Saturday 12 May 2018

सत्य को जानने के लिये - हमे ये जानना होगा,
कब ,कहाँ और किस - किस "महापुरुष" ने -- किस किस "विद्द्वान" ने -- क्या क्या "कहा" और क्या क्या "लिखा" और क्या क्या "किया"।
आप "गिनती" करने की कोशिश कीजिये कि -इस "लेख" में कितने "महापुरुषों के कथन" आये है।
----------------
प्रथम विश्व युद्ध में जब स्थिति बदली तो तुर्की अंग्रेजों के विरुद्ध और जर्मनी के पक्ष में हो गया। विश्व युद्ध में जर्मनी की पराजय के पश्चात अंग्रेजों ने तुर्की को मजा चखने के लिए तुर्की को विघटित कर दिया। अंग्रेज तुर्की के खलीफा के विरोध में सामने आ गए।
मुसलमान खलीफा को अपना नेता मानते थे। उनमे अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की लहर दौड़ गई।
भारत के मुस्लिम नेताओं ने इस मामले को लेकर अंग्रेजों के विरुद्ध सन १९२१ मैं “खिलाफत आन्दोलन” शुरू किया।
मुस्लिम नेताओं तथा भारतीय मुसलमानों को खुश करने के लिए गाँधी जी ने मोतीलाल नेहरु के सुझाव पर कांग्रेस की ओर से खिलाफत आन्दोलन के समर्थन की घोषणा की।
श्री विपिन चन्द्र पाल, डा. एनी बेसेंट, सी. ऍफ़ अन्द्रूज आदि नेताओं ने कांग्रेस की बैठक में खिलाफत के समर्थन का विरोध किया,किन्तु इस प्रश्न पर हुए मतदान में गाँधी जीत गए। गाँधी जी खिलाफत आन्दोलन के खलीफा ही बन गए।
गांधी जी के नेतृत्व में हिन्दू समाज समझ रहा था कि हम "राष्ट्रीय एकता और स्वराज्य" की दिशा में बढ़ रहे हैं और मुस्लिम समाज की सोच थी कि खिलाफत की रक्षा का अर्थ है इस्लाम के वर्चस्व की वापसी।
गाँधी ने 1919 ई. में “अखिल भारतीय ख़िलाफ़त समिति” का अधिवेशन "अपनी अध्यक्षता" में किया।
खिलाफत के प्रश्न को भारत के राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा बनाकर गांधी जी ने उलेमा वर्ग को प्रतिष्ठा प्रदान की और विशाल मुस्लिम समाज की मजहबी कट्टरता को संगठित होकर आंदोलन के रास्ते पर बढ़ने का अवसर प्रदान किया।
अगर खिलाफत आन्दोलन नहीं होता तो मुस्लिम लीग का वजूद एक क्षेत्रिय्र दल जैसा ही रहता और कभी बटवारा न हुआ होता,हम कह सकते हैं की "मोपला काण्ड और खिलाफत आन्दोलन" के कारण ही मुस्लिम नेताओं को आधार मिला देश के बटवारे का हिन्दुओं के कत्लेआम का।
"खिलाफत आंदोलन" ने आम मुस्लिम समाज में "राजनीतिक जागृति" पैदा की और अपनी शक्ति का अहसास कराया।
मुसलमानों व कांग्रेस ने जगह जगह प्रदर्शन किये। ‘अल्लाह हो अकबर’ जैसे नारे लगाकर मुस्लिमो की भावनाएं भड़काई गयी।
महामना मदनमोहन मालवीय जी तहत कुछ नेताओं ने चेतावनी दी की खिलाफत आन्दोलन की आड़ मैं मुस्लिम भावनाएं भड़काकर भविष्य के लिए खतरा पैदा किया जा रहा है किन्तु गांधीजी ने कहा :---“मैं मुसलमान भाईओं के इस आन्दोलन को "स्वराज" से भी ज्यादा महत्व देता हूँ l”
भले ही भारतीय मुसलमान खिलाफत आन्दोलन करने के वावजूद अंगेजों का बाल बांका नहीं कर पाए किन्तु उन्होंने पुरे भारत में "मृतप्राय मुस्लिम कट्टरपंथ" को जहरीले सर्प की तरह जिन्दा कर डाला।
यह सोच खिलाफत आंदोलन के प्रारंभ होने के कुछ ही महीनों के भीतर अगस्त 1921 में केरल के मलाबार क्षेत्र में वहां के हिन्दुओं पर मोपला मुसलमानों के आक्रमण के रूप में सामने आयी। हिन्दुओं के सामने "इस्लाम या मौत" का विकल्प प्रस्तुत किया गया।
एक लाख हिन्दुओं को (मारा गया , बलात धर्मान्तरित किया गया , हिन्दू औरतों के बलात्कार हुए) सैकड़ों मंदिर तोड़े गए तथा तीन करोड़ से अधिक हिन्दुओं की संपत्ति लूट ली गई। पूरे घटनाक्रम में महिलाओं को सबसे ज्यादा उत्पीड़ित होना पड़ा। यहां तक कि गर्भवती महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया।
मोपलाओं की वहशियत चरम पर थी। इस सम्बन्ध में 7 सितम्बर, 1921 में "टाइम्स आफ इंडिया" में जो खबर छपी वह इस प्रकार है:----
"विद्रोहियों ने सुन्दर हिन्दू महिलाओं को पकड़ कर जबरदस्ती मुसलमान बनाया। उन्हें अल्पकालिक पत्नी के रूप में इस्तेमाल किया। हिन्दू महिलाओं को डराकर उनके साथ बलात्कार किया। हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया।"
जबकि मौलाना हसरत मोहानी ने कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में मोपला अत्याचारों पर लाए गए निन्दा प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा:---
"मोपला प्रदेश दारुल अमन नहीं रह गया था, वह दारुल हरब में तब्दील हो गया था। मोपलाओं को संदेह था कि हिन्दू अंग्रेजों से मिले हुए हैं, जबकि अंग्रेज मुसलमानों के दुश्मन थे। मोपलाओं ने ठीक किया कि हिन्दुओं के सामने कुरान और तलवार का विकल्प रखा और यदि हिन्दू अपनी जान बचाने के लिए मुसलमान हो गए तो यह स्वैच्छिक मतान्तरण है, इसे जबरन नहीं कहा जा सकता।"
(राम गोपाल-इंडियन मुस्लिम-ए पालिटिकल हिस्ट्री, पृष्ठ-157)
यद्यपि इस आंदोलन की पहली मांग खलीफा पद की पुनर्स्थापना तथा दूसरी मांग भारत की स्वतंत्रता थी।
इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा.हेडगेवार इसे "अखिल आफत आंदोलन" तथा हिन्दू महासभा के डा.मुंजे "खिला-खिलाकर आफत बुलाना" कहते थे; पर इन देशभक्तों की बात को गांधी जी ने नहीं सुना।
कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टीकरण का जो देशघाती मार्ग उस समय अपनाया था, उसी पर आज भारत के अधिकांश राजनीतिक दल चल रहे हैं।
स्वामी श्रधानंद जी शिक्षाविद तथा आर्य प्रचारक के साथ साथ कांग्रेस के नेता भी थे। वह कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य भी थे।
स्वामी श्रधानंद जी , लाला लाजपत राय जी और महात्मा हंसराज जी ने धरम परिवर्तन करने वाले हिन्दुओं को पुन: वैदिक धरम मैं शामिल करने का अभियान शुरू किया।
कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं ने इनके द्वारा चलाये जा रहे शुद्धि आन्दोलन का विरोध शुरू कर दिया। कहा गया की यह आन्दोलन हिन्दू मुस्लिम एकता को कमजोर कर रहा है...
गाँधी जी के निर्देश पर कांग्रेस ने स्वामी जी को आदेश दिया की वे इस अभियान में भाग ना लें।
स्वामी श्रधानंद जी ने उत्तर दिया, "मुस्लिम मौलवी’ तबलीग" हिन्दुओं के धरमांतरण का अभियान चला रहे हैं ! क्या कांग्रेस उसे भी बंद कराने का प्रयास करेगी ?
कांग्रेस मुस्लिमों को तुस्त करने के लिए शुधि अभियान का विरोध करती रही लेकिन गांधीजी और कांग्रेस ने "तबलीग अभियान" के विरुद्ध एक भी शब्द नहीं कहा।
स्वामी श्रधानंद जी ने कांग्रेस से सम्बन्ध तोड़ लिया।
स्वामी जी ने और लाला लाजपत राय ने यह महसूस किया की अगर मुस्लिमो और इसाईओं को हिन्दुओं के निर्बाध धर्मान्तरण की छूट मिलती रही तो यह हिंदुस्तान की एकता के लिए भlरी खतरा सिद्ध होगा।
स्वामी श्रधानंद जी शुधि अभियान में पुरे जोर शोर से सक्रिय हो गए। ६० मलकाने मुसलमानों को वैदिक (हिन्दू) धरम में दीक्षित किया गया। उन्मादी मुसलमान शुद्धि अभियान को सहन नहीं कर पाए।
पहले तो उन्हें धमकियां दी गयीं, अंत में २२ दिसम्बर १९२६ को दिल्ली में "अब्दुल रशीद" नामक एक मजहबी उन्मादी ने उनकी गोली मारकर हत्या कर डाली।
स्वामी श्रधानंद जी की इस निर्मम हत्या ने सारे देश को व्यथित कर डाला परन्तु गाँधी जी ने यौंग इंडिया मैं लिखा:-----
” मैं भाई अब्दुल रशीद नामक मुसलमान, जिसने श्रधानंद जी की हत्या की है , के पक्ष में कहना चाहता हूँ , की इस हत्या का दोष हमारा है। अब्दुल रशीद जिस धर्मोन्माद से पीड़ित था, उसका उत्तरदायित्व हम लोगों पर है। देशाग्नी भड़काने के लिए केवल मुसलमान ही नहीं, हिन्दू भी दोषी हैं। ”
स्वातंत्रवीर सावरकर जी ने उन्हीं दिनों २० जनवरी १९२७ के ‘श्रधानंद’ के अंक मैं अपने लेख में गाँधी जी द्वारा हत्यारे अब्दुल रशीद की तरफदारी की कड़ी आलोचना करते हुए लिखा :--–
" गाँधी जी ने अपने को शुद्ध हृदय , महात्मा’ तथा निष्पक्ष सिद्ध करने के लिए एक मजहवी उन्मादी हत्यारे के प्रति सुहानुभूति व्यक्त की है | मालाबार के मोपला हत्यारों के प्रति वे पहले ही ऐसी सुहानुभूति दिखा चुके हैं।"
गाँधी जी ने स्वयं ‘हरिजन’ तथा अन्य पत्रों मैं लेख लिखकर स्वामी श्रधानंद जी तथा आर्य समाज के "शुधि आन्दोलन” की कड़ी निंदा की।
दूसरी ओर जगह जगह हिन्दुओं के बलात धरमांतरण के विरुद्ध उन्होंने एक भी शब्द कहने का साहस नहीं दिखाया।
मोपला कांड के चश्मदीद गवाह रहे "केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी" के "पहले अध्यक्ष और स्वतंत्रता सेनानी माधवन नॉयर" अपनी किताब "मालाबार कलपम" में लिखते हैं कि :---- मोपलाकांड में हिन्दुओं का सिर कलम कर थूवूर के कुओं में फेंक दिया गया।
क्या ऊपर की लाइन पढ़ के थोड़ी तकलीफ हुई तो एक बात याद रखो “मुस्लिम करें तो अल्लाह अल्लाह हिन्दू करें तो बहुत बुरा बहुत बुरा” ये गांधी का सिद्धांत था।
इस आंदोलन के दौरान ही मो. अली जौहर ने अफगानिस्तान के शाह अमानुल्ला को तार भेजकर भारत को दारुल इस्लाम बनाने के लिए अपनी सेनाएं भेजने का अनुरोध किया। इसी बीच खलीफा सुल्तान अब्दुल माजिद अंग्रेजों की शरण में आकर माल्टा चले गये। आधुनिक विचारों के समर्थक कमाल अता तुर्क नये शासक बने। देशभक्त जनता ने भी उनका साथ दिया। इस प्रकार खिलाफत आंदोलन अपने घर में ही मर गया; पर भारत में इसके नाम पर अली भाइयों ने अपनी रोटियां अच्छी तरह सेंक लीं।
अब अली भाई एक शिष्टमंडल लेकर सऊदी अरब के शाह अब्दुल अजीज से खलीफा बनने की प्रार्थना करने गये। शाह ने तीन दिन तक मिलने का समय ही नहीं दिया और चौथे दिन दरबार में सबके सामने उन्हें दुत्कार कर बाहर निकाल दिया।
भारत आकर मो.अली ने भारत को दारुल हरब (संघर्ष की भूमि) कहकर मौलाना अब्दुल बारी से हिजरत का फतवा जारी करवाया। इस पर हजारों मुसलमान अपनी सम्पत्ति बेचकर अफगानिस्तान चल दिये। इनमें उत्तर भारतीयों की संख्या सर्वाधिक थी; पर वहां उनके मजहबी भाइयों ने उन्हें खूब मारा तथा उनकी सम्पत्ति भी लूट ली। वापस लौटते हुए उन्होंने भी देश भर में दंगे और लूटपाट की।
खिलाफात आन्दोलन की की असफलता से चिढ़े मुसलमानों ने पुरे देश में दंगे करने शुरू कर दिए | केरल में मालावार क्षेत्र में मुस्लिम मोपलाओं ने वहां के हिन्दुओं पे जो अत्याचार ढाए, उनकी जिस बर्बरता से हत्या की उसे पढ़कर हृदय दहल जाता है।
1 - एक लाख हिन्दुओं को (मारा गया , बलात धर्मान्तरित किया गया , हिन्दू औरतों के बलात्कार हुए) और यह सब हुआ गाँधी के खिलाफत आन्दोलन के कारण ।
2 – 1920... तक तिलक की जिस कोंग्रेस का लक्ष्य स्वराज्य प्राप्ति था गाँधी ने अचानक उसे बदलकर आन्तरिक विरोध के बाद भी एक दूर देश तुर्की के खलीफा के सहयोग और मुस्लिम आन्दोलन में बदल डाला l
3 - गाँधी जी अपनी निति के कारण इसके उत्तरदायी थे,मौन रहे। उत्तर में यह कहना शुरू कर दिया कि - "मालाबार में हिन्दुओं को मुस्लमान नही बनाया गया सिर्फ मारा गया", जबकि उनके मुस्लिम मित्रों ने ये स्वीकार किया कि मुसलमान बनाने कि सैकडो घटनाएं हुई है।
4 – इतने बड़े दंगो के बाद भी गांधी की अहिंसा की दोगली नीत पर कोई फर्क नहीं पड़ा मुसलमानों को खुश करने के लिए इतने बड़े दंगो के दोषी मोपला मुसलमानों के लिए फंड शुरू कर दिया।
5 - गाँधी ने “खिलाफत आन्दोलन” का समर्थन करके इस्लामी उग्रवाद को पनपाने का काम किया।
6 - श्री विपिन चन्द्र पाल, डा. एनी बेसेंट, सी. ऍफ़ अन्द्रूज आदि राष्ट्रवादी नेताओं ने कांग्रेस की बैठक मैं खिलाफत के समर्थन का विरोध किया , किन्तु इस प्रश्न पर हुए मतदान मैं गाँधी जीत गए।
7 - महामना मदनमोहन मालवीय जी तहत कुछ नेताओं ने चेतावनी दी की खिलाफत आन्दोलन की आड़ मैं मुस्लिम भावनाएं भड़काकर भविष्य के लिए खतरा पैदा किया जा रहा है किन्तु गांधीजी ने कहा ‘ मैं मुसलमान भाईओं के इस आन्दोलन को स्वराज से भी ज्यादा महत्व देता हूँ "l
8 - महान स्वाधीनता सेनानी तथा हिन्दू महासभा के नेता भाई परमानन्द जी ने उस समय चेतावनी देते हुए कहा था , ‘ गाँधी जी तथा कांग्रेस ने मुसलमानों को तुष्ट करने के लिए जिस बेशर्मी के साथ खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया तथा अब खूंखार हत्यारे मोपलों की प्रसंसा कर रहे हैं, यह घटक नीति आगे चल के इस्लामी उग्रवाद को पनपाने में सहायक सिद्ध होगी l‘
9 – खिलाफत आन्दोलन का समर्थ कर गांधी तथा कांग्रेस ने मुस्लिम कट्टरवाद तथा अलगाववाद को बढ़ावा दिया था।
10 - अ. भा. कांग्रेस की अध्यक्ष रही डा. एनी बेसेंट ने २९ नवम्बर १९२१ को दिल्ली मैं जारी अपने वक्तब्य मैं कहा था :-– “असहयोग आन्दोलन को खिलाफत आन्दोलन का भाग बनाकर गांधीजी तथा कुछ कोंग्रेसी नेताओं ने मजहवी हिंसा को पनपने का अवसर दिया। एक ओर खिलाफत आन्दोलनकारी मोपला मुस्लिम मौलानाओं द्वारा मस्जिदों मैं भड़काऊ भाषण दिए जा रहे थे और दूसरी और असहयोग आन्दोलनकारी हिन्दू जनता से यह अपील कर रहे थे कि हिन्दू – मुस्लिम एकता को पुष्ट करने के लिए खिलाफत वालों को पूर्ण सहयोग दिया जाए l”
11 - डा. बाबा साहेब अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक "भारत का बिभाजन" के प्रष्ठ १८७ पर गाँधी जी पर प्रहार करते हुए लिखा था :---
"गाँधी जी हिंसा की प्रत्येक घटना की निंदा करने मैं चुकते नहीं थे किन्तु गाँधी जी ने ऐसी हत्याओं का कभी विरोध नहीं किया। उन्होंने चुप्पी साधे रखी। ऐसी मानसिकता का केवल इस तर्क पर ही विश्लेषित की जा सकती है की गाँधी जी हिन्दू- मुस्लिम एकता के लिए व्यग्र थे और इस उद्देश्य की पूर्ती के लिए कुछ हिन्दुओं की हत्या से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था" (उसी पुस्तक के प्रष्ठ १५७ पर )
12 - मालाबार और मुल्तान के बाद सितम्बर १९२४ मैं कोहाट मैं मजहबी उन्मादियों ने हिन्दुओं पर भी अत्याचार ढाए। कोहाट के इस दंगे मैं गुंडों द्वारा हिन्दुओं की निर्संस हत्याओं किये जाने का समाचार सुनकर भाई परमानन्द जी , स्वामी श्रधानंद जी तथा लाला लाजपत राय ने एकमत होकर कहा था ‘ खिलाफत आन्दोलन मैं मुसलमानों का समर्थन करने के ही यह दुषपरिणाम सामने आ रहे हैं की जगह जगह मुस्लमान घोर पाशविकता का प्रदर्शन कर रहे है।
हिन्दू महासभा के नेता स्वातंत्र वीर सावरकर जी ने आगे चलकर मालावार क्षेत्र का भ्रमण कर वहां के अत्याचारों व हत्याकांड की पृष्ठभूमि पर ‘मोपला’ नामक उपन्यास लिखा था।
खिलाफा आन्दोलन का समर्थन कर गाँधी जी तथा कांग्रेस ने मुस्लिम कट्टरवाद तथा अलगावबाद को बढ़ावा दिया था। मोपलाओं द्वारा हिन्दुओं की निर्संस हत्या का जब आर्य समाज तथा हिन्दू महासभा ने विरोध किया तब भी गाँधी जी मोपलाओं को ‘शांति का दूत’ बताने से नहीं चुके।
महान स्वाधीनता सेनानी तथा हिन्दू महासभा के नेता भाई परमानन्द जी ने उस समय चेतावनी देते हुए कहा था , "गाँधी जी तथा कांग्रेस ने मुसलमानों को तुष्ट करने के लिए जिस बेशर्मी के साथ खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया तथा अब खूंखार हत्यारे मोपलों की प्रसंसा कर रहे हैं, यह घटक नीति आगे चल के इस्लामी उग्रवाद को पनपाने में सहायक सिद्ध होगी l"
महात्मा गाँधी कांग्रेसी मुसलमानों को तुष्ट करने के लिए मोपला विद्रोह को अग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह बताकर आततायिओं को स्वाधीनता सेनानी सिद्ध करने का प्रयास कर रहे थे जबकि मोपला मैं लाखों हिन्दुओं की नश्रंस हत्या की गयी और २०, ००० हिन्दुओं को धर्मान्तरित कर मुस्लिम बनया गया।
मालाबार और मुल्तान के बाद सितम्बर १९२४ में कोहाट मैं मजहबी उन्मादियों ने हिन्दुओं पर भी अत्याचार ढाए।
कोहाट के इस दंगे में गुंडों द्वारा हिन्दुओं की निर्संस हत्याओं किये जाने का समाचार सुनकर भाई परमानन्द जी , स्वामी श्रधानंद जी तथा लाला लाजपत राय ने एकमत होकर कहा था :-- "खिलाफत आन्दोलन में मुसलमानों का समर्थन करने के ही यह दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं कि जगह जगह मुस्लमान घोर पाशविकता का प्रदर्शन कर रहे हैं l"
दिसम्बर १९२४ में बेलगाँव में प. मदनमोहन मालवीय जी की अध्यक्षता में हुए हिन्दू महासभा के अधिवेशन में कांग्रेस की मुस्लिम पोषक नीति पर कड़े प्रहार कर हिन्दुओं को राजनीतिक द्रष्टि से संगठित करने पर बल दिया गया।
इतिहासकार शिवकुमार गोयल ने अपनी पुस्तक में कांग्रेस की भूमिका का उल्लेख किया है। यह देश का दुर्भाग्य रहा है की कांग्रेस ने इस्लामी आतंकवाद के विरुद्ध एक भी शब्द नहीं बोला। जब आर्य समाज, हिन्दू महासभा और अन्य हिन्दू संगठनो ने शुद्धिकरण अभियान चलाया तो यह लोग कट्टरपंथियों की नजरों में काँटा बन गए।
महापुरुषों के विचार पढ़े सत्य अंधेरे को चीर के बाहर निकलता दिखाई देगा।
कभी कभी इतिहास अपने आप को दोहराता है।
क्या -- कांग्रेस ने "मुस्लिम तुष्टीकरण" की नीति "गाँधी" से सीखी थी।
क्या -- गाँधी ने “खिलाफत आन्दोलन” का समर्थन करके "इस्लामी उग्रवाद" को पनपाने का काम नहीं किया था --??--
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल और डॉ सुब्रहमनियन स्वाीमी का यह वीडियो सुनिए।
https://www.youtube.com/watch?v=SKpl7v_c-Qo
-----------------

No comments:

Post a Comment