Sunday 17 June 2018

रानीलक्ष्मीबाई के चहेते बेटे और रियासत के मालिक दामोदर राव की जिंदगी को लेकर बहुत कम पढ़ने को मिलता है। वह भले ही रानी के दत्तक पुत्र थे, लेकिन रानी के नहीं रहने पर अंग्रेजों ने उनका ये हाल कर दिया था कि उन्हें भीख मांगकर जिंदगी गुजारनी पड़ी थी। जबकि वह 25 लाख की रियासत के मालिक थे।
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विश्व इतिहास की ताकतवर महिलाओं में शुमार रानी लक्ष्मी बाई के बेटे का जिक्र इतिहास में भी बहुत कम हुआ है। यही वजह है कि यह असलियत लोगों के सामने नहीं आ पाई। कहा तो यहां तक जाता है कि रानी के शहीद होने के बाद उन्हें जंगलों में भी भटकना पड़ा था और उन्होंने बेहद गरीबी में अपना जीवन बिताया। अंग्रेजों की उनपर हर पल नजर रहती थीं।
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इतिहास में जब भी पहले स्वतंत्रता संग्राम की बात होगी, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जिक्र सबसे पहले होगा। उनकी वीरता की आज भी मिसाल दी जाती है। इतिहासकारों ने रानी को खूब लिखा। कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने भी रानी पर खूब कलम चलाई, लेकिन यह कलम दामोदर राव के बारे में बताने के पहले ही रुक गई। दामोदर के बारे में कहा जाता है कि इंदौर के ब्राह्मण परिवार ने उनका लालन-पालन किया था।
रानी का परिवार आज भी जी रहा है गुमनामी की जीवन
कहा जाता है कि 18 जून 1858 में ग्वालियर में रानी की शहादत आजादी की लड़ाई के लिए एक नई सुबह थी। जिस बालक को पीठ पर बांधकर अंग्रेजों के पर सैलाब बनकर रानी टूट पड़ी थीं। वह राजकुमार गुमनाम हो गया। उसे भीख मांगकर पेट भरने को मजबूर होना पड़ा। रानी लक्ष्मीबाई का परिवार आज भी गुमनामी की जिंदगी जी रहा है। दामोदर राव का असली नाम आनंद राव था। इसे भी बहुत कम लोग जानते हैं। उनका जन्म झांसी के राजा गंगाधर राव के खानदान में ही हुआ था।
पेंशन के सहारे जिंदा रहा राजा
इसे दुर्भाग्य कहेंगे कि जिस रानी पर देश गर्व करता है, वह अपने ही देश में पेंशन के सहारे जिंदगी को बिताया। कहा जाता है कि दामोदर राव जब भी अपनी मां झांसी की रानी के साथ महालक्ष्मी मंदिर जाते थे, तो 500 पठान अंगरक्षक उनके साथ होते थे। घोड़ों पर सिपाही तलवार-भाले लेकर चलते थे।
कभी शाही ठाठ में रहने वाले इस राजकुमार दामोदर को मेजर प्लीक द्वारा इंदौर भेज दिया गया। पांच मई 1860 को इंदौर के रेजिडेंट रिचमंड शेक्सपियर ने दामोदर राव का लालन-पालन मीर मुंशी पंडित धर्मनारायण कश्मीरी को सौंप दिया। दामोदर राव को सिर्फ 150 रुपए महीने पेंशन राशि दी जाती थी। इससे से ही उनका गुजारा होता था।
28 मई 1906 को इंदौर में हुआ था दामोदर का निधन
लोगों का यह भी कहना है कि दामोदर राव कभी 25 लाख रुपए की सालाना रियासत के मालिक थे, जबकि दामोदर के असली पिता वासुदेव राव नेवालकर के पास खुद चार से पांच लाख रुपए सालाना की जागीर थी। बेहद संघर्षों में जिंदगी जीने वाली दामोदर राव 1848 में पैदा हुए थे। उनका निधन 28 मई 1906 को इंदौर में बताया जाता है।
इंदौर में हुआ था दामोदर राव का विवाह
रानी लक्ष्मीबाई के बेटे के निधन के बाद 19 नवंबर 1853 को पांच वर्षीय दामोदर राव को गोद लिया गया था। दामोदर के पिता वासुदेव थे। वह बाद में जब इंदौर रहने लगे तो वहां पर ही उनका विवाह हो गया दामोदर राव के बेटे का नाम लक्ष्मण राव था। लक्ष्मण राव के बेटे कृष्ण राव और चंद्रकांत राव हुए। कृष्ण राव के दो पुत्र मनोहर राव, अरूण राव तथा चंद्रकांत के तीन पुत्र अक्षय चंद्रकांत राव, अतुल चंद्रकांत राव और शांति प्रमोद चंद्रकांत राव हुए।
लक्ष्मण राव को बाहर जाने की नहीं थी इजाजत
23 अक्टूबर वर्ष-1879 में जन्मे दामोदर राव के पुत्र लक्ष्मण राव का चार मई 1959 को निधन हो गया। लक्ष्मण राव को इंदौर के बाहर जाने की इजाजत नहीं थी। इंदौर रेजिडेंसी से 200 रुपए मासिक पेंशन आती थी, लेकिन पिता दामोदर के निधन के बाद यह पेंशन 100 रुपए हो गई। वर्ष-1923 में 50 रुपए हो गई। 1951 में यूपी सरकार ने रानी के नाती यानी दामोदर राव के पुत्र को 50 रुपए मासिक सहायता आवेदन करने पर दी थी, जो बाद में 75 रुपए कर दी गई।
क्या कहते हैं इतिहासकार
इतिहासकार ओम शंकर असर के अनुसार, रानी लक्ष्मीबाई दामोदर राव को पीठ से बांध कर चार अप्रैल 1858 को झांसी से कूच कर गई थीं। 18 जून 1858 को तक यह बालक सोता-जागता रहा। युद्ध के अंतिम दिनों में तेज होती लड़ाई के बीच महारानी ने अपने विश्वास पात्र सरदार रामचंद्र राव देशमुख को दामोदर राव की जिम्मेदारी सौंप दी। दो वर्षों तक वह दामोदर को अपने साथ लिए रहे। वह दामोदर राव को लेकर ललितपुर जिले के जंगलों में भटके।
दामोदर राव के दल के सदस्य भेष बदलकर आटा, दाल, नमक घी लाते थे। दामोदर के दल में कुछ उंट और घोड़े थे। इनमें से कुछ घोड़े देने की शर्त पर उन्हें शरण मिलती थी। शिवपुरी के पास जिला पाटन में एक नदी के पास छिपे दामोदर राव को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर उन्हें मई, 1860 में अंग्रेजों ने इंदौर भेज दिया गया था।
सौजन्य से फोटो कलेक्सन
http://www.liveindia.com/free…/jhansi_ki_rani_laxmi_bai.html
http://ramrahmandelhi.blogspot.in/…/rani-lakshmibai-postcar…

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