Thursday 10 May 2018

 मुगलों ने फैलाए गोश्त संस्कृति
जरा सोचो एक शकाहारी महाराणा जो 90 कोलो का भला जब फैंकते थे तो वो भाला हाथी का मस्तक पार करके...ऊपर बैठे महावत का सीना चीर के... सवार की छाती में छेद कर देता था। जब तलवार चलाते थे तो घोड़े समेत सवार को चीर देते थे मुगलों से गोश्त को अपनाकर केवल क्षत्रिय खून ही पतला किया है। महाराण से ज्यादा बाहुबली व सिंह हृदय कोई मांसाहारी याद आए तो बता देना...

मानसिंह अकबर का पैगाम लेकर राणा के पास आए थे। रात्रि भोज पर बातचीत करना तय था। लेकिन महाराणा प्रताप मानसिंह के साथ बैठ कर भोजन करना नहीं चाहते थे। पहला कारण तो यह था कि मानसिंह की बुआ अकबर को ब्याही थी, तो खानदान में टूक तो वैसे ही लग गया था। दूसरा कारण यह था कि मानसिंह मुगल दरबार मे गोश्त खाने के शौकीन हो चुके थे। महाराणा शुद्ध जनेऊधारी शाकाहारी क्षत्रिय थे। वे एक माँसाहारी राजपूत को नीचा राजपूत मानते थे। इसलिए उन्हीने बहाना बना दिया और नौकरों से कहलवा दिया कि उनके सिर में दर्द है इसलिए वो रात्रि भोज में शामिल नहीं हो सकते।
मानसिंह अबतक अपने अपमान को समझ चुका था। आखिरकार वो हिंदुस्तान के बादशाह के दरबार के नवरत्नों में से एक था। अन्य दीवान व राजपूत राजा मानसिंह के सानिध्य के लिए बिछे जाते थे। हिन्दभक्त महाराणा के दरबार के अलावा हर जगह मानसिंह का सम्मान था। मानसिंह ने भी कह दिया कि "मैं जल्द ही राणा के सिर दर्द की दवा दिल्ली से भेजता हूँ।"
सब जानते हैं वी दवा क्या थी...हल्दी घाटी का युद्ध। राणा कुछ स्थानों पर हारे, पीछे हटे, फिर आगे बढ़े, फिर से सब जीता, फिर कुछ हारे, जंगल मे गए, घास की रोटियां खाई, अपनी बच्ची के हाथों से वो घास की रोटी भी छिनती देखी, रोए, हार मानने का मन हुआ, भामाशाह ने हिम्मत बढ़ाई, 25 करोड़ रु० उस समय दिए, सेना फिर इकट्ठी हुई, फिर युद्ध हुआ, फिर मेवाड़ जीता गया। यह संघर्ष 25 वर्षों तक चला। एक राजा 25 वर्षों तक घर से बेघर घुमा, संघर्ष किया, जिसकी केवल एक 'हाँ' पर अकबर ने इसे आधा हिंदुस्तान देने के वादा किया था। उसने केवल संघर्ष किया।
कई बार क्षात्रशौर्य गुण एक पीढ़ी कूद जाती है। प्रतापी राणा सांगा के घर भीरु डरपोक उदयसिंह हुए, लेकिन फिर अगली पीढ़ी में वीर शिरोमणि राणा प्रताप हुए। अब मरणासन राणा को अपने भाई शक्तिसिंह में भी वो शौर्य नहीं दिखा कि वो इस संघर्ष को अविचल जारी रख पाए। तब ढांढस बढ़ाते हुए राजपुत, भील, गुर्जर सैनिकों ने सौगंध ली कि नेतृव हो ना हो वे और उनकी आने वाली पीढियां इस संघर्ष को जारी रखेंगी। यह आश्वासन पाकर ही महाराणा के प्राण वज्रदेह से निकल पाए।

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