Wednesday, 30 May 2018

prachin bharat

करीब दो सौ साल पहले अरुणांचल प्रदेश में आई.ब्लाक नाम के खोजी को एक किले के खंडहर मिल गए थे। सन 1848 में मिले इन खंडहरों पर काफी बाद में (1965-70) में खुदाई करके पुरातत्व विभाग ने निष्कर्ष निकाला था कि ये कम से कम दूसरी शताब्दी के काल के तो हैं ही। दो हजार साल से ज्यादा पुराने ये अवसेष जिस इलाके में हैं उसे भीष्मकनगर कहा जाता है। राजा भीष्मक का नाम ऐसे याद आना थोड़ा मुश्किल होगा, इनके सुपुत्र उन दो महारथियों में से एक थे, जो महाभारत के युद्ध में नहीं लड़े थे।
राजा भीष्मक के पुत्र थे रुक्मी, श्री कृष्ण के सम्बन्धी होने के कारण दुर्योधन ने उन्हें अपने पक्ष में नहीं लिया था और रुक्मी पहले दुर्योधन के पक्ष में शामिल होने गए थे, तो श्री कृष्ण ने उन्हें पांडवों के पक्ष में भी लेने से मना कर दिया। भारत के पश्चिमी सिरे पर कहीं माने जाने वाले द्वारिका के द्वारिकाधीश की पत्नी रुक्मिणी आज के अरुणांचल माने जाने वाले पूर्वी कोने के राजा भीष्मक की पुत्री थी। रुक्मिणी और भीष्मक का जिक्र महाभारत के आदि पर्व में सड़सठवें अध्याय में मिल जाएगा। इसके पास के ही एक दुसरे राज्य मेघालय के लिए मान्यता थी कि उसपर पार्वती का शाप था। शाप के कारण यहाँ की युवतियों को विवाह के लिए पुरुष नहीं मिलते।
इस शाप का मोचन अर्जुन के इस क्षेत्र में आने पर होना था। महाभारत काल में चूँकि जमीन या सत्ता हथियाने की लड़ाई तो थी नहीं इसलिए महाभारत के 18 दिन वाले धर्मयुद्ध में भी किसी हारे हुए राजा का राज्य नहीं हड़पा गया था। चक्रवर्ती के तौर पर युधिष्ठिर को स्थापित करने के लिए अश्वमेध यज्ञ के दौरान जब अर्जुन मेघालय के क्षेत्र में पहुंचे तब इस शाप का विमोचन हुआ था। इसका जिक्र महाभारत में प्रमिला के रूप में आता है और यहाँ की राजकुमारी प्रमिला का विवाह अर्जुन से हुआ था। राजकुमारी प्रमिला, चित्रांगदा या उलूपी की तरह अपने राज्य में ही नहीं रहती थीं, वो हस्तिनापुर अर्जुन के पास चली गई थीं।
ये कहानी जैमिनी महाभारत के अश्वमेध पर्व में मिलती है और दर्शन के लिहाज से भी महत्वपूर्ण हो जाती है। देखने की तीन अवस्थाओं को उनमीलन, निमीलन, और प्रमिलन कहते हैं। जब आँखें बंद हों और केवल कल्पना से मस्तिष्क प्रारूप बना ले, वो पलक बंद की अवस्था उनमीलन, थोड़ी खुली पलकों से सिर्फ उतना ही देखना जितना आप चाहते हैं, या जो पसंद है उसे निमीलन कहते हैं और पूरी तरह खुली आँखों से देखने को प्रमिलन। श्री कृष्ण के साथ ना होने पर जैसे अर्जुन का बल और गांडीव की क्षमता क्षीण होने के लिए एक गोपियों का प्रसंग आता है वैसे ही ये हिस्सा भी कभी कभी सुनाया जाता है। श्रीकृष्ण के बिना उसकी क्षमता कुछ नहीं, ये समझने में “आँखें खुलना” यानि प्रमिला की कहानी। हाँ, हो सकता है कि प्रमिला आज के मेघालय की थी ये ना बताते हों।
असम को पहले प्रागज्योतिषपुर के नाम से जाना जाता था और यहाँ के कामख्या मंदिर को जाने वाली अधूरी बनी सीढ़ियों की कहानी नरकासुर से जोड़ी जाती है। नरकासुर का बेटा उसके बाद यहाँ से शासन करता था। कलिकापुराण और विष्णुपुराण में यही जगह कामरूप नाम से जानी जाने लगती है। महाभारत में नरकासुर के बेटे का जिक्र आता है, उसका नाम भगदत्त था और हाथियों की सेना के साथ वो कौरवों के पक्ष से लड़ा था। नरकासुर हमेशा से दुष्ट नहीं था, माना जाता है कि वो बाणासुर की संगत में बिगड़ गया था। बाणासुर की राजधानी गौहाटी से थोड़ी दूर तेजपुर के इलाके में है।
इस क्षेत्र को शोणितपुर कहा जाता था और बाणासुर यहीं से शासन करता था। उसकी पुत्री उषा को श्रीकृष्ण के पोते अनिरुद्ध से प्रेम था। मान्यतों के हिसाब से जहाँ उषा-अनिरुद्ध मिला करते थे, वो जगह भी तेजपुर में ही है। बाणासुर शिव का बड़ा भक्त था और उषा से मिलने आये अनिरुद्ध को उसने पकड़ लिया था। जब उसे छुड़ाने श्रीकृष्ण आये तो बाणासुर को बचाने शिव आये। जिस प्रसिद्ध से हरी-हर संग्राम का कभी कभी जिक्र सुना होगा, वो इसी वजह से हुआ था। श्री हरी विष्णु के पूर्णावतार श्री कृष्ण और हर अर्थात शिव के इस संग्राम को रोकने के लिए ब्रह्मा को बीच-बचाव करना पड़ा था।
श्री कृष्ण पांडवों और कौरवों से जुड़ी इतनी कहानियों में अभी हमने इरावन, बभ्रुवाहन, उलूपी और चित्रांगदा की कहानियां नहीं जोड़ी हैं। वो थोड़ी ज्यादा प्रसिद्ध हैं, इसलिए हम मान लेते हैं कि उन्हें ज्यादातर लोगों ने सुना होगा। भीम की पत्नी हिडिम्बा की कथाओं को भी इसी क्षेत्र से जोड़ा जाता है। महाभारत काल तक ये क्षेत्र किरात और नागों का क्षेत्र माना जाता था। परशुराम के इस क्षेत्र में जाने-रहने का जिक्र है। जैसे दक्षिण भारत के कलारिपयाट्टू का प्रवर्तक परशुराम को माना जाता है वैसे ही इस क्षेत्र की शस्त्र-कलाओं से भी उनकी किम्वदंतियां जुड़ी मिल सकती हैं।
आज जरूर हाथी दक्षिण भारत के मंदिरों से जुड़े महसूस होते हों लेकिन लम्बे समय तक हाथियों की पीठ पर से लड़ने के लिए पूर्वोत्तर का क्षेत्र ही जाना जाता रहा है। हाल के अमीश त्रिपाठी के मिथकीय उपन्यासों में भी ऐसा ही जिक्र आता है। जीवों का अध्ययन करने वाले मानते हैं कि पहले भारत में सिर्फ शेर होते थे। बाद में पूर्वोत्तर की ओर से ही भारत में बाघ आये। इस सिलसिले में ये भी गौर करने लायक होगा कि महाभारत में दुर्योधन की उपमा के तौर पर नरव्याघ्र भी सुनाई देता है। दिनकर की रश्मिरथी में भी एक वाक्य है “क्षमा, दया, तप त्याग मनोबल सबका लिया सहारा, पर नरव्याघ्र सुयोधन तुमसे, कहो कहाँ कब हारा?”
महाभारत पढ़ते समय आप इसपर भी अचंभित हो सकते हैं कि जब लगातार विद्रोह होते रहे, लड़ाइयाँ लगातार चलती रहीं, तो भारतीय विदेशी हमलावरों के गुलाम कब और क्यों माने गए? आखिर पूरी तरह हम हारे कब थे? और हाँ, प्रतिरोध की सबसे लम्बी परम्परा होने; पूर्व की ओर बढ़ते रेगिस्तानी लुटेरों, उपनिवेशवादियों, मजहबों को राजनैतिक विचारधारा का नकाब पहनाये आक्रमणकारियों के खिलाफ सबसे लम्बी आजादी की लड़ाई जारी रखने वाली गौरवशाली सभ्यता होने पर गर्व करना तो बनता ही है!
लिखने का तरीका क्या होता है ? सीधा सा है, पहले आप अपनी सारी बात को ऐसी ही भाषा में टाइप कर डालते हैं जिस भाषा में आप बात करते हैं | लगातार बिना रुके एक बार में | फिर उसे दोबारा पढ़ते हैं, जहाँ भाषा या व्याकरण की गलती दिखती है वहां सुधार करते हैं | फिर फेसबुक पर पोस्ट चेप देते हैं | ऐसा ही ज्यादातर email और application (आवेदन वाला) में भी | एक flow में सोचा और फिर सुधारा |
अब अगर कहीं सोचने और लिखने वाले दो अलग अलग लोग हों तो क्या होगा ? महाभारत होगी जाहिर है ! जी हां महाभारत में भी ऐसा ही हुआ था | वेद व्यास सोचने के लिए जिम्मेदार थे और भगवान गणेश को बिठा लिया लिखने के लिए | भगवान गणेश को पहले ही पता था की कितना लम्बा ग्रन्थ ऋषिवर लिखवाने वाले हैं तो उन्होंने पहले ही शर्त रख दी | कहा की आप लगातार बोलते रहेंगे तो मैं लिखता हूँ, लेकिन जहाँ आपने बोलना बंद किया और मेरी कलम रुकी तो मैं दोबारा लिखना नहीं शुरू करने वाला |
वेद व्यास भी कम चतुर नहीं थे | उन्होंने कहा की आप मेरी बात समझे बिना उसे लिखेंगे नहीं | पहले पूरा अर्थ समझेंगे तभी लिखेंगे | अब जितनी देर में सोच सोच के भगवान गणेश लिखते उठने में वेद व्यास अगला श्लोक सोच लेते थे | ना वेद व्यास का क्रम टूटा न गणेश का और महाभारत लिख दी गई |
लेकिन महाभारत तो संस्कृत ग्रन्थ है | इसका नाम सुनते ही कुछ समय पहले तक सेक्युलर लोगों को शर्म आ जाती थी | सुना है इसका एक हिस्सा भगवत गीता भी कहलाता है | उसमे कुछ वर्ण व्यवस्था की बात भी है, लेकिन काव्य की सन्दर्भ सहित व्याख्या की जाती है ये बताना लोग भूल गए | इसके नाम से भी लोगों को शर्म आ जाती थी थोड़े दिन पहले तक | अब कोई कोई defend करने भी आ जाता है | इसके अलावा महाभारत में ढेर सारी रानियों राजकुमारियों का जिक्र है | मणिपुर की चित्रांगदा के परिवार / राज्य में स्त्रिओं से ही वंश आगे चलता था आज भी उत्तर पूर्व की ओर कई जगह ऐसा चलता है लेकिन उत्तर पूर्व की बात करते तो शर्म आ जाती होगी लोगों को | पूजा पाठ की पद्दतियां, भाषा, संस्कृति, किस बात पर शर्म नहीं आई ? चम्मच से खाने से लेकर पानी से धोने तक पर ?
अब प्रधानमंत्री ने कह दी यही बात तो फिर से मूंह छुपाना जारी है | जारी रखो महाभारत भाई, वो भी 18 दिन में ख़त्म नहीं हुआ था, लम्बा किस्सा है | ये भी जारी ही रहेगा |
✍🏻
आनन्द कुमार

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