Saturday 26 December 2015

ब्राह्म मुहूर्त का महत्व !
रात्रि के अंतिम प्रहर को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं।
हमारे ऋषि मुनियों ने इस मुहूर्त का विशेष महत्व बताया है।
उनके अनुसार यह समय निद्रा त्याग के लिए
सर्वोत्तम है।
ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सौंदर्य,बल,विद्या,बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
सूर्योदय से चार घड़ी (लगभग डेढ़ घण्टे) पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में ही जग जाना चाहिये।
इस समय सोना शास्त्र निषिद्ध है।
“ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी।
तां करोति द्विजो मोहात् पादकृच्छेण शुद्धय्ति।।”
ब्रह्ममुहूर्त की निद्रा पुण्य का नाश करने
वाली होती है।
इस समय जो भी शयन करता है उसे इस
पाप से मुक्ति हेतु पादकृच्छ नामक (व्रत)
से प्रायश्चित करना चाहिए।
विवश अवस्था में यह क्षम्य है।
आँखों के खुलते ही दोनों हाथों की हथेलियों
को देखते हुए निम्न श्लोक का पाठ करें ;-
कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो परब्रह्म प्रभाते करदर्शनम्।।
कर (हाथ) के अग्रभाग में लक्ष्मी,मध्य में
सरस्वती तथा हाथ के मूल भाग में ब्रह्मा
जी निवास करते हैं,अतः प्रातः काल दोनों
करों का दर्शन करना चाहिए।
शय्या से उठ कर भूमि पर पैर रखने के
पूर्व पृथ्वी माता का अभिवादन करें तथा
पैर रखने की विवशता के लिए माता से
क्षमा मांगते हुए निम्न श्लोक का पाठ करें;-
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डिते।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमें।
समुद्र रूपी वस्त्रों को धारण करनेवाली,
पर्वतरूप स्तनों से मण्डित भगवान विष्णु
की पत्नी पृथ्वी देवि !
आप मेरे पद स्पर्श को क्षमा करें।
तत्पश्चात गोरोचन,चन्दन,सुवर्ण,शंख,मृदंग, दर्पण,मणि आदि मांगलिक वस्तुओं का
दर्शन करें।
गुरु अग्नि तथा सूर्य को नमस्कार करे।
निम्नलिखित श्लोक को पढ़ते हुए सभी
अंगों पर जल छिड़कने से मानसिक स्नान
हो जाता है;-
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि।।
अतिनीलघनश्यामं नलिनायतलोचनम्।
स्मरामि पुण्डरीकाक्षं तेन स्नातो भवाम्यहम्।।
ब्रह्म मुहूर्त का विशेष महत्व बताने के पीछे
हमारे विद्वानों की वैज्ञानिक सोच निहित थी।
वैज्ञानिक शोधों से ज्ञात हुआ है कि ब्रह्म
मुहुर्त में वायु मंडल प्रदूषण रहित होता है।
इसी समय वायु मंडल में ऑक्सीजन
(प्राणवायु) की मात्रा सबसे अधिक (41 प्रतिशत) होती है,
जो फेफड़ों की शुद्धि के लिए महत्वपूर्ण
होती है।
शुद्ध वायु मिलने से मन,मस्तिष्क भी स्वस्थ रहता है।
आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठकर
टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति का
संचार होता है।
यही कारण है कि इस समय बहने वाली
वायु को अमृततुल्य कहा गया है।
इसके अलावा यह समय अध्ययन के लिए
भी सर्वोत्तम बताया गया है क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं
तो शरीर तथा मस्तिष्क में भी स्फूर्ति व ताजगी
बनी रहती है।
प्रमुख मंदिरों के पट भी ब्रह्म मुहूर्त में खोल
दिए जाते हैं तथा भगवान का श्रृंगार व पूजन
भी ब्रह्म मुहूर्त में किए जाने का विधान है।
ब्रह्ममुहूर्त के धार्मिक,पौराणिक व व्यावहारिक
पहलुओं और लाभ को जानकर हर रोज इस
शुभ घड़ी में जागना शुरू करें तो बेहतर
नतीजे मिलेंगे।
ब्रह्ममुहूर्त का महत्व;

धार्मिक महत्व - व्यावहारिक रूप से यह
समय सुबह सूर्योदय से पहले चार या पांच
बजे के बीच माना जाता है।
किंतु शास्त्रों में साफ बताया गया है कि रात
के आखिरी प्रहर का तीसरा हिस्सा या चार
घड़ी तड़के ही ब्रह्ममुहूर्त होता है।
मान्यता है कि इस वक्त जागकर इष्ट या
भगवान की पूजा,ध्यान और पवित्र कर्म
करना बहुत शुभ होता है।
क्योंकि इस समय ज्ञान,विवेक,शांति,ताजगी, निरोग और सुंदर शरीर,सुख और ऊर्जा के
रूप में ईश्वर कृपा बरसाते हैं।
भगवान के स्मरण के बाद दही,घी,आईना,
पीली सरसों,बैल,फूलमाला के दर्शन
भी इस काल में बहुत पुण्य देते हैं।
पौराणिक महत्व - वाल्मीकि रामायण के अनुसार माता सीता को ढूंढते हुए श्रीहनुमान
ब्रह्ममुहूर्त में ही अशोक वाटिका पहुंचे।
जहां उन्होंने वेद व यज्ञ के ज्ञाताओं के मंत्र उच्चारण की आवाज सुनी।
व्यावहारिक महत्व - व्यावहारिक रूप से
अच्छी सेहत,ताजगी और ऊर्जा पाने के
लिए ब्रह्ममुहूर्त बेहतर समय है।
क्योंकि रात की नींद के बाद पिछले दिन
की शारीरिक और मानसिक थकान उतर जाने पर दिमाग शांत और स्थिर रहता है।
वातावरण और हवा भी स्वच्छ होती है।
ऐसे में देव उपासना,ध्यान,योग,पूजा तन,मन और बुद्धि को पुष्ट करते हैं।
इस तरह शौक-मौज या आलस्य के कारण
देर तक सोने के बजाय इस खास वक्त का
लाभ उठाकर सुंदर स्वास्थ्य सेहत,सुख,शांति और नतीजों को पा सकते हैं।

जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,,
जयति पुण्य भूमि भारत,,,

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