भ्रष्टाचार हमारे चरित्र में घुस गया था क्या वह रातों रात निकल जाएगा?
***
मेरी "चोंरो को संदेश पहुंच गया है कि कोतवाल होशियार, कड़क और निर्मोही है" वाली पोस्ट पे विजय कृष्ण कौशिक जी ने टिप्पणी की कि भाजपा शासित राज्यों में तो ईमानदारी कि गंगा बह रही है ..!
मैं उनके प्रश्न से सहमत हूं. किसी भी भाजपा शासित प्रदेश में इमानदारी की गंगा नहीं बह रही है. यह तो छोड़िए भारत सरकार की नाक तले भी छोटे स्तर पे भ्रष्टाचार हो रहा है. कई मित्रो ने शिकायत की कि बैंक मैनेजर बिना घूस लिए लोन नहीं देते. रेलवे में भी भ्रष्टाचार की शिकायतें आई हैं. अगर भ्रष्टाचार की गंगा सभी जगह बह रही है तो उस गंगा को रोकने का प्रयत्न कैसे करना चाहिए? आज इन प्रश्नों पर विचार करते हैं.
पहले भी मैं यह प्रश्न पूछ चुका हूं. सन्नाटा सा मिला. कुछ मित्रों ने जवाब दिया कि दस टॉप भ्रष्ट लोगों को जेल में डाल दीजिए, या एक कड़क बंदा या बंदी बैठा दीजिए. कुछ अन्य कहते है कि लोकपाल बैठा दीजिए सब ठीक हो जाएगा.
सही में? क्या भ्रष्टाचार उस एक "कड़क आदमी और औरत" या लोकपाल की कमी के कारण हो रहा है?
क्या ऐसी खबरें नहीं आई है कि सर्वोच्च न्यायालय के माननीयो ने घूस लिया? क्या गारंटी कि वह "कड़क आदमी या औरत" और लोकपाल भी भ्रष्ट ना निकल जाए. अभी जहां ₹1000 की घूस का रेट है वहां लोकपाल का भी पैसा लग जाएगा और वह घूस बढ़कर ₹1500 हो जाएगी.
टॉप दस भ्रष्ट लोगों को हटाना तो पुराने जोक की तरह हो गया कि एक सर्वे में पाया गया कि ट्रेन का आखरी डब्बा डिरेलमेंट में पटरी से उतर जाता है. तो क्यों ना हर ट्रेन का आखरी डिब्बा निकाल दिया जाए.
हम लोग शायद कहीं ना कहीं अपने अंदर यह महसूस करते हैं कि भ्रष्टाचार हमारी नसों में घुस गया है. लेकिन हम उस तथ्य को स्वीकार करने से हिचकते हैं. कोई भी नवयुवक और नवयुवती, जो सरकारी नौकरी में आना चाहते हैं, उनसे मेरा एक प्रश्न है. दिल पर हाथ रख कर बतलाएं कि उनके परिवार वाले और वह स्वयं सरकारी नौकरी क्यों ज्वाइन करना चाहते हैं? क्यों पीएचडी करे हुए लोग एक सफाई कर्मचारी या चपरासी की नौकरी के लिए भी मरने मिटने को तैयार है? क्या सिर्फ कुछ हजार के वेतन के लिए है?
जिन देशों में भ्रष्टाचार के लिए कड़क सजा है, यहां तक कि मृत्युदंड भी, क्या वहां भ्रष्टाचार समाप्त हो गया है? क्या चीन, सऊदी अरेबिया, ईरान इत्यादि देशों में कोई भ्रष्टाचार नहीं है?
ऐसी क्या बात है कि पूर्व की सरकारों ने भ्रष्टाचार मिटाने के लिए कोई सार्थक कदम नहीं उठाए? क्योंकि भ्रष्टाचार के द्वारा जहां एक जूनियर कर्मचारी कुछ सौ रुपए कमाता है, वही उच्चाधिकारी और उनसे भी बढ़कर राजनैतिक और बड़े बड़े उद्योगपति अरबो कमा ले जाते हैं. एक तरह से संस्थागत भ्रष्टाचार में सभी का हित निहित हो गया था. भ्रष्टाचार मिटाने के लिए हम कोसेंगे, नारे देंगे, और जब उन नारों के द्वारा सरकारी नौकरी या सत्ता में आ जाएंगे तो स्वयं भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाएंगे.
आज के इंडियन एक्सप्रेस में शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी का इंटरव्यू छपा है जिसमे वह कहते हैं कि बहुत से लोग भगवान राम और सांस्कारिक पारिवारिक मूल्यों पर विश्वास करते हैं. लेकिन लोग सोचते हैं कि टैक्स न देना भी उन मूल्यों का अंग है.
प्रधानमंत्री मोदी जी हमारी मानसिकता को अच्छी तरह समझते हैं. तभी वह भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए संस्थागत उपाय कर रहे हैं. कैशलेस इकॉनमी, GST, आधार कार्ड से बैंकिंग व्यवस्था और सब्सिडी को जोड़ना इसी प्रक्रिया का अंग है.
यह अच्छी तरह पता है कि गुमनामी का फायदा उठा कर के ही सरकारी कर्मचारी, राशन दुकानदार, पटवारी, उद्योगपति, सब के सब अनुचित फायदा उठा ले जाते हैं. यह कैसे पता चलेगा कि नरेगा का पैसा रामलाल को ही मिला या सरकारी कर्मचारी हज़म कर गया? रजिस्टर में तो मजूरी रामलाल को ही मिली है. आधार से यह व्यवस्था समाप्त हो गई है. अब रामलाल को पैसे उसी के बैंक अकाउंट में भेजे जा रहे है जो आधार से जुड़ा हुआ है. अब कोई फर्जी "रामलाल" मजूरी नहीं ले सकता. फर्जी कंपनियां ऐसी ही तकनीकी के द्वारा पकड़ी जा रही है.
जिस दिन प्रॉपर्टी को आधार कार्ड और बैंक अकाउंट से जोड़ दिया जाएगा उसी समय इस क्षेत्र में अरबों, खरबों के काले धन का निवेश समाप्त हो जाएगा. प्रधानमंत्री मोदी जी इसकी घोषणा कर ही चुके हैं.
रियल स्टेट में होने वाले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए प्रधानमंत्री जी एक कानून ले कर के आए जो इस वर्ष पहली मई से लागू हो गया है. इस कानून के द्वारा प्रॉपर्टी खरीदने वालों के हित सुरक्षित रहेंगे और अचल संपत्ति के क्षेत्र में पारदर्शिता आएगी.
लंबे समय से, प्रॉपर्टी खरीदारों की शिकायत थी कि रियल एस्टेट की परचेज़ बिल्डर्स के पक्ष में थी और उपभोक्ताओं की कोई सुनवाई नहीं थी. नए कानून से बिल्डर्स और संपत्ति के खरीदार के बीच अधिक न्यायसंगत और उचित लेनदेन होगा. बिल्डरो ने इस कानून को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी जिनकी पेटिशन को कोर्ट ने इसी सप्ताह निरस्त कर दिया.
इसके अलावा याद कीजिए कि पेंशन में होने वाले भ्रष्टाचार को प्रधानमंत्री मोदी जी ने कैसे समाप्त किया. पहले पेंशन के लिए आप दौड़ते रहते थे. अब पेंशन के पेपर तैयार हो जाएंगे. बाद में देखा जाएगा की कोई कमी रह गई है तो उसे कैसे वसूलना है. इसी तरह चतुर्थ और तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए साक्षात्कार का ड्रामा बंद कर दिया गया है. मार्कशीट और सर्टिफिकेट के सत्यापन को बंद करना इसी प्रक्रिया का हिस्सा है.
यह सत्य है कि भाजपा सरकारें भी भ्रष्टाचार मुक्त नहीं है. लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि प्रधानमंत्री की हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे हैं. वह भ्रष्टाचार मिटाने के लिए नियम कानून को बदल रहे हैं. कई सौ वर्षों की गुलामी से जो भ्रष्टाचार हमारे चरित्र में घुस गया था क्या वह रातों रात निकल जाएगा? हम उस भ्रष्टाचार से निकलना चाहते हैं, लेकिन उसके लिए यह कहते हैं कि पहले फलाना भ्रष्टाचार खत्म करें तो मैं भी खत्म कर दूंगा. पहले आप, पहले आप के चक्कर में सभी भ्रष्टाचार के दलदल में फंसे है.
क्या पूर्व की सरकारों ने ऐसे संस्थागत प्रयास किए थे? क्या इन प्रयासों का परिणाम दिखाई देना नहीं शुरू हो गया है?
अगर आपके पास इससे बेहतर सुझाव है तो उसे जरूर लिखिए और प्रधानमंत्री जी को भी भेजिए.
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शिपिंग इंडस्ट्री - पानी के जहाजों - वालों से कम ही लोगों का पाला पड़ा होगा. इसमें बहुत भ्रष्टाचार था. डायरेक्टरेट जनरल ऑफ़ शिपिंग के एक पूर्व डायरेक्टर जनरल ने मुझे बतलाया कि कैसे जहाजों के लाइसेंस को हर वर्ष नवीकरण करने के नाम पर घूस ले ली जाती थी, खिडक़ी से खिडक़ी दौड़ाया जाता था, परेशान किया जाता था. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के आने के बाद उस व्यवस्था को बंद करके उस नवीकरण को ऑनलाइन लेना पड़ता है और एक बार में तीन साल के लिए लाइसेंस रिन्यू हो जाता है. किसी भी शिपिंग इंडस्ट्री के कर्ताधर्ता को डायरेक्टरेट जनरल ऑफ शिपिंग के ऑफिस में आने की सख्त मनाही है.
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मेरी "चोंरो को संदेश पहुंच गया है कि कोतवाल होशियार, कड़क और निर्मोही है" वाली पोस्ट पे विजय कृष्ण कौशिक जी ने टिप्पणी की कि भाजपा शासित राज्यों में तो ईमानदारी कि गंगा बह रही है ..!
मैं उनके प्रश्न से सहमत हूं. किसी भी भाजपा शासित प्रदेश में इमानदारी की गंगा नहीं बह रही है. यह तो छोड़िए भारत सरकार की नाक तले भी छोटे स्तर पे भ्रष्टाचार हो रहा है. कई मित्रो ने शिकायत की कि बैंक मैनेजर बिना घूस लिए लोन नहीं देते. रेलवे में भी भ्रष्टाचार की शिकायतें आई हैं. अगर भ्रष्टाचार की गंगा सभी जगह बह रही है तो उस गंगा को रोकने का प्रयत्न कैसे करना चाहिए? आज इन प्रश्नों पर विचार करते हैं.
पहले भी मैं यह प्रश्न पूछ चुका हूं. सन्नाटा सा मिला. कुछ मित्रों ने जवाब दिया कि दस टॉप भ्रष्ट लोगों को जेल में डाल दीजिए, या एक कड़क बंदा या बंदी बैठा दीजिए. कुछ अन्य कहते है कि लोकपाल बैठा दीजिए सब ठीक हो जाएगा.
सही में? क्या भ्रष्टाचार उस एक "कड़क आदमी और औरत" या लोकपाल की कमी के कारण हो रहा है?
क्या ऐसी खबरें नहीं आई है कि सर्वोच्च न्यायालय के माननीयो ने घूस लिया? क्या गारंटी कि वह "कड़क आदमी या औरत" और लोकपाल भी भ्रष्ट ना निकल जाए. अभी जहां ₹1000 की घूस का रेट है वहां लोकपाल का भी पैसा लग जाएगा और वह घूस बढ़कर ₹1500 हो जाएगी.
टॉप दस भ्रष्ट लोगों को हटाना तो पुराने जोक की तरह हो गया कि एक सर्वे में पाया गया कि ट्रेन का आखरी डब्बा डिरेलमेंट में पटरी से उतर जाता है. तो क्यों ना हर ट्रेन का आखरी डिब्बा निकाल दिया जाए.
हम लोग शायद कहीं ना कहीं अपने अंदर यह महसूस करते हैं कि भ्रष्टाचार हमारी नसों में घुस गया है. लेकिन हम उस तथ्य को स्वीकार करने से हिचकते हैं. कोई भी नवयुवक और नवयुवती, जो सरकारी नौकरी में आना चाहते हैं, उनसे मेरा एक प्रश्न है. दिल पर हाथ रख कर बतलाएं कि उनके परिवार वाले और वह स्वयं सरकारी नौकरी क्यों ज्वाइन करना चाहते हैं? क्यों पीएचडी करे हुए लोग एक सफाई कर्मचारी या चपरासी की नौकरी के लिए भी मरने मिटने को तैयार है? क्या सिर्फ कुछ हजार के वेतन के लिए है?
जिन देशों में भ्रष्टाचार के लिए कड़क सजा है, यहां तक कि मृत्युदंड भी, क्या वहां भ्रष्टाचार समाप्त हो गया है? क्या चीन, सऊदी अरेबिया, ईरान इत्यादि देशों में कोई भ्रष्टाचार नहीं है?
ऐसी क्या बात है कि पूर्व की सरकारों ने भ्रष्टाचार मिटाने के लिए कोई सार्थक कदम नहीं उठाए? क्योंकि भ्रष्टाचार के द्वारा जहां एक जूनियर कर्मचारी कुछ सौ रुपए कमाता है, वही उच्चाधिकारी और उनसे भी बढ़कर राजनैतिक और बड़े बड़े उद्योगपति अरबो कमा ले जाते हैं. एक तरह से संस्थागत भ्रष्टाचार में सभी का हित निहित हो गया था. भ्रष्टाचार मिटाने के लिए हम कोसेंगे, नारे देंगे, और जब उन नारों के द्वारा सरकारी नौकरी या सत्ता में आ जाएंगे तो स्वयं भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाएंगे.
आज के इंडियन एक्सप्रेस में शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी का इंटरव्यू छपा है जिसमे वह कहते हैं कि बहुत से लोग भगवान राम और सांस्कारिक पारिवारिक मूल्यों पर विश्वास करते हैं. लेकिन लोग सोचते हैं कि टैक्स न देना भी उन मूल्यों का अंग है.
प्रधानमंत्री मोदी जी हमारी मानसिकता को अच्छी तरह समझते हैं. तभी वह भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए संस्थागत उपाय कर रहे हैं. कैशलेस इकॉनमी, GST, आधार कार्ड से बैंकिंग व्यवस्था और सब्सिडी को जोड़ना इसी प्रक्रिया का अंग है.
यह अच्छी तरह पता है कि गुमनामी का फायदा उठा कर के ही सरकारी कर्मचारी, राशन दुकानदार, पटवारी, उद्योगपति, सब के सब अनुचित फायदा उठा ले जाते हैं. यह कैसे पता चलेगा कि नरेगा का पैसा रामलाल को ही मिला या सरकारी कर्मचारी हज़म कर गया? रजिस्टर में तो मजूरी रामलाल को ही मिली है. आधार से यह व्यवस्था समाप्त हो गई है. अब रामलाल को पैसे उसी के बैंक अकाउंट में भेजे जा रहे है जो आधार से जुड़ा हुआ है. अब कोई फर्जी "रामलाल" मजूरी नहीं ले सकता. फर्जी कंपनियां ऐसी ही तकनीकी के द्वारा पकड़ी जा रही है.
जिस दिन प्रॉपर्टी को आधार कार्ड और बैंक अकाउंट से जोड़ दिया जाएगा उसी समय इस क्षेत्र में अरबों, खरबों के काले धन का निवेश समाप्त हो जाएगा. प्रधानमंत्री मोदी जी इसकी घोषणा कर ही चुके हैं.
रियल स्टेट में होने वाले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए प्रधानमंत्री जी एक कानून ले कर के आए जो इस वर्ष पहली मई से लागू हो गया है. इस कानून के द्वारा प्रॉपर्टी खरीदने वालों के हित सुरक्षित रहेंगे और अचल संपत्ति के क्षेत्र में पारदर्शिता आएगी.
लंबे समय से, प्रॉपर्टी खरीदारों की शिकायत थी कि रियल एस्टेट की परचेज़ बिल्डर्स के पक्ष में थी और उपभोक्ताओं की कोई सुनवाई नहीं थी. नए कानून से बिल्डर्स और संपत्ति के खरीदार के बीच अधिक न्यायसंगत और उचित लेनदेन होगा. बिल्डरो ने इस कानून को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी जिनकी पेटिशन को कोर्ट ने इसी सप्ताह निरस्त कर दिया.
इसके अलावा याद कीजिए कि पेंशन में होने वाले भ्रष्टाचार को प्रधानमंत्री मोदी जी ने कैसे समाप्त किया. पहले पेंशन के लिए आप दौड़ते रहते थे. अब पेंशन के पेपर तैयार हो जाएंगे. बाद में देखा जाएगा की कोई कमी रह गई है तो उसे कैसे वसूलना है. इसी तरह चतुर्थ और तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए साक्षात्कार का ड्रामा बंद कर दिया गया है. मार्कशीट और सर्टिफिकेट के सत्यापन को बंद करना इसी प्रक्रिया का हिस्सा है.
यह सत्य है कि भाजपा सरकारें भी भ्रष्टाचार मुक्त नहीं है. लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि प्रधानमंत्री की हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे हैं. वह भ्रष्टाचार मिटाने के लिए नियम कानून को बदल रहे हैं. कई सौ वर्षों की गुलामी से जो भ्रष्टाचार हमारे चरित्र में घुस गया था क्या वह रातों रात निकल जाएगा? हम उस भ्रष्टाचार से निकलना चाहते हैं, लेकिन उसके लिए यह कहते हैं कि पहले फलाना भ्रष्टाचार खत्म करें तो मैं भी खत्म कर दूंगा. पहले आप, पहले आप के चक्कर में सभी भ्रष्टाचार के दलदल में फंसे है.
क्या पूर्व की सरकारों ने ऐसे संस्थागत प्रयास किए थे? क्या इन प्रयासों का परिणाम दिखाई देना नहीं शुरू हो गया है?
अगर आपके पास इससे बेहतर सुझाव है तो उसे जरूर लिखिए और प्रधानमंत्री जी को भी भेजिए.
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शिपिंग इंडस्ट्री - पानी के जहाजों - वालों से कम ही लोगों का पाला पड़ा होगा. इसमें बहुत भ्रष्टाचार था. डायरेक्टरेट जनरल ऑफ़ शिपिंग के एक पूर्व डायरेक्टर जनरल ने मुझे बतलाया कि कैसे जहाजों के लाइसेंस को हर वर्ष नवीकरण करने के नाम पर घूस ले ली जाती थी, खिडक़ी से खिडक़ी दौड़ाया जाता था, परेशान किया जाता था. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के आने के बाद उस व्यवस्था को बंद करके उस नवीकरण को ऑनलाइन लेना पड़ता है और एक बार में तीन साल के लिए लाइसेंस रिन्यू हो जाता है. किसी भी शिपिंग इंडस्ट्री के कर्ताधर्ता को डायरेक्टरेट जनरल ऑफ शिपिंग के ऑफिस में आने की सख्त मनाही है.
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