Saturday, 30 June 2018

Samaadhan: ,*कृष्ण घंटे भर की क्लास बार-बार नहीं लगाते*..

Samaadhan: ,*महाभारत से पहले कृष्ण भी गए थे दुर्योधन के दरबार...: ,*महाभारत से पहले कृष्ण भी गए थे दुर्योधन के दरबार में. यह प्रस्ताव लेकर, कि हम युद्ध नहीं चाहते....* *तुम पूरा राज्य रखो.... पाँडवों को स...
जानिए अमरनाथ यात्रा का पूरा इतिहास 
 इस गुफा को 1850 में एक मुसलिम बूटा मलिक ने खोजा था इस झूठ को जोर-शोर से प्रचारित किया था। जबकि इतिहास में दर्ज है कि जब इसलाम इस धरती पर मौजूद भी नहीं था, यानी इसलाम पैगंबर मोहम्मद का जन्म भी नहीं हुआ था, तब से अमरनाथ की गुफा में सनातन संस्कृति के अनुयायी बाबा बर्फानी की पूजा-अर्चना कर रहे हैं।
कश्मीर के इतिहास पर कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ और नीलमत पुराण से सबसे अधिक प्रकाश पड़ता है। श्रीनगर से 141 किलोमीटर दूर 3888 मीटर की उंचाई पर स्थित अमरनाथ गुफा को तो भारतीय पुरातत्व विभाग ही 5 हजार वर्ष प्राचीन मानता है। यानी महाभारत काल से इस गुफा की मौजूदगी खुद भारतीय एजेंसियों मानती हैं। 
‘राजतरंगिणी’ में अमरनाथ
अमरनाथ की गुफा प्राकृतिक है न कि मानव नर्मित। इसलिए पांच हजार वर्ष की पुरातत्व विभाग की यह गणना भी कम ही पड़ती है, क्योंकि हिमालय के पहाड़ लाखों वर्ष पुराने माने जाते हैं। यानी यह प्राकृतिक गुफा लाखों वर्ष से है। कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ में इसका उल्लेख है कि कश्मीर के राजा सामदीमत शैव थे और वह पहलगाम के वनों में स्थित बर्फ के शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने जाते थे। ज्ञात हो कि बर्फ का शिवलिंग अमरनाथ को छोड़कर और कहीं नहीं है। यानी वामपंथी, जिस 1850 में अमरनाथ गुफा को खोजे जाने का कुतर्क गढ़ते हैं, इससे कई शताब्दी पूर्व कश्मीर के राजा खुद बाबा बर्फानी की पूजा कर रहे थे।
नीलमत पुराण और बृंगेश संहिता में अमरनाथ।
नीलमत पुराण, बृंगेश संहिता में भी अमरनाथ तीर्थ का बारंबार उल्लेख मिलता है। बृंगेश संहिता में लिखा है कि अमरनाथ की गुफा की ओर जाते समय अनंतनया (अनंतनाग), माच भवन (मट्टन), गणेशबल (गणेशपुर), मामलेश्वर (मामल), चंदनवाड़ी, सुशरामनगर (शेषनाग), पंचतरंगिरी (पंचतरणी) और अमरावती में यात्री धार्मिक अनुष्ठान करते थे।
वहीं छठी में लिखे गये नीलमत पुराण में अमरनाथ यात्रा का स्पष्ट उल्लेख है। नीलमत पुराण में कश्मीर के इतिहास, भूगोल, लोककथाओं, धार्मिक अनुष्ठानों की विस्तृत रूप में जानकारी उपलब्ध है। नीलमत पुराण में अमरेश्वरा के बारे में दिए गये वर्णन से पता चलता है कि छठी शताब्दी में लोग अमरनाथ यात्रा किया करते थे।
नीलमत पुराण में तब अमरनाथ यात्रा का जिक्र है जब इस्लामी पैगंबर मोहम्मद का जन्म भी नहीं हुआ था। तो फिर किस तरह से बूटा मलिक नामक एक मुसलमान गड़रिया अमरनाथ गुफा की खोज कर कर सकता है? ब्रिटिशर्स, मार्क्सवादी और नेहरूवादी इतिहासकार का पूरा जोर इस बात को साबित करने में है कि कश्मीर में मुसलमान हिंदुओं से पुराने वाशिंदे हैं। इसलिए अमरनाथ की यात्रा को कुछ सौ साल पहले शुरु हुआ बताकर वहां मुसलिम अलगाववाद की एक तरह से स्थापना का प्रयास किया गया है!
इतिहास में अमरनाथ गुफा का उल्लेख
अमित कुमार सिंह द्वारा लिखित ‘अमरनाथ यात्रा’ नामक पुस्तक के अनुसार, पुराण में अमरगंगा का भी उल्लेख है, जो सिंधु नदी की एक सहायक नदी थी। अमरनाथ गुफा जाने के लिए इस नदी के पास से गुजरना पड़ता था। ऐसी मान्यता था कि बाबा बर्फानी के दर्शन से पहले इस नदी की मिट्टी शरीर पर लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं। शिव भक्त इस मिट्टी को अपने शरीर पर लगाते थे।
पुराण में वर्णित है कि अमरनाथ गुफा की उंचाई 250 फीट और चौड़ाई 50 फीट थी। इसी गुफा में बर्फ से बना एक विशाल शिवलिंग था, जिसे बाहर से ही देखा जा सकता था। बर्नियर ट्रेवल्स में भी बर्नियर ने इस शिवलिंग का वर्णन किया है। विंसेट-ए-स्मिथ ने बर्नियर की पुस्तक के दूसरे संस्करण का संपादन करते हुए लिखा है कि अमरनाथ की गुफा आश्चर्यजनक है, जहां छत से पानी बूंद-बूंद टपकता रहता है और जमकर बर्फ के खंड का रूप ले लेता है। हिंदू इसी को शिव प्रतिमा के रूप में पूजते हैं। ‘राजतरंगिरी’ तृतीय खंड की पृष्ठ संख्या-409 पर डॉ. स्टेन ने लिखा है कि अमरनाथ गुफा में 7 से 8 फीट का चौड़ा और दो फीट लम्बा शिवलिंग है। कल्हण की राजतरंगिणी द्वितीय, में कश्मीर के शासक सामदीमत 34 ई.पू से 17 वीं ईस्वी और उनके बाबा बर्फानी के भक्त होने का उल्लेख है।
यही नहीं, जिस बूटा मलिक को 1850 में अमरनाथ गुफा का खोजकर्ता साबित किया जाता है, उससे करीब 400 साल पूर्व कश्मीर में बादशाह जैनुलबुद्दीन का शासन 1420-70 था। उसने भी अमरनाथ की यात्रा की थी। इतिहासकार जोनराज ने इसका उल्लेख किया है। 
16 वीं शताब्दी में मुगल बादशाह अकबर के समय के इतिहासकार अबुल फजल ने अपनी पुस्तक ‘आईने-अकबरी’ में में अमरनाथ का जिक्र एक पवित्र हिंदू तीर्थस्थल के रूप में किया है। ‘आईने-अकबरी’ में लिखा है- गुफा में बर्फ का एक बुलबुला बनता है। यह थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक रोजाना बढ़ता है और यह दो गज से अधिक उंचा हो जाता है। चंद्रमा के घटने के साथ-साथ वह भी घटना शुरू हो जाता है और जब चांद लुप्त हो जाता है तो शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है।
वास्तव में कश्मीर घाटी पर विदेशी इस्लामी आक्रांता के हमले के बाद हिंदुओं को कश्मीर छोड़कर भागना पड़ा। इसके बारण 14 वीं शताब्दी के मध्य से करीब 300 साल तक यह यात्रा बाधित रही। यह यात्रा फिर से 1872 में आरंभ हुई। इसी अवसर का लाभ उठाकर कुछ इतिहासकारों ने बूटा मलिक को 1850 में अमरनाथ गुफा का खोजक साबित कर दिया और इसे लगभग मान्यता के रूप में स्थापित कर दिया। जनश्रुति भी लिख दी गई जिसमें बूटा मलिक को लेकर एक कहानी बुन दी गई कि उसे एक साधु मिला। साधु ने बूट को कोयले से भरा एक थैला दिया। घर पहुंच कर बूटा ने जब थैला खोला तो उसमें उसने चमकता हुआ हीरा माया। वह वह हीरा लौटाने या फिर खुश होकर धन्यवाद देने जब उस साधु के पास पहुंचा तो वहां साधु नहीं था, बल्कि सामने अमरनाथ का गुफा था। आज भी अमरनाथ में जो चढ़ावा चढ़ाया जाता है उसका एक भाग बूटा मलिक के परिवार को दिया जाता है।
चढ़ावा देने से हमारा विरोध नहीं है, लेकिन झूठ के बल पर इसे दशक-दर-दशक स्थापित करने का यह जो प्रयास किया गया है, उसमें बहुत हद तक इन लोगों को सफलता मिल चुकी है।
आज भी किसी हिंदू से पूछिए, वह नीलमत पुराण का नाम नहीं बताएगा, लेकिन एक मुसलिम गरेडि़ए ने अमरनाथ गुफा की खोज की, तुरंत इस फर्जी इतिहास पर बात करने लगेगा। यही फेक विमर्श का प्रभाव होता है, जिसमें ब्रिटिशर्स-मार्क्सवादी-नेहरूवादी इतिहासकार सफल रहे हैं।
साभार~#India_Speaks_Daily .

Friday, 29 June 2018

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*महाभारत से पहले कृष्ण भी गए थे दुर्योधन के दरबार में. यह प्रस्ताव लेकर, कि हम युद्ध नहीं चाहते....*

*तुम पूरा राज्य रखो.... पाँडवों को सिर्फ पाँच गाँव दे दो...*

*वे चैन से रह लेंगे, तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे.*


बेटे ने पूछा - "पर इतना *unreasonable proposal* लेकर कृष्ण गए क्यों थे ?

अगर दुर्योधन प्रोपोजल एक्सेप्ट कर लेता तो..?


पिता :- नहीं करता....!

कृष्ण को पता था कि वह प्रोपोजल एक्सेप्ट नहीं करेगा...


*उसके मूल चरित्र के विरुद्ध था*.


फिर कृष्ण ऐसा प्रोपोजल लेकर गए ही क्यों थे..?


*वे तो सिर्फ यह सिद्ध करने गए थे कि दुर्योधन कितना अनरीजनेबल, कितना अन्यायी था.*


वे पाँडवों को सिर्फ यह दिखाने गए थे,

कि देख लो बेटा...

युद्ध तो तुमको लड़ना ही होगा... हर हाल में...

अब भी कोई शंका है तो निकाल दो....मन से.

तुम कितना भी संतोषी हो जाओ,

कितना भी चाहो कि "घर में चैन से बैठूँ "...


*दुर्योधन तुमसे हर हाल में लड़ेगा ही*.


*"लड़ना.... या ना लड़ना" - तुम्हारा ऑप्शन नहीं है..."*


फिर भी बेचारे अर्जुन को आखिर तक शंका रही...

"सब अपने ही तो बंधु बांधव हैं...."😞


कृष्ण ने सत्रह अध्याय तक फंडा दिया...फिर भी शंका थी..


*ज्यादा अक्ल वालों को ही ज्यादा शंका होती है ना 😄*


*दुर्योधन को कभी शंका नहीथी*...

*उसे हमेशा पता था कि "उसे युद्ध करना ही है... "उसने गणित लगा रखा था....*


*हिन्दुओं को भी समझ लेना होगा कि* :-

"कन्फ्लिक्ट होगा या नहीं,

यह आपका ऑप्शन *नहीं* है...


आपने तो पाँच गाँव का प्रोपोजल भी देकर देख लिया...


देश के दो टुकड़े मंजूर कर लिए,


*(उस में भी हिंदू ही खदेड़ा गया अपनी जमीन जायदाद ज्यों की त्यों छोड़कर....)*


हर बात पर *विशेषाधिकार* देकर देख लिया....


*हज के लिए सबसीडी* देकर देख ली,


उनके लिए अलग नियम

कानून (धारा 370) बनवा कर देख लिए...


*"आप चाहे जो कर लीजिए, उनकी माँगें नहीं रुकने वाली"*


उन्हें सबसे स्वादिष्ट उसी *गौमाता* का माँस लगेगा जो आपके लिए पवित्र है,

उसके बिना उन्हें भयानक कुपोषण हो रहा है.


उन्हें "सबसे प्यारी" वही मस्जिदें हैं,

जो हजारों साल पुराने *"आपके" ऐतिहासिक मंदिरों को तोड़ कर बनी हैं....*

उन्हें सबसे ज्यादा परेशानी उसी आवाज से है

*जो मंदिरों की घंटियों और पूजा-पंडालों से है.*


ये माँगें *गाय* को काटने तक नहीं रुकेंगी...

यह समस्या मंदिरों तक नहीं रहने वाली,

यह हमारे घर तक आने वाली है...

हमारी *बहू-बेटियों* तक जाने वाली है...

*आज का तर्क है*:-

तुम्हें गाय इतनी प्यारी है तो *सड़कों पर क्यों घूम रही है ?*

हम तो काट कर खाएँगे....

हमारे मजहब में लिखा है !


कल कहेंगे,

*"तुम्हारी बेटी की इतनी इज्जत है तो वह अपना *खूबसूरत चेहरा ढके बिना* घर से निकलती ही क्यों है ?


हम तो उठा कर ले जाएँगे."


*उन्हें समस्या गाय से नहीं है*,

*हमारे "अस्तित्व" से है*.


तुम जब तक हो,

उन्हें कुछ ना कुछ प्रॉब्लम रहेगी.


*इसलिए हे अर्जुन*,

*और डाउट मत पालो*...

*कृष्ण घंटे भर की क्लास बार-बार नहीं लगाते*..


*25 साल पहले कश्मीरी हिन्दुओं का सब कुछ छिन गया..... वे शरणार्थी कैंपों में रहे, पर फिर भी वे आतंकवादी नहीं बनते....*


जबकि कश्मीरी मुस्लिमों को सब कुछ दिया गया....

वे फिर भी आतंकवादी बन कर जन्नत को जहन्नुम बना रहे हैं ।


*पिछले साल की बाढ़ में सेना के जवानों ने जिनकी जानें बचाई वो आज उन्हीं जवानों को पत्थरों से कुचल डालने पर आमादा हैं....*


इसे ही कहते हैं संस्कार.....

ये अंतर है *"धर्म"* और *"मजहब"* में..!!


एक जमाना था जब लोग मामूली चोर के जनाजे में शामिल होना भी शर्मिंदगी समझते थे....


*और एक ये गद्दार और देशद्रोही लोग हैं जो खुले आम... पूरी बेशर्मी से एक आतंकवादी के जनाजे में शामिल हैं..!*

-

*सन्देश साफ़ है,,,*

एक कौम,

देश और तमाम दूसरी कौमों के खिलाफ युद्ध छेड़ चुकी है....

*अब भी अगर आपको नहीं दिखता है तो...*

*यकीनन आप अंधे हैं !*

*या फिर शत प्रतिशत देश के गद्दार..!!*


आज तक हिंदुओं ने किसी को हज पर जाने से नहीं रोका...

*लेकिन हमारी अमरनाथ यात्रा हर साल बाधित होती है* !

*फिर भी हम ही असहिष्णु हैं.....?*

*ये तो कमाल की धर्मनिरपेक्षता है भाई*
सोनिया गांधी आईपीएल का कांसेप्ट
1 - .2008 मे शुरू हुए आईपीएल का कांसेप्ट ललित मोदी का था। लेकिन कांग्रेस राज मे सोनिया गैग को मनचाही रकम अदा किये बिना आईपीएल को मंजूरी नही मिलती इसलिए आईपीएल से सम्बंधित सभी कॉन्ट्रैक्ट अंटोनिआ माइनो उर्फ़ सोनिया गांधी के वफादारों को दिया गया था।
2- आईपीएल का स्पॉन्सरशिप सोनिया गांधी की मनपसंद DLF कंपनी को दिया गया था। DLF वही कंपनी है जिसने रॉबर्ट वाड्रा के साथ मिल कर गरीब किसानो की सैकड़ो हेक्टेयर जमीन हथिया कर अरबो रुपये के वारे न्यारे कर लिया था। टिम्मी सरना DLF का डायरेक्टर है।टिम्मी सरना ही वह व्यक्ति है जिसका उल्लेख ललित मोदी ने अपने ट्वीट मे किया था और इसी के साथ प्रियंका और रॉबर्टवाड्रा ललित मोदी से मिलने लंदन गए थे। आईपीएल के जरिये सोनिया गांधी ने अवैध रूप से हज़ारो करोड रुपये कमाए है
3 - 2010 में सोनिया गांधी ने शशि थरूर के जरिये आईपीएल में कोच्ची टीम ख़रीदने के लिए सभी नियम कानून ताक पर रख दिया। जब इसका विरोध ललित मोदी ने किया तो तिलमिलाई सोनिया ने ललित मोदी को बर्खास्त करवा दिया और सरकारी एजेंसिया पीछे लगा दी।
4 - . ललित मोदी को सोनिया गांधी के बारे में बेहद गोपनीय बाते पता है जिसे बचाने के लिए कांग्रेसी ललित मोदी की हत्या भी करवा सकते है। यह बात साबित होती है सुनंदा पुष्कर की हत्या से। दरअसल जिस दिन सुनंदा पुष्कर कोच्चि टीम के मालिक शशि थरूर और सोनिया गांधी के बारे मे आईपीएल से सम्बंधित बेहद सनसनीखेज खुलासे करने वाली थी, उससे कुछ घंटे पहले ही सुनंदा पुष्कर की हत्या कर दी गयी।
5 - . सुनंदा पुष्कर की हत्या बेहद सुरक्षित कहे जाने वाले ५ स्टार होटल मे की गयी थी। जाँच रिपोर्ट मे ये बात सामने आई है कि सुनंदा पुष्कर की हत्या मे इस्तेमाल किया गया पोइजन विदेश से मंगवाया गया था। सुनंदा पुष्कर के हाथ मे इंजेक्शन के निशान मिले है, सुनंदा पुष्कर के चेहरे पर जख्म के निशान मिले हैं, हत्या के बाद बेडशीट बदली गयी थी, कमरे से सबूत मिटाये गए थे, सिर्फ सुनंदा पुष्कर के कमरे के बाहर का cctv कैमरा ख़राब था। जिस अस्पताल मे सुनंदा पुष्कर का पोस्ट मोर्टेम किया जा रहा था उसी वक़्त उस अस्पताल मे शशि थरूर भी भर्ती हो गया। और स्वाथ्य मंत्री गुलाम नबी आज़ाद के जरिये रिपोर्ट मे सब कुछ सामान्य लिखने के लिए पोस्ट मोर्टेम करने वाले डॉक्टर पर दबाव डालने लगा।
6 - . सुब्रमनियन स्वामी का कहना है कि सुनंदा पुष्कर कि हत्या में सोनिया गांधी का हाथ है और इस हत्याकांड में रशियन पॉइजन उपयोग किया गया है। ये बात जाँच में भी साबित हो गयी है। इस केस मे सुब्रमनियन स्वामी द्वारा कही गयी हर बात सच साबित हो रही है। सोनिया गांधी के खिलाफ लड़ने वाले सुब्रमनियन स्वामी अकेले योद्धा हैं। इसी वजह से सोनिया के वफादार अर्नब गोस्वामी ने सुब्रमनियन स्वामी पर फ़र्ज़ी आरोप लगा कर गाली गलौज की थी।
6 - . कॉमनवेल्थ घोटाले मे अर्नब गोस्वामी को गिफ्ट मे मिला नोएडा का आलिशान बंगला रोबर्ट वाड्रा जमीन घोटाले की रियल एस्टेट कंपनी DLF ने ही दिया है। इसके अलावा 2G घोटाले की प्रमुख कंपनी एस्सार ने भी अर्नब गोस्वामी को लेम्बोर्गिनी कार गिफ्ट किया है। सोनिया गांधी की ब्रिटिश कंपनी बेनेट एंड कोलमैन से सिफारिश के चलते अर्नब गोस्वामी २३ जनवरी २००६ को शुरू हुए टाइम्स नाउ चैनल का सीधे एडिटर इन चीफ बन गया। टाइम्स नाउ पर अर्नब गोस्वामी ने अपना पहला इंटरव्यू सोनिया गांधी का ही लिया था जो किसी भी चैनल को वक्त नही देती इस पर क्यो मेहरबानी दिखाई थी..

अरून शुक्ला
टर है।

Thursday, 28 June 2018

रसोईघर से अध्यक्ष पद तक ।
सुनने में ही यह बहुत अजीब लगता है कि क्या कोई साधारण रसोइया कभी किसी राष्ट्रव्यापी संस्था का अध्यक्ष बन सकता है; पर अपनी लगन और कर्मठता से जिन्होंने इसे सत्य सिद्ध कर दिखाया, वे थे स्वामी ध्रुवानन्द सरस्वती जी की पुण्य-तिथि
मथुरा (उ.प्र.) के पानीगाँव नामक ग्राम में जन्मे धुरिया नामक बालक को जीवन के 23 वर्ष तक पढ़ने का अवसर ही नहीं मिला। निर्धन और अशिक्षित परिवार में जन्म लेने के कारण कुछ बड़े होते ही उसे पशु चराने के काम में लगा दिया गया। कुछ दिनों बाद स्वामी सर्वानन्द जी ने उसे अपनी संस्कृत पाठशाला के छात्रावास में भोजन बनाने का काम दे दिया।
बच्चों को संस्कृत पढ़ते देखकर उसके मन में भी पढ़ने की लालसा होती थी; पर उसे भोजनालय में काफी समय लग जाता था। एक बार बहुत संकोच से उसने स्वामी जी को अपनी इच्छा बताई। स्वामी जी यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। वे सबके साथ उसे भी पढ़ाने लगे। उन्होंने उसका नाम धुरेन्द्र रख दिया।
शिक्षा प्रारम्भ होते ही धुरेन्द्र की प्रतिभा प्रकट होने लगी। वह अपने साथियों से सदा आगे दिखायी देते थे। क्रमशः उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से शास्त्री, जयपुर से नव्य शास्त्र तथा काशी से दर्शन शास्त्र की उच्च शिक्षा पायी। इसके बाद वे आगरा में शुद्धि सभा के मन्त्री बने। वे बंगाल और गुरुकुल बैद्यनाथ धाम, बिहार में प्राचार्य भी रहे। उनकी ख्याति सुनकर शाहपुर नरेश ने अपने युवराज सुदर्शन देव को पढ़ाने के लिए उन्हें बुलाया और राजगुरु का सम्मान दिया। अन्य अनेक राजाओं की ओर से भी उन्हें भरपूर मान सम्मान प्राप्त हुआ।
हैदराबाद के क्रूर निजाम के अत्याचारों से हिन्दुओं की मुक्ति हेतु हुए सत्याग्रह में वे 1,500 साथियों के साथ सम्मिलित हुए और जेल की यातनाएँ सहीं। 1946 में जब सिन्ध प्रान्त में ‘सत्यार्थ प्रकाश’ पर प्रतिबन्ध लगा, तो इसके विरुद्ध उन्होंने कराची में सत्याग्रह किया। गान्धी जी के साथ भी वे अनेक बार जेल गये।
7 जुलाई, 1954 को अलीगढ़ के पास स्थित सर्वदानन्द साधु आश्रम में स्वामी आत्मानन्द से संन्यास की दीक्षा लेकर वे राजगुरु धुरेन्द्र शास्त्री से स्वामी ध्रुवानन्द सरस्वती हो गये। तत्कालीन संयुक्त प्रान्त की आर्य प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष के नाते उन्होंने संगठन में नये प्राण फूँके।
उनकी विद्वत्ता के कारण देश-विदेश से उन्हें निमन्त्रण आते रहते थे। उन्होंने भारत से बाहर युगाण्डा, जंजीबार, बर्मा, मारीशस, सिंगापुर, थाइलैण्ड आदि देशों में आर्यसमाज एवं हिन्दुत्व का प्रचार किया। जब आर्यसमाज ने गोहत्या बन्दी के लिए पूरे देश में आन्दोलन चलाया, तो उसकी बागडोर उन्हें ही सौंपी गयी। इसके लिए उन्होंने दिन रात परिश्रम किया। उनकी योग्यता, समर्पण तथा संगठन क्षमता से सब लोग बहुत प्रभावित हुए। आगे चलकर उन्हें आर्यसमाज की सर्वोच्च संस्था ‘सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा’ का अध्यक्ष बनाया गया।
इस पद पर रहकर उन्होंने विभिन्न इकाइयों में चल रहे विवादों को सुलझाया। वे हर हाल में संगठन हित को ही सर्वोपरि रखते थे।
स्वामी ध्रुवानन्द सरस्वती ने संगठन कार्य के लिए अपने स्वास्थ्य की भी चिन्ता नहीं की।
29 जून, 1965 को वे मुम्बई से दिल्ली के लिए अपने आवास से निकले ही थे कि उन्हें तीव्र हृदयाघात हुआ। चिकित्सक के आने से पहले ही उनका शरीर छूट गया।
कैथोलिक संस्कार का एक अहम हिस्सा है – कन्फेशन, जिसमें पुरुष और महिलाएं बपतिस्मा के बाद किए गए अपने पापों को स्वीकार करते हैं और उसके बाद ईश्वर का प्रतिनिधि पादरी उन्हें ईश्वर के नाम पर पाप मुक्त कर देता है । गंभीर पापों के लिए साल में कम से कम एक बार कैथोलिक अनुष्ठान आयोजित होता है, जिसमें आमतौर पर एक कन्फेसनल बॉक्स या बूथ में अकेले घुटने के बल बैठकर महिला या पुरुष अपने पापों का उल्लेख करते हुए ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करते हैं | इस संस्कार को पेनेंस, रिकन्सीलेशन या कन्फेशन आदि कई नामों से जाना जाता है ।
कैथोलिक अनुयाईयों के लिए इस संस्कार का उद्देश्य आत्मा को शुद्ध करना और स्वयं को पाप मुक्त होकर ईश्वर की कृपा प्राप्त करना होता है। अपराधी अपने द्वारा किये गए ऐसे कार्यों के लिए दुःख व्यक्त करता है, जिनसे ईश्वर नाराज हो सकता है और पादरी को चर्च द्वारा यह अधिकार दिया गया है कि वह उन पापों से उस व्यक्ति को बाईबिल के निर्देशों के अनुसार मुक्त होने का तरीका बताये ।
कैथोलिक चर्च अपने अनुयाईयों को सीख देता है कि कबूलनामे के लिए तीन "कृत्यों" की आवश्यकता होती है: पापों पर ह्रदय से दुःख व्यक्त करना, अपने पापों का प्रकटीकरण ('कबुल करना'), और 'तपस्या', यानी पापों से मुक्त होने के लिए कुछ करना। कन्फेशन के इस तरीके में सदियों से कोई बदलाव नहीं हुआ है । यह अलग बात है कि जिन्हें चर्च ईश्वर का प्रतिनिधि घोषित करता है, वे कितने उसके योग्य हैं ?
इसका सबसे बड़ा प्रमाण मिला है केरल के मलंकर आर्थोडोक्स सीरियन चर्च में, जहाँ एक नहीं बल्कि आठ ईसाई पादरीयों पर आरोप लगा है कि उन्होंने कन्फेशन के आधार पर एक गृहिणी को ब्लैकमेल कर उसका यौन शोषण किया । यह हैरतअंगेज समाचार आजकल सोशल मीडिया पर काफी चर्चित हो गया है, भले ही प्रिंट मीडिया या इलेक्ट्रानिक मीडिया में चुप्पी है | महिला के पति और एक अन्य के बीच की चर्चा कि वाईस क्लिप के बाद यह मामला सार्वजनिक हुआ और सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।
चर्च को लिखे एक पत्र में, कोट्टयम जिले के तिरुवल्ला के इस व्यक्ति ने आरोप लगाया है कि उसकी पत्नी के कन्फेशन को पादरियों ने ब्लैकमेल करने के लिए इस्तेमाल किया । रिपोर्टों के अनुसार, चर्च ने आरोपों के बाद पांच पुजारियों को छुट्टी पर भेज दिया है ।
घटना कुछ इस प्रकार से है कि एक प्रीस्ट ने शादी से पहले उसके साथ छेड़छाड़ की थी। बाद में, विवाह के बाद, जब उसने इसे एक अन्य प्रीस्ट के सम्मुख इसे स्वीकार किया, तो उसने उस महिला को ब्लैकमेल किया। उसने महिला को धमकी दी कि वह उसके पति को सबकुछ बता देगा। वायरल हुई ऑडियो क्लिप में पीड़ित पति का कहना है, कि प्रीस्ट ने ब्लैकमेल कर उसकी पत्नी के साथ न केवल यौन संबंध बनाए, बल्कि उसके फोटो भी खींच लिए | उन तस्वीरों का उपयोग कर महिला के साथ बार बार दुराचार किया गया | मन भर जाने के बाद उस प्रीस्ट ने महिला को दूसरे प्रीस्ट को सोंप दिया ।
महिला के पति का यह भी कहना है कि उसके ऊपर शिकायत वापस लेने के लिए चर्च के भीतर की बड़ी हस्तियां दबाव बना रही है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, चर्च की कार्यकारी समिति के सदस्य और ट्रस्टी फादर एम ओ जॉन ने कहा है कि पांच पादरियों पर लगे आरोप की जाँच के लिए एक जांच पैनल बनाया गया है, जिसमें चार सदस्य कोट्टायम के मुख्य चर्च से हैं तो एक पादरी दिल्ली के है।
प्रारंभ में तो स्थानीय मलयालम मीडिया ने इस बड़े सेक्स स्कैंडल को पूरी तरह दबा ही दिया था, किन्तु सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद यह मुद्दा राष्ट्रीय स्तर का हो गया । यद्यपि शिकायतकर्ता ने अपने पत्र में आठ लोगों का उल्लेख किया, किन्तु चर्च ने केवल पांच प्रीस्ट के खिलाफ ही कार्रवाई की । किन्तु सबसे हैरत अंगेज तथ्य यह है कि इतना सब कुछ हो जाने के बावजूद, अब तक इस मुद्दे पर कोई पुलिस मामला दर्ज नहीं किया गया है।
चीन में बने उत्पाद सबसे नुकसानदेह..WHO की रिपोर्ट..
भारत के उपभोक्ता सावधान रहे, चीनी उत्पादों से बचे..
ऐसे जूते जिसमें जहरीले रसायन हों, या ऐसे कपड़े जो एलर्जी पैदा करें. स्वास्थ्य पर खराब असर डालने वाली अधिकतर चीजें आती हैं, चीन से.
जहरीले उत्पादों के बारे में चेतावनी देने वाली संस्था यूरोपीय रैपिड इंफॉर्मेशन सिस्टम (रैपेक्स) ने 2013 में खाने पीने के अलावा अन्य 2,364 उत्पादों के बारे में इस तरह की चेतावनी दी. रैपेक्स ने इन्हें स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताया था!
ऐसे मामले में चीन सबसे आगे
आयात किए जा रहे ज्यादातर नुकसानदेह उत्पादों में 25 फीसदी खिलौने और कपड़े हैं. इसके बाद नौ फीसदी विद्युत उपकरण और मोबाइल फोन, सात फीसदी मोटर गाड़ियां और चार फीसदी कॉस्मेटिक का सामान है. कुल मिलाकर पाया गया कि 64 फीसदी उत्पाद चीन से आ रहे हैं. खासकर हंगकांग से क्योंकि चीन का ज्यादातर माल यूरोपीय बाजारों में आकर बिक रहा है।
कपड़ों, जूतों और खिलौनों में इस्तेमाल हो रहे केमिकल एलर्जी और अन्य बीमारियां फैलाने वाले हैं. जैसे जूतों में क्रोमियम छह इस्तेमाल हो रहा है. यूरोपीय संघ में आयात हुए इन उत्पादों की जांच की जिम्मेदारी रैपेक्स की है, जिसे करीब एक दशक पहले स्थापित किया गया था.
2003 में रैपेक्स ने करीब 200 चेतावनियां दी थीं. यूरोपीय संघ की आयुक्त नेवेन मिमित्सा ने कहा, "यह बेहतर नियंत्रण और बेहतर जांच का सबूत है. हम प्राथमिक जांच की क्षमता में इजाफा देख रहे हैं."
ईयू( यूरोपियन यूनियन) निर्माताओं को भी चेतावनी..
ईयू दिशानिर्देशों के अनुसार काम करने और उनके मानक बेहतर ढंग से समझने में यूरोपीय संघ चीन के निर्माताओं की मदद कर रहा है. यूरोपीय संघ की 15 फीसदी चेतावनी यूरोप में निर्मित उत्पादों के लिए है. इसमें दो फीसदी हिस्सेदारी जर्मनी की, दो इटली और एक फीसदी बुल्गारिया की है. हालांकि यूरोपीय संघ में ही बन रहे नुकसानदेह उत्पादों की मात्रा कम 2004 के बाद से कम हुई है, तब यह 27 फीसदी थी.
यूरोपीय संघ के सदस्य देशों ने उत्पादों की गुणवत्ता और सुरक्षा की दिशा में मिलकर काम किया है. ईयू के देशों में पिछले साल ज्यादा चेतावनियां हंगरी में तैयार हुए उत्पादों को मिली थी.

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विश्व के कुछ देश ऐसे है जिनमें वर्ष के डेढ़ -दो महीनों या उससे भी ज्यादा दिनों तक 24 घण्टे सूरज ही दिखाई देता रहता है,इस अवधि में यंहा रात का अंधेरा कत्तई नही होता..आइये जानिए इन देशों के नाम...
नार्वे : पहाड़ों से घिरा हुआ देश है. इस देश में मई से जुलाई तक लगभग 76 दिन सूरज नहीं डूबता है. इसे लैंड ऑफ द मिड नाइट सन भी कहा जाता है. अगर आप लंबे समय तक रोशनी का आनंद उठाना चाहते हैं तो इस दौरान इस देश की सैर कर सकते है।
स्वीडन : ऐसा देश है, जहां आप आधी रात को भी सूरज की रोशनी का आनंद ले सकते हैं. यहां मई की शुरुआत से अगस्त के अंत तक आधी रात को सूरज डूबता है.
आइसलैंड : यह यूरोप का सबसे बड़े आईलैंड में से एक है. यहां आप रात में सूरज की रोशनी का मजा ले सकते हैं. यहां 10 मई से जुलाई के अंत तक सूरज नहीं डूबता है. यहां झरने, ज्वालामुखी, ग्लेशियर्स और प्रकृति के खूबसूरत नजारे आपका मन मोह लेंगे. 10 मई से जुलाई के अंत तक सूरज नहीं डूबता.
कनाडा : यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है. लंबे अर्से तक बर्फ से ढका रहता है. खास बात यह है कि नॉर्थ वेस्‍टर्न इलाके में 50 दिनों आसमान में सूरज लगातार चमकता रहता है. गर्मी के मौसम में 50-50 दिनों तक सूरज नहीं डूबता. यानी यहां भी रात का अंधेरा देखने को नही मिलता.
फिनलैंड : फिनलैंड एक ऐसा देश है, जहां गर्मी के दौरान 73-74 दिनों तक सूर्य नहीं डूबता. आप यहां पर स्कींग, साइकलिंग, क्लाजइंबिंग और हाइकिंग जैसे खेल का आनंद ले सकते है.
अलास्का : नॉर्थ अमेरिकी महाद्वीप के नॉर्दन और वेस्‍टर्न बॉर्डर पपर स्थित अलास्‍का एक अमेरिकी राज्य है. इसके पूर्व में कनाडा, उत्तर में आर्कटिक महासागर, दक्षिण-पश्चिम में प्रशांत महासागर और पश्चिम में रूस स्थित हैं. यहां भी 24 घंटे दिन होता है और मई से जुलाई के बीच में सूरज नहीं डूबता है. अलास्का अपने खूबसूरत ग्लेशियर के लिए जाना जाता है. अब कल्पना कर लें कि मई से लेकर जुलाई तक बर्फ को रात में चमकते देखना कितना रोमांच भरा हो सकता है.

Wednesday, 27 June 2018

 अनुपम दानी भामाशाह 
दान की चर्चा होते ही भामाशाह का नाम स्वयं ही मुँह पर आ जाता है। देश रक्षा के लिए महाराणा प्रताप के चरणों में अपनी सब जमा पूँजी अर्पित करने वाले दानवीर भामाशाह का जन्म अलवर (राजस्थान) में 28 जून, 1547 को हुआ था। उनके पिता श्री भारमल्ल तथा माता श्रीमती कर्पूरदेवी थीं। श्री भारमल्ल राणा साँगा के समय रणथम्भौर के किलेदार थे। अपने पिता की तरह भामाशाह भी राणा परिवार के लिए समर्पित थे।
एक समय ऐसा आया जब अकबर से लड़ते हुए राणा प्रताप को अपनी प्राणप्रिय मातृभूमि का त्याग करना पड़ा। वे अपने परिवार सहित जंगलों में रह रहे थे। महलों में रहने और सोने चाँदी के बरतनों में स्वादिष्ट भोजन करने वाले महाराणा के परिवार को अपार कष्ट उठाने पड़ रहे थे। राणा को बस एक ही चिन्ता थी कि किस प्रकार फिर से सेना जुटाएँ, जिससे अपने देश को मुगल आक्रमणकारियों से चंगुल से मुक्त करा सकें।
इस समय राणा के सम्मुख सबसे बड़ी समस्या धन की थी। उनके साथ जो विश्वस्त सैनिक थे, उन्हें भी काफी समय से वेतन नहीं मिला था। कुछ लोगों ने राणा को आत्मसमर्पण करने की सलाह दी; पर राणा जैसे देशभक्त एवं स्वाभिमानी को यह स्वीकार नहीं था। भामाशाह को जब राणा प्रताप के इन कष्टों का पता लगा, तो उनका मन भर आया। उनके पास स्वयं का तथा पुरखों का कमाया हुआ अपार धन था। उन्होंने यह सब राणा के चरणों में अर्पित कर दिया। इतिहासकारों के अनुसार उन्होंने 25 लाख रु. तथा 20,000 अशर्फी राणा को दीं। राणा ने आँखों में आँसू भरकर भामाशाह को गले से लगा लिया।
राणा की पत्नी महारानी अजवान्दे ने भामाशाह को पत्र लिखकर इस सहयोग के लिए कृतज्ञता व्यक्त की। इस पर भामाशाह रानी जी के सम्मुख उपस्थित हो गये और नम्रता से कहा कि मैंने तो अपना कर्त्तव्य निभाया है। यह सब धन मैंने देश से ही कमाया है। यदि यह देश की रक्षा में लग जाये, तो यह मेरा और मेरे परिवार का अहोभाग्य ही होगा। महारानी यह सुनकर क्या कहतीं, उन्होंने भामाशाह के त्याग के सम्मुख सिर झुका दिया।
उधर जब अकबर को यह घटना पता लगी, तो वह भड़क गया। वह सोच रहा था कि सेना के अभाव में राणा प्रताप उसके सामने झुक जायेंगे; पर इस धन से राणा को नयी शक्ति मिल गयी। अकबर ने क्रोधित होकर भामाशाह को पकड़ लाने को कहा। अकबर को उसके कई साथियों ने समझाया कि एक व्यापारी पर हमला करना उसे शोभा नहीं देता। इस पर उसने भामाशाह को कहलवाया कि वह उसके दरबार में मनचाहा पद ले ले और राणा प्रताप को छोड़ दे; पर दानवीर भामाशाह ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। इतना ही नहीं उन्होंने अकबर से युद्ध की तैयारी भी कर ली। यह समाचार मिलने पर अकबर ने अपना विचार बदल दिया।
भामाशाह से प्राप्त धन के सहयोग से राणा प्रताप ने नयी सेना बनाकर अपने क्षेत्र को मुक्त करा लिया।
भामाशाह जीवन भर राणा की सेवा में लगे रहे। महाराणा के देहान्त के बाद उन्होंने उनके पुत्र अमरसिंह के राजतिलक में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। इतना ही नहीं, जब उनका अन्त समय निकट आया, तो उन्होंने अपने पुत्र को आदेश दिया कि वह अमरसिंह के साथ सदा वैसा ही व्यवहार करे, जैसा उन्होंने राणा प्रताप के साथ किया है।

Monday, 25 June 2018

अर्थ के बल पर गरीबों और नासमझों के  शोषण पर स्थापित  रेलिजन 
 खूंटी में जहां पांच लड़कियों के साथ गैंग रेप के आरोप में एक मिशनरी स्कूल के फादर समेत सात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है, वहिं चिली के सभी 34 कैथोलिक चर्च के पादरियों ने किसी न किसी प्रकार के दुराचार और कुकर्म में अपनी संलिप्तता स्वीकारते हुए पोप को इस्तीफा सौंपा है, तो दोष सिर्फ पादरियों का नहीं बल्कि उस क्रिश्चियन रेलिजन में है जो पूरे विश्व को नैतिक राह दिखाने का झूठा दंभ भरकर विश्व को भरमाता रहता है,पादरियों और फादरों ने क्रिश्चियनिटी का बेड़ा गर्क कर दिया है।
खूंटी के पुलिस अधीक्षक अश्विनी सिन्हा के बयान के मुताबिक खूंटी ज़िले में एक ग़ैर सरकारी संस्था के लिए काम करने वाली  पांचों लड़कियों से गैंग रेप करने के आरोप में कोचांग स्थित मिशनरी स्कूल के फादर का नाम आगे आया है। उस स्कूल के फादर के साथ ही सात अन्य लोगों के खिलाफ गैंग रेप करने के आरोप में मामला दर्ज कर लिया गया है। 
एक-आध घटना को अलग नजरिए से देखा भी जा सकता है लेकिन किसी देश के सारे पादरियों का इस प्रकार के यौण-शोषण में संलिप्तता स्वीकारना उस रेलिजन के लिए असहजता की बात है। इससे स्पष्ट है कि उस रेलिजन के मूल में ही खोट है। वैसे भी धन के बल पर स्थापित कोई परंपरा रेलिजन हो भी नहीं सकती क्रिश्चिनीटी वैसा ही एक रेलिजन है जो अर्थ के बल पर गरीबों को शोषण पर स्थापित है।
 इसी साल पिछले महीने यानि 18 मई को चिली के सभी पादरियों का एक साथ इस्तीफा सौपना असहज करने वाली घटना थी।सभी पादरियों ने अपने इस्तीफे में लिखा था कि वह किसी न किसी दुराचार में संलिप्त हैं इसलिए अपना पद छोड़ना चाहते हैं। इसमें से अधिकांश पादरियों ने बच्चों के यौन शोषण करने की बात कबूली है।
अब सवाल उठता है कि क्या इस्तीफा देने मात्र से उसके पाप धुल जाएंगे ? या फिर इन पापी पादरियों ने सजा से बचने के लिए सहानुभूति पाने का नाटक किया है ?  जिस बाल यौन शोषण का कैथोलिक चर्चा हमेशा से खिलाफत करता रहा है क्या वहीं कैथोलिक चर्च अपने फॉलोअर्स को यहा समझा पाएगा कि इस मामले में पादरियों का इस्तीफा ही काफी है ?
भारत में भी ऐसी घटनाओं की कोई कमी नहीं है। केरल की नन ने तो बाकायदा इस पर पुस्तक भी लिख मारी थी जिस घटना को भारतीय मिडिया खा कर हजम कर गया। वनवासी अंचल में तो बेचारी महिलाऐं बोल भी नहीं पातीं   -  -अब देखते है इस खूंटी प्रकरण पर चर्च क्या करता है। 
ब्रह्मांड उत्पत्ति का सिद्धांत
अरबों साल पहले ब्रह्मांड नहीं था, सिर्फ अंधकार था। 
अचानक एक बिंदु की उत्पत्ति हुई। फिर वह बिंदु मचलने लगा। फिर उसके अंदर भयानक परिवर्तन आने लगे। इस बिंदु के अंदर ही होने लगे विस्फोट। शिव पुराण मानता है कि नाद और बिंदु के मिलन से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई। नाद अर्थात ध्वनि और बिंदु अर्थात प्रकाश। इसे अनाहत या अनहद (जो किसी आहत या टकराहट से पैदा नहीं) की ध्वनि कहते हैं जो आज भी सतत जारी है इसी ध्वनि को हिंदुओं ने ॐ के रूप में व्यक्त किया है।
 ब्रह्म प्रकाश स्वयं प्रकाशित है। परमेश्वर का प्रकाश। 'सृष्टि के आदिकाल में न सत् था न असत्, न वायु थी न आकाश, न मृत्यु थी न अमरता, न रात थी न दिन, उस समय केवल वही था जो वायुरहित स्थिति में भी अपनी शक्ति से साँस ले रहा था। उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं था।' -ऋग्वेद ब्रह्म, ब्रह्मांड और आत्मा- यह तीन तत्व हैं। ब्रह्म शब्द ब्रह् धातु से बना है, जिसका अर्थ 'बढ़ना' या 'फूट पड़ना' होता है। ब्रह्म वह है, जिसमें से सम्पूर्ण सृष्टि और आत्माओं की उत्पत्ति हुई है, या जिसमें से ये फूट पड़े हैं।
 विश्व की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश का कारण ब्रह्म है।- 
उपनिषद जिस तरह मकड़ी स्वयं, स्वयं में से जाले को बुनती है, उसी प्रकार ब्रह्म भी स्वयं में से स्वयं ही विश्व का निर्माण करता है। ऐसा भी कह सकते हैं कि नृत्यकार और नृत्य में कोई फर्क नहीं। जब तक नृत्यकार का नृत्य चलेगा, तभी तक नृत्य का अस्तित्व है, इसीलिए हिंदुओं ने ईश्वर के होने की कल्पना अर्धनारीश्वर के रूप में की जो नटराज है। इसे इस तरह भी समझें 'पूर्व की तरफ वाली नदियाँ पूर्व की ओर बहती हैं और पश्चिम वाली पश्चिम की ओर बहती है। जिस तरह समुद्र से उत्पन्न सभी नदियाँ अमुक-अमुक हो जाती हैं किंतु समुद्र में ही मिलकर वे नदियाँ यह नहीं जानतीं कि 'मैं अमुक नदी हूँ' इसी प्रकार सब प्रजा भी सत् (ब्रह्म) से उत्पन्न होकर यह नहीं जानती कि हम सत् से आए हैं। वे यहाँ व्याघ्र, सिंह, भेड़िया, वराह, कीट, पतंगा व डाँस जो-जो होते हैं वैसा ही फिर हो जाते हैं। यही अणु रूप वाला आत्मा जगत है।-छांदोग्य महाआकाश व घटाकाश :ब्रह्म स्वयं प्रकाश है। उसी से ब्रह्मांड प्रकाशित है। उस एक परम तत्व ब्रह्म में से ही आत्मा और ब्रह्मांड का प्रस्फुटन हुआ। 
ब्रह्म और आत्मा में सिर्फ इतना फर्क है कि ब्रह्म महाआकाश है तो आत्मा घटाकाश। घटाकाश अर्थात मटके का आकाश। ब्रह्मांड से बद्ध होकर आत्मा सीमित हो जाती है और इससे मुक्त होना ही मोक्ष है।
NDउत्पत्ति का क्रम :
परमेश्वर (ब्रह्म) से आकाश अर्थात जो कारण रूप 'द्रव्य' सर्वत्र फैल रहा था उसको इकट्ठा करने से अवकाश उत्पन्न होता है। वास्तव में आकाश की उत्पत्ति नहीं होती, क्योंकि बिना अवकाश (खाली स्थान) के प्रकृति और परमाणु कहाँ ठहर सके और बिना अवकाश के आकाश कहाँ हो। अवकाश अर्थात जहाँ कुछ भी नहीं है और आकाश जहाँ सब कुछ है। 
पदार्थ के संगठित रूप को जड़ कहते हैं और विघटित रूप परम अणु है, इस अंतिम अणु को ही वेद परम तत्व कहते हैं जिसे ब्रह्माणु भी कहा जाता है और श्रमण धर्म के लोग इसे पुद्‍गल कहते हैं। 
भस्म और पत्थर को समझें।
 भस्मीभूत हो जाना अर्थात पुन: अणु वाला हो जाना। आकाश के पश्चात वायु, वायु के पश्चात अग्न‍ि, अग्नि के पश्चात जल, जल के पश्चात पृथ्वी, पृथ्वी से औषधि, औ‍षधियों से अन्न, अन्न से वीर्य, वीर्य से पुरुष अर्थात शरीर उत्पन्न होता है।- तैत्तिरीय उपनिषद
 इस ब्रह्म (परमेश्वर) की दो प्रकृतियाँ हैं 
पहली 'अपरा' और दूसरी 'परा'।
 अपरा को ब्रह्मांड कहा गया और परा को चेतन रूप आत्मा। उस एक ब्रह्म ने ही स्वयं को दो भागों में विभक्त कर दिया, किंतु फिर भी वह अकेला बचा रहा। पूर्ण से पूर्ण निकालने पर पूर्ण ही शेष रह जाता है, इसलिए ब्रह्म सर्वत्र माना जाता है और सर्वत्र से अलग भी उसकी सत्ता है। 
त्रिगुणी प्रकृति :
 परम तत्व से प्रकृति में तीन गुणों की उत्पत्ति हुई सत्व, रज और तम। ये गुण सूक्ष्म तथा अतिंद्रिय हैं, इसलिए इनका प्रत्यक्ष नहीं होता। इन तीन गुणों के भी गुण हैं- प्रकाशत्व, चलत्व, लघुत्व, गुरुत्व आदि इन गुणों के भी गुण हैं, अत: स्पष्ट है कि यह गुण द्रव्यरूप हैं। द्रव्य अर्थात पदार्थ। पदार्थ अर्थात जो दिखाई दे रहा है और जिसे किसी भी प्रकार के सूक्ष्म यंत्र से देखा जा सकता है, महसूस किया जा सकता है या अनुभूत किया जा सकता है। 
ये ब्रहांड या प्रकृति के निर्माणक तत्व हैं। प्रकृति से ही महत् उत्पन्न हुआ जिसमें उक्त गुणों की साम्यता और प्रधानता थी। सत्व शांत और स्थिर है। रज क्रियाशील है और तम विस्फोटक है।
 उस एक परमतत्व के प्रकृति तत्व में ही उक्त तीनों के टकराव से सृष्टि होती गई। 
सर्वप्रथम महत् उत्पन्न हुआ, जिसे बुद्धि कहते हैं। बुद्धि प्रकृति का अचेतन या सूक्ष्म तत्व है। महत् या बुद्ध‍ि से अहंकार। अहंकार के भी कई उप भाग है। यह व्यक्ति का तत्व है। व्यक्ति अर्थात जो व्यक्त हो रहा है सत्व, रज और तम में। सत्व से मनस, पाँच इंद्रियाँ, पाँच कार्मेंद्रियाँ जन्मीं। 
तम से पंचतन्मात्रा, पंचमहाभूत (आकाश, अग्न‍ि, वायु, जल और ग्रह-नक्षत्र) जन्मे। इसे इस तरह समझें : उस एक परम तत्व से सत्व, रज और तम की उत्पत्ति हुई। यही इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन और प्रोटॉन्स का आधार हैं। इन्हीं से प्रकृति का जन्म हुआ। प्रकृति से महत्, महत् से अहंकार, अहंकार से मन और इंद्रियाँ तथा पाँच तन्मात्रा और पंच महाभूतों का जन्म हुआ। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार यह प्रकृति के आठ तत्व हैं। 
जब हम पृत्वी कहते हैं तो सिर्फ हमारी पृथ्वी नहीं। प्रकृति के इन्हीं रूपों में सत्व, रज और तम गुणों की साम्यता रहती है। प्रकृति के प्रत्येक कण में उक्त तीनों गुण होते हैं। यह साम्यवस्था भंग होती है तो महत् बनता है। प्रकृति वह अणु है जिसे तोड़ा नहीं जा सकता, किंतु महत् जब टूटता है तो अहंकार का रूप धरता है। अहंकारों से ज्ञानेंद्रियाँ, कामेद्रियाँ और मन बनता है। अहंकारों से ही तन्मात्रा भी बनती है और उनसे ही पंचमहाभूत का निर्माण होता है। बस इतना समझ लीजिए क‍ि महत् ही बुद्धि है। 
महत् में सत्व, रज और तम के संतुलन टूटने पर बुद्धि निर्मित होती है। महत् का एक अंश प्रत्येक पदार्थ या प्राणी में ‍बुद्धि का कार्य करता है।‍ बुद्धि से अहंकार के तीन रूप पैदा होते हैं
- पहला सात्विक अहंकार जिसे वैकारी भी कहते हैं विज्ञान की भाषा में इसे न्यूट्रॉन कहा जा सकता है। यही पंच महाभूतों के जन्म का आधार माना जाता है।
 दूसरा तेजस अहंकार इससे तेज की उत्पत्ति हुई, जिसे वर्तमान भाषा में इलेक्ट्रॉन कह सकते हैं।
 तीसरा अहंकार भूतादि है। यह पंच महाभूतों (आकाश, आयु, अग्नि, जल और पृथ्वी) का पदार्थ रूप प्रस्तुत करता है। वर्तमान विज्ञान के अनुसार इसे प्रोटोन्स कह सकते हैं। इससे रासायनिक तत्वों के अणुओं का भार न्यूनाधिक होता है।
 अत: पंचमहाभूतों में पदार्थ तत्व इनके कारण ही माना जाता है। सात्विक अहंकार और तेजस अहंकार के संयोग से मन और पाँच इंद्रियाँ बनती हैं। तेजस और भूतादि अहंकार के संयोग से तन्मात्रा एवं पंच महाभूत बनते हैं। पूर्ण जड़ जगत प्रकृति के इन आठ रूपों में ही बनता है, किंतु आत्म-तत्व इससे पृथक है। इस आत्म तत्व की उपस्थिति मात्र से ही यह सारा प्रपंच होता है। अब इसे इस तरह भी समझें : 'अनंत-महत्-अंधकार-आकाश-वायु-अग्नि-जल-पृथ्वी'
यह ब्रह्मांड अंडाकार है। यह ब्रह्मांड जल या बर्फ और उसके बादलों से घिरा हुआ है। इससे जल से भी दस ‍गुना ज्यादा यह अग्नि तत्व से ‍आच्छादित है और इससे भी दस गुना ज्यादा यह वायु से घिरा हुआ माना गया है। वायु से दस गुना ज्यादा यह आकाश से घिरा हुआ है और यह आकाश जहाँ तक प्रकाशित होता है, वहाँ से यह दस गुना ज्यादा तामस अंधकार से घिरा हुआ है। और यह तामस अंधकार भी अपने से दस गुना ज्यादा महत् से घिरा हुआ है और महत् उस एक असीमित, अपरिमेय और अनंत से घिरा है। उस अनंत से ही पूर्ण की उत्पत्ति होती है और उसी से उसका पालन होता है और अंतत: यह ब्रह्मांड उस अनंत में ही लीन हो जाता है।
 प्रकृति का ब्रह्म में लय (लीन) हो जाना ही प्रलय है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड ही प्रकृति कही गई है। इसे ही शक्ति कहते हैं। प्रलय की धारणा : पुराणों में प्रलय के चार प्रकार बताए गए हैं- नित्य, नैमित्तिक, द्विपार्थ और प्राकृत। प्राकृत ही महाप्रलय है।
 'जब ब्रह्मा का दिन उदय होता है, तब सब कुछ अव्यक्त से व्यक्त हो जाता है और जैसे ही रात होने लगती है, सब कुछ वापस आकर अव्यक्त में लीन हो जाता है।' -भगवद्गीता-8.18 
सात लोक हैं : 
भूमि, आकाश और स्वर्ग, इन्हें मृत्युलोक कहा गया है, जहाँ उत्पत्ति, पालन और प्रलय चलता रहता है। उक्त तीनों लोकों के ऊपर महर्लोक है जो उक्त तीनों लोकों की स्थिति से प्रभावित होता है, किंतु वहाँ उत्पत्ति, पालन और प्रलय जैसा कुछ नहीं, क्योंकि वहाँ ग्रह या नक्षत्र जैसा कुछ भी नहीं है। 
उसके भी ऊपर जन, तप और सत्य लोक तीनों अकृतक लोक कहलाते हैं। अर्थात जिनका उत्पत्ति, पालन और प्रलय से कोई संबंध नहीं, न ही वो अंधकार और प्रकाश से बद्ध है, वरन वह अनंत असीमित और अपरिमेय आनंदपूर्ण है।
श्रेष्ठ आत्माएँ पुन: सत्यलोक में चली जाती हैं, बाकी सभी त्रैलोक्य में जन्म और मृत्य के चक्र में चलती रहती हैं। जैसे समुद्र का जल बादल बन जाता है, फिर बादल बरसकर पुन: समुद्र हो जाता है। जैसे बर्फ जमकर फिर पिघल जाती है।
अरून शुक्ला
 इतिहास गवाह है कि जब काल यवन ( जो वर्तमान के तमिलनाडु के मुदरेका रहने वाला था, जिसके
पिताजी तमिलनाडु के काबालिश्वरम शिव मंदिर के उपासक थे, और यही कबालिश्वरम आज भी मुदरे में स्थित है ) ने कृष्ण से युद्ध करने के लिए शिव की भक्ति यवन देश में करी थी ,वो यही शिव पिंडी थी जो सऊदी अरब के
काबा में स्थित है |
अगर ये सारे तथ्य गलत है तो फिर ऐसा क्या कारण है कि पूरी दुनिया के 56 इस्लामिक मुल्को में कभी भी किसी भी मस्जिद में 7बार Anti Clockwise परिक्रमा नहीं लगती ,सिर्फ काबा की इसी मस्जिद अल-हरम में लगती है ??
आखिर वो क्या कारण है कि हज की प्रक्रिया करने के लिए हर हाजी को अपने सर के बाल साफ़ करवाने पड़ते है जैसे तिरुपति बालाजी में सर के बाल साफ़ होते है ?
आखिर वो क्या कारण है कि हज की प्रक्रिया करने के लिए बिना सिला ,एक सूती कपडा पहनना अनिवार्य होता है जिसे एह-राम कहते हैं, यहाँ भी ये मुल्ले हमारे श्रीराम का नाम जप रहे हैं, एह-राम ।
इस्लाम में दीपक प्रज्वलित करना गलत है तो फिर काबा के अंदर आज भी घी का अखंड दीपक किसलिए प्रज्वलित है ?

अरून शुक्ला
इतिहास में दलित उत्पीड़न के षड्यन्त्र की पोल खोल
इससे पहले कि इस गंभीर विषय पर कुछ कहूं याद दिला दूँ कि भारतीय इतिहास का पहला सम्राट "चन्द्रगुप्त मौर्य" जाति से शूद्र था और उसे एक सामान्य बालक से सत्ता का शिखर पुरुष बनाने वाला चाणक्य एक ब्राम्हण था ।शताब्दीयों का शाक्ष्य हैं भारतीय इतिहास मौर्य वंश के बिना पुर्णतः अधूरा है।
स्वातंत्रता के बाद से ही राजनैतिक स्वार्थों के लिए एक सुनियोजित षड्यंत्र के द्वारा दलित उत्थान के नाम पर जो खेल खेला गया उससे सबसे अधिक दलित ही प्रभावित हुए। उनका पारंपरिक आय का स्रोत छीना गया।
प्राचीन भारत जो जातियों में बटा था उसमे प्रत्येक जाति के पास अपने रोजगार के साधन उपलब्ध थे।
कुम्हार बर्तन बनाता,लुहार लोहे का काम करता,हजाम हजामत का काम करता अहीर पशुपालन करते तेली तेल का धंधा करता आदि आदि..कोई भी जाति दूसरी जाति का काम छीनने का प्रयास कभी नही करती थी।
इस व्यवस्था के अनुसार दलितों का जो मुख्य पेशा था वह था पशुपालन मांस व्यवसाय चमड़ा व्यवसाय और सबसे बड़ा बच्चों के जन्म के समय प्रसव कराने का कार्य। एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत दलितों को यह एहसास दिलाया गया कि आप जो काम कर रहे हैं वह गन्दा है घृणित है। फलस्वरूप वे अपने पेशे से दूर होते गए और उनसे ये सारे धंधे छीन लिए गए। पर दलितों के छोड़ देने से क्या ये काम बन्द हो गए ?
आज देखिये चमड़ा उद्योग और मांस उद्योग का वार्षिक टर्न ओवर लाखों करोड़ों का नहीं बल्कि खरबों का है।
आज यह व्यवसाय किस के हाथ में है ? आपकी हमारी आँखों के सामने दलितों से उनकी आमदनी का बडा स्रोत छीन कर एक विशेष समुदाय के झोले में डाल दिया गया और हम यह चाल समझ नही पाये।
उत्तर प्रदेश में जय भीम जय मीम के धोखेबाज नारे के जाल में दलितों को फंसा कर उन्हें अन्य हिन्दुओ विशेष कर ब्राह्मण के विरुद्ध भड़काने वालों की मंशा साफ है वे आपको सौ टुकड़े में तोड़ कर आपके सारे हक लूटना चाहते हैं।
तनिक सोशल मिडिया में ध्यान से देखिये दलितवाद का झूठा खेल अधिकांश वे ही लोग क्यों खेल रहे हैं जिन्होंने दलितों के पेशे पर डकैती डाली है ?
दलितों की दुर्दशा के सम्बंध में जो मुख्य बातें बताई जाती हैं जरा उनका विश्लेषण कीजिये। वे आपको बताते हैं ब्राम्हणों ने दलितों से मल ढोने का काम कराया.!! इतिहास और प्राचीन साहित्य का कोई ज्ञाता बताये क्या प्राचीन सनातन भारत में घर के मण्डप के अंदर शौचालय निर्माण का कोई साक्ष्य मिलता है ? कहीं भी नही।सच तो यह है कि भारत में घर के अंदर शौचालय बनाने की परम्परा अलाउद्दीन खीलजी से लेकर मुगलकाल तक में फैली।
उनके गुलाम बनायें गये लोगों में ब्राह्मण, क्षत्रिय ,वैश्य और शूद्र सभी लोग थे उन्होंने ही उनसे मल ढोने का घृणित कार्य गुलाम लोगों से उनका कुफ्र या काफिर होने से घृणा की वजह से कराया। उन्होने यह घटिया काम भले ही करना पडे पर अपना धर्म को नहीं छोडना चाहते थे क्यूंकि वह अपने धर्म से दिलोजान से जूडे हुए थे।आज भी उन दलितो की सरनेम टाइटल राजपुतो ब्राह्मणो वैश्यो के मिलेंगे।
भारत के कई गांवों में तो आज से केवल तीस से चालीस वर्ष पहले तक शौचालय होते ही नही थे। फिर इस घृणित परम्परा के लिए हिन्दू कैसे जिम्मेवार हुए ?
आपको इतना पता होगा कि मध्यकालीन भारत में हिंदुओं का सबसे ज्यादा कन्वर्जन हुआ। जरा पता लगाइये तो क्या अपने धर्म परिवर्तन के बाद एक तेली पठान हो गया ?कोई लुहार क्या शेख हो गया ? नहीं , तेली ने धर्म बदला तो मुसलमान तेली हो गया। नायी बदला तो मुसलमान हजाम हो गया। गांवों में देखिये, मुसलमान हजाम लोहार तेली धुनिया धोबी और यहां तक कि राजपूत भी हैं। उनका सिर्फ धर्म बदला है जातियां और कार्य नहीं।
जिन लोगों में आज दलित प्रेम जोर मार रहा है वे क्या बताएँगे कि उन्होंने अपने धर्म में जाति ख़त्म करने का क्या क्या उपाय किये ? प्राचीन भारत में दलित दुर्दशा के विषय में सोचने के पहले एक बार अपने गांव के सिर्फ पचास बर्ष पहले के इतिहास को याद कर लीजिये..!! दलितों की स्थिति बुरी थी तो क्या अन्य जातियों की स्थिति बहुत अच्छी थी ?
कठे अंवासी बिगहे बोझ (एक कट्ठा में एक मुठा और एक बीघा में एक बोझा भोजपुरी कहावत) वाले जमाने में जब हर चार पांच साल पर अकाल पड़ते तो क्या सिर्फ एक विशेष जाति के ही लोग दुःख भोगते थे ? सत्य यह है कि उस घोर दरिद्रता के काल में सभी दुःख भोग रहे थे। कोई थोडा कम और कोई थोडा ज्यादा..!!
खैर ,कल जो हुआ वो हुआ। उसे बदलना तुम्हारे हाथ में नहीं था पर तुम चाहो तो तुम्हारा वर्तमान सुधर सकता है। यह युग धार्मिक से ज्यादा आर्थिक आधार पर संचालित होता है। इस युग में जिसके पास पैसा है वही सवर्ण है और जिसके पास नही है वे दलित हैं।
अपने आर्थिक ढांचे को बचाने का प्रयास कीजिये। वैश्वीकरण के इस युग में हमे अपनी सारी दरिद्रता को उखाड़ फेकने में दस साल से अधिक नही लगेगा।
अंत में एक उदाहरण - ब्राम्हणों में एक उपजाति होती है महापात्र की। ये लोग मृतक के श्राद्ध में ग्यारहवें दिन खाते हैं। समाज में इन्हें इतना अछूत माना जाता है कि कोई इन्हें अपने शुभ कार्य में नही बुलाता। इनकी शादियां शेष ब्राम्हणों में नही होती। पर इन्होंने कभी अपना पेशा नही छोड़ा।
तो इस आर्थिक युग में स्वयं को स्थापित करने का प्रयास कीजिये। अरबी और मिशनरी पैसे से पेट भर कर समाज में आग लगाने का प्रयास करने वाले  चाइना परस्त लोगों के धोखे में न आयें। भारत और पाकीस्तान देश विभाजन के समय पाकीस्तान ने सवर्ण हिंदूओं से उनकी संपति हडप ली उन की मां बहन बेटियों पर अनगिनत बलात्कार कर उनकी हत्याए की बचे कुचे लोग अपने ही देश में निराश्रित बनकर खाली हाथ लौटे और जिसे पाकीस्तान में रहने दिया वह हिंदू कौन थे ?
वह दलित थे उन्हे केवल उनका मैला उठाने और साफ सफाई का काम के लिये रहने दिया।
उनकी संख्या पाकीस्तान की बस्ती के अनुपात में दलितों की जन संख्या 14% थी..(1947)
आज वह कहां गयें ?(कुल हिंदू जनसंख्या 29% थी)आज पाकीस्तान में केवल 1.5% हिंदू बचे है। वह भी डरे सहमें है और भारत में शरण चाहते है क्यूं ? 
वजह है उनकी मां बहन बेटीयों पे हो रहे अत्याचार..और उनकी धार्मिक आजादी पर हो रहे कुठाराघात ही है।
जय भीम - जय मीम वाला नारा एक बडा षड्यंत्र है। ये देश जितना चाणक्य का है उतना ही चन्द्रगुप्त मौर्य का।जितना महाराणा उदयसिंह का है उतना ही पन्ना धाय का। जितना बाबू कुंवर सिंह का है उतना ही बिरसा मुंडा का।
नफरत पहले केवल एक समुदाय विशेष के अंदर ही उनके मदरसों में पढाई जाती थी लेकिन अब न्यूज़ चैनल बड़ी बड़ी कीमत के बदले बाहरी इशारों पर इसी तरह की नफरत दलित वर्ग में फैलाकर देश को बांटने का काम बखूबी कर रहे हैं ।
 डॉ इन्दौरीलाल 
महाभारत में कर्ण ने श्री कृष्ण से पूछा "मेरी माँ ने मुझे जन्मते ही त्याग दिया, क्या ये मेरा अपराध था कि मेरा जन्म एक अवैध बच्चे के रूप में हुआ?
दोर्णाचार्य ने मुझे शिक्षा देने से मना कर दिया क्योंकि वो मुझे क्षत्रीय नही मानते थे, क्या ये मेरा कसूर था..
द्रौपदी के स्वयंवर में मुझे अपमानित किया गया, क्योंकि मुझे किसी राजघराने का कुलीन व्यक्ति नही समझा गया...
*श्री कृष्ण मंद मंद मुस्कुराते हुए बोले-*
"कर्ण, मेरा जन्म जेल में हुआ था। मेरे पैदा होने से पहले मेरी मृत्यु मेरा इंतज़ार कर रही थी। जिस रात मेरा जन्म हुआ ...उसी रात मुझे मेरे माता-पिता से अलग होना पड़ा...
मैने गायों को चराया और गोबर को उठाया।
जब मैं चल भी नही पाता था.. तो मेरे ऊपर प्राणघातक हमले हुए।
कोई सेना नही, कोई शिक्षा नही, कोई गुरुकुल नही, कोई महल नही, मेरे मामा ने मुझे अपना सबसे बड़ा शत्रु समझा। बड़े होने पर मुझे ऋषि सांदीपनि के आश्रम में जाने का अवसर मिला।
मुझे बहुत से विवाह राजनैतिक कारणों से या उन स्त्रियों से करने पड़े ...जिन्हें मैंने राक्षसों से छुड़ाया था!
जरासंध के प्रकोप के कारण मुझे अपने परिवार को यमुना से ले जाकर सुदूर प्रान्त मे समुद्र के किनारे बसाना पड़ा...
*हे कर्ण!* किसी का भी जीवन चुनौतिओं से रहित नहीं है। सबके जीवन मे सब कुछ ठीक नहीं होता ...
सत्य क्या है और उचित क्या है? ये हम अपनी आत्मा की आवाज़ से स्वयं निर्धारित करते हैं!
इस बात से *कोई फर्क नही पड़ता* कितनी बार हमारे साथ अन्याय होता है,
इस बात से *कोई फर्क नही पड़ता* कितनी बार हमारा अपमान होता है,
इस बात से भी *कोई फर्क नही पड़ता* कितनी बार हमारे अधिकारों का हनन होता है।
*फ़र्क़ सिर्फ इस बात से पड़ता है कि हम उन सबका सामना किस प्रकार कर्मज्ञान के साथ करते हैं..!!* *कर्मज्ञान है तो ज़िन्दगी हर पल मौज़ है वरना समस्या तो सभी के साथ रोज है*
*श्रीकृष्णा कर्मयोग जयते

Sunday, 24 June 2018


विचारणीय
एक बार मेरे कमरे में 5-6 सांप घुस गए। मैं परेशान हो गया, उसकी वजह से मैं कश्मीरी हिंदुओं की तरह अपने ही घर से बेघर होकर बाहर निकल गया। इसी बीच बाकी लोग जमा हो गए। मैंने पुलिस और सेना को बुला लिया।
अब मैं खुश था कि थोड़ी देर में सेना इनको मार देगी 
तभी कुछ पशु प्रेमी और मानवतावादी आ गये, बोले की नहीं आप गोली नहीं चला सकते, हम पेटा के तहत केस कर देंगे।
सेना वाले उसको ढेला मारने लगे, सांप भी उधर से मुंह ऊँचा करके जहर फेंकने लगे।
एक दो सांप ने तो एक दो सैनिक को काट भी लिया पर भागे नहीं।
फिर इतने में कुछ पडोसी मुझे ही बोलने लगे,
क्या भाई तुम भी बेचारे सांप पर पड़े हो, रहने दो , क्यों भगा रहे हो ?
उधर प्रशासन ने खबर भिजवा दिया, सांप के मुंह में जहर नहीं होना चाहिए, उसके मुंह में दूध दे दो
तो वो मुंह से जहर की जगह दूध फेंकेगा।
..... मैं हैरान परेशान...
फालतू में बात का बतंगड़ हो चुका था। न्यूज़ भी चलने लगे थे।
एनडीटीवी के रविश ने कह दिया कि सबको जहर नजर आता है सांप नजर नहीं आता, उसकी भी जिंदगी है।
बरखा दत्त चीख़ कर कहने लगी की ये तो भटके हुए संपोले हुए हैं, मकान मालिक इनको बेवजह परेशान कर रहा है,
मकान मालिक को चाहिए की वो इनको अपने घर में सुरक्षित स्थान पर इनको बिल बनाकर रहने दे और इनके खाने पिने का भरपूर ध्यान रखे।
इसी बीच एक सैनिक ने पेलेट गन चला दिया और एक सांप अंधा हो गया,
मुझे आशा जगी, सेना ही कुछ कर सकती है,
तभी भाँड मीडिया ने कहा, पेलेट गन क्यों चलाया, सांप को कष्ट हो रहा है,
अभी कोई कुछ सोचता उससे पहले ही हाइकोर्ट का भी फैसला जाने कहाँ से आ गया कि सांप पर पेलेट गन नहीं चला सकते इस गन से उसकी आँखे और चेहरा ख़राब हो सकता है।
उधर आम आदमी पार्टी ने कह दिया कि वहाँ जनमत संग्रह हो कि उस घर में सांप रहेगा या आदमी।
कुल मिलकर सांप को जीने का हक़ है इस पर सब एकमत हो गए थे।
इतने में जो मेरा पडोसी मेरा घर कब्ज़ा करना चाहता था वो सांप के लिए दूध, छिपकली और मेढक लेकर आ गया, उसको खिलाने लगा,
उसकी मदद बुद्धिजीवियों, मानवातावादियो और पत्रकारों ने कर दी और पडोसी को शाबाशी दी।
मैं निराश होकर अब दूर से सिर्फ देखता था।
काश
मैंने खुद लाठी लेकर शुरू में ही इन सांपो को ठिकाने लगा दिया होता तो आज ये दिन ना देखना पड़ता।
Jitendra Pratap Singh
कभी सोचा कि जो मुल्क अपना खाना,कपड़ा और स्कूल तक चीन,अमेरिका,सऊदी अरब से भीख मांग कर चला रहा हो,वह भारत के आतंकियों को फंड कैसे करेगा ? क्यो करेगा ? हम लकीर के फकीर है,चंद आतंकी फंडिंग के हवाला रैकेटों में पाकिस्तान का ज़िक्र आ गया तो देश मे सर्वमान्य नैरेटिव हो गया कि पाकिस्तान आतंकियों की मॉरल सपोर्ट के साथ आर्थिक मदद भी कर रहा है...दरअसल हमारी अक्ल घुटनों में है...और पाकी भिखारियों की अक्ल यथोचित स्थान पर....भारत मे आतंकियों को फंडिंग...हम मियांओं की जूती ,मियां की चांद वाला मामला है....
अखबार देखिए पाकिस्तान में बैठे...आतंकी हैंडलर...भारत मे चल रहे साइबर ठगी के सबसे बड़े मास्टर माइंड हैं...."आपका डेबिट/क्रेडिट कार्ड लॉक हो गया है" ,"आपकी लाटरी निकली है,इत्ते रुपये फलाने बैंक खाते में जमा कराओ,फिर पूरा इनाम पाओ" जैसी टेलीफोन कालें पहले नाइजीरिया के ठग करते थे,अब इस पर 80 % कंट्रोल पाकिस्तानियों का है...भारत और नेपाल में बैठे स्लीपर सेल ,इस माध्यम का उपयोग आतंकी-माओवादी फंडिंग और गोला बारूद में ही तो कर रहे हैं....अर्थात मियां की जूती ,मियां के सर....
कभी आपका ध्यान गया कि विश्व मे सबसे ज़्यादा मस्जिदे,मदरसे,इस्लामी यूनिवर्सटी, मेडिकल कालेज,इंजीनियरिंग कालेज और तमाम इस्लामी इदारे भारत मे हैं...सभी ज़बरदस्त ज़कात करते हैं...किसी सरकार,गुप्तचर विभाग को यह मालूम नहीं कि यह पैसा कहाँ जा रहा है,कहाँ खर्च हो रहा है...अल्पसंख्यक संस्थाओं का सरकार आडिट भी नहीं करा सकती...समझदार को इशारा काफी है...
भारत मे 'वैतुलमाल' नामक समानांतर इस्लामिक बैंकिंग प्रणाली चालू है...किसी को इसके बारे कुछ नहीं मालूम ! दरअसल यह वह व्यवस्था है जो देश के मेट्रो शहरों से लेकर गांव तक चलती है...इसका मरकज़ खास मस्जिदें होती हैं..जहां के कुछ नुमाइंदे...हिन्दू-मुसलमान , छोटे व्यापारियों,ठेले,रिक्शेवालों से कम से रु 50/- के हिसाब से प्रतिदिन कलेक्शन करते हैं,वाकायदा एक अजमेर शरीफ या निजामुद्दीन दरगाह के फोटो वाली पास बुक ईशु की जाती है...जो रिक्शे,ठेलेवाले,व्यापारियों को दी जाती है,प्रतिदिन कलेक्शन होता है...पासबुक पर पैसे इकट्ठे करने वाला एंट्री कर दस्तखत करता है...
इन खातों की खूबी यह है कि छोटा व्यापारी,रिक्शे-ठेले वाला जब चाहे,ज़रूरत के मुताबिक अपनी पूरी रकम निकाल सकता है...या उधार भी ले सकता है...कोई ब्याज न देना पड़ता है...न ब्याज मिलता है.....सोचिए अरबों रु की लिक्विड-मनी मस्जिदों के पास हमेशा रहती है...इससे लहीम-शहीम मस्जिदें तो बनती हैं....हर तरीके की फंडिंग के लिए धन की कोई कमीं नहीं होती....मेरी गारंटी है कि ऐसी व्यवस्थित इस्लामिक समानांतर बैंकिंग की जानकारी भारत सरकार के किसी अधिकारी के पास भी नहीं होगी....इन जानकारियों के अभाव में आतंकवाद के खिलाफ कभी कोई लड़ाई न लड़ी जा सकती है...न जीती जा सकती है....
Pawan Saxena
यह मस्जिद देवभूमि में स्थित नैनीताल में है...करीब 20-25 वर्ष पूर्व इस मस्जिद का कोई अस्तित्व नहीं था...यह किले-महलनुमा मस्जिद, विश्वप्रसिद्ध नैनीझील और सदियों पूर्व के नैना देवी के ठीक सामने स्थित है...सुबह साढ़े 4 बजे से इस मस्जिद में लगे 16 बड़े लाऊड स्पीकर आपको बगैर जगाए नहीं मानते...चूंकि यह सरोवर नगरी चारो तरफ से पर्वतों से घिरी हुई है तो प्रातः साढ़े 4 बजे इन 16 लाउडस्पीकरों की कर्णभेदी ध्वनि दिल के रोगियों,बी.पी के मरीजों और आसपास के अस्पतालों में भर्ती मरीजों के ऊपर कहर की तरह टूटती है...
खास बात यह है कि यह मस्जिद खरीदी हुई ज़मीन पर नहीं है...तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सैकड़ों मीटर प्राईम लैंड (बेशकीमती ज़मीन) मुसलमानों को उपहार(अलॉट) में देकर....इस मस्जिद का निर्माण कराया है....
Pawan saxena जी

Saturday, 23 June 2018


सामूहिक दुष्कर्म मामला: दो आरोपी गिरफ्तार
फादर अल्फांसो को भी जेल ...

कोचांग के स्टॉपमन मेमोरियल मध्य विद्यालय के प्रभारी व सचिव फादर अल्फांसो आईंद के खिलाफ भी नामजद केस दर्ज किया गया था।


पत्थलगड़ी समर्थक नेता जॉर्ज जोनास किड़ो ने सामूहिक दुष्कर्म की साजिश रची

एडीजी (ऑपरेशन) आरके मल्लिक का दावा है कि पत्थलगड़ी समर्थक नेता जॉर्ज जोनास किड़ो ने सामूहिक दुष्कर्म की साजिश रची। इसके लिए उसने कोचांग से सात किमी दूर छोटा उड़ी जंगल में पत्थलगड़ी समर्थकों और पीएलएफआई के साथ बैठक की। बैठक में मौजूद अजूब और आशीष समेत छह लोगों को यह काम सौंपा गया। उसके बाद लड़कियों को अगवा कर इसी जंगल में लाकर गैंगरेप किया गया।


लड़कियों के साथ अगवा तीन पुरुष सदस्यों को जबरन पिलाया पेशाब

लड़कियों के साथ नाट्य मंडली से जुड़े तीन पुरुष सदस्यों को कोचांग से अगवा किया गया था। छोटा उड़ी जंगल में तीन आरोपियों ने बारी-बारी से पांच लड़कियों से दुष्कर्म किया। वहीं, तीन आरोपी उन पुरुष सदस्यों को गाड़ी में ही बंधक बनाकर पहरा देते रहे। ये तीनों दुष्कर्म की तस्वीरें खींचने के साथ वीडियो भी बना रहे थे। दुष्कर्म के बाद सभी उन तीनों पुरुष सदस्यों के पास पहुंचे। उनको पीटते हुए कहा-चलो, अपने-अपने हाथों में पेशाब करो। पेशाब को पीयो। तीन सदस्यों से जबरन अपना-अपना पेशाब पिलाया गया।

खूंटी के कोचांग से नुक्कड़ नाटक मंडली की पांच लड़कियों को अगवा कर सामूहिक दुष्कर्म मामले में शामिल दो आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। दोनों आरोपी पश्चिम सिंहभूम जिला के हैं। वे पीएलएफआई से जुड़े होने के साथ पत्थलगढ़ी समर्थक हैं। गिरफ्तार आरोपियों में बंदगांव थाना क्षेत्र के लजनुली गांव का अजूब सांडी पूर्ति और और सोनुवा थाना क्षेत्र के बुडुमकेन गांव का आशीष लोंगो हैं। वहीं, लड़कियों के अगवा होने से लेकर उनसे दुष्कर्म की बात पुलिस से छुपाने और पूरे मामले को 24 घंटे से अधिक समय तक गुपचुप तरीके से मैनेज करने में जुटे रहे कोचांग के आरसी मिशन स्कूल के फादर अल्फांसो आईंद को भी शनिवार सुबह गिरफ्तार कर लिया गया। तीनों आरोपियों की प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में दप्रसं की धारा 164 के तहत स्वीकारोक्ति बयान दर्ज कराया गया। फिर उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया।


फादर को पीआर बांड पर छोड़ा गया था

इधर, घटना की जांच के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग की टीम दिल्ली से खूंटी पहुंची अौर पूरे मामले की डीसी और एसपी से जानकारी ली गई। इस मामले में दो केस दर्ज किए गए थे। एक केस अड़की और दूसरा खूंटी के महिला थाने में दर्ज की गई थी। फादर अल्फांसो समेत उसके साथ हिरासत में ली गई दो सिस्टर एवं दो शिक्षकों को पूछताछ कर पीआर बांड पर छोड़ा गया था। साथ ही, पुलिस ने 4-5 अज्ञात पत्थलगड़ी समर्थकों के खिलाफ भी मामला दर्ज किया है।


दरिंदों ने बार-बार दुष्कर्म किया...हम रोए तो नाजुक अंगों में पिस्टल, लकड़ी...खैनी डाल दी: पीड़िता

पीड़िता ने बताया मंगलवार 19 जून को दोपहर 12:30 बजे होंगे। हम लोग कोचांग के स्टॉपमन मध्य विद्यालय में बच्चों के बीच नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत कर रहे थे। अभी 15 मिनट ही हुए थे कि दो बाइक पर सवार पांच लोग वहां पहुंचे। इन सभी की उम्र 25 के आसपास थी। एक लड़के ने इशारा कर नाटक रोकने को कहा और हमें अपने पास बुलाया। वहां फादर और दो सिस्टर सादे लिबास में उपस्थित थे। बाइक से आए युवकों ने हमें घेर लिया। पूछताछ करने लगे कि कहां से आए हो, क्या कर रहे हो। वे बोले-पुलिस की मुखबिरी करते हो। पुलिस ने ही तुम लोगों को यहां भेजा है मुखबिरी करने के लिए। हम लोगों ने कहा कि हमारा काम सिर्फ लोगों को जागरूक करना है। इसके बदले हमें पैसा मिलता है। इतना सुनते ही तीन युवकों ने पिस्टल निकाल ली और धमका कर गाड़ी में बैठने को कहा। बोले-हम लोग जांच करेंगे कि तुम पुलिस के लोग हो या नहीं, तभी छोड़ेंगे। हमने विरोध किया तो कहा कि गोली मार देंगे। तुम लोगों को नहीं मालूम कि इस एरिया में बिना पूछे आने की अनुमति नहीं है। इस क्षेत्र में हमारे आदेश के बिना सरकार भी नहीं आ सकती। इस दौरान फादर और दोनों सिस्टर चुप रहे। बाहर देखा एक लाल और एक नीली रंग की बाइक लगी है। नंबर प्लेट पर पेपर चिपका था। युवकों ने हमलोगों को उसी गाड़ी में बैठने को कहा जिससे हमारी टीम वहां पहुंची थी। एक युवक ने वहां खड़ी दोनों सिस्टर को भी गाड़ी में बैठने के लिए कहा, तभी वहां खड़े फादर ने कहा कि शी इज नन, इन्हें छोड़ दो। बाइक से आया युवक हमारी गाड़ी खुद चलाने लगा। एक बाइक गाड़ी के आगे और एक पीछे चल रही थी।


हमारे रोने का भी उनपर कोई असर नहीं पड़ा

पीड़िता ने बताया कि स्कूल से निकलने के आधा घंटा बाद हमलोग एक जंगल में पहुंचे। वहां पहुंचने के बाद पुरुष साथी को गाड़ी में ही बैठा दिया गया। हम पांचों युवतियों को वे कुछ दूर आगे जंगल में ले गए। इसके बाद मारपीट करने लगे और कपड़े उतारने को कहा। हम लोग गिड़गिड़ाने लगे, माफी मांगी कि अब कभी इस गांव में नहीं आएंगे। दो युवकों ने हम पर पिस्टल तान दी और धक्का देकर दो युवतियों को जमीन पर गिरा दिया। जबरन कपड़े उतरवाए। इसके बाद उनकी दरिंदगी शुरू हो गई। सभी हमारे ऊपर टूट पड़े और दुष्कर्म करना शुरू कर दिया। हमारे रोने का भी उनपर कोई असर नहीं पड़ा। दर्द से हमलोग कराह रहे थे, तभी एक युवक ने पेड़ से एक डाली तोड़ी और एक लड़की के नाजुक अंग में डाल दिया। एक युवक ने पिस्टल मेरे नाजुक अंग में डाल दिया। पास में खड़ा दूसरा युवक खैनी बना रहा था, उसने मेरे अंग में खैनी डाल दी। करीब चार घंटे तक उन लोगों ने जानवरों जैसा सलूक किया। इस दौरान उन लोगों ने हमारे ही मोबाइल से हमारा वीडियो बनाया और फोटो खींची। हमारे साथ जो पुरुष साथी थे उन्हें भी पीटा और कहा कि थूक कर चाटो, ताकि दोबारा यहां आने की हिम्मत न हो। युवकों ने कहा कि तुम लोगों को सबक सिखाना जरूरी था, ताकि यहां आने से पहले पुलिस भी कांप उठे। इसके बाद हमें गाड़ी में बैठाया और स्कूल के पास लाकर छोड़ दिया।


खुद को कमरे में बंद कर लिया

पीड़िता ने कहा- हम स्कूल पहुंचे तो सारी बात फादर और सिस्टर को बताई। उन्होंने कहा कि यह सब यहीं भूल जाओ। बात बाहर जाएगी तो मीडिया में फैल जाएगी। पुलिस को सूचना मिलेगी तो वे भी तुम्हे परेशान करेगी और अपराधियों को पता चलेगा तो तुम लोगों की जान भी जा सकती है। सिस्टर ने हम लोगों को गाड़ी में बैठाया और हम लोग खूंटी आ गए। मैं इतना परेशान थी कि घर आकर खुद को कमरे में बंद कर लिया। आत्महत्या करने का मन हो रहा था, लेकिन हिम्मत कर अगले दिन यह बात एक दीदी को बताई। उन्होंने हिम्मत दी और इसकी जानकारी पुलिस के बड़े अधिकारी को दी गई।

Friday, 22 June 2018


केरल की नंबूदरीपाद से  केंद्र की मोरारजी सरकार गिरानें में था वेटिकन और सीआईए का हाथ !
इस बार मोदी सरकार को गिराने चक्रव्यूह !
आज कांग्रेस उतनी शशक्त नहीं है वरना मोदी सरकार को वेटिकन और सीआईए के जरिये कब का गिरा चुकी होती। कांग्रेस के पक्ष में कभी चर्च तो कभी कठमुल्ले मोदी सरकार के खिलाफ फतवे जारी करते रहते हैं, एंटी इंडिया, मोदी हैटर पत्रकारों का समूह मोदी सरकार पर पहले से हमलावर है! 
सीआईए और वेटिकन ने ऐसा पहली बार नहीं किया बल्कि देश की राजनीति को अस्थिर करने के लिए लिए यह गठजोड़ भारत में अपने मोहरे कांग्रेस का शुरु से उपयोग करता रहा है! इसके साक्ष्य के तौर पर केरल की नंबूदरीपाद सरकार और केंद्र में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी जनता पार्टी की सरकार है। वैसे तो दोनों सरकारों के गिरने के कई कारण हैं लेकिन मुख्य षड्यंत्र वेटिकन और सीआईए ने कांग्रेस के कंधे पर बंदूक रखकर रचा था।
केरल में 1959 में नंबूदरीपाद सरकार को हटाने के लिए ही उसी सार लिबरेशन स्ट्रगल चलाया गया था। इस संघर्ष में लोनप्पन नंबदान और पादरी जोसेफ वडाक्कन ने सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था। नंबदान ने अपनी आत्मकथा द ट्रेवलिंग बिलीवर तथा पादरी वडक्कन ने अपनी आत्मकथा एन्टे कुथिपम किथप्पम में उन कारकों को सूचीबद्ध किया है जिसकी वजह से लिबरेशन संघर्ष का शुभारंभ हुआ और सरकार को बेदखल करने का मार्ग प्रशस्त किया गया है। 
ये दोनों किताबें मातृभूमि बुक्स से प्रकाशित हुई थी।  इस संघर्ष के लिए आर्थिक खर्च का बोझ भी वेटिकन ने ही उठाया था, ताकि सरकार बदलने के बाद उससे कहीं ज्यादा पैसा ऐंठा जा सके।भारतीय राजनीति में कांग्रेस के माध्यम से वेटिकन की भूमिका शुरू से ही अहम मानी जाती रही है। 
 मुख्यधारा का मीडिया हमेशा से ही कांग्रेस की करतूतों से आंखे चुराता आ रहा है। वैसे भी केरल में सत्ता किसी भी पार्टी के पास हो लेकिन चाबी हमेशा से ही वेटिकन के पास ही रही है। इसलिए भी मीडिया की नजर उस तरफ नहीं होती है। केरल से राज्यसभा की तीन सीटें खाली हैं क्योंकि तीनों मौजूदा सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो गया है।
उम्मीद थी कि कांग्रेस राज्यसभा के उप सभापति पी जे कुरियन का कार्यकाल फिर बढ़ा देगी क्योंकि उनका टर्म पूरा हो गया है। उन्हें ईसाई धर्म के प्रमुख गुटों में से एक मार्थोमा चर्च का समर्थन भी प्राप्त है, क्योंकि वे इसी समुदाय से आते हैं। लेकिन केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने केरल कांग्रेस (मणि गुट) को सीट देने का फैसला कर लिया।  जबकि वे वर्तमान में कोट्टायम लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं।  लेकिन कैथोलिक चर्च ने पार्टी अध्यक्ष के एम मणि के बेटे जोस के मणि को राज्यसभा भेजने का फरमान सुना दिया तो केपीसीसी को झुकना पड़ा।
इतिहास पर लिखी किताब के लिए पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित अमेरिकी लेखक जेराल्ड पॉस्नर ने अपनी किताब ‘गोड्स बैंकर्स‘ में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि दुनिया में कहीं भी वेटिकन के लिए किसी सरकार ने कार्यालय जारी रखने को स्वीकार नहीं किया। लेकिन उन्होंने भारत का उल्लेख नहीं किया है। इससे संकेत स्पष्ट हैं कि भारत ने पोप के कार्यालय को स्वीकार किया था। तभी तो भारत का प्रधानमंत्री कौन होना चाहिए यह तय करने में पोप और उनके कार्डिनल की हिस्सेदारी रही है? भारत में वेटिकन का प्रतिनिधित्व करने वाली टेरेसा नाम की एक कैथोलिक नन थी। जिसे इस देश में मदर टेरेसा के नाम से जाना जाता है।
उसका असली रंग 1979 में तब उजागर हो गया जब प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की अगुवाई में तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने एक निजी सदस्य को कनवर्जन को गैरकानूनी और अपराध घोषित करने संबंधी बिल पेश करने की अनुमति दी थी। यह बिल ओ पी त्यागी ने पेश किया था। इस बिल में कहा गया था कि देश में किसी भी नागरिक को अपने धर्म को बदलने के लिए मजबूर / दृढ़ता / नकदी या अन्य किसी प्रकार से प्रेरित करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।
कैथोलिक चर्च ही वह पहला संस्थान था जिसने इस बिल को चुनौती दी थी। मदर चेरेसा का मार्मिक चेहरे के पीछे छिपा धार्मिक कट्टरपन सामने आ गया। उसने इस बिल के विरोध में आंदोलन करने की धमकी देते हुए उस बिल को तत्काल वापस करने की मांग की।
इस कदम के बाद से ही मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सुचारू रूप से चल रही जनता पार्टी की सरकार हिचकोले खाने लगी। पूरे देश के ईसाई प्रतिष्ठानों ने बंद का आयोजन किया और विशेष प्रार्थना सभांए आयोजित की। प्रार्थना का तत्कला असर भी हुआ। 
आरोप है कि वेटिकन और सीआईए के षड्यंत्र की वजह से ही जनता पार्टी की सरकार में आंतरिक लड़ाई शुरू हो गई, इस बिल के विरोध में सबसे पहले देश के मार्क्सवादियों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद ही देश में  मीडिया, मार्क्सवादियों, मुसलमानों और मेथनान (चर्च) का एक ध्रुव बन गया। इसका इतना प्रभावी गठबंधन हो गया कि जनता पार्टी बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले जयप्रकाश नारायण भी दर्शक मात्र बने रहे । मोरारजी देसाई की सरकार को कनवर्जन विरोधी बिल के कारण ही वेटिकन के पोप के कोप का शिकार होना पड़ा।
वेटिकन कांग्रेस के शासन के अलावा किसी की सरकार में सहज नहीं रहता। उसके लिए कांग्रेस की सरकार ही हमेशा मुफीद साबित हुई है। तभी तो इस बार मोदी सरकार के कार्यकाल में वह बदहवास सा हो गया है। वेटिकन ने तो मोदी सरकार के खिलाफ अभियान चलाने की खुलेआम घोषणा तक कर दी है। इसलिए इस बार मोदी सरकार का सामना कांग्रेस या किसी विपक्षी पार्टियों से नहीं होने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधे वेटिकन से लड़ना है।