Sunday 24 June 2018

कभी सोचा कि जो मुल्क अपना खाना,कपड़ा और स्कूल तक चीन,अमेरिका,सऊदी अरब से भीख मांग कर चला रहा हो,वह भारत के आतंकियों को फंड कैसे करेगा ? क्यो करेगा ? हम लकीर के फकीर है,चंद आतंकी फंडिंग के हवाला रैकेटों में पाकिस्तान का ज़िक्र आ गया तो देश मे सर्वमान्य नैरेटिव हो गया कि पाकिस्तान आतंकियों की मॉरल सपोर्ट के साथ आर्थिक मदद भी कर रहा है...दरअसल हमारी अक्ल घुटनों में है...और पाकी भिखारियों की अक्ल यथोचित स्थान पर....भारत मे आतंकियों को फंडिंग...हम मियांओं की जूती ,मियां की चांद वाला मामला है....
अखबार देखिए पाकिस्तान में बैठे...आतंकी हैंडलर...भारत मे चल रहे साइबर ठगी के सबसे बड़े मास्टर माइंड हैं...."आपका डेबिट/क्रेडिट कार्ड लॉक हो गया है" ,"आपकी लाटरी निकली है,इत्ते रुपये फलाने बैंक खाते में जमा कराओ,फिर पूरा इनाम पाओ" जैसी टेलीफोन कालें पहले नाइजीरिया के ठग करते थे,अब इस पर 80 % कंट्रोल पाकिस्तानियों का है...भारत और नेपाल में बैठे स्लीपर सेल ,इस माध्यम का उपयोग आतंकी-माओवादी फंडिंग और गोला बारूद में ही तो कर रहे हैं....अर्थात मियां की जूती ,मियां के सर....
कभी आपका ध्यान गया कि विश्व मे सबसे ज़्यादा मस्जिदे,मदरसे,इस्लामी यूनिवर्सटी, मेडिकल कालेज,इंजीनियरिंग कालेज और तमाम इस्लामी इदारे भारत मे हैं...सभी ज़बरदस्त ज़कात करते हैं...किसी सरकार,गुप्तचर विभाग को यह मालूम नहीं कि यह पैसा कहाँ जा रहा है,कहाँ खर्च हो रहा है...अल्पसंख्यक संस्थाओं का सरकार आडिट भी नहीं करा सकती...समझदार को इशारा काफी है...
भारत मे 'वैतुलमाल' नामक समानांतर इस्लामिक बैंकिंग प्रणाली चालू है...किसी को इसके बारे कुछ नहीं मालूम ! दरअसल यह वह व्यवस्था है जो देश के मेट्रो शहरों से लेकर गांव तक चलती है...इसका मरकज़ खास मस्जिदें होती हैं..जहां के कुछ नुमाइंदे...हिन्दू-मुसलमान , छोटे व्यापारियों,ठेले,रिक्शेवालों से कम से रु 50/- के हिसाब से प्रतिदिन कलेक्शन करते हैं,वाकायदा एक अजमेर शरीफ या निजामुद्दीन दरगाह के फोटो वाली पास बुक ईशु की जाती है...जो रिक्शे,ठेलेवाले,व्यापारियों को दी जाती है,प्रतिदिन कलेक्शन होता है...पासबुक पर पैसे इकट्ठे करने वाला एंट्री कर दस्तखत करता है...
इन खातों की खूबी यह है कि छोटा व्यापारी,रिक्शे-ठेले वाला जब चाहे,ज़रूरत के मुताबिक अपनी पूरी रकम निकाल सकता है...या उधार भी ले सकता है...कोई ब्याज न देना पड़ता है...न ब्याज मिलता है.....सोचिए अरबों रु की लिक्विड-मनी मस्जिदों के पास हमेशा रहती है...इससे लहीम-शहीम मस्जिदें तो बनती हैं....हर तरीके की फंडिंग के लिए धन की कोई कमीं नहीं होती....मेरी गारंटी है कि ऐसी व्यवस्थित इस्लामिक समानांतर बैंकिंग की जानकारी भारत सरकार के किसी अधिकारी के पास भी नहीं होगी....इन जानकारियों के अभाव में आतंकवाद के खिलाफ कभी कोई लड़ाई न लड़ी जा सकती है...न जीती जा सकती है....
Pawan Saxena

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