रामेश्वरम : द्रविड़ शैली का उत्कृष्ट नमूना स्वामीनाथ मंदिर
भारत के इस अद्वितीय मंदिर का निर्माण लगभग 350 वर्षों में पूरा हुआ.
रामेश्वरम हिंदुओं का एक पवित्र तीर्थ है. यह तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है. यह तीर्थ हिन्दुओं के चार धामों में से एक है. इसके अलावा यहां स्थापित शिवलिंग बारह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है. भारत के उत्तर मे काशी की जो मान्यता है, वही दक्षिण में रामेश्वरम् की है. रामेश्वरम चेन्नई से लगभग सवा चार सौ मील दक्षिण-पूर्व में है. यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख आकार द्वीप है. शंखाकार रामेश्वरम् एक द्वीप है, जो एक लंबे पुल द्वारा मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ है. यह मंदिर द्रविड़ शैली का उत्कृष्ट नमूना है, इसे स्वामीनाथ मंदिर भी कहते हैं .
जिस स्थान पर यह टापु मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ था, वहां इस समय ढाई मील चौड़ी एक खाड़ी है. शुरू में इस खाड़ी को नावों से पार किया जाता था. बताया जाता है, कि बहुत पहले धनुष्कोटि से मन्नार द्वीप तक पैदल चलकर भी लोग जाते थे. लेकिन 1480 ई. में एक चक्रवाती तूफान ने इसे तोड़ दिया. बाद में आज से लगभग चार सौ वर्ष पहले कृष्णप्पनायकन नाम के एक राजा ने उस पर पत्थर का बहुत बड़ा पुल बनवाया. अंग्रेज़ों के आने के बाद उस पुल की जगह पर रेल का पुल बनाने का विचार हुआ. उस समय तक पुराना पत्थर का पुल लहरों की टक्कर से हिलकर टूट चुका था. एक जर्मन इंजीनियर की मदद से उस टूटे पुल का रेल के लिए एक सुंदर पुल बनवाया गया. इस समय यही पुल रामेश्वरम् को भारत की मुख्य भूमि से रेल सेवा द्वारा जोड़ता है. यह पुल पहले बीच में से जहाजों के निकलने के लिए खुला करता था.
बारहवीं सदी में श्रीलंका के राजा पराक्रमबाहु ने इस मंदिर का गर्भगृह बनवाया था. इसके बाद अनेक राजा समय समय पर इसका निर्माण करवाते रहे. भारत के इस अद्वितीय मंदिर का निर्माण लगभग 350 वर्षों में पूरा हुआ.
रामेश्वरम् का मंदिर भारतीय शिल्प कला का अद्भुत उदाहरण है. इसका प्रवेशद्वार चालीस फीट ऊंचा है. प्राकार में और मंदिर के अंदर सैंकड़ौं विशाल खंभें है, जो देखने में एक जैसे लगते हैं परंतु पास जाकर बारीकी से देखा जाए तो मालूम होगा कि हर खंभे पर बेलबूटे की अलग- कारीगरी है. रामेश्वरम का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा है. इसके बरामदे 4,000 फीट लंबे हैं. प्रत्येक बरामदा 700 फीट लंबा है. बरामदे के स्तंभों पर की गई उत्तम कोटि की सुंदरतम नक्काशी दर्शनीय है.
रामनाथ की मूर्ति के चारों और परिक्रमा करने के लिए तीन प्राकार बने हुए है. इनमें तीसरा प्राकार सौ साल पहले पूरा हुआ. इस प्राकार की लंबाई चार सौ फुट से अधिक है. दोनों और पांच फुट ऊंचा और करीब आठ फुट चौड़ा चबूतरा बना हुआ है. चबूतरों के एक ओर पत्थर के बड़ेबड़े खंभो की लम्बी कतारे खड़ी है. प्राकार के एक सिरे पर खडे होकर देखने पर ऐसा लगता है मारो सैकड़ों तोरणद्वार का स्वागत करने के लिए बनाए गये है. इन खंभों की अद्भुत कारीगरी देखकर विदेशी भी दंग रह जाते है
भारत के इस अद्वितीय मंदिर का निर्माण लगभग 350 वर्षों में पूरा हुआ.
रामेश्वरम हिंदुओं का एक पवित्र तीर्थ है. यह तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है. यह तीर्थ हिन्दुओं के चार धामों में से एक है. इसके अलावा यहां स्थापित शिवलिंग बारह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है. भारत के उत्तर मे काशी की जो मान्यता है, वही दक्षिण में रामेश्वरम् की है. रामेश्वरम चेन्नई से लगभग सवा चार सौ मील दक्षिण-पूर्व में है. यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख आकार द्वीप है. शंखाकार रामेश्वरम् एक द्वीप है, जो एक लंबे पुल द्वारा मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ है. यह मंदिर द्रविड़ शैली का उत्कृष्ट नमूना है, इसे स्वामीनाथ मंदिर भी कहते हैं .
जिस स्थान पर यह टापु मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ था, वहां इस समय ढाई मील चौड़ी एक खाड़ी है. शुरू में इस खाड़ी को नावों से पार किया जाता था. बताया जाता है, कि बहुत पहले धनुष्कोटि से मन्नार द्वीप तक पैदल चलकर भी लोग जाते थे. लेकिन 1480 ई. में एक चक्रवाती तूफान ने इसे तोड़ दिया. बाद में आज से लगभग चार सौ वर्ष पहले कृष्णप्पनायकन नाम के एक राजा ने उस पर पत्थर का बहुत बड़ा पुल बनवाया. अंग्रेज़ों के आने के बाद उस पुल की जगह पर रेल का पुल बनाने का विचार हुआ. उस समय तक पुराना पत्थर का पुल लहरों की टक्कर से हिलकर टूट चुका था. एक जर्मन इंजीनियर की मदद से उस टूटे पुल का रेल के लिए एक सुंदर पुल बनवाया गया. इस समय यही पुल रामेश्वरम् को भारत की मुख्य भूमि से रेल सेवा द्वारा जोड़ता है. यह पुल पहले बीच में से जहाजों के निकलने के लिए खुला करता था.
बारहवीं सदी में श्रीलंका के राजा पराक्रमबाहु ने इस मंदिर का गर्भगृह बनवाया था. इसके बाद अनेक राजा समय समय पर इसका निर्माण करवाते रहे. भारत के इस अद्वितीय मंदिर का निर्माण लगभग 350 वर्षों में पूरा हुआ.
रामेश्वरम् का मंदिर भारतीय शिल्प कला का अद्भुत उदाहरण है. इसका प्रवेशद्वार चालीस फीट ऊंचा है. प्राकार में और मंदिर के अंदर सैंकड़ौं विशाल खंभें है, जो देखने में एक जैसे लगते हैं परंतु पास जाकर बारीकी से देखा जाए तो मालूम होगा कि हर खंभे पर बेलबूटे की अलग- कारीगरी है. रामेश्वरम का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा है. इसके बरामदे 4,000 फीट लंबे हैं. प्रत्येक बरामदा 700 फीट लंबा है. बरामदे के स्तंभों पर की गई उत्तम कोटि की सुंदरतम नक्काशी दर्शनीय है.
रामनाथ की मूर्ति के चारों और परिक्रमा करने के लिए तीन प्राकार बने हुए है. इनमें तीसरा प्राकार सौ साल पहले पूरा हुआ. इस प्राकार की लंबाई चार सौ फुट से अधिक है. दोनों और पांच फुट ऊंचा और करीब आठ फुट चौड़ा चबूतरा बना हुआ है. चबूतरों के एक ओर पत्थर के बड़ेबड़े खंभो की लम्बी कतारे खड़ी है. प्राकार के एक सिरे पर खडे होकर देखने पर ऐसा लगता है मारो सैकड़ों तोरणद्वार का स्वागत करने के लिए बनाए गये है. इन खंभों की अद्भुत कारीगरी देखकर विदेशी भी दंग रह जाते है
रामनाथ मंदिर के चारों और दूर तक कोई पहाड़ नहीं है, जहां से पत्थर आसानी से लाये जा सकें. रामेश्वरम् के मंदिर में जो कई लाख टन पत्थर लगे हैं, वे सब बहुत दूर-दूर से नावों में लादकर लाये गये है. कहते हैं, ये सब पत्थर श्रीलंका से लाये गये थे. कथा
रामेश्वरम् के विख्यात मंदिर की स्थापना के बारे में यह रोचक कहानी कही जाती है. सीताजी को छुड़ाने के लिए भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई की थी. उन्होने लड़ाई के बिना सीताजी को छुड़वाने का बहुत प्रयत्न किया, पर जब श्रीराम को सफलता न मिली तो विवश होकर उन्होने युद्ध किया. इस युद्ध में रावण और उसके सब साथी राक्षस मारे गये. रावण भी मारा गया और अन्ततः सीताजी को मुक्त कराकर श्रीराम वापस लौटे. इस युद्ध हेतु राम को वानर सेना सहित सागर पार करना था, जो अत्यधिक कठिन कार्य था.
रावण भी साधारण राक्षस नहीं था. वह चारों वेदों को जानने वाला और शिवजी का बड़ा भक्त था. इस कारण श्रीराम को उसे मारने के बाद बड़ा खेद हुआ. ब्रह्मा-हत्या का पाप उन्हें लग गया. इस पाप को धोने के लिए उन्होने रामेश्वरम् में शिवलिंग की स्थापना करने का निश्चय किया. यह निश्चय करने के बाद श्रीराम ने हनुमान को आज्ञा दी कि काशी जाकर वहां से एक शिवलिंग ले आओ. हनुमान पवन-सुत थे. बड़े वेग से आकाश मार्ग से चल पड़े. लेकिन शिवलिंग की स्थापना की नियत घड़ी पास आ गई. हनुमान का कहीं पता न था. जब सीताजी ने देखा कि हनुमान के लौटने मे देर हो रही है, तो उन्होने समुद्र के किनारे के रेत को मुट्ठी में बांधकर एक शिवलिंग बना दिया. यह देखकर श्रीराम बहुत प्रसन्न हुए और शुभ मुहुर्त पर इसी शिवलिंग की स्थापना कर दी. छोटे आकार का शिवलिंग रामनाथ कहलाता है.
बाद में हनुमान के आने पर पहले छोटे प्रतिष्ठित शिवलिंग के पास ही श्रीराम ने काले पत्थर के उस बड़े शिवलिंग को स्थापित कर दिया. ये दोनों शिवलिंग इस तीर्थ के मुख्य मंदिर में आज भी पूजित हैं. यही मुख्य शिवलिंग ज्योतिर्लिंग है.
कैसे पहुँचें
रामेश्वरम् तक पहुँचने के लिए रेल और परिवहन सेवाएँ उपलब्ध हैं. रामेश्वरम् धाम भारत की मुख्य भूमि से अलग है. मंडप और पभवन रेलवे स्टेशनों के बीच देश का सबसे बड़ा रेलपुल है. मदुरै से रेल या बस द्वारा रामेश्वरम् आसानी से पहुँचा जा सकता है. रामेश्वरम् का निकटतम हवाई अड्डा रामेश्वरम् से 173 कि. मी. की दूरी पर मदुरै है.प्रेषित समय :14:22:27 PM / Sun, Dec 28th, 2014
पलपलइंडिया के अनुसार<< सूर्य की किरण >>
रामेश्वरम् के विख्यात मंदिर की स्थापना के बारे में यह रोचक कहानी कही जाती है. सीताजी को छुड़ाने के लिए भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई की थी. उन्होने लड़ाई के बिना सीताजी को छुड़वाने का बहुत प्रयत्न किया, पर जब श्रीराम को सफलता न मिली तो विवश होकर उन्होने युद्ध किया. इस युद्ध में रावण और उसके सब साथी राक्षस मारे गये. रावण भी मारा गया और अन्ततः सीताजी को मुक्त कराकर श्रीराम वापस लौटे. इस युद्ध हेतु राम को वानर सेना सहित सागर पार करना था, जो अत्यधिक कठिन कार्य था.
रावण भी साधारण राक्षस नहीं था. वह चारों वेदों को जानने वाला और शिवजी का बड़ा भक्त था. इस कारण श्रीराम को उसे मारने के बाद बड़ा खेद हुआ. ब्रह्मा-हत्या का पाप उन्हें लग गया. इस पाप को धोने के लिए उन्होने रामेश्वरम् में शिवलिंग की स्थापना करने का निश्चय किया. यह निश्चय करने के बाद श्रीराम ने हनुमान को आज्ञा दी कि काशी जाकर वहां से एक शिवलिंग ले आओ. हनुमान पवन-सुत थे. बड़े वेग से आकाश मार्ग से चल पड़े. लेकिन शिवलिंग की स्थापना की नियत घड़ी पास आ गई. हनुमान का कहीं पता न था. जब सीताजी ने देखा कि हनुमान के लौटने मे देर हो रही है, तो उन्होने समुद्र के किनारे के रेत को मुट्ठी में बांधकर एक शिवलिंग बना दिया. यह देखकर श्रीराम बहुत प्रसन्न हुए और शुभ मुहुर्त पर इसी शिवलिंग की स्थापना कर दी. छोटे आकार का शिवलिंग रामनाथ कहलाता है.
बाद में हनुमान के आने पर पहले छोटे प्रतिष्ठित शिवलिंग के पास ही श्रीराम ने काले पत्थर के उस बड़े शिवलिंग को स्थापित कर दिया. ये दोनों शिवलिंग इस तीर्थ के मुख्य मंदिर में आज भी पूजित हैं. यही मुख्य शिवलिंग ज्योतिर्लिंग है.
कैसे पहुँचें
रामेश्वरम् तक पहुँचने के लिए रेल और परिवहन सेवाएँ उपलब्ध हैं. रामेश्वरम् धाम भारत की मुख्य भूमि से अलग है. मंडप और पभवन रेलवे स्टेशनों के बीच देश का सबसे बड़ा रेलपुल है. मदुरै से रेल या बस द्वारा रामेश्वरम् आसानी से पहुँचा जा सकता है. रामेश्वरम् का निकटतम हवाई अड्डा रामेश्वरम् से 173 कि. मी. की दूरी पर मदुरै है.प्रेषित समय :14:22:27 PM / Sun, Dec 28th, 2014
पलपलइंडिया के अनुसार<< सूर्य की किरण >>
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