गीताप्रेस जैसे विशुद्ध धार्मिक प्रेस का विरोध क्यों ..?
आज से लगभग छः महीना पहले मैनें BBC में गीताप्रेस परएक लेख पढा था।लेख में यह कुतर्क गढा गया था किस तरह गीताप्रेस नामक छापखाना हिंदू भारत बनाने के मिशन पर काम कर रहा है।उसके बाद मैनें एक और -गीताप्रेस का महिलाओं पर तालिबानी सोंच-शिर्षक से एक लेख पढा।दोनों लेख पढकर मेरे दिमाग की घंटी बज उठी थी।आखिर BBC गीताप्रेस जैसे विशुद्ध धार्मिक प्रेस का विरोध क्यों कर रही है अवश्य ही इसके पिछे कोई न कोईरहस्य छिपा हुआ है क्योंकी BBC भारत में उसी का विरोधकरता आया है जो अंग्रेजी सत्ता के विरोधी था।तभी मेरे दिमाग ने कहा अवश्य ही गीताप्रेस भी अंग्रेजी सत्ता के विरूद्ध रहा होगा।
.....तब से लेकर मैं खोज करता रहा कल मेरी खोज पुरी हुई और आज BBC के उस पुराने लेख को काउंटर कर रहा हुं।आगे बढने से पहले गीताप्रेस के विरूद्ध कम्युनिस्टों का अलग षडयंत्र चल रहा है गीताप्रेस पर एक वामपंथी पत्रकार ने भी किताब लिखी है जिसका नाम --Gita Press And The Making Of Hindu India है।.
....ऐसे तो गीताप्रेस की स्थापना 1924 में हुई है उसके पहले कलकत्ता में 1920 में "गोविंद भवन कार्यालय" की स्थापना हुई और उससे पहले 'कल्याण' पत्रिका शुरू हुई थी।बहुत कमलोगों को जानकारी होगा गीताप्रेस के संस्थापक हनुमान प्रसाद पोद्दार एक क्रांतिकारी थे और उनके क्रांतिकारी संगठन का नाम था-अनुशीलन समिति।कलकत्ता में बंदुक,पिस्तौल और कारतुस की शस्त्र कंपनी थी जिसका नाम "रोडा आर.बी. एण्डकम्पनी" था।यह कंपनी जर्मनी,इंग्लैण्ड आदी देशों से बंदरगाहों से शस्त्र पेटीयां मंगाती थी।
.....देशभक्त क्रांतिकारीओं को अंग्रेजों से लङने के लिए पिस्तौल और कारतुस की जरूरत थी लेकिन उनकें पास धन नही था कि वें खरीद सकें तब अनुशीलीन समिति के क्रांतिकारीओं नेशस्त्र पेटीओं को चुराने की योजना बनाई और इस काम को हनुमान प्रसाद पोद्दार जी को सौंप दिया गया।हनुमान प्रसाद जी ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया।इस रोडा बी.आर.डी. कंपनी में एक शिरीष चंद्र मित्र नाम के बंगाली कलर्क था जो अध्यात्मिक प्रवृति के था और हनुमान प्रसाद पोद्दार जी को बहुत आदर करता था।पोद्दार जी ने इसका फायदा उठाकर उस कलर्क को अपने पक्ष में कर लिया।
.......एकदिन कंपनी ने शिरिष चंद्र मित्र को कहा संमुद्र चुंगी जिन बिल्टीओं का माल छुङाना है वह छुङा कर ले आएं।उसने यह सुचना तत्काल हनुमान प्रसाद पोद्दार जी को दे दिया।सुचना पाते ही पोद्दार जी कलकत्ता बंदरगाह पर पहुंच गये।यह बात है 26 अगस्त 1914 बुधवार के दिन का।बंदरगाह पर रोडा कम्पनी के 202 शस्त्र पेटीयां आया हुआ था।जिसमें 80 माउजर पिस्तौल और 46 हजार कारतुस था जिसे कंपनी के कलर्क शिरिष चंद्र मित्र ने समुंद्री चुंगी जमा कर छुङा लिया।
.....इधर बंदरगाह के बाहर हनुमान प्रसाद पोद्दार जी शिरिष चंद्र का इंतजार कर रहे थे।इसमें से 192 शस्त्र पेटीयां कंपनी में पहुंचा दी गई और बाकी के 10 शस्त्र पेटीयां हनुमान प्रसाद पोद्दार के घर परपहुंच गई।आनन-फानन में पोद्दार जी ने अपने संगठन के क्रांतिकारी साथीओं को बुलाया और सारे शस्त्र को सौंपदिया।उस पेटी में 300 बङे आकार की पिस्तौल थी।इनमें से 41 पिस्तौल बंगाल के क्रांतिकारीयों के बिच बांट दिया गया बाकी 39 पिस्तौल बंगाल के बाहर अन्य प्रांत में भेज दी गई काशी गई, इलाहाबाद गया,बिहार,पंजाब,राजस्थान भी गया।
...आगे जब अगस्त 1914 के बाद क्रांतिकारीयों ने इन माउजर पिस्तौलें से सरकारी अफसरों ,अंग्रेज आदी को मारने जैसे 45 काण्ड इन्हीं पिस्तौल से सम्पन्न किये गये थे।क्रांतिकारीयों ने बंगाल के मामूराबाद में जो डाका डाला था उसमें भी पुलिस को पता चला की रोडा कम्पनी से गायब माउजर पिस्तौल से किया गया है।थोङा आगे बढ गये थे खैर पिछे लौटते हैं।
.......हनुमान प्रसाद पोद्दार जी को पेटीयों के ठौर-ठिकाने पहुंचाने-छिपानेमें पंडित विष्णु पराङकर (बाद में कल्याण के संपादक ) और सफाई कर्मचारी सुखलाल ने भी मदद की थी।बाद में मामले के खुलासा होने के बाद हनुमान प्रसाद पोद्दार, कलर्क शिरीष चंद्र मित्र ,प्रभुदयाल ,हिम्मत सिंह ,कन्हैयालाल चितलानिया,फुलचंद चौधरी ,ज्वालाप्रसाद,ओंकारमल सर्राफ के विरूद्ध गिरफ्तारी के वारंट निकाले गये।16 जुलाई 1914 को छापा मारकर क्लाइव स्ट्रीव स्थित कोलकाता के बिरला क्राफ्ट एंड कंपनी से हनुमान प्रसाद पोद्दार जिको गिरफ्तार कर लिया गया।शेष लोग भी पकङ लिये गये।सभी को कलकता के डुरान्डा हाउस जेल में रखा गया।पुलिस ने 15 दिनों तक सभी को फांसी चढाने,काला पानी आदी की धमकीदेकर शेष साथीयों को नाम बताने और माल पहुंचाने की बातउगलवाना चाहा लेकिन किसी ने नही उगला।पोद्दार जी के गिरफ्तार होते ही माङवारी समाज में भय व्याप्त हो गया पकङे जाने के भय से इनके लिखे साहित्य को लोगों ने जला दिया था।
.....पर्याप्त सबुत नही मिलने के बाद हनुमान प्रसाद पोद्दार जी छुट गये।इसका दो कारण था पहला कि शस्त्र कंपनी के कलर्क शिरिष चंद्र मित्र बंगाल छोङ चुके थे इसलिए गिरफ्तार नही किये गये दुसरा कारण तमाम अत्याचार के बाद किसी ने भेद नही उगला था।
.... इस घटना से छः साल पुर्व 1908 में जो बंगाल के मानिकतला और अलीपुर बम कांड हुआ उसमें भी अप्रत्यक्ष रूप से गीताप्रेस गोरखपुर के संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार शामिल रहे।उन्होनें बम कांड के अभियुक्त क्रांतिकारीयों की पैरवी की।पोद्दार जी का भुपेन्द्रनाथ दत्त,श्याम सुंदर चक्रवर्ती ,ब्रह्मवान्धव उपाध्याय ,अनुशीलन समिति के प्रमुख पुलिन बिहारी दास,रास बिहारी बोस, विपिन चंद्र गांगुली,अमित चक्रवर्ती जैसे क्रांतिकारीयों से सदस्य होने के कारण निकट संबध था।अपनें धार्मिक कल्याण पत्रिका बेचकर क्रांतिकारीयों को पैरवी करते थे।बाद में कोलकता में गोविंद भवन कार्यालय की स्थापना हुई तो पुस्तक और कल्याण पत्रिका के बंडल के नीचे क्रांतिकारीयों के शस्त्र छुपाये जाते थे।.
....इतना ही नही खुदीराम बोस,कन्हाई लाल ,वारीन्द्र घोष, अरबिंद घोष,प्रफुल्ल चक्रवर्ती के मुकदमे में भी अनुशीलन समिति की ओर से हनुमान प्रसाद पोद्दार ने पैरवी की थी।उन दिनों क्रांतिकारीयों की पैरवी करना कोई साधारण बात नही था।
.....भारत विभाजन के मांग पर कांग्रेसी नेता जिन्ना के सामने चुप रहते थे तो गीताप्रेस के कल्याण पत्रिका पुरजोर आवाज में कहता था-- "जिन्ना चाहे देदे जान, नहीं मिलेगा पाकिस्तान " कहकर ललकारता था यह पंक्ति कल्याण के आवरण पृष्ठ पर छपता था।पाकिस्तान निर्माण के विरोध में कल्याण महीनों तक लिखता रहा।
......गीताप्रेस के कल्याण पत्रिका ऐसा निडर पत्रिका था कि उसने अपने एक अंक में प्रधानमंत्री नेहरू को हिंदू विरोधी तक बता दिया था।इसने महात्मा गांधी को भी एक बार खरी-खोटी सुनाते हुए कह डाला था--"महात्मा गांधी के प्रति मेरी चिरकाल से श्रद्धा है पर इधर वे जो कुछ कर रहे हैं और गीता का हवाला देकर हिंसा-अहिंसा की मनमानी ब्याख्या वें कर रहे हैं उससेहिंदूओं की निश्चित हानि हो रही है और गीता का भी दुरपयोग हो रहा है।"
......जब मालविय जी हिंदूओं पर अमानवीय अत्याचारों की दिलदहला देने वाली गाथाएं सुनकर द्रवित होकर 1946 में स्वर्ग सिधार गयें तब गीताप्रेस ने मालवीय जी की स्मृति में कल्याण का श्रद्धांजली अंक निकाला इसमें नोआखली,खुलना,तथा पंजाब सिंध में हो रहे अत्याचारों पर मालवीय जी की ह्रदय विदारक टिप्पणी प्रकाशित की गई थी जिसे उत्तरप्रदेश और बिहार के कांग्रेसी सरकार ने श्रद्धांजली अंक को आपतिजनक घोषित करते हुए जब्त कर लिया था।
...जब भारत विभाजन के समयदंगा शुरू हो गया था और पाकिस्तान से हिंदूओ पर अत्याचार की खबर आ रही थी तब भी गीताप्रेस ने कांग्रेसनेताओं पर खुब स्याही बर्बाद की थी।तब कल्याण ने अपने सितम्बर-अक्टुबर1947 के अंक में यह लिखना शुरू कर दिया था-"हिंदू क्या करें' इन अंको में हिंदूओं को आत्मरक्षा के उपाय बताया जाता था।
Sabhar
Sanjeet Singh
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