Saturday, 12 May 2018

रामकृष्ण परमहंस
 सनातन के जीर्ण मंदिर पर चोट करते ईसाइयत के हथौड़े को पिघलाकर उसी भग्नावशेष से सनातन की अद्भुत कीर्ति खड़ी करने वाले थे रामकृष्ण। उनकी दया और प्रेम की शिक्षा ने ईसाई करुणा के मिथ्या आडम्बर को ऐसे चीर दिया जैसे अंधकार में डूबे शांत वन को चंद्रमा की रश्मियां रमणीय बना देती हैं।
मानवता और करुणा के सबसे प्रखर प्रतीक बनकर रामकृष्ण खड़े हुए, बालसुलभ उत्सुकता, चपलता और सालभर के छोटे बच्चे जैसी खिलखिलाहट वाली हंसी, तोतली बोली और जिज्ञासा से चमकती आंखें। जिसने जो कह दिया मान लेते थे। एकदिन बंकिम पहुंच गए, नास्तिक थे तो रामकृष्ण के चमत्कारों की कथा सुनकर परीक्षा लेने आए और परीक्षा लेने के बदले दण्डवत होकर गए।
तोतापुरी और भैरवी इनको ज्ञान देने आए और शरणागत होकर गए।
उन दिनों बंगाल में अंग्रेजों के पुनर्जागरण का बड़ा प्रभाव था, ज्ञान के युग का विस्तार हो रहा था, संदेहवाद जोर पर था, इसी माहौल में ब्रह्म समाज धर्म सुधार करने के लिए आया और ईसाइयत के चुंगल में फंस गया। ब्रह्म समाज के दोनों धड़े जीसस के भजन गाने लगे थे।
देवेन्द्रनाथ(रवीन्द्रनाथ टैगोर के पिता) और केशवचन्द्र सेन बंगाल के प्रमुख धार्मिक लोगों में थे जिनकी मान्यताओं में अंतर था पर दोनों रामकृष्ण को मानते थे और उनके सामने बौने हो जाते थे। केशव के अन्तस् में एक दम्भ था पर रामकृष्ण की करुणा के प्रवाह में वो कभी टिक नही पाए।
विद्वानों की तुलना हो सकती है, भक्तों की भक्ति तौली जा सकती है पर रामकृष्ण भक्ति की सीमा को इस हद तक पार कर चुके थे कि उनमें और काली में कोई फर्क नहीं था।
तुम रामकृष्ण और चैतन्य महाप्रभु को ज्ञान से तौल ही नही सकते। जिनके सामने भक्तों की भक्ति मूक हो जाती थी, ज्ञानियों का ज्ञान मूक हो जाता था वो रामकृष्ण थे, परमहंस थे जो व्यक्ति के शरीर के भीतर ईश्वरीय अंश को प्रत्यक्ष देखते थे, कम लोग जानते हैं कि बनारस में दयानंद को देखकर उन्होंने कहा था कि इसके हृदय में साक्षात ईश्वर हैं। (कितनी विचित्र बात है कि आज आर्यसमाज के कुछ लोग रामकृष्ण का विरोध करते हैं।)
उनके आध्यात्मिक योगदान की तुलना नए युग में किसी अन्य से नही हो सकती, वो अतुलनीय हैं। उनका एक प्रमुख भौतिक योगदान यह रहा की बंगाल में ईसाइयत के प्रवाह को उन्होंने रोक दिया। आम बंगाली जन से लेकर विद्वतमण्डल तक, सब के ऊपर उनका ऐसा मोहक प्रभाव था कि अनेको ईसाई पादरी या तो उनके भक्त बने या उनके नाम से भय खाते थे।
कहावत है offence is best defence, ईसाइयत के गढ़ में घुसकर उनकी सत्ता को झकझोर देने वाले विवेकानंद को खड़ा किया रामकृष्ण परमहंस ने, ईसाइयत की प्रचार नीति पर वज्र की तरह गिरे विवेकानंद रामकृष्ण की खोज थे।"
सन्त परम्परा के अतुलनीय सूर्य हैं रामकृष्ण। उनपर प्रश्न करने वाले मूढ़ वह हैं जो अपने पिता से पुंसत्व का प्रमाण मांगते हैं। ऐसे दुर्बुद्धियों का कल्याण संभव नहीं है।

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