आज मोदी के सत्ता संभालने के चार साल बाद जब पढ़े लिखे लोग पंचर बनाने वालों जैसी बातें करते है , तो वाकई देश की शिक्षा व्यवस्था पर दुःख होता है ।
पेट्रोल की बढ़ती कीमतों की तुलना वो मनमोहन सिंह के कार्यकाल से करते है ।
जब सरकार सब्सिडी देकर तेल के दाम नियंत्रित करती थी ।
उन्हें इससे फ़र्क़ नही पड़ता कि चीन ने देश की सीमा तक एक्सप्रेसवे बना डाले है ।
जब सरकार सब्सिडी देकर तेल के दाम नियंत्रित करती थी ।
उन्हें इससे फ़र्क़ नही पड़ता कि चीन ने देश की सीमा तक एक्सप्रेसवे बना डाले है ।
उन्हें तो सोशल मीडिया से एक उड़ती हुई तस्वीर मिली , और वो लग गए खुद को अर्थशास्त्री साबित करने में ।
देश की सीमाओं पर ये सरकार क्या काम करवा रही है , इससे उन्हें कोई राब्ता नही ।
आज अरुणाचल तक सड़को का जाल बिछा कर सरकार ने जवानों की कितनी बड़ी समस्या का हल कर दिया , ये स्वप्न में कल्पना नही की जा सकती ।
पहले इन्ही पहाड़ियों पर जवान अपने कंधों पर अपनी आर्टिलरी ढो कर चढ़ते थे ।
सेना को हाई एरियाज में #fortunar और #endeavor जैसी गाड़िया उपलब्ध करवाई जा रही है ।
मगर कुछ लोगो को तो बस 15 लाख चाहिए ।
आज अरुणाचल तक सड़को का जाल बिछा कर सरकार ने जवानों की कितनी बड़ी समस्या का हल कर दिया , ये स्वप्न में कल्पना नही की जा सकती ।
पहले इन्ही पहाड़ियों पर जवान अपने कंधों पर अपनी आर्टिलरी ढो कर चढ़ते थे ।
सेना को हाई एरियाज में #fortunar और #endeavor जैसी गाड़िया उपलब्ध करवाई जा रही है ।
मगर कुछ लोगो को तो बस 15 लाख चाहिए ।
कांग्रेस के इस देश पर शाशन करने में देश की जनता की मूढ़ता का बड़ा योगदान रहा है ।
देश की आज़ादी के 14 साल बाद 1960 में चीन अक्साई चिन के बीचोबीच से सड़क बना लेता है , और इसकी जानकारी नेहरू को चीन के प्रकाशित मानचित्र से होती है ।
और विडंबना देखिए वो फिर भी जनता को मूर्ख समझते हुए संसद में बेशर्मी से बयान देते है कि जिस जमीन पर चीन ने कब्जा किया है ,वहां तो घास का एक तिनका भी नही उगता ।
आज मोदी को शाषन के टिप्स देने वाले मनमोहन सिंह , को #पाकिस्तानी_प्रधानमंत्री#नवाज शरीफ ने सार्वजनिक रूप से देहाती औरत तक कह दिया था ।
मोदी को विरासत में वो भारत मिला था ,जिसको उसके टुटपुँजिये पड़ोसी भी अपंग समझते थे ।
और विडंबना देखिए वो फिर भी जनता को मूर्ख समझते हुए संसद में बेशर्मी से बयान देते है कि जिस जमीन पर चीन ने कब्जा किया है ,वहां तो घास का एक तिनका भी नही उगता ।
आज मोदी को शाषन के टिप्स देने वाले मनमोहन सिंह , को #पाकिस्तानी_प्रधानमंत्री#नवाज शरीफ ने सार्वजनिक रूप से देहाती औरत तक कह दिया था ।
मोदी को विरासत में वो भारत मिला था ,जिसको उसके टुटपुँजिये पड़ोसी भी अपंग समझते थे ।
#बांग्लादेश भारत के #bsf जवानों को मारकर उनकी लाश बांस में लटका कर भारत को सुपुर्द करता था ।
मगर सरकार की तरफ से bsf को संयम बरतने के निर्देश दिए जाते थे ।
मगर सरकार की तरफ से bsf को संयम बरतने के निर्देश दिए जाते थे ।
आये दिन होते बम धमाके और उनमें जान गवाते लोगो की खबरे तो इतनी आम हो चुकी थी ,कि टीवी पर चलते ऐसे समाचारो में मरने वालों की संख्या ही जानने की उत्सुकता आम आदमी में बची थी ।
सरकार मुआवजा देकर अगले धमाकों के इंतज़ार करती थी ।
राज्य सरकारें केंद्र पर और केंद्र राज्यो पर जिम्मेदारी का ठीकरा फोड़ते दिखते थे ।
सरकार मुआवजा देकर अगले धमाकों के इंतज़ार करती थी ।
राज्य सरकारें केंद्र पर और केंद्र राज्यो पर जिम्मेदारी का ठीकरा फोड़ते दिखते थे ।
और सरकारे कितनी जन हितैषी थी , इसका अंदाजा #मुम्बई बम धमाकों के समय को याद करके लगा लीजियेगा ,
जब #गृहमंत्री दो घंटे में चार बार मीडिया के सामने आए और हर बार सूट बदल बदल कर ।
इस दौरान उनके साथ #रामगोपाल_वर्मा भी दिखे , जैसे ये कोई आतंकी घटना न होकर किसी फिल्म की शूटिंग लोकेशन हो ।
जब #गृहमंत्री दो घंटे में चार बार मीडिया के सामने आए और हर बार सूट बदल बदल कर ।
इस दौरान उनके साथ #रामगोपाल_वर्मा भी दिखे , जैसे ये कोई आतंकी घटना न होकर किसी फिल्म की शूटिंग लोकेशन हो ।
देश को लड़ने लायक बनाने में रातो दिन जुटे एक श्रमजीवी का सहयोग करिये , बिना आंतरिक कमियों को पूरा किये देश अपराजेय नही बन सकता ।
मैं ये नही कह रहा हूँ कि इस दौरान सब कुछ हो ही रहा है , पिछली सरकार के समय शुरू किए गए बहुत से प्रोजेक्ट बन्द भी हुए है । जिसमे निवेशकों के करोड़ो फंस गए है ।
#Ngo के माध्यम से गांव देहात के गरीब लोगों को #ईसाई बना कर उनके जीवन स्तर को सुधारने का एक #बहुउद्देश्यीय मिशन इस सरकार के कारण पूरी तरह से ठप पड़ गया है ।
और मोदी जी के रहते , रमज़ान के पाक महीने में आने वाले #जाकिर_नाइक के वो परोपकार की भावना से ओत प्रोत वीडियो देखने को नही मिले ,
जिसमे एक कम उम्र की हिन्दू लड़की कहती थी ....
मेरा नाम पूजा अग्रवाल है ,
मैं #बीएससी में #श्री_राम_कॉलेज , की छात्रा हूँ ....
मेरी सहेलिया मुझे #रमज़ान के बारे में बताती है ...क्या मैं अपनी मर्जी से इस्लाम कुबूल कर सकती हूं ...
और मंच पर लार टपकाता जाकिर नाइक कहता था .....इस्लाम तुम्हारा खैर मकदम करता है बीबी ।
साभार: #Kshiti_Pandey
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Priyanka Moradiya
साभार: #Kshiti_Pandey
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Priyanka Moradiya
मोदी से क्यूं इतनी "नफरत" क्यों ?? देखिए ..
1. नया आधार लिंक कराने से महाराष्ट्र में 1 करोड़ फर्जी गरीब गायब हो गए!
2. उत्तराखण्ड में भी कई लाख फ़र्ज़ी BPL कार्ड धारी गरीब ख़त्म हो गए !
3. तीन करोड़ (30000000) से ज्यादा फ़र्ज़ी LPG कनेक्शन ख़त्म हो गए !
4. मदरसों से वज़ीफ़ा पाने वाले 1,95,00,000 फर्ज़ी बच्चे गायब हो गए!
5. डेढ़ करोड़ (15000000 ) से ऊपर फ़र्ज़ी राशन कार्ड धारी गायब हो गए!
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मोदी से नाराज कौन कौन हो रहे है ?? देखिए ..
1) कंपनी के MD : मोदी ने 3 लाख से ज्यादा फर्जी कम्पनियां बन्द कर दी !
2) राशऩ डीलर नाराज़ हो गये!
3) PROPERTY DEALER नाराज़ हो गये!
4) ऑनलाइन सिस्टम बनने से दलाल नाराज़ हो गये है!
5) 40,000 फर्जी NGO बन्द हो गये है, इसलिए इन NGO के मालिक भी नाराज़ हो गये !
6) NO 2 की INCOME से PROPERTY खरीद ने वाले नाराज़ हो गये!
7) E - TENDER होने से कुछ ठेकेदार भी नाराज़ हो गये!
8) गैस कंपनी वाले नाराज़ हो गये!
9) अब तक जो 12 करोड लोग INCOME TAX के दायरे मै आ चुके हैं, वह लोग नाराज़ हो गये!
10) GST सिस्टम लागू होने से ब्यापारी लोग नाराज़ हो गये, क्यों कि वो लोग AUTOMATIC सिस्टम मै आ गये है!
11) वो 2 नम्बर के काम बाले लोग फलना फूलना बन्द हो गये है!
13) BLACK को WHITE करने का सिस्टम एक दम से लुंज सा हो गया है।
14) आलसी सरकरी लोकसेवक नाराज हो गये, क्यों कि समय पर जाकर काम करना पड रहा हैं !
15) वो लोग नाराज हो गये, जो समय पर काम नही करते थे और रिश्वत देकर काम करने मे विश्वास करते है।
दु:ख होना लाज़मी है, देश बदलाव की कहानी लिखी जा रही है, जिसे समझ आ रही है बदल रहा है जिसे नही आ रही है वो मंद बुध्दि युवराज के मानसिक गुलाम हमे अंध भक्त कह कह कर छाती कूट रहे है।
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आज से 2,500 साल पहले "चाणक्य" ने कहा था,
"जब गद्दारों की टोली में हाहाकार हो तो समझ लो देश का 'राजा चरित्रवान और प्रतिभा संपन्न' है और 'राष्ट्र' प्रगति पथ पर अग्रसर है।"
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शिक्षा और संचार माध्यम शासन के अधीन होने के कारण और शासन समाज से उदासीन होने के कारण पढ़े लिखे लोगों में भारत में राज्य और समाज से उसके संबंध के विषय में निम्नांकित झूठ मोटे तौर पर फैले हुए हैं:
1. पहला झूठ यह फैला हुआ है कि शासन हम चला रहे हैं अर्थात नागरिक चला रहे हैं यानी जनता चला रही है अर्थात समाज चला रहा है यानी मुख्यता हिंदू समाज चला रहा है।
यह इतना बड़ा झूठ है जो एक गहरी चिंता जगाता है कि शिक्षित समाज में कैसा भयंकर और व्यापक अज्ञान फैला हुआ है।
2. वोट देने का अधिकार शासन का अधिकार नहीं है ,यह मोटी सी बात जो लोग नहीं जानत,े उनसे आगे राजनीति की और क्या बात की जा सकती है परंतु अपने ही लोग हैं इसलिए बारंबार बात करने को मेरे जैसे लोग विवश हैं और यह हमारा कर्तव्य भी है।
मैंने तो देखा कि बड़े-बड़े स्वामीजी लोग, संत लोग योग्य योग साधना कर रहे लोग इस मोटी बात को नहीं जानते कि वोट देना सरकार चुनने का माध्यम नहीं है
वोट देकर आप मौजूदा दलों में से किसी एक दल के आदमी को या खड़े हुए उम्मीदवारों में से अपेक्षाकृत अनुकूल दिख रहे उम्मीदवार को विधायिका में भेजते हैं। बस।
इसमें कई पेच हैं जिनकी और लोगों का ध्यान नहीं जाता। पहली बात, शासन के तीन मुख्य अंग है कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका ।इनमें से कार्यपालिका और न्यायपालिका का जो स्वरूप है उसमें समाज को विशेषत: हिंदू समाज को अपना कोई भी प्रतिनिधि भेजने का कोई अधिकार प्राप्त नहीं है।
न्यायपालिका मुख्यत: इंग्लैंड के प्रोटेस्टेंट ईसाईयत और मोटे तौर पर ईसाइयत से तथा उसके द्वारा मान्य न्याय के नियमों से संचालित है। हिंदू धर्म भारतीय संस्कृति और भारत की लाखों वर्ष पुरानी महान न्यायिक परंपरा सेइस न्यायपालिका का दूर-दूर तक कोई भी संबंध नहीं है।
ये हिंदू धर्म पर अंग्रेजो और यूरोपियों की लिखी पुस्तकों को ही पढ़ते हैं जो कि ईसाईयों के दृष्टिकोण से भारत के बारे में अधकचरी जानकारी और हास्यास्पद ज्ञान पर आधारित पुस्तकें हैं।
कार्यपालिका इंग्लैंड के ईसाई राज्य की संरचना के अनुरूप गठित है। इसका यह अर्थ नहीं कि कार्यपालिका में कोई अंतर निहित बुराई है।नहीं । ऐसा बिल्कुल भी नहीं है ।
इसमें बड़ी-बड़ी प्रतिभाएं जाती हैं समाज के मेधावी लोग जाते हैं और वे कार्यकुशल लोग हैं परंतु कार्यपालिका का स्वरूप हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति से नहीं अपितु ईसाईयत से प्रेरित है .भारतीय कार्यपालिका को इससे नितांत भिन्न स्वरूप वाला होना चाहिए.
विधायिका राज्य की ईसाई रचना के अनुरूप ही गठित है, जिस पर विस्तार से हम अलग से बात करेंगे।
इस प्रकार राज्य का ढांचा थोड़े से लोगों ने मुख्यतः ईसाईयत की प्रेरणा से बने बनाए ढांचे में थोड़ा फेरबदल कर अपनाया और इसमें विधायिका का स्वरूप भी उसी संरचना के अनुरूप है। इस तरह वोट के द्वारा हम कुछ लोगों के द्वारा तय कर दी गई विधायिका के प्रति निष्ठावान समूहों की अलग अलग धाराओं में से किसी एक धारा के उम्मीदवार को या किसी स्वतंत्र उम्मीदवार को चुनते हैं
इस प्रकार वोट के द्वारा कोई शासन को हम नहीं चुनते। शासन के संचालन के विषय में समाज से कोई भी राय आज तक 1947 से किसी भी पार्टी ने नहीं ली है।
3. तीसरा जो सबसे भयंकर झूठ है वह यह है कि एक और तो हम इस संविधान से प्रेरित हैं इसमें नागरिकों को हथियार रखने की सुविधा भी शासन की मर्जी से और शासकीय अधिकारियों की स्वीकृति प्राप्त होती है और इसमें विधायिका के लिए चुने जाने के लिए खड़े उम्मीदवारों और उन उम्मीदवारों को खड़ा कर रही पार्टियों के बीच किसी युद्ध की तो कोई कल्पना दूर दूर तक है ही नहीं।
दूसरी और हम लफंगे और बदमाश कम्युनिस्टों के द्वारा प्रचारित झूठे युद्ध के नौटंकीबाज मुहावरों के असर से चुनाव में वोट देने को किसी युद्ध का कोई अंग मानते या बताते हैं, इससे बड़ा हास्यास्पद झूठ और क्या हो सकता है?
4. यह सब बकवास कर रहे लोगों को यह तथ्य भी नहीं पता कि संविधान में तो पार्टी नामक किसी बात का कोई जिक्र ही नहींहै।
चुना गया प्रतिनिधि संपूर्ण क्षेत्र के समस्त मतदाताओं का प्रतिनिधि होता है वह किसी विचारधारा का प्रतिनिधि होने का विधिक रुप से दावा ही नहीं कर सकता
1. पहला झूठ यह फैला हुआ है कि शासन हम चला रहे हैं अर्थात नागरिक चला रहे हैं यानी जनता चला रही है अर्थात समाज चला रहा है यानी मुख्यता हिंदू समाज चला रहा है।
यह इतना बड़ा झूठ है जो एक गहरी चिंता जगाता है कि शिक्षित समाज में कैसा भयंकर और व्यापक अज्ञान फैला हुआ है।
2. वोट देने का अधिकार शासन का अधिकार नहीं है ,यह मोटी सी बात जो लोग नहीं जानत,े उनसे आगे राजनीति की और क्या बात की जा सकती है परंतु अपने ही लोग हैं इसलिए बारंबार बात करने को मेरे जैसे लोग विवश हैं और यह हमारा कर्तव्य भी है।
मैंने तो देखा कि बड़े-बड़े स्वामीजी लोग, संत लोग योग्य योग साधना कर रहे लोग इस मोटी बात को नहीं जानते कि वोट देना सरकार चुनने का माध्यम नहीं है
वोट देकर आप मौजूदा दलों में से किसी एक दल के आदमी को या खड़े हुए उम्मीदवारों में से अपेक्षाकृत अनुकूल दिख रहे उम्मीदवार को विधायिका में भेजते हैं। बस।
इसमें कई पेच हैं जिनकी और लोगों का ध्यान नहीं जाता। पहली बात, शासन के तीन मुख्य अंग है कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका ।इनमें से कार्यपालिका और न्यायपालिका का जो स्वरूप है उसमें समाज को विशेषत: हिंदू समाज को अपना कोई भी प्रतिनिधि भेजने का कोई अधिकार प्राप्त नहीं है।
न्यायपालिका मुख्यत: इंग्लैंड के प्रोटेस्टेंट ईसाईयत और मोटे तौर पर ईसाइयत से तथा उसके द्वारा मान्य न्याय के नियमों से संचालित है। हिंदू धर्म भारतीय संस्कृति और भारत की लाखों वर्ष पुरानी महान न्यायिक परंपरा सेइस न्यायपालिका का दूर-दूर तक कोई भी संबंध नहीं है।
ये हिंदू धर्म पर अंग्रेजो और यूरोपियों की लिखी पुस्तकों को ही पढ़ते हैं जो कि ईसाईयों के दृष्टिकोण से भारत के बारे में अधकचरी जानकारी और हास्यास्पद ज्ञान पर आधारित पुस्तकें हैं।
कार्यपालिका इंग्लैंड के ईसाई राज्य की संरचना के अनुरूप गठित है। इसका यह अर्थ नहीं कि कार्यपालिका में कोई अंतर निहित बुराई है।नहीं । ऐसा बिल्कुल भी नहीं है ।
इसमें बड़ी-बड़ी प्रतिभाएं जाती हैं समाज के मेधावी लोग जाते हैं और वे कार्यकुशल लोग हैं परंतु कार्यपालिका का स्वरूप हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति से नहीं अपितु ईसाईयत से प्रेरित है .भारतीय कार्यपालिका को इससे नितांत भिन्न स्वरूप वाला होना चाहिए.
विधायिका राज्य की ईसाई रचना के अनुरूप ही गठित है, जिस पर विस्तार से हम अलग से बात करेंगे।
इस प्रकार राज्य का ढांचा थोड़े से लोगों ने मुख्यतः ईसाईयत की प्रेरणा से बने बनाए ढांचे में थोड़ा फेरबदल कर अपनाया और इसमें विधायिका का स्वरूप भी उसी संरचना के अनुरूप है। इस तरह वोट के द्वारा हम कुछ लोगों के द्वारा तय कर दी गई विधायिका के प्रति निष्ठावान समूहों की अलग अलग धाराओं में से किसी एक धारा के उम्मीदवार को या किसी स्वतंत्र उम्मीदवार को चुनते हैं
इस प्रकार वोट के द्वारा कोई शासन को हम नहीं चुनते। शासन के संचालन के विषय में समाज से कोई भी राय आज तक 1947 से किसी भी पार्टी ने नहीं ली है।
3. तीसरा जो सबसे भयंकर झूठ है वह यह है कि एक और तो हम इस संविधान से प्रेरित हैं इसमें नागरिकों को हथियार रखने की सुविधा भी शासन की मर्जी से और शासकीय अधिकारियों की स्वीकृति प्राप्त होती है और इसमें विधायिका के लिए चुने जाने के लिए खड़े उम्मीदवारों और उन उम्मीदवारों को खड़ा कर रही पार्टियों के बीच किसी युद्ध की तो कोई कल्पना दूर दूर तक है ही नहीं।
दूसरी और हम लफंगे और बदमाश कम्युनिस्टों के द्वारा प्रचारित झूठे युद्ध के नौटंकीबाज मुहावरों के असर से चुनाव में वोट देने को किसी युद्ध का कोई अंग मानते या बताते हैं, इससे बड़ा हास्यास्पद झूठ और क्या हो सकता है?
4. यह सब बकवास कर रहे लोगों को यह तथ्य भी नहीं पता कि संविधान में तो पार्टी नामक किसी बात का कोई जिक्र ही नहींहै।
चुना गया प्रतिनिधि संपूर्ण क्षेत्र के समस्त मतदाताओं का प्रतिनिधि होता है वह किसी विचारधारा का प्रतिनिधि होने का विधिक रुप से दावा ही नहीं कर सकता
इस तथ्य को सारे नेता जानते हैं।
परंतु कम्युनिस्ट बुद्धिजीवियों और उनके संरक्षक कांग्रेसी एवं अन्य पार्टियों के नेताओं ने समाज में यह झूठ फैला दिया है ताकि नागरिक और समाज इन नेताओं की वास्तविक नीतियों, व्यवहार, आचरण और समाज पर उसके परिणामों की, धर्म और अधर्म ,पुण्य और पाप की चर्चा करने के स्थान पर किसी एक काल्पनिक विचारधारा नामक लड़ाई की कल्पना में उलझा रहे। इस तरह स्वयं को हिंदूवादी या हिंदुत्वनिष्ठ या प्रचंड हिंदू कह रहे अधिकांश लोग दयनीय रूप से कम्युनिस्ट हैं और वे वोट देने जैसी सामान्य क्रिया को कोई विचारधारा की लड़ाई या धर्म और अधर्म की, भारतीयता और अभारतीयता की लड़ाई मानतेहैं।
परंतु कम्युनिस्ट बुद्धिजीवियों और उनके संरक्षक कांग्रेसी एवं अन्य पार्टियों के नेताओं ने समाज में यह झूठ फैला दिया है ताकि नागरिक और समाज इन नेताओं की वास्तविक नीतियों, व्यवहार, आचरण और समाज पर उसके परिणामों की, धर्म और अधर्म ,पुण्य और पाप की चर्चा करने के स्थान पर किसी एक काल्पनिक विचारधारा नामक लड़ाई की कल्पना में उलझा रहे। इस तरह स्वयं को हिंदूवादी या हिंदुत्वनिष्ठ या प्रचंड हिंदू कह रहे अधिकांश लोग दयनीय रूप से कम्युनिस्ट हैं और वे वोट देने जैसी सामान्य क्रिया को कोई विचारधारा की लड़ाई या धर्म और अधर्म की, भारतीयता और अभारतीयता की लड़ाई मानतेहैं।
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