Tuesday 12 June 2018

त्रेतायुगीन है उल्का पिंड से बनी शनि प्रतिमा, कुंती, विक्रमादित्य भी पूज चुके

देश का सबसे पुराने शनि मंदिर का उल्लेख प्राचीन पुराणो में भी मिलता है. इस मंदिर को हिंदू धार्मिक ग्रंथ त्रेता युग का बताते हैं. मंदिर के महंत शिवराम दास त्यागी कहते हैं कि त्रेता युग में यहां शनि देव ने निवास किया. इसके बाद यहां आकाश से गिरे उल्का पिंड से शनि प्रतिमा तैयार कर मंदिर स्थापित की गई. महंत श्री त्यागी की मानें तो इस मंदिर में महारानी कुंती सहित, राजा कुंतिभोज ने भी पूजा की है. इसके बाद महाराज विक्रमादित्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया.

यहां तक कि सिंधिया राजवंश के राजा भी यहां अपना मस्तक झुकाते रहे हैं. शनिश्चरा का ऐंती स्थित शनि मंदिर कितना पुराना है, इसकी गुत्थी पुरातत्व विद भी नहीं सुलझा पाए हैं. मंदिर के बारे में पुरात्तव विभाग सहित ऑर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के विशेषज्ञ भी शोध कर चुके हैं. मुरैना में बतौर डिप्टी कलेक्टर पदस्थ रहे रूपेश उपाध्याय ने इस मंदिर पर गहन शोध है.
श्री उपाध्याय कहते हैं कि जिस पत्थर से प्रतिमा का निर्माण हुआ है वह पत्थर विशेष प्रकार है. श्री उपाध्याय शनि की प्रतिमा को अपने शोध के आधार पर उल्का पिंड से निर्मित बताते हैं. इस बात का समर्थन मंदिर के महंत शिवराम दास त्यागी भी करते हैं. महंत की मानें तो भानुमति ग्रंथ जैसे एतिहासिक स्त्रोतों में इस मंदिर का उल्लेख मिलाता है. यह सिद्ध करता है कि मंदिर के विषय में वैदिक काल में भी काफी शोध हुआ था और मंदिर त्रेतायुग का है.
यह है प्रचलित इतिहास: मुरैना जिला प्रशासन ने मंदिर परिसर के कुछ शिलालेखों के आधार पर मंदिर का जो इतिहास जारी किया गया है. उसके अनुसार मंदिर की मुख्य प्रतिमा उल्का पिंड के पत्थर से बनी है. यहां पर उल्कापात से हुआ गड्ढा आज भी है, जहां से गुप्ता गंगा बहती है. एक धार्मिक कथा के अनुसार रावण द्वारा लंका में सभी देवताओं सहित शनि देव को भी बंदी बनाया गया था.
शनि देव की मौजूदगी के कारण लंका दहन नहीं हो पा रहा था. शनि निर्बल हो गए थे. इसलिए वो झट से लंका नहीं छोड़ सकते थे. इसलिए शनिदेव के आग्रह पर हनुमा ने उन्हें वेग से उत्तर की ओर फेका. शनि देव एंति शनि पर्वत पर आ गिरे. यहां वे ठीक होने तक रहे. शनि ने अपने निर्बल शरीर पर सरसों के तेल से मालिश की और वे स्वस्थ होकर वापस अपने लोक चले गए. इसके बाद यहां मंदिर की स्थापना हुई.
कुंती से लेकर सिंधिया शासकों ने भी पूजा: महंत शिवराम दास त्यागी के मुताबिक पांडवों पर शनि की दशा आने पर चिंतित कुंति अपने धर्मपिता कुंतीभोज की नगरी कुुंतलपुर आईं. उनके धर्म पिता के राज्य में आने वाले इस शनि मंदिर पर कुंति ने पांडवों सहित पूजा की.
श्री त्यागी के मुताबिक इसका उल्लेख कुछ ग्रंथों में मिलता है. इसके अलावा मंदिर का पुन: निर्माण उज्जैनी के राजा विक्रमादित्य द्वारा फिर से कराए जाने की बात भी शिलालेख के जरिए पता चली है. मंदिर में एक अन्य शिलालेख है. जिसमें सिंधिया शासक दौलत राव द्वारा यहां जागीर लगाने और शनि पूजा करने का उल्लेख मिलता है.
यह भी प्रचलित

-शोध कर्ता रूपेश उपाध्याय के मुताबिक सिंधिया शासन काल में उज्जैन में लगने वाले कुंभ के बाद दूसरा सबसे बड़ा मेला शनिमंदिर ऐंती पर लगता था
-बताया जाता है कि शनि सिंगणा पुर के मंदिर की शिला यहां से पहले औरंगाबाद ले जा गई. यहां से शिला पानी के तेज बहाव के साथ सिंगणापुर पहुंच गई
-कहा जाता है कि शनि के निवास के कारण ही इस जगह पर लौह अयुस्क की उपलब्धता प्रचुर हो गई थी. शिवप्रताप सिंह जादौन, मुरैना.

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