Friday, 8 December 2017

सत्य सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) के पतन के कारण और निवारण भाग (2):-------
************
हिंदुओं के सभी प्रमुख गुणों को, मुस्लिम, ईसाईयों ने अपनाया और सारी दुनियाँ में छा गए (मुस्लिम 56, ईसाई 150, देश, हिन्दू --एक भी नहीं) और हिन्दू उन गुणों का त्याग कर विलुप्त होने के कगार पर हैं।
(2) योग से मुक्ति वियोग से सांसारिक बंधन,
इसीलिए नियम था त्रिकाल संध्या वंदन।
**************************
सनातन धर्मावलंबी हिंदुओं की उपासना के लिए अनिवार्य नियम, त्रिकाल संध्या वंदन (सुबह, दोपहर, शाम) समाप्त, ईसाइयों की daily prayer, मुसलमानों की 5 वक्त की नमाज शुरू-----
योग से मुक्ति, वियोग से विपत्ति
**********************
जब भगवान राम की वानरी सेना, समुद्र पार कर लंका में उतरी थी तो शिविर में रात्रि में एक गोष्ठी में भगवान राम ने सभी से एक प्रश्न किया था ।
प्र०:- विपत्ति क्या है ?
इसका सर्वश्रेष्ठ उत्तर हनुमान जी ने दिया था।
उत्तर:-- कह हनुमंत विपत्ति प्रभु सोई,
जब तव सुमिरन भजन न होई।
अर्थात हे प्रभु , जिस क्षण व्यक्ति आपके सुमिरन ध्यान से विमुख हो जाये वहीं से विपत्ति का प्रारंभ हो जाता है।
बाल्यावस्था में ही उपनयन संस्कार कर नियमित गायत्री मंत्र जप, ध्यान से इसी लिए जोड़ दिया जाता था कि उस से मानसिक एकाग्रता (concentration) और अंतःकरण की निर्मलता से साधक का ब्रह्मतेज (ईश्वरीय चेतना प्रवाह के अवतरण से प्राण संवर्धन) बढ़ता था।
और सर्वाधिक गायत्री मंत्र जप,तप,स्वाध्याय से ब्राह्मण को भूसुर(पृथ्वी पर मनुष्य रूप में देवता) माना जाता था। उसके आशीर्वाद और श्राप दोनों ही फलित होते थे।
अतः सामान्य जीवन मे, गृहस्थ जीवन मे रहते हुए भी, सनातन धर्मावलंबी हिंदुओं के लिए त्रिकाल संध्या और दैनिक अग्निहोत्र का विधान ऋषियों ने बनाया था।
शारीरिक स्वास्थ्य से कई गुना ज्यादा महत्वपूर्ण है मानसिक, और आत्मिक स्वास्थ्य अतः इसका व्यायाम तीनों समय - सुबह,दोपहर, सायंकाल होना ही चाहिए।
आज मानसिक और भावनात्मक विकृति के कारण ही व्यक्ति, परिवार, समाज व राष्ट्र में हताशा, निराशा आत्महत्यायें , लड़ाई,झगड़ा, कलह, क्लेश, दंगे, फसाद हो रहे हैं। व्यक्ति,परिवार,समाज व राष्ट्रीय जीवन में हर ओर लोगों के दिलों में विद्वेष का जहर जैसे घुला हुआ है।
एक माला गायत्री मंत्र जप में औसतन 5-7 मिनट का समय लगता है। संध्या षट्कर्म(पवित्रीकरण, आचमन, शिखा वंदन, प्राणायाम, न्यास, पृथ्वी पूजन) में भी 5-7 मिनट। कुल मिलाकर दोपहर में और शाम को 15-15 मिनट समय, ईश्वर के जप-ध्यान के लिए आसानी से निकाला जा सकता है, यदि अपने सनातन धर्म और ईश्वर में अटूट श्रद्धा निष्ठा हो तो, इसकी अनिवार्य आवश्यकता, वैज्ञानिकता, महत्व और महत्व की जानकारी और भरोसा हो तो ?
परंतु दुर्भाग्य है कि 0.000001 % अर्थात एक लाख में एक भी हिन्दू शायद ही मिले जो त्रिकाल संध्या में तीनों समय गायत्री मंत्र जप-ध्यान करता हो।
तीनो समय नहीं तो सुबह- शाम दोनों समय, नहीं तो केवल एक समय भी, संध्या उपासना में, वेदमाता, देवमाता, विश्वमाता, पारस, अमृत, कल्पवृक्ष के विशेषणों से ऋषियों द्वारा, वेद-उपनिषदों द्वारा उद्धृत माँ आदिशक्ति गायत्री के महान शक्तिशाली, मनुष्य मात्र के लिए परम् कल्याणप्रद गायत्री मंत्र का जप, 0.0001%
अर्थात एक हजार में एक भी सनातनी हिन्दू मुश्किल से ही मिलेगा।
***************
हमने ईश्वर उपासना की शास्त्र सम्मत, वैज्ञानिक उपासना पद्धति छोड़ दी ,जप-ध्यान द्वारा ईश्वर से योग कराने वाला सतत अभ्यास छोड़ दिया और वियोग का मार्ग अपना कर विपत्तियों में घिरते चले गए। वहीं --
ईसाई , मुस्लिम की नित्य प्रेयर, नमाज नियम पूर्वक शुरू। एक वक्त नमाज पढ़ने वाले 99% मिलेंगे और पाँच वक्त नमाज पढ़ने वाला मुसलमान भी 1000 में एक तो जरूर मिल जाएगा।
पतन और बर्बादी आप की नहीं तो क्या उनकी होगी ?
इसीलिए हिंदुओं का एक भी देश संवैधानिक रूप से नहीं बचा। मुसलमानों के 56 देश, ईसाइयों के 150 से अधिक देश, संवैधानिक रूप से बन चुके हैं, और आगे भी बनाने के लिए उनका बच्चा युद्ध स्तर पर, योजना बद्ध प्रयास में लगे हुए हैं।
और आप ?? धर्म के नाम पर या तो झाल बजा रहे हैं या गाल बजा रहे हैं।
निष्कर्ष:--
******
जिस दिन से सनातनी हिन्दू, श्री सत्य सनातन धर्म के मूल आधार, प्रचण्ड शक्ति के स्रोत गायत्री मंत्र का नित्य कम से कम एक समय जप और नित्य/ साप्ताहिक अथवा माह में एक बार भीयज्ञ करने लगेगा, यज्ञायोजन में भाग लेने लगेगा उसी दिन से उस व्यक्ति, उसके परिवार का दुर्भाग्य दूर होकर, सौभाग्य का उदय होने लगेगा।
अरे हिंदुओं ! मूढ़ता और दुराग्रह छोड़ इस शास्त्र सम्मत, विज्ञान सम्मत, परम कल्याणकारी गायत्री मंत्र की उपासना जप - ध्यान एक दो माह भी करके तो देखो ।

No comments:

Post a Comment