?
 एक कथानक के द्वारा समझनें का प्रयास करते है ...
एक राजा के पास सुन्दर घोडी थी । कई बार युद्व में इस घोडी ने राजा के प्राण बचाये और घोडी राजा के लिए पूरी वफादार थी कुछ दिनों के बाद इस घोडी ने एक बच्चे को जन्म दिया, बच्चा काना पैदा हुआ पर शरीर हष्ट पुष्ट व सुडौल था ।
बच्चा बडा हुआ बच्चे ने मां से पूछा मां मैं बहुत बलवान हूँ पर काना हूँ यह कैसे हो गया इस पर घोडी बोली बेटा जब में गर्भवती थी तू पेट में था तब राजा ने मेरे उपर सवारी करते समय मुझे एक कोडा मार दिया जिसके कारण तू काना हो गया ।
यह बात सुनकर बच्चे को राजा पर गुस्सा आया और मां से बोला मां मैं इसका बदला लूंगा ।
मां ने कहा राजा ने हमारा पालन - पोषण किया है तू जो स्वस्थ है सुन्दर है उसी के पोषण से तो है , यदि राजा को एक बार गुस्सा आ गया तो इसका अर्थ यह नहीं है की हम उसे क्षति पहुचाये पर उस बच्चे के समझ में कुछ नहीं आया उसने मन ही मन राजा से बदला लेने की सोच ली ।
एक दिन यह मौका घोडे को मिल गया राजा उसे युद्व पर ले गया । युद्व लडते - लडते राजा एक जगह घायल हो गया घोडा उसे तुरन्त उठाकर वापिस महल ले आया ।
इस पर घोडे को ताज्जूब हुआ और मां से पूछा मां आज राजा से बदला लेने का अच्छा मौका था पर युद्व के मैदान में बदला लेने का ख्याल ही नहीं आया और न ही ले पाया , मन ने गवाही नहीं दी इस पर घोडी हंस कर बोली बेटा तेरे खून में, तेरे संस्कार में धोखा है ही नहीं, तू जानकर धोखा दे ही नहीं सकता है ।
तुझसे नमक हरामी हो नहीं सकती क्योकि तेरी नस्ल में तेरी मां का ही तो अंश है ।
बाकई यह सत्य है जैसे हमारे संस्कार होते है बैसा ही हमारे मन का व्यवहार होता है हमारे पारिवारिक संस्कार अवचेतन मस्तिष्क में गहरे वैठ जाते है माता पिता जिस संस्कार के होते है उनके बच्चे भी उसी संस्कारों को लेकर पैदा होते है ।
🔺हमारे कर्म ही संस्‍कार बनते है और संस्कार ही प्रारब्धो का रूप लेते है ! यदि हम कर्मो को सही व वेहतर दिशा दे दे तो संस्कार अच्छे बनेगें और संस्कार अच्छे बनेंगे तो जो प्रारब्ध का फल बनेगा वह मीठा व स्वादिष्ट होगा ।
👌🏼 हमें प्रतिदिन कोशिश करनी होगी की हमसे जानकर कोई धोखा न हो, गलत काम न हो, चिटिंग न हो । बस स्थिति अपने आप ठीक होती जायेगी ।

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