पूरे कौटिलीय अर्थशास्त्रं में #कास्ट अर्थात जाति शब्द ही नहीं है, जाति व्यवस्था तो दूर की बात है।
न ही अश्पृश्य शब्द का वर्णन है।
उसको छोड़ो मेगस्थनीज की इंडिका में भी न अछूत का वर्णन है न अश्पृश्यता का।
उसकी बात तो छोड़ो, 1030 AD में लिखे गए अलबेरुनी के भारत के बारे में लिखी पुस्तक में भी न जाति का वर्णन है और न ही अश्पृश्यता का।
उसको भी छोड़ दो 350 वर्ष पूर्व लिखी vernier या tevernier की पुस्तक में जाति और अश्पृश्यता का वर्णन है।
तो बाबा जी कहां वेद तक पहुंच गए ?
इतने बड़े अर्थशास्त्री को कम से कौटिल्य को तो पढ़ना चाहिए था।
डॉ #आंबेडकर जी को संस्कृत नही आती थी।
कोई बात नहीं। पूरी दुनिया मे कौटिल्य के अर्थशास्त्रं का न जाने कितनी भाषाओ में अनुवाद हुवा होगा।नग्रेजी में भी हुवा होगा।
वही पढ़ लेते।
Dr. Tribhuwan Singh
न ही अश्पृश्य शब्द का वर्णन है।
उसको छोड़ो मेगस्थनीज की इंडिका में भी न अछूत का वर्णन है न अश्पृश्यता का।
उसकी बात तो छोड़ो, 1030 AD में लिखे गए अलबेरुनी के भारत के बारे में लिखी पुस्तक में भी न जाति का वर्णन है और न ही अश्पृश्यता का।
उसको भी छोड़ दो 350 वर्ष पूर्व लिखी vernier या tevernier की पुस्तक में जाति और अश्पृश्यता का वर्णन है।
तो बाबा जी कहां वेद तक पहुंच गए ?
इतने बड़े अर्थशास्त्री को कम से कौटिल्य को तो पढ़ना चाहिए था।
डॉ #आंबेडकर जी को संस्कृत नही आती थी।
कोई बात नहीं। पूरी दुनिया मे कौटिल्य के अर्थशास्त्रं का न जाने कितनी भाषाओ में अनुवाद हुवा होगा।नग्रेजी में भी हुवा होगा।
वही पढ़ लेते।
Dr. Tribhuwan Singh
No comments:
Post a Comment