क्रिसमस .. ‘बड़ा दिन’..?
Narendra Jain
Narendra Jain
मकर सन्क्रान्ति का पर्व आता था 25 दिसम्बर को
पूरे यूरोप, अमरीका और ईसाई जगत में इस समय क्रिसमस की धूम है। अधिकांश लोगों को पता नहीं कि यह क्यों मनाया जाता है। कुछ लोगों को भ्रम है कि इस दिन ईशदूत ईसा मसीह का जन्मदिन पड़ता है। सचाई यह है कि 25 दिसम्बर को ईसा के जन्म दिन से कोई सम्बन्ध नहीं है।
विश्व-कोष में दी गई जानकारी के अनुसार पहला क्रिसमय त्यौहार 25 दिसम्बर सन् 336 में मनाया गया। विश्व-कोष में यह भी बताया गया है कि सूर्य-पूजा को समाप्त करने के उद्देश्य से यह प्रारम्भ किया गया ।
ुछ लोगों को भ्रम है कि इस दिन ईशदूत ईसा मसीह का जन्मदिन पड़ता है। सचाई यह है कि 25 दिसम्बर को ईसा के जन्म दिन से कोई सम्बन्ध नहीं है।पूरे यूरोप, अमरीका और ईसाई जगत में इस समय क्रिसमस की धूम है। अधिकांश लोगों को पता नहीं कि यह क्यों मनाया जाता है। कुछ लोगों को भ्रम है कि इस दिन ईशदूत ईसा मसीह का जन्मदिन पड़ता है। सचाई यह है कि 25 दिसम्बर को ईसा के जन्म दिन से कोई सम्बन्ध नहीं है।
विश्व-कोष में दी गई जानकारी के अनुसार पहला क्रिसमय त्यौहार 25 दिसम्बर सन् 336 में मनाया गया। विश्व-कोष में यह भी बताया गया है कि सूर्य-पूजा को समाप्त करने के उद्देश्य से यह प्रारम्भ किया गया ।
क्रिसमस को ‘बड़ा दिन’ भी कहा जाता है। अर्थात् इस दिन से दिन बड़े होने शुरू हो जाते हैं। वास्तव में उस समय 25 दिसम्बर को ‘मकर संक्रान्ति’ पर्व आता था और पूरा यूरोप धूम-धाम से सूर्य की उपासना इस दिन करता था। सूर्य और पृथ्वी की गति के कारण मकर सक्रान्ति लगभग 80 वर्षों में एक दिन आगे खिसक जाती है।
स्वामी विवेकानन्द का जन्म भी मकर संक्रान्ति को हुआ था, किन्तु उस दिन 12 जनवरी थी। अब तक मकर संक्रान्ति 14 जनवरी को आ रही थी, पर 2016 में 15 जनवरी को आयेगी। दो-चार साल आगे पीछे होने के बाद कुछ सालों बाद मकर सक्रान्ति स्थाई रूप से 15 जन. को ही आयेगी।
ईस्वी सन् 325 में निकेया (अब इजनिक-तुर्की) नाम के स्थान पर सम्राट कांस्टेन्टाइन ने प्रमुख पादरियों का एक सम्मेलन किया और उसमें ईसाइयत को प्रभावी करने की योजना बनाई। पूरे यूरोप के 318 पादरी उसमें सम्मिलित हुए। उसी में निर्णय हुआ कि 25 दिसम्बर, मकर संक्रान्ति को सूर्य-पूजा के स्थान पर ईसा की पूजा की परम्परा डाली जाये। कई और फैसलों के अतिरिक्त दो और महत्वपूर्ण निर्णय उक्त सम्मेलन में किये गये। पहला तो यह कि इस बात को छिपाया जाये कि ईसा ने चौदह वर्षों तक भारत में शिक्षा प्राप्त की थी। इसी के साथ ईसा मसीह के मेरी मेग्डलेन से विवाह को भी नकार देने का निर्णय इस सम्मेलन में किया गया।
ईस्वी सन् 325 में निकेया (अब इजनिक-तुर्की) नाम के स्थान पर सम्राट कांस्टेन्टाइन ने प्रमुख पादरियों का एक सम्मेलन किया और उसमें ईसाइयत को प्रभावी करने की योजना बनाई। पूरे यूरोप के 318 पादरी उसमें सम्मिलित हुए। उसी में निर्णय हुआ कि 25 दिसम्बर, मकर संक्रान्ति को सूर्य-पूजा के स्थान पर ईसा की पूजा की परम्परा डाली जाये। कई और फैसलों के अतिरिक्त दो और महत्वपूर्ण निर्णय उक्त सम्मेलन में किये गये। पहला तो यह कि इस बात को छिपाया जाये कि ईसा ने चौदह वर्षों तक भारत में शिक्षा प्राप्त की थी। इसी के साथ ईसा मसीह के मेरी मेग्डलेन से विवाह को भी नकार देने का निर्णय इस सम्मेलन में किया गया।
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