दुनिया का एकलौता मंदिर, जहां राजा राम को दिन में पांच बार दिया जाता है गार्ड ऑफ ऑनर!!!!!
देश में राजा राम चंद्र का एक ऐसा मंदिर है जहां राम की पूजा भगवान के तौर पर नहीं बल्कि राजा के रूप में की जाती है। अब राजा राम हैं तो उन्हें सिपाही सलामी भी देते हैं। हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में स्थित ओरछा के राजा राम मंदिर की। यहां राजा राम को सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के पश्चात सलामी दी जाती है। इस सलामी के लिए मध्य प्रदेश पुलिस के जवान तैनात होते हैं।
राजा राम का मंदिर देखने में किसी राज महल सा प्रतीत होता है। मंदिर की वास्तुकला बुंदेला स्थापत्य का सुंदर नमूना नजर आता है। कहा जाता है कि राजा राम की मूर्ति स्थापना के लिए चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया जा रहा ता। पर मंदिर बनने से पहले इसे कुछ समय के लिए महल में स्थापित किया गया। लेकिन मंदिर बनने के बाद कोई भी मूर्ति को उसके स्थान से हिला नहीं पाया।
इसे ईश्वर का चमत्कार मानते हुए महल को ही मंदिर का रूप दे दिया गया और इसका नाम रखा गया राम राजा मंदिर। आज इस महल के चारों ओर शहर बसा है।
हर रोज आते हैं राजा राम यहां पर कहा जाता है कि यहां राजा राम हर रोज अयोध्या से अदृश्य रूप में आते हैं।
ओरछा शहर के मुख्य चौराहा के एक तरफ राजा राम का मंदिर है तो दूसरी तरफ ओरछा का प्रसिद्ध किला। मंदिर में राजा राम, लक्ष्मण और माता जानकी की मूर्तियां स्थापित हैं। इनका श्रंगार अद्भुत होता है। मंदिर का प्रांगण काफी विशाल है। चूंकि ये राजा का मंदिर है इसलिए इसके खुलने और बंद होने का समय भी तय है।
सुबह में मंदिर आठ बजे से साढ़े दस बजे तक आम लोगों के दर्शन के लिए खुलता है। इसके बाद शाम को मंदिर आठ बजे दुबारा खुलता है। रात को साढ़े दस बजे राजा शयन के लिए चले जाते हैं। मंदिर में प्रातःकालीन और सांयकालीन आरती होती है जिसे आप देख सकते हैं। देश में अयोध्या के कनक मंदिर के बाद ये राम का दूसरा भव्य मंदिर है।
मंदिर परिसर में फोटोग्राफी निषेध है। मंदिर का प्रबंधन मध्य प्रदेश शासन के हवाले है। पर लोकतांत्रिक सरकार भी ओरछा में राजाराम की हूकुमत को सलाम करती है। ओरछा शहर को कई तरह के करों से छूट मिली हुई है। यहां पर लोग राजा राम के डर से रिश्वत नहीं लेते और भ्रष्टाचार करने से डरते हैं।
महारानी लाई थीं राजा राम को – कहा जाता है कि संवत 1600 में तत्कालीन बुंदेला शासक महाराजा मधुकर शाह की पत्नी महारानी कुअंरि गणेश राजा राम को अयोध्या से ओरछा लाई थीं।
एक दिन ओरछा नरेश मधुकरशाह ने अपनी पत्नी गणेशकुंवरि से कृष्ण उपासना के इरादे से वृंदावन चलने को कहा। लेकिन रानी तो राम की भक्त थीं। उन्होंने वृंदावन जाने से मना कर दिया। गुस्से में आकर राजा ने उनसे यह कहा कि तुम इतनी राम भक्त हो तो जाकर अपने राम को ओरछा ले आओ। रानी ने अयोध्या पहुंचकर सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पास अपनी कुटी बनाकर साधना आरंभ की।
इन्हीं दिनों संत शिरोमणि तुलसीदास भी अयोध्या में साधना रत थे। संत से आशीर्वाद पाकर रानी की आराधना और दृढ़ होती गई। लेकिन रानी को कई महीनों तक राजा राम के दर्शन नहीं हुए। वह निराश होकर अपने प्राण त्यागने सरयू की मझधार में कूद पड़ी। यहीं जल की अतल गहराइयों में उन्हें राजा राम के दर्शन हुए। रानी ने उनसे ओरछा चलने का आग्रह किया।
उस समय मर्यादा पुरुशोत्तम श्रीराम ने शर्त रखी थी कि वे ओरछा तभी जाएंगे, जब इलाके में उन्हीं की सत्ता रहे और राजशाही पूरी तरह से खत्म हो जाए। तब महाराजा शाह ने ओरछा में ‘रामराज' की स्थापना की थी, जो आज भी कायम है।
मंदिर के प्रसाद में पान का बीड़ा – राजा राम मंदिर में प्रशासन की ओर से प्रसाद का काउंटर है। यहां 22 रुपये का प्रसाद मिलता है। प्रसाद में लड्डू और पान का बीड़ा दिया जाता है। हालांकि मंदिर के बाहर भी प्रसाद की तमाम दुकाने हैं जहां से आप फूल प्रसाद आदि लेकर मंदिर में जा सकते हैं। मंदिर के बाहर जूते रखने के लिए निःशुल्क काउंटर बना है। राजा राम मंदिर में रामनवमी बड़ा त्योहार होता है।
बेल्ट लगाकर नहीं जा सकते- आप राजा राम के मंदिर के अंदर बेल्ट लगाकर नहीं जा सकते हैं। इसके पीछे बड़ा रोचक तर्क ये दिया जाता है कि राजा के दरबार में कमर कस कर नहीं जाया जा सकता है। यहां सिर्फ राजा राम की सेवा में तैनात सिपाही ही कमरबंद लगा सकते हैं। आप जूता घर में अपना बेल्ट जमा करके फिर मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं।
राजा राम के मंदिर की मूर्तियों के बारे में कहा जाता है कि ये अयोध्या से लाई गई हैं। महारानी की कहानी के मुताबिक उनकी तपस्या के कारण राजा राम अयोध्या से ओरछा चले आए थे। पर स्थानीय बुद्धिजीवी मानते हैं कि बाबर के आदेश पर अयोध्या में राम मंदिर तोड़े जाने के बाद अयोध्या के बाकी मंदिरों की सुरक्षा कासवाल उठने लगा।
ऐसी स्थित में कई मंदिरों की बेशकीमती मूर्तियों को ओरछा में लाकर सुरक्षित किया गया। ऐसा कहा जाता है कि ओरछा के ज्यादातर मंदिरों में जो मूर्तियां हैं वे अयोध्या से लाई गई हैं।
बुंदेलखंड की अयोध्या है ओरछा!!!!!
ओरछा को दूसरी अयोध्या के रूप में मान्यता प्राप्त है। यहां पर रामराजा अपने बाल रूप में विराजमान हैं। यह जनश्रुति है कि श्रीराम दिन में यहां तो रात्रि में अयोध्या विश्राम करते हैं।
शयन आरती के पश्चात उनकी ज्योति हनुमानजी को सौंपी जाती है, जो रात्रि विश्राम के लिए उन्हें अयोध्या ले जाते हैं- सर्व व्यापक राम के दो निवास हैं खास, दिवस ओरछा रहत हैं, शयन अयोध्या वास।
शास्त्रों में वर्णित है कि आदि मनु-सतरूपा ने हजारों वर्षों तक शेषशायी विष्णु को बालरूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की। विष्णु ने उन्हें प्रसन्न होकर आशीष दिया और त्रेता में राम, द्वापर में कृष्ण और कलियुग में ओरछा के रामराजा के रूप में अवतार लिया।
इस प्रकार मधुकर शाह और उनकी पत्नी गणेशकुंवरि साक्षात दशरथ और कौशल्या के अवतार थे। त्रेता में दशरथ अपने पुत्र का राज्याभिषेक न कर सके थे, उनकी यह इच्छा भी कलियुग में पूर्ण हुई।
मनोहारी कथा,,,रामराजा के अयोध्या से ओरछा आने की एक मनोहारी कथा है। एक दिन ओरछा नरेश मधुकरशाह ने अपनी पत्नी गणेशकुंवरि से कृष्ण उपासना के इरादे से वृंदावन चलने को कहा।
लेकिन रानी राम भक्त थीं। उन्होंने वृंदावन जाने से मना कर दिया। क्रोध में आकर राजा ने उनसे यह कहा कि तुम इतनी राम भक्त हो तो जाकर अपनेराम को ओरछा ले आओ। रानी ने अयोध्या पहुंचकर सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पास अपनी कुटी बनाकर साधना आरंभ की। इन्हीं दिनों संत शिरोमणि तुलसीदास भी अयोध्या में साधना रत थे।
संत से आशीर्वाद पाकर रानी की आराधना दृढ़ से दृढ़तर होती गई। लेकिन रानी को कई महीनों तक रामराजा के दर्शन नहीं हुए। अंतत: वह निराश होकर अपने प्राण त्यागने सरयू की मझधार में कूद पड़ी। यहीं जल की अतल गहराइयों में उन्हें रामराजा के दर्शन हुए। रानी ने उन्हें अपना मंतव्य बताया।
चतुर्भुज मंदिर का निर्माण
रामराजा ने ओरछा चलना स्वीकार किया किन्तु उन्होंने तीन शर्तें रखीं- पहली, यह यात्रा पैदल होगी, दूसरी, यात्रा केवल पुष्प नक्षत्र में होगी, तीसरी, रामराजा की मूर्ति जिस जगह रखी जाएगी वहां से पुन: नहीं उठेगी। रानी ने राजा को संदेश भेजा कि वो रामराजा को लेकर ओरछा आ रहीं हैं।
राजा मधुकरशाह ने रामराजा के विग्रह को स्थापित करने के लिए करोड़ों की लागत से चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया। जब रानी ओरछा पहुंची तो उन्होंने यह मूर्ति अपने महल में रख दी। यह निश्चित हुआ कि शुभ मुर्हूत में मूर्ति को चतुर्भुज मंदिर में रखकर इसकी प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। लेकिन राम के इस विग्रह ने चतुर्भुज जाने से मना कर दिया।
कहते हैं कि राम यहां बाल रूप में आए और अपनी मां का महल छोड़कर वो मंदिर में कैसे जा सकते थे। राम आज भी इसी महल में विराजमान हैं और उनके लिए बना करोड़ों का चतुर्भुज मंदिर आज भी वीरान पड़ा है। यह मंदिर आज भी मूर्ति विहीन है। यह भी एक संयोग है कि जिस संवत 1631 को रामराजा का ओरछा में आगमन हुआ, उसी दिन रामचरित मानस का लेखन भी पूर्ण हुआ।
जो मूर्ति ओरछा में विद्यमान है उसके बारे में बताया जाता है कि जब राम वनवास जा रहे थे तो उन्होंने अपनी एक बाल मूर्ति मां कौशल्या को दी थी। मां कौशल्या उसी को बाल भोग लगाया करती थीं। जब राम अयोध्या लौटे तो कौशल्या ने यह मूर्ति सरयू नदी में विसर्जित कर दी। यही मूर्ति गणेशकुंवरि को सरयू की मझधार में मिली थी।
यह विश्व का अकेला मंदिर है जहां राम की पूजा राजा के रूप में होती है और उन्हें सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के पश्चात सलामी दी जाती है। यहां राम ओरछाधीश के रूप में मान्य हैं। रामराजा मंदिर के चारों तरफ हनुमान जी के मंदिर हैं। छड़दारी हनुमान, बजरिया के हनुमान, लंका हनुमान के मंदिर एक सुरक्षा चक्र के रूप में चारों तरफ हैं।
ओरछा की अन्य बहुमूल्य धरोहरों में लक्ष्मी मंदिर, पंचमुखी महादेव, राधिका बिहारी मंदिर , राजामहल, रायप्रवीण महल, हरदौल की बैठक, हरदौल की समाधि, जहांगीर महल और उसकी चित्रकारी प्रमुख है। ओरछा झांसी से मात्र 15 किमी. की दूरी पर है। झांसी देश की प्रमुख रेलवे लाइनों से जुड़ा है। पर्यटकों के लिए झांसी और ओरछा में शानदार आवासगृह बने हैं।
देश में राजा राम चंद्र का एक ऐसा मंदिर है जहां राम की पूजा भगवान के तौर पर नहीं बल्कि राजा के रूप में की जाती है। अब राजा राम हैं तो उन्हें सिपाही सलामी भी देते हैं। हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में स्थित ओरछा के राजा राम मंदिर की। यहां राजा राम को सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के पश्चात सलामी दी जाती है। इस सलामी के लिए मध्य प्रदेश पुलिस के जवान तैनात होते हैं।
राजा राम का मंदिर देखने में किसी राज महल सा प्रतीत होता है। मंदिर की वास्तुकला बुंदेला स्थापत्य का सुंदर नमूना नजर आता है। कहा जाता है कि राजा राम की मूर्ति स्थापना के लिए चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया जा रहा ता। पर मंदिर बनने से पहले इसे कुछ समय के लिए महल में स्थापित किया गया। लेकिन मंदिर बनने के बाद कोई भी मूर्ति को उसके स्थान से हिला नहीं पाया।
इसे ईश्वर का चमत्कार मानते हुए महल को ही मंदिर का रूप दे दिया गया और इसका नाम रखा गया राम राजा मंदिर। आज इस महल के चारों ओर शहर बसा है।
हर रोज आते हैं राजा राम यहां पर कहा जाता है कि यहां राजा राम हर रोज अयोध्या से अदृश्य रूप में आते हैं।
ओरछा शहर के मुख्य चौराहा के एक तरफ राजा राम का मंदिर है तो दूसरी तरफ ओरछा का प्रसिद्ध किला। मंदिर में राजा राम, लक्ष्मण और माता जानकी की मूर्तियां स्थापित हैं। इनका श्रंगार अद्भुत होता है। मंदिर का प्रांगण काफी विशाल है। चूंकि ये राजा का मंदिर है इसलिए इसके खुलने और बंद होने का समय भी तय है।
सुबह में मंदिर आठ बजे से साढ़े दस बजे तक आम लोगों के दर्शन के लिए खुलता है। इसके बाद शाम को मंदिर आठ बजे दुबारा खुलता है। रात को साढ़े दस बजे राजा शयन के लिए चले जाते हैं। मंदिर में प्रातःकालीन और सांयकालीन आरती होती है जिसे आप देख सकते हैं। देश में अयोध्या के कनक मंदिर के बाद ये राम का दूसरा भव्य मंदिर है।
मंदिर परिसर में फोटोग्राफी निषेध है। मंदिर का प्रबंधन मध्य प्रदेश शासन के हवाले है। पर लोकतांत्रिक सरकार भी ओरछा में राजाराम की हूकुमत को सलाम करती है। ओरछा शहर को कई तरह के करों से छूट मिली हुई है। यहां पर लोग राजा राम के डर से रिश्वत नहीं लेते और भ्रष्टाचार करने से डरते हैं।
महारानी लाई थीं राजा राम को – कहा जाता है कि संवत 1600 में तत्कालीन बुंदेला शासक महाराजा मधुकर शाह की पत्नी महारानी कुअंरि गणेश राजा राम को अयोध्या से ओरछा लाई थीं।
एक दिन ओरछा नरेश मधुकरशाह ने अपनी पत्नी गणेशकुंवरि से कृष्ण उपासना के इरादे से वृंदावन चलने को कहा। लेकिन रानी तो राम की भक्त थीं। उन्होंने वृंदावन जाने से मना कर दिया। गुस्से में आकर राजा ने उनसे यह कहा कि तुम इतनी राम भक्त हो तो जाकर अपने राम को ओरछा ले आओ। रानी ने अयोध्या पहुंचकर सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पास अपनी कुटी बनाकर साधना आरंभ की।
इन्हीं दिनों संत शिरोमणि तुलसीदास भी अयोध्या में साधना रत थे। संत से आशीर्वाद पाकर रानी की आराधना और दृढ़ होती गई। लेकिन रानी को कई महीनों तक राजा राम के दर्शन नहीं हुए। वह निराश होकर अपने प्राण त्यागने सरयू की मझधार में कूद पड़ी। यहीं जल की अतल गहराइयों में उन्हें राजा राम के दर्शन हुए। रानी ने उनसे ओरछा चलने का आग्रह किया।
उस समय मर्यादा पुरुशोत्तम श्रीराम ने शर्त रखी थी कि वे ओरछा तभी जाएंगे, जब इलाके में उन्हीं की सत्ता रहे और राजशाही पूरी तरह से खत्म हो जाए। तब महाराजा शाह ने ओरछा में ‘रामराज' की स्थापना की थी, जो आज भी कायम है।
मंदिर के प्रसाद में पान का बीड़ा – राजा राम मंदिर में प्रशासन की ओर से प्रसाद का काउंटर है। यहां 22 रुपये का प्रसाद मिलता है। प्रसाद में लड्डू और पान का बीड़ा दिया जाता है। हालांकि मंदिर के बाहर भी प्रसाद की तमाम दुकाने हैं जहां से आप फूल प्रसाद आदि लेकर मंदिर में जा सकते हैं। मंदिर के बाहर जूते रखने के लिए निःशुल्क काउंटर बना है। राजा राम मंदिर में रामनवमी बड़ा त्योहार होता है।
बेल्ट लगाकर नहीं जा सकते- आप राजा राम के मंदिर के अंदर बेल्ट लगाकर नहीं जा सकते हैं। इसके पीछे बड़ा रोचक तर्क ये दिया जाता है कि राजा के दरबार में कमर कस कर नहीं जाया जा सकता है। यहां सिर्फ राजा राम की सेवा में तैनात सिपाही ही कमरबंद लगा सकते हैं। आप जूता घर में अपना बेल्ट जमा करके फिर मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं।
राजा राम के मंदिर की मूर्तियों के बारे में कहा जाता है कि ये अयोध्या से लाई गई हैं। महारानी की कहानी के मुताबिक उनकी तपस्या के कारण राजा राम अयोध्या से ओरछा चले आए थे। पर स्थानीय बुद्धिजीवी मानते हैं कि बाबर के आदेश पर अयोध्या में राम मंदिर तोड़े जाने के बाद अयोध्या के बाकी मंदिरों की सुरक्षा कासवाल उठने लगा।
ऐसी स्थित में कई मंदिरों की बेशकीमती मूर्तियों को ओरछा में लाकर सुरक्षित किया गया। ऐसा कहा जाता है कि ओरछा के ज्यादातर मंदिरों में जो मूर्तियां हैं वे अयोध्या से लाई गई हैं।
बुंदेलखंड की अयोध्या है ओरछा!!!!!
ओरछा को दूसरी अयोध्या के रूप में मान्यता प्राप्त है। यहां पर रामराजा अपने बाल रूप में विराजमान हैं। यह जनश्रुति है कि श्रीराम दिन में यहां तो रात्रि में अयोध्या विश्राम करते हैं।
शयन आरती के पश्चात उनकी ज्योति हनुमानजी को सौंपी जाती है, जो रात्रि विश्राम के लिए उन्हें अयोध्या ले जाते हैं- सर्व व्यापक राम के दो निवास हैं खास, दिवस ओरछा रहत हैं, शयन अयोध्या वास।
शास्त्रों में वर्णित है कि आदि मनु-सतरूपा ने हजारों वर्षों तक शेषशायी विष्णु को बालरूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की। विष्णु ने उन्हें प्रसन्न होकर आशीष दिया और त्रेता में राम, द्वापर में कृष्ण और कलियुग में ओरछा के रामराजा के रूप में अवतार लिया।
इस प्रकार मधुकर शाह और उनकी पत्नी गणेशकुंवरि साक्षात दशरथ और कौशल्या के अवतार थे। त्रेता में दशरथ अपने पुत्र का राज्याभिषेक न कर सके थे, उनकी यह इच्छा भी कलियुग में पूर्ण हुई।
मनोहारी कथा,,,रामराजा के अयोध्या से ओरछा आने की एक मनोहारी कथा है। एक दिन ओरछा नरेश मधुकरशाह ने अपनी पत्नी गणेशकुंवरि से कृष्ण उपासना के इरादे से वृंदावन चलने को कहा।
लेकिन रानी राम भक्त थीं। उन्होंने वृंदावन जाने से मना कर दिया। क्रोध में आकर राजा ने उनसे यह कहा कि तुम इतनी राम भक्त हो तो जाकर अपनेराम को ओरछा ले आओ। रानी ने अयोध्या पहुंचकर सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पास अपनी कुटी बनाकर साधना आरंभ की। इन्हीं दिनों संत शिरोमणि तुलसीदास भी अयोध्या में साधना रत थे।
संत से आशीर्वाद पाकर रानी की आराधना दृढ़ से दृढ़तर होती गई। लेकिन रानी को कई महीनों तक रामराजा के दर्शन नहीं हुए। अंतत: वह निराश होकर अपने प्राण त्यागने सरयू की मझधार में कूद पड़ी। यहीं जल की अतल गहराइयों में उन्हें रामराजा के दर्शन हुए। रानी ने उन्हें अपना मंतव्य बताया।
चतुर्भुज मंदिर का निर्माण
रामराजा ने ओरछा चलना स्वीकार किया किन्तु उन्होंने तीन शर्तें रखीं- पहली, यह यात्रा पैदल होगी, दूसरी, यात्रा केवल पुष्प नक्षत्र में होगी, तीसरी, रामराजा की मूर्ति जिस जगह रखी जाएगी वहां से पुन: नहीं उठेगी। रानी ने राजा को संदेश भेजा कि वो रामराजा को लेकर ओरछा आ रहीं हैं।
राजा मधुकरशाह ने रामराजा के विग्रह को स्थापित करने के लिए करोड़ों की लागत से चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया। जब रानी ओरछा पहुंची तो उन्होंने यह मूर्ति अपने महल में रख दी। यह निश्चित हुआ कि शुभ मुर्हूत में मूर्ति को चतुर्भुज मंदिर में रखकर इसकी प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। लेकिन राम के इस विग्रह ने चतुर्भुज जाने से मना कर दिया।
कहते हैं कि राम यहां बाल रूप में आए और अपनी मां का महल छोड़कर वो मंदिर में कैसे जा सकते थे। राम आज भी इसी महल में विराजमान हैं और उनके लिए बना करोड़ों का चतुर्भुज मंदिर आज भी वीरान पड़ा है। यह मंदिर आज भी मूर्ति विहीन है। यह भी एक संयोग है कि जिस संवत 1631 को रामराजा का ओरछा में आगमन हुआ, उसी दिन रामचरित मानस का लेखन भी पूर्ण हुआ।
जो मूर्ति ओरछा में विद्यमान है उसके बारे में बताया जाता है कि जब राम वनवास जा रहे थे तो उन्होंने अपनी एक बाल मूर्ति मां कौशल्या को दी थी। मां कौशल्या उसी को बाल भोग लगाया करती थीं। जब राम अयोध्या लौटे तो कौशल्या ने यह मूर्ति सरयू नदी में विसर्जित कर दी। यही मूर्ति गणेशकुंवरि को सरयू की मझधार में मिली थी।
यह विश्व का अकेला मंदिर है जहां राम की पूजा राजा के रूप में होती है और उन्हें सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के पश्चात सलामी दी जाती है। यहां राम ओरछाधीश के रूप में मान्य हैं। रामराजा मंदिर के चारों तरफ हनुमान जी के मंदिर हैं। छड़दारी हनुमान, बजरिया के हनुमान, लंका हनुमान के मंदिर एक सुरक्षा चक्र के रूप में चारों तरफ हैं।
ओरछा की अन्य बहुमूल्य धरोहरों में लक्ष्मी मंदिर, पंचमुखी महादेव, राधिका बिहारी मंदिर , राजामहल, रायप्रवीण महल, हरदौल की बैठक, हरदौल की समाधि, जहांगीर महल और उसकी चित्रकारी प्रमुख है। ओरछा झांसी से मात्र 15 किमी. की दूरी पर है। झांसी देश की प्रमुख रेलवे लाइनों से जुड़ा है। पर्यटकों के लिए झांसी और ओरछा में शानदार आवासगृह बने हैं।
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