Anand Rajadhyaksha जी की कलम से निकला कटु सत्य और प्रशिक्षण....
प्रशासन हमेशा शांति रखने में विश्वास करता है । इसलिए उपद्रव की संभावना देखते ही दबा देता है । राजस्थान में आज वही कर रहा है. इस स्थिति में प्रतिक्रिया देनेवाला पक्ष हमेशा मार खाता है । इसीलिए हिन्दू मार खाता आया है । अब इस बात पर अभिनिवेश परे रखकर ठंडक से सोचिए। आज इसी बहाने यह विश्लेषण भी हो जाये ।
सांप्रदायिक दंगों के इतिहास से हिंदुओं ने कभी सीख ली है ऐसे लगता तो नहीं। जब भी देखें, गाफिल पाये गए हैं और इसका खामियाजा भुगता है । जैसे कि हमेशा होता है, शुरुआत किसी बहाने से, सामने से होती है । लगभग इगनोर की गयी बात इतनी जबर्दस्त स्पीड से इतना तूल पकड़ती है कि कुछ समझ में आए इसके पहले ही जबर्दस्त नुकसान हो चुका होता है, और कई बस्तियों से पलायन । पलायन करनेवालों में अधिकतर खौफ और यहाँ वहाँ छुटपुट क्रोध।
वोटबैंक के लालच में राजनेताओं की सरकार भी प्रतिक्रिया देने में देर कर देती है । अक्सर लोकल फोर्स से ही मामला समेटने को देखा जाता है । यहाँ सब से बड़ी समस्या यही है कि आप का जो लोकल फोर्स है उसका मनोबल शून्य है । वो ताकत से काम कर ही नहीं सकता क्योंकि उसको राजनेताओं पर फूटी कौड़ी का भी भरोसा नहीं होता । अपने अनुभव के आधारपर वो यही मानकर चलता है कि दंगा थमने के बाद ही उसके लिए असली एक्शन शुरू होगी । पत्थरबाजी करनेवाले या नंगी तलवारें लेकर मारकाट मचानेवालों को पुलिसवाले ने अगर गोली मार दी है तो आतंक पक्षियों के योद्धा कम किए हैं, उनकी वह इनवेस्टमेंट थी, वे अपने नुकसान का बदला इन पुलिसवालों की जिंदगी बर्बाद कर के लेंगे और वे भी हमारे नेताओं के हाथों । और ये बेशर्म नेता, दंगाइयों को देंगे मुआवजा और पुलिसवालों को दिलवाएँगे सजा । नेताओं का रेकॉर्ड है । इसलिए पुलिस बेमन से अपना काम करती है, सेफ साइड खेलती है । नहीं तो उससे कंट्रोल नहीं होगा ऐसी बात नहीं होती, एरिया का चप्पा चप्पा तो लोकल पुलिस ही जानती है । हाथ खोल दो, कंट्रोल कर देगी ।
हिन्दू सँवरकर प्रतिक्रिया दे इसके पहले ही सामने से विक्टिम नेरेटिव शुरू हो जाती है । जब तक हिन्दू संगठित हो कर मैदान में उतरे तब तक कांव कांव का प्रेशर इंटरनेशनल हो जाता है । सरकार को अब पुलिस को छूट देनी पड़ती है, रिजर्व बल उतारना पड़ता है और मामला बहुतही बेकाबू हो तो आर्मी को भी पाचारण करना पड़ता है । चूंकि आर्मी को गोली चलाने की छूट होती है, दंगे थम जाते हैं । और ऐसे परिस्थिति में रिजर्व पुलिस या आर्मी से सब से ज्यादा हिन्दू ही मारे जाते हैं ।
कभी अपने शहर में हुए दंगों का अभ्यास करिए, आप पाएंगे कि उनमें हिंदुओं ने जमीन खोई होगी । अब याददाश्त अच्छी होगी तो दंगों की पार्श्वभूमि याद कीजिये आप को कहीं न कहीं 'मुसलमान सताया जा रहा है बस इसलिए कि वो मुसलमान है ' का गाना दंगे के पहले से ही शुरू मिल सकता है । दंगा भी याद कीजिये, कैसे इतने जल्द इतना बड़ा दंगा हुआ ? क्या पूर्व तैयारी के सिवा यह मुमकिन हुआ होगा ? याने विक्टिम नेरेटिव शुरू करो, फिर दंगे शुरू करो, खौफ फैला दो और hit first, hit hard तत्व से नुकसान कर के कुछ जमीन कब्जा लो । अगर जमीन कबजाई हुई मिलेगी तो हमेशा मुस्लिम मुहल्ले से जुड़ी मिलेगी ।
दंगा जैसे जैसे रंग लाता है, इनका हाय हाय मुसलमान को मार डाला रे का शोर भी अपने ज़ोर में बढ़ने लगता है । आश्चर्य की बात होती है कि देश भर से इनके सुरक्षितता पर चिंता जताई जाने लगती है, और देखते ही देखते इंटरनेशनल दबाव आ जाता है । और आश्चर्य और भी है कि हिन्दू ये बिन्दु जोड़ता ही नहीं कि क्या यह एक षडयंत्र नहीं था ?
गुजरात के दंगे का उल्लेख अनिवार्य है । यहाँ इतना ही कह पाऊँगा कि मैं वहाँ था नहीं सो जो भी कह सकता हूँ वह मीडिया रिपोर्ट्स से ही है । और वहाँ मीडिया का हिन्दू विद्वेष खुलकर सामने आया क्योंकि वहाँ मुसलमान हमेशा की तरह सफल नहीं हुआ । मुसलमानों को भी मोदी के खिलाफ यही रंज है कि उनके मुख्यमंत्री होते समय मुसलमानों की हेकड़ी तोड़ी गयी। बाकी क्या कहें, रिपोर्टों में वस्तुनिष्ठता का अभाव ही है ।
आज अगर राजस्थान की बात करें तो वसुंधराजी के कदमों का समर्थन करना मजबूरी है क्योंकि वही सही प्रशासनिक कदम है । अब हिन्दू जो प्लान कर रहे हैं वह प्रतिक्रिया है और उससे हिंसाचार की गैरंटी है । रैगर कांड होते ही हिन्दू तो सहम गए, फिर धीरे धीरे उसके समर्थन में बोलना शुरू हुआ । इसमें भी सेक्युलर जंतुओं ने उसकी, नृशंस हत्या के लिए भर्त्सना की जिससे मामला और खराब हुआ । इतने में मुसलमानों ने प्रदर्शन कर दिया । पहला वार उनका रहा , अब आप पलटवार करना चाहते हैं लेकिन अब प्रशासन की मजबूरी है कि आप को किसी भी हालत में रोकें ।
मुस्लिम मोर्चा की बात करें तो प्रशासन की ज़िम्मेदारी बनती थी कि उन्हें रोके । लेकिन पता नहीं उन्होने क्या सोचा, शायद प्रेशर हल्का करने (venting pressure) दे रहे थे । ऐसे हो भी सकता है क्योंकि नारेबाजी के अलावा कुछ नहीं कर पाये तो यह भी पुलिस और प्रशासन की मुस्तैदी ही मानी जानी चाहिए । अब उस प्रदर्शन के जवाब में हिंदुओं का प्रदर्शन केवल हिंसा कराएगा और अनावश्यक खून खराबा होगा, मिलेगा कुछ नहीं, हिन्दू का खून बिना कारण बहेगा । बचा कर रखिए, जान कभी भी निरर्थक न गँवाएँ । जनरल पेटन के अपने सैनिकों को किए सम्बोधन को गूगल करें और हमेशा याद रखें। वे विजयी सेनानी थे, बात सही कही है ।
इसमें से एक सीख लें कि दंगे के लक्षण पहचानना सीख लें । प्रतिकार की यंत्रणा खड़ी करें । उसपर खर्चा होगा लेकिन जान और जमीन, घर खोने से यह कम होगा। खौफ भी नहीं रहेगा तो भी बड़ी जीत है क्योंकि उनके लिए खौफ ही सब से बड़ी चीज होती है । आप हौवे की हवा निकाल लेंगे तो बकासुर नहीं, रबड़ का पिलपिला बलून ही रह जाएगा।
दंगे की सब से बड़ी संभावना उनकी घनी आबादी जहां भी है वहाँ सब से अधिक होती है क्योंकि फैलाव वैसे ही होता है, जोड़ जोड़ कर । वहाँ बचाव की यंत्रणा खड़ी करें । परिचय के लोग सेना में अफसर रहे होंगे तो उनसे सलाह लें। लोगों को निधि संकलन को उद्युक्त करें । असली इंसुरंस यही होगा, क्योंकि इंसुरंस कंपनियाँ सेटलमेंट करने में वादे को बिना कोई सवाल निभाएंगे यह कैसे कह सकते हैं ? बेहतर होगा कि यंत्रणा हो ताकि सामने वालों की हिंसा करने की हिम्मत न हो ।
सेना के ऑपरेशन पराक्रम के बारे में जानते हैं ? बॉर्डर पर बहुत तेजी से सेना खड़ी कर दी थी, युद्ध के तैयारी से । इसलिए युद्ध हुआ ही नहीं । इसे कहते हैं deterrent और यही सब से महत्वका है । संयम बरतें लेकिन तैयार रहें । इस्लाम के साथ जीने की यही कीमत है कि शांति तब ही मिल सकती है जब आप उनके उपद्रव को शांत करने की शक्ति रखते हैं ।
और चॉइस भी क्या है ? रविश कुमार बनेंगे ? क्या फर्क पड़ता है भले ही कुछ भी होता है ?
Anand Rajadhyaksha
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