भारत के प्राचीन विश्विद्यालय..jinhe muslim shaskon ne nasht kr diya.!
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1.तक्षशिला – ईसा के जन्म से सात सौ वर्ष पूर्व विश्व का प्रथम विश्विद्यालय तक्षशिला में स्थापित किया गया था। यह हिन्दू स्नात्कों का अग्रगामी शैक्षिक प्रतिष्ठान था। सिकन्दर महान के समय से पूर्व ही यह चिकित्सा शास्त्र के क्षेत्र में ऐक ख्याति प्राप्त केन्द्र था। तक्षशिला में 10500 स्नात्कों के रहने का प्रबन्ध था तथा वहाँ 60 प्रकार के विषयों मे उच्च शिक्षा की व्यव्स्था थी। मुख्यता धर्म, नीति शास्त्र, दर्शन शास्त्र, चिकित्सा शास्त्र, विज्ञान, गणित, खगोल शास्त्र, युद्ध कला, राजनीति तथा संगीत शास्त्र में निपुणता प्राप्त करने हेतु बेबीलोन, यूनान, इराक, अरब, ईरान, सीरिया तथा चीन के छात्र आते थे।
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2. विक्रमशिला – मगद्ध में गंगा तट पर स्थित विक्रमशिला प्रतिष्ठान खगोल शास्त्र के लिये प्रसिद्ध था। वहां 8000 शिक्षार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे। यह विश्वविद्यालय चार सौ वर्ष तक फलता रहा। महाकवि कालीदास नें वहाँ के प्रशिक्षण के बारे में उल्लेख किया है तथा वहाँ काण्व ऋषि प्रकख्यात प्राचार्य कुलपति (वाईस चाँसलर) थे।
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3. नालन्दा – नालन्दा विशवविद्यालय की स्थापना ईसा के जन्म से चार सौ वर्ष पूर्व हुई थी तथा भारत में शिक्षण क्षैत्र का यह ऐक अदिूतीय कीर्तिमान था। अपने जीवनकाल में महात्मा बुद्ध कई बार नालन्दा गये थे। सातवी शताब्दी में चीनी यात्री ऐवम बुद्धिजीवी फाह्यान भी नालन्दा में ठहरे थे तथा उन्हों ने वहाँ के .योगियों के पवित्र, सरल, कुशल प्रशिक्षण पद्धति का विस्तरित वर्णन अपने उल्लेखों में दिया है। नालन्दा में लगभग 2000 शिक्षक तथा विश्व भर के समस्त बुद्ध देशों से 10000 शिक्षार्थी रहते थे और यह विश्व स्तर का प्रतिष्टान था। यहां के प्राचार्यों में नागार्जुन, आर्यदेव, वसुभान्दु, असंगा, स्थिरमति, धर्मपाल, शिल्प्हद्र, शान्तिदेव, तथा पद्मसम्भव जैसे प्रकाणड विदूान उल्लेखनीय हैं।
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4. ओदान्तपुरी – ओदान्तपुरी विशवविद्यालय भी नालन्दा के निकट था जिसे महाराज गोपाल ने स्थापित किया था जहाँ 12000 शिक्षार्थी शिक्षा पाते थे। मुस्लिम आक्राँताओं ने इस के चारों ओर बनी ऊँची चार दिवारी के कारण विशवविद्यालय को दुर्ग समझ कर ध्वस्त कर दिया और स्नातकों तथा आचार्यों को मार डाला।
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5. जगद्दाला – जगद्दाला विशवविद्यालय राजा देवपाल (810-850) ने स्थापित किया था जहाँ बुद्धमत की तान्त्रिक पद्धति की शिक्षा दीक्षा होती थी। 1027 में मुस्लिम आक्राँताओं ने इसे ध्वस्त कर दिया था।
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6. वल्लभी – वल्लभी विशवविद्यालय में बौध ह्यीनयान मत के अतिरिक्त राजनीति, कृषि, अर्थशास्त्र, और न्याय शास्त्र के पाठ्यक्रम की शिक्षा का प्रावधान था। इसे मैत्रिका वंश के राजाओं ने स्थापित किया था।
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7. सोमपुरा - सोमपुरा विश्वविद्यालय की स्थापना भी पाल वंश के राजाओं ने की थी। इसे सोमपुरा महाविहार के नाम से पुकारा जाता था। आठवीं शताब्दी से 12 वी शताब्दी के बीच 400 साल तक यह विश्वविद्यालय बहुत प्रसिद्ध था। यह भव्य विश्वविद्यालय लगभग 27 एकड़ में फैला था।
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8. पुष्पगिरी - पुष्पगिरी विश्वविद्यालय वर्तमान भारत के उड़ीसा में स्थित था। इसकी स्थापना तीसरी शताब्दी में कलिंग राजाओं ने की थी। अगले 800 साल तक यानी 11 वी शताब्दी तक इस विश्वविद्यालय का विकास अपने चरम पर था। इस विश्वविद्यालय का परिसर तीन पहाड़ों ललित गिरी, रत्न गिरी और उदयगिरी पर फैला हुआ था।
नालंदा, तशक्षिला और विक्रमशीला के बाद ये विश्वविद्यालय शिक्षा का सबसे प्रमुख केंद्र था। चायनीज यात्री एक्ज्युन जेंग ने इसे बौद्ध शिक्षा का सबसे प्राचीन केंद्र माना।
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आज हम आक्सफोर्ड, कैमब्रिज और हारवर्ड आदि विश्वविद्यालयों के नाम से प्रभावित हो कर भूल जाते हैं कि भारत में उन से भी भव्य विश्वविद्यालय थे। गुप्त वँश के सम्राटों ने भी बहुत से शिक्षा प्रशिष्ठानों को संरक्षण दिया तथा सम्राट हर्ष वर्द्धन ने भी अपने शासन काल में मोनास्टरियों को संरक्षण प्रदान किया था।
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भारत के विश्वविद्यालयों का मानव ज्ञान के क्षेत्र में विशेष योगदान रहा है। वहाँ के स्नात्कों, आचार्यों तथा बुद्धिजीवियों ने विद्या, कला और विज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में अमूल्य तथा मौलिक योग दान दिया है जिस का प्रयोग आधुनिक वैज्ञानिक मानव विकास के लिये आधुनिक तकनीक और उपक्रमों से कर रहे है। कला और विज्ञान के हर क्षेत्र से सम्बन्धित मौलिक ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखे गये थे जिन में से अधिकाँश आज भी उप्लब्द्ध तथा प्रासंगिक हैं।
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दुर्भाग्य से शिक्षा के कई महान संस्थान धर्मान्धता के कारण मुसलिम लुटेरों ने ध्वस्त कर दिये। उन्हों ने सभी मोनास्टरीयों को और शिक्षण परिष्ठानों को नष्ठ कर डाला था। नालन्दा विश्वविद्यालय को 1193 में बख्तियार खिलजी ने जला दिया था और वहाँ के सभी बुद्धिजीवियों को कत्ल कर दिया था। उसी प्रकार अन्य विश्वविद्यालय विनाशग्रस्त हो गये। मुग़ल शासकों ने अपने शासन काल में शिक्षा क्षेत्र की पूर्णतया उपेक्षा की। उन के काल में सिवाय आमोद प्रमोद के विज्ञान के किसी भी क्षेत्र में कोई प्रगति नहीं हुई थी। धर्मान्धता के कारण वह ज्ञान विज्ञान से नफरत ही करते रहे तथा इसे ‘कुफर’ की संज्ञा देते रहे। उन्हो ने अपने लिये काम चलाऊ अरबी फारसी पढने के लिये मकतबों का निर्माण करने के अतिरिक्त किसी विद्यालय या विश्वविद्यालय की स्थापना नहीं की थी। निजि विलासता के लिये वह केवल विशाल हरम और ताजमहल जैसे मकबरे बनवा कर ही संतुष्टि प्राप्त करते रहे। आज नालन्दा विशवविद्यालय को पुनर्स्थापित करने का विचार अवश्य ही सराहनीय है।
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1.तक्षशिला – ईसा के जन्म से सात सौ वर्ष पूर्व विश्व का प्रथम विश्विद्यालय तक्षशिला में स्थापित किया गया था। यह हिन्दू स्नात्कों का अग्रगामी शैक्षिक प्रतिष्ठान था। सिकन्दर महान के समय से पूर्व ही यह चिकित्सा शास्त्र के क्षेत्र में ऐक ख्याति प्राप्त केन्द्र था। तक्षशिला में 10500 स्नात्कों के रहने का प्रबन्ध था तथा वहाँ 60 प्रकार के विषयों मे उच्च शिक्षा की व्यव्स्था थी। मुख्यता धर्म, नीति शास्त्र, दर्शन शास्त्र, चिकित्सा शास्त्र, विज्ञान, गणित, खगोल शास्त्र, युद्ध कला, राजनीति तथा संगीत शास्त्र में निपुणता प्राप्त करने हेतु बेबीलोन, यूनान, इराक, अरब, ईरान, सीरिया तथा चीन के छात्र आते थे।
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2. विक्रमशिला – मगद्ध में गंगा तट पर स्थित विक्रमशिला प्रतिष्ठान खगोल शास्त्र के लिये प्रसिद्ध था। वहां 8000 शिक्षार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे। यह विश्वविद्यालय चार सौ वर्ष तक फलता रहा। महाकवि कालीदास नें वहाँ के प्रशिक्षण के बारे में उल्लेख किया है तथा वहाँ काण्व ऋषि प्रकख्यात प्राचार्य कुलपति (वाईस चाँसलर) थे।
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3. नालन्दा – नालन्दा विशवविद्यालय की स्थापना ईसा के जन्म से चार सौ वर्ष पूर्व हुई थी तथा भारत में शिक्षण क्षैत्र का यह ऐक अदिूतीय कीर्तिमान था। अपने जीवनकाल में महात्मा बुद्ध कई बार नालन्दा गये थे। सातवी शताब्दी में चीनी यात्री ऐवम बुद्धिजीवी फाह्यान भी नालन्दा में ठहरे थे तथा उन्हों ने वहाँ के .योगियों के पवित्र, सरल, कुशल प्रशिक्षण पद्धति का विस्तरित वर्णन अपने उल्लेखों में दिया है। नालन्दा में लगभग 2000 शिक्षक तथा विश्व भर के समस्त बुद्ध देशों से 10000 शिक्षार्थी रहते थे और यह विश्व स्तर का प्रतिष्टान था। यहां के प्राचार्यों में नागार्जुन, आर्यदेव, वसुभान्दु, असंगा, स्थिरमति, धर्मपाल, शिल्प्हद्र, शान्तिदेव, तथा पद्मसम्भव जैसे प्रकाणड विदूान उल्लेखनीय हैं।
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4. ओदान्तपुरी – ओदान्तपुरी विशवविद्यालय भी नालन्दा के निकट था जिसे महाराज गोपाल ने स्थापित किया था जहाँ 12000 शिक्षार्थी शिक्षा पाते थे। मुस्लिम आक्राँताओं ने इस के चारों ओर बनी ऊँची चार दिवारी के कारण विशवविद्यालय को दुर्ग समझ कर ध्वस्त कर दिया और स्नातकों तथा आचार्यों को मार डाला।
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5. जगद्दाला – जगद्दाला विशवविद्यालय राजा देवपाल (810-850) ने स्थापित किया था जहाँ बुद्धमत की तान्त्रिक पद्धति की शिक्षा दीक्षा होती थी। 1027 में मुस्लिम आक्राँताओं ने इसे ध्वस्त कर दिया था।
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6. वल्लभी – वल्लभी विशवविद्यालय में बौध ह्यीनयान मत के अतिरिक्त राजनीति, कृषि, अर्थशास्त्र, और न्याय शास्त्र के पाठ्यक्रम की शिक्षा का प्रावधान था। इसे मैत्रिका वंश के राजाओं ने स्थापित किया था।
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7. सोमपुरा - सोमपुरा विश्वविद्यालय की स्थापना भी पाल वंश के राजाओं ने की थी। इसे सोमपुरा महाविहार के नाम से पुकारा जाता था। आठवीं शताब्दी से 12 वी शताब्दी के बीच 400 साल तक यह विश्वविद्यालय बहुत प्रसिद्ध था। यह भव्य विश्वविद्यालय लगभग 27 एकड़ में फैला था।
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8. पुष्पगिरी - पुष्पगिरी विश्वविद्यालय वर्तमान भारत के उड़ीसा में स्थित था। इसकी स्थापना तीसरी शताब्दी में कलिंग राजाओं ने की थी। अगले 800 साल तक यानी 11 वी शताब्दी तक इस विश्वविद्यालय का विकास अपने चरम पर था। इस विश्वविद्यालय का परिसर तीन पहाड़ों ललित गिरी, रत्न गिरी और उदयगिरी पर फैला हुआ था।
नालंदा, तशक्षिला और विक्रमशीला के बाद ये विश्वविद्यालय शिक्षा का सबसे प्रमुख केंद्र था। चायनीज यात्री एक्ज्युन जेंग ने इसे बौद्ध शिक्षा का सबसे प्राचीन केंद्र माना।
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आज हम आक्सफोर्ड, कैमब्रिज और हारवर्ड आदि विश्वविद्यालयों के नाम से प्रभावित हो कर भूल जाते हैं कि भारत में उन से भी भव्य विश्वविद्यालय थे। गुप्त वँश के सम्राटों ने भी बहुत से शिक्षा प्रशिष्ठानों को संरक्षण दिया तथा सम्राट हर्ष वर्द्धन ने भी अपने शासन काल में मोनास्टरियों को संरक्षण प्रदान किया था।
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भारत के विश्वविद्यालयों का मानव ज्ञान के क्षेत्र में विशेष योगदान रहा है। वहाँ के स्नात्कों, आचार्यों तथा बुद्धिजीवियों ने विद्या, कला और विज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में अमूल्य तथा मौलिक योग दान दिया है जिस का प्रयोग आधुनिक वैज्ञानिक मानव विकास के लिये आधुनिक तकनीक और उपक्रमों से कर रहे है। कला और विज्ञान के हर क्षेत्र से सम्बन्धित मौलिक ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखे गये थे जिन में से अधिकाँश आज भी उप्लब्द्ध तथा प्रासंगिक हैं।
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दुर्भाग्य से शिक्षा के कई महान संस्थान धर्मान्धता के कारण मुसलिम लुटेरों ने ध्वस्त कर दिये। उन्हों ने सभी मोनास्टरीयों को और शिक्षण परिष्ठानों को नष्ठ कर डाला था। नालन्दा विश्वविद्यालय को 1193 में बख्तियार खिलजी ने जला दिया था और वहाँ के सभी बुद्धिजीवियों को कत्ल कर दिया था। उसी प्रकार अन्य विश्वविद्यालय विनाशग्रस्त हो गये। मुग़ल शासकों ने अपने शासन काल में शिक्षा क्षेत्र की पूर्णतया उपेक्षा की। उन के काल में सिवाय आमोद प्रमोद के विज्ञान के किसी भी क्षेत्र में कोई प्रगति नहीं हुई थी। धर्मान्धता के कारण वह ज्ञान विज्ञान से नफरत ही करते रहे तथा इसे ‘कुफर’ की संज्ञा देते रहे। उन्हो ने अपने लिये काम चलाऊ अरबी फारसी पढने के लिये मकतबों का निर्माण करने के अतिरिक्त किसी विद्यालय या विश्वविद्यालय की स्थापना नहीं की थी। निजि विलासता के लिये वह केवल विशाल हरम और ताजमहल जैसे मकबरे बनवा कर ही संतुष्टि प्राप्त करते रहे। आज नालन्दा विशवविद्यालय को पुनर्स्थापित करने का विचार अवश्य ही सराहनीय है।
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