Wednesday 6 June 2018

सिवाय “हरामखोरी” के मुसलमानों ने पिछले एक हज़ार साल में कुछ नहीं किया ।
-- पाकिस्तानी पत्रकार जावेद चौधरी का यह आलेख उर्दू अखबार ‘डेली एक्प्रेस’ कराची में प्रकाशित हुआ । जिसमें सिर्फ पाकिस्तान के मुसलमान ही नहीं, दुनियां के मुसलमानें की हकीकत को बखूबी बयां किया गया है.
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मशहूर उर्दू शायर जौन इलिया का एक तीखा फिकरा है,
"हम मुसलमान अपने एक हजार साल के इतिहास में 'हरामखोरी' के सिवा कुछ नहीं कर रहे है!"
जब से मैंने यह पढ़ा है, मै सोच में डूबा हुआ हूँ, सिर्फ 18 शब्दों में जौन साब ने मुसलमानों का कितना सही वर्णन किया है.
सही में हमने हजार साल में जंगों के सिवा कुछ नहीं किया है. आप 2018 से एक हजार साल पीछे जाइए, आपको महमूद गजनवी हिंदुस्तान पर हमला करते मिलेगा, आपको स्पेन में मुसलमानों के हाथों मुसलमानों का गला काटते दिखेगा, आपको तुर्की में लोग तलवारे तान के घूमते नजर आएंगे, आपको अरबस्तान में लाशें बिखरी मिलेंगी, शिया-सुन्नी एक दुसरे का सर काटते नजर आएंगे.
मुसलमान, मुसलमान को जीतते हुए नजर आयेगा, मुसलमान मुसलमानों की मस्जिदें जलाते दिखाई देंगे और धार्मिक मुसलमान के हाथो दूसरे धार्मिक मुसलमानों के कटे हुए सरों के मिनार खड़े किए आपको दिखेंगे. आप साल 1018 से आगे आते जाइये आपके दिमाग में एक एक चीज आती जाएगी. आपको मुसलमान एक दुसरे के क़त्ल के वक्त और बाद में हरामखोरी करते नजर आएंगे.
हमने अपने 1400 सालों के इतिहास में दूसरों को इतना नहीं जीता जितना मुसलामनों को जीता याने कुचला है. आपको जानकर हैरानी होगी की इस्लाम ने आज के इस्लामी दुनिया का 95% हिस्सा इस्लाम की शुरूआत के पहले 100 सालों में ही जीत लिया था, इसके बाद के 1350 साल मुसलमान इसी इलाके पर कब्जे के लिए एक दूसरे के साथ लड़ते रहे. हमारा 95% ज्ञान, धर्म और शास्त्रों का निर्माण का इतिहास पहले सिर्फ 350 सालों में सिमट गया है.
हमने इसके बाद के हजार सालों में "हरामखोरी" के सिवा कुछ भी नहीं किया है. दुनियाभर का इस्लाम नेलकटर से लेकर कंघी तक सब कुछ उन लोगों का बनाया हुआ इस्तेमाल कर रहा है जिन्हें हम दिन में पांच बार गालियां देते रहते हैं. कमाल देखिए हम मस्जिदों में यहूदियों के बनाए हुए पंखे और ए.सी. लगाकर, ईसाईयों के बनाए हुए पाइपों से आने वाले पानी से वजू (नमाज के पहले हाथ-पैर धोना) कर के, काफिरों के बनाए हुए साउंड सिस्टम पर अजान देकर और इन्ही की बनाई हुई नमाज की चटाई पर बैठ कर इन्ही सब के बरबादी की दुआ करते है.
हम दवाइयां भी यहूदियों की खाते है, बारूद भी काफिरों का इस्तेमाल करते है, और पूरी दुनिया पर इस्लाम के नियंत्रण और सत्ता का ख्वाब भी देखते है. आपको शायद यह भी जान कर हैरत होगी, कि हम खुद को दुनिया की बेहतरीन कौम मानते है लेकिन हमने पिछले 500 सालों में काफिरों के खिलाफ कोई बड़ी जंग नहीं जीती. हम 5 शतकों से सिर्फ मार और मार ही खा रहे है. पहले विश्व युद्ध के समय तक पूरा अरबस्तान एक देश था लेकिन यूरोप ने 1918 में अरबस्तान को 12 देशों में बाँट दिया और खुद को दुनिया की सबसे बहादुर कौम माननेवाली मुस्लिम कौम देखते ही रह गयी. ब्रिटन ने अरबों की जमीन छीन कर इजराइल बना दिया और हम रोने धोने और यौम अल क़ुद्स (इजराइल के निर्माण के विरोध का दिन- रमजान महीने का आखरी शुक्रवार) मानाने के सिवा कुछ नहीं कर रहे. हम अगर अच्छे लड़ाके थे और हमें 1400 साल का लड़ने का जबरदस्त अनुभव था तो हम कम से कम लड़ाई में तो माहिर हो जाते. और दुनिया के हर हथियार पर "मेड बाय मुस्लिम" का सिक्का लग जाता. और हम कही मार न खा रहे होते. और कम से कम आज इराक, लीबिया, इराक, अफ़गानिस्तान, सीरिया, यमन दुनिया के स्वर्ग बने हुए दिखते.
आज इस्लामी दुनिया की बदकिस्मती यह है की हम यूरोप की बंदूके, टैंकों, तोपों, गोलों, गोलियों और लड़ाकू विमानों के सिवा हमारे पवित्र काबा की रक्षा तक नहीं कर सकते है. हमारी शिक्षा क्षेत्र का यह बुरा हाल है कि दुनिया की 100 बेहतरीन यूनिवर्सिटीज में एक भी इस्लामी दुनिया की यूनिवर्सिटी नहीं है, पूरे इस्लामी दुनिया में जितने रिसर्च पेपर्स निकलते है उससे ज्यादा रिसर्च पेपर्स अकेले बोस्टन शहर में निकलते है.
पूरी इस्लामी दुनिया के सत्ताधीश अपना इलाज करवाने के लिए यूरोप या अमरीकी अस्पतालों में जाते है या अपने जिंदगी का आखरी हिस्सा इन पश्चिमी देशों में गुजारना चाहते है.
हमने पिछले 500 सालों में दुनिया को कोई नया दवा, नया हथियार, नया तत्वज्ञान, कोई नयी अच्छी किताब, कोई नया खेल, नया कानून नहीं दिया. हमने अगर इन 500 सालों में कोई नया अच्छा जूता भी बनाया होता तो भी बड़ी बात होती. हम हजार सालों में साफ सुधरा शौचालय भी नहीं बना पाए. हम बेहतरीन मोज़े और स्लीपर, या गर्मियों में ठन्डे और सर्दियों में गर्म रखने वाले कपडे भी नहीं बना पाए.
अगर कुरान शरीफ को छापने के लिए हमने कागज, स्याही और प्रिंटिंग मशीन बना ली होती तो भी थोड़ी इज्जत बच जाती. हम तो काबा पर ओढ़ने के लिए कपड़ा भी इटाली से बना कर मंगवाते है. हम साउंड सिस्टम भी यहूदी कंपनी से खरीद के अपने धार्मिक ठिकानों पर लगा देते है. हमारी तस्वीरे और मालाएं भी चीन से बन कर आती है. हमारे कफ़न जर्मन मशीनों पर तैयार होते है.
आप माने या ना माने हम दुनिया के 150 करोड़ मुसलमान सिर्फ एक कंज्यूमर है और इससे इनकी दुनिया में कोई कीमत नहीं है. यूरोप नई चीजे बनता है और हमारे मुस्लिम दुनिया तक पहुंचाता है और हम उसे इस्तेमाल करते है. और इसके बाद बनाने वालों को हम सिर्फ आंखे दिखाते है.
आप विश्वास कीजिये, जिस साल ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड सऊदी अरब को भेड़े देना बंद कर देगा, हम हज में क़ुरबानी भी नहीं दे सकेंगे. और जिस दिन यूरोप और अमरीका हमें गाड़िया, जहाज और कंप्यूटर देना बंद कर देगा उस दिन हम अपने घरों में कैद हो जायेंगे.
आप उन नौजवानों के ताने सुन लीजिये जो मैट्रिक की परीक्षा पास नहीं कर पाए, जिनको पेच तक कसना नहीं आता और जिनके घर के बड़े लोग अगर पैसा ना कमाए तो इनके घरों के चूल्हे नहीं जल पाएंगे, आप इनके दावे सुन लीजिये; ये लोग पूरी दुनिया में इस्लाम का झंडा लहराना चाहते है! आप अपने मौलवी का लम्बा भाषण सुन लीजिये जो खुद के माइक का टूटा हुआ तार भी ठीक नहीं कर सकता! ये अपने अल्लाह के रसूल की बाते भी मार्क जुकेरबर्ग के फेसबुक के जरिये ही अपने लोगों तक पहुंचाते है!
ये लोग आज तक इब्न तिमिया, इब्न काशीर, इमाम गजाली और मौलाना रूमी से आगे नहीं बढ़ सके! पूरे वैश्विक इस्लाम में ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं है जो इब्न अरबी को समझने का दावा कर सकेगा. इब्न हिशाम और इब्न इहशाक भी हमारे पास ऑक्सफ़ोर्ड प्रिंटिंग प्रेस के जरिये पहुंचता है! और इब्न रशीद भी हमें यूरोप के स्कॉलर्स ने समझाया था. लेकिन आप उलेमाओं के भाषण सुनिए आपको पता चलेगा की सब कुछ इन्होने ही किया है! ये जिस दिन आदेश देंगे, सूरज नहीं उगेगा! जिस दिन आदेश जारी करेंगे जमीं पर अनाज नहीं उगेगा! हम ने आखिर आज तक क्या किया है? हम मुस्लिम किस आधार पर खुद को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ जाति समझते हैं? मुझे आज तक इस सवाल का जवाब नहीं मिल सका.
हम अगर दिल पर पत्थर रख कर इस हकीकत को मान ले तो हमें पता चलेगा की हमारी "हरामखोरी" हमारे जिन्स का हिस्सा बन चुकी है! आप अपने आसपास नजर डालिए, आप को अपने देश के हर परिवार में कोई एक व्यक्ति काम करता दिखाई देगा, वह पूरे परिवार की अवश्यकताए पूरी करता होगा, घर के बाकी लोग इस एक व्यक्ति के आधार पर "हरामखोरी" करते होंगे और उन्हें गलिया भी दे रहे होंगे, आप एक दिन इस खानदान के "हरामखोरी" की चर्चा भी सुन लीजिए! आप को यह लोग यह कहते हुए मिलेंगे, "आखिर इसने हमारे लिए क्या किया है?" आपको पूरे शहर में कोई एक व्यक्ति प्रगति करता मिलेगा और पूरा शहर उसे गालियां दे रहा होगा. हमारे डेढ लाख अफसरों में, दस साल में कोई एक काम का अफसर पैदा होता है और पुरा देश उसे सर आंखों पर उठाता है. आप देश का इतिहास देख लीजिये, सब के सब जानेमाने नेताओं के आखों में आपको आंसू देखने को मिलेंगे.
आपको मुल्क का हर वह शख्स दुखी मिलेगा जिसने खुद "हरामखोरी" से इंकार कर दिया था, जिसने एक जाति को देश बनाने की गलती की थी. इस्लामी दुनिया हजार साल से यह गलती दोहरा रही है. और हम पाकिस्तानी मुसलमान 70 साल से यही खेल खेल रहे है. हम एक ऐसे मुल्क में रह रहे है जहां हमने आज तक देश को तोड़ने वालों का कोई हिसाब नहीं किया. हमने कारगिल के जिम्मेदारों का कोई हिसाब नहीं किया.
हमने आज तक शौकत अजीज जैसे लोगों को भी कोई सवाल नहीं पूछे जो बाहर से आए, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने और शेरवानी उतार के जहा से आए थे वहां के लिए वापिस चले गए. हमने आज तक उन लोगों से भी हिसाब नहीं माँगा जिन्होंने धोखा दिया.
लेकिन हम हरामखोरी के इन दस्तरख्वानो पर, खाने की एक डिश रखने वालों पर, एक पाठ पढ़ रहे है. हम इनका हिसाब कर रहे है. हम सही में सच्चे और खरे मुसलमान है.
(उर्दू डेली एक्प्रेस- कराची)

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