Wednesday, 30 May 2018

महाभारत मछुआरे ने लिखा और रामायण भंगी ने।
गीता को अहीर ने सुनाया और पुराण को खटिक ने।
मनुस्मृति को क्षत्रिय ने लिखा और आदि शंकराचार्य को ज्ञान दिया डोम ने।
मौर्या ने साम्राज्य फैलाया, गुप्त ने स्वर्ण काल लाया...
तो इस देश का सारा इतिहास, विरासत, सभ्यता, संस्कृति, बौद्धिक संपदा बनाने में जब दलितों का महान योगदान है तो आखिर वो कौन है जो इन बौद्धिक संपदा पर से दलितों का अधिकार छीनना चाहता है??
मान लिया दलितों को कुछ तथाकथित ब्राहमणों ने हजार साल बेवकूफ बना दिया तो कम से कम आज तो तुम्हें अधिकार मिला है।
अपनी बौद्धिक संपदा, ज्ञान, दर्शन, इतिहास, विरासत पर कम से कम अपना अधिकार तो जताओ।
वो कौन है जो इन सभी को ब्राह्मण का बौद्धिक संपदा घोषित कर रहा है?
वह कौन है जो दलितों को अपने इतिहास, पूर्वज, बौद्धिक संपदा, मां बाप सब पर शर्म और हीन भाव महसूस करा रहे हैं??
ध्यान रखिए केवल अपराधी और वेश्या पुत्र अपने मां बाप पूर्वज इतिहास उनके लङाई पर शर्म करते हैं और कोई नहीं..
तो वो कौन है जो इन दलितों के स्तर को इतना नीचा गिरा रहे हैं??
क्यों नहीं कहते की यह हिन्दु धर्म किसी और के बाप का नहीं है हमारे बाप का है.. और हम अपने बाप की सम्पत्ति छोङकर नहीं भाग सकते.. हम कायर नहीं..
यह इतिहास संस्कृति सभ्यता हमारा है किसी और के अधिकार जमा लेने से, उसमें हेर फेर कर देने भर से हम भागने वाले नहीं... किसी ने मूर्ख बना दिया तो हम मुर्ख बनने वाले नहीं...
क्या दलित चिंतक खुद दलितों के दुश्मन बन गये हैं?
या फिर जातिवादी ब्राह्मणों और दलित चिंतकों में साठ गाठ है??
आखिर क्यों हर कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री सवर्ण ही होता है??
आखिर क्यों आज तक पालित ब्युरों का एक भी सदस्य दलित नहीं बन पाया??
आखिर क्यों दलितों के नाम पर गला फाङने वाले कभी रवीश कुमार पांडे होते हैं या फिर अभय दुबे..
या फिर कन्हैया कुमार राय होते हैं या फिर अरुंधति राय...
सोचिये... लेकिन इसलिये नहीं की मैं ही सत्य हूं बल्कि इसलिये की क्या सत्य क्या है ?
Bhupendra Singh

No comments:

Post a Comment