कुछ भी न बताने की लगभग सौगंध उठा ली गई है। यह एक षड्यंत्र है जो इस देश में 1947 की 15 अगस्त को ही प्रारंभ हो गया था। जब इस देश का पहला शिक्षा मंत्री पंडित नेहरु जी ने मौलाना अबुल कलाम आजाद को बनाया था। जी हां, यह वही मौलाना अबुल कलाम आजाद थे जिन्हें रामपुर से पराजित हो जाने के उपरांत भी हिंदू महासभा के विशन सेठ जी के सामने नेहरू जी द्वारा विजयी घोषित कराया गया था। जबकि सच यह था विशन सेठ जी को उक्त सीट से विजयी भी घोषित किया जा चुका था। नेहरू जी को चिंता थी कि यदि मौलाना आजाद संसद में नहीं पहुंच सके तो देश को मुगलिस्तान बनाने का उनका सपना साकार नहीं हो पाएगा, इसलिए मौलाना आजाद को संसद में लाया गया। इन मौलाना आजाद ने देश के इतिहास के साथ गंभीर छेड़छाड़ करनी आरंभ की। जिसमें उन्हें सहयोग मिला कम्युनिस्ट इतिहासकारों का। जिन्होंने भारत, भारतीयता और भारत की संस्कृति को मिटाने का हर संभव प्रयास किया है। यह लोग आर्य, आर्यभाषा और आर्यावर्त के या भारत, भारतीय और भारती के विरोधी हैं। इसलिए इन्हें इन सब को बोलने में अपराध सा जान पड़ता है। जबकि हिंदी, हिंदू और हिंदुस्तान कहने में इन्हें सांप्रदायिकता दिखाई देती है।
यहां पर यह भी उल्लेखनीय है कि अकबर के साम्राज्य में कितने ही विद्रोह होते रहे और वह आजीवन हिंदी, हिंदू और हिंदुस्तान का विरोध ही रहा और इन्हें मिटाने का प्रयास करता रहा। जबकि हमारे मौर्य कालीन शासक या उससे पूर्व के आर्य राजा सदा इस देश के लिए और इस देश की संस्कृति के लिए काम करते रहे। यह खेद का विषय है कि हमारे शोधार्थी पीएचडी की डिग्री लेने के लिए अपने इन महान शासकों पर शोध करते नहीं पाए जाते। उन्हे शोध का विषय अकबर की राजपूत नीति और दूसरे मुगलिया तुर्क शासकों या ब्रिटिश शासकों की भारत विरोधी नीतियों को भारत के हितों के अनुकूल सिद्ध करने के लिए दे दिए जाते हैं। जिससे विदेशी सत्ताधीश और उनका शासन भारत के हितों के अनुकूल जान पड़े। यही कारण है कि हमारे देश का युवा अपने अतीत से कटकर इन्हीं इतिहासकारों की भूल भुलाइयों में भटकता जा रहा है, जो कि चिंता का विषय है। हमें अपने अतीत के लिए और भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए जागरूक होना होगा और अपने आप को मिटाने के चल रहे षड्यंत्रों के प्रति आंख खोलकर चलने के लिए कृतसंकल्प होना होगा। यदि अभी नहीं जगे तो कभी नहीं जाग पाएंगे। षड्यंत्रों को समझो और भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए वैचारिक क्रांति के हमारे संकल्प के साथ जुड़ने का संकल्प लीजिए यह समय की आवश्यकता है। यदि समय हाथ से निकल गया तो फिर हाथ नहीं आएगा।
आपका
राकेश आर्य
संपादक उगता भारत
यहां पर यह भी उल्लेखनीय है कि अकबर के साम्राज्य में कितने ही विद्रोह होते रहे और वह आजीवन हिंदी, हिंदू और हिंदुस्तान का विरोध ही रहा और इन्हें मिटाने का प्रयास करता रहा। जबकि हमारे मौर्य कालीन शासक या उससे पूर्व के आर्य राजा सदा इस देश के लिए और इस देश की संस्कृति के लिए काम करते रहे। यह खेद का विषय है कि हमारे शोधार्थी पीएचडी की डिग्री लेने के लिए अपने इन महान शासकों पर शोध करते नहीं पाए जाते। उन्हे शोध का विषय अकबर की राजपूत नीति और दूसरे मुगलिया तुर्क शासकों या ब्रिटिश शासकों की भारत विरोधी नीतियों को भारत के हितों के अनुकूल सिद्ध करने के लिए दे दिए जाते हैं। जिससे विदेशी सत्ताधीश और उनका शासन भारत के हितों के अनुकूल जान पड़े। यही कारण है कि हमारे देश का युवा अपने अतीत से कटकर इन्हीं इतिहासकारों की भूल भुलाइयों में भटकता जा रहा है, जो कि चिंता का विषय है। हमें अपने अतीत के लिए और भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए जागरूक होना होगा और अपने आप को मिटाने के चल रहे षड्यंत्रों के प्रति आंख खोलकर चलने के लिए कृतसंकल्प होना होगा। यदि अभी नहीं जगे तो कभी नहीं जाग पाएंगे। षड्यंत्रों को समझो और भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए वैचारिक क्रांति के हमारे संकल्प के साथ जुड़ने का संकल्प लीजिए यह समय की आवश्यकता है। यदि समय हाथ से निकल गया तो फिर हाथ नहीं आएगा।
आपका
राकेश आर्य
संपादक उगता भारत
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