आर्मी मैन अब व्हील चेयर पर रहकर संवार रहे हैं गरीब बच्चों का भविष्य
हादसे किसकी जिंदगी में नहीं होते, लेकिन ज्यादातर लोग ऐसे होते हैं जो किसी हादसे के बाद टूट जाते हैं। बावजूद हमारे ही समाज में कैप्टन नवीन गुलिया जैसे लोग भी हैं जो किसी हादसे के बाद और मजबूत होकर उभरते हैं। अपनी जिंदगी को नए सिरे से जीने की कोशिश करते हैं, उसमें रंग भरते हैं और उन रंगों से दूसरों को भी रंगने की कोशिश करते हैं। कैप्टन नवीन गुलिया अपने पैरों पर भले ही खुद का भार नहीं उठा पाते हों, लेकिन अपने व्हील चेयर के जरिए वो अपने कंधों पर ऐसे बच्चों का भार उठा रहे हैं जिनका कोई नहीं और जिनका है भी तो वो इतने सक्षम नहीं कि वो उनको पढ़ा सकें। उनको आगे बढ़ने का सबक सिखा सकें।
कैप्टन नवीन गुलिया अपनी संस्था 'अपनी दुनिया, अपना आशियाना' के जरिए सैकड़ों बच्चों की ना सिर्फ पढ़ाई की जिम्मेदारी उठा रहे हैं बल्कि उनको काबिल बनाने के लिए हर वो काम कर रहे हैं जो किसी के माता-पिता ही कर सकते हैं। कैप्टन गुलिया बचपन से ही देश के लिए कुछ करना चाहते थे यही वजह है कि सेना में उन्होंने पैरा कमांडो की ट्रेनिंग ली, लेकिन चार साल की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद वो एक प्रतियोगिता के दौरान ज्यादा ऊंचाई से गिर गए। इस वजह से उनकी रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट आई। दो साल तक अस्पताल में रहने के बाद उनको आर्मी छोड़नी पड़ी, लेकिन उनमें देश सेवा का जज्बा ज्यों का त्यों बरकरार था।
वो कहते हैं कि आज मैं गरीब और अपंग बच्चों के लिए कुछ कर रहा हूं तो इसमें मुझे सम्मान देने जैसी कोई बात नहीं होनी चाहिए, ये तो मेरा अपने समाज के प्रति और अपने देश के प्रति कर्तव्य है। दूसरों से अलग सोच रखने वाले कैप्टन गुलिया और उनकी संस्था गरीब बच्चों, भीख मांगने वाले बच्चों और ईंट भट्टों में काम करने वाले मजदूरों के बच्चों के लिए काम कर रही है। वो बच्चों की जरूरत के हिसाब से मदद करते हैं। इन बच्चों के अलावा ये ऐसे बच्चों की मदद कर रहे हैं जिनको उनके माता पिता ने अपने हाल पर छोड़ दिया है।
सर्दियों की एक रात जब काफी धुंध थी तो कैप्टन गुलिया ने सड़क पर एक 2 साल की बच्ची के रोने की अवाज सुनी। जिसके शरीर में काफी कम कपड़े थे। उसको कुछ बच्चे अपने साथ लेकर आए थे जो आसपास ही खेल रहे थे। तब कैप्टन गुलिया ने उन बच्चों को ढूंढा और उनको इस बात के लिए डांट लगाई कि क्यों उन्होंने बच्ची को इस तरह छोड़ा हुआ है। जिसके बाद वो बच्चे उस बच्ची को लेकर वहां से चले गए, तब कैप्टन गुलिया ने सोचा कि क्यों ना ऐसे बच्चों की मदद का काम शुरू किया जाए और उसी पल उन्होंने ठान लिया कि वो गरीब बच्चों की देखभाल का काम करेंगे।
फोटो- पूर्व राष्ट्रपति डा एपीजे अब्दुल कलाम ने किया था कैप्टन गुलिया का सम्मान।
अपने काम की शुरूआत उन्होंने ऐसे बच्चों के साथ की जो भूखे थे। सबसे पहले उन्होंने ऐसे बच्चों के लिए खाने का इंतजाम किया। इसके बाद जब उन्होने उन बच्चों से बात की तो उन्होंने फैसला लिया कि वो इन बच्चों को पढ़ाने का काम भी करेंगे। इसके लिए उन्होंने ऐसे बच्चों को चुना जो पढ़ना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने उन बच्चों का ना सिर्फ स्कूल में दाखिला कराया बल्कि उनकी फीस, कपड़े और दूसरी चीजों का भी बोझ उठाया। आज कैप्टन गुलिया और उनकी संस्था गुड़गांव और उसके आसपास रहने वाले करीब 500 बच्चों की देखभाल कर रहे हैं। ये कैप्टन गुलिया की कोशिशों का ही नतीजा है वो ऐसे गांव में जागरूकता अभियान चलाते हैं जहां पर महिलाओं की संख्या काफी कम है। इसके अलावा वो गांव की लड़कियों को बॉक्सिंग की ट्रेनिंग भी देते हैं ना सिर्फ आत्मरक्षा के लिए बल्कि इसलिए भी ताकि वो खेल के मैदान में देश का नाम रोशन कर सकें। यही कारण है कि उनकी सिखाई कुछ लड़कियां अपने राज्य का प्रतिनिधित्व तक कर चुकी हैं। इसके अलावा ऐसे बच्चों की जरूरतों को भी पूरा किया जाता है जो शारीरिक रूप से अक्षम हैं। इन बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था करनी हो या फिर इनके इलाज की। कैप्टन गुलिया और उनका संगठन हर तरीके से जरूरत के मुताबिक उन बच्चों की मदद कर रहा है।
अपने काम की शुरूआत उन्होंने ऐसे बच्चों के साथ की जो भूखे थे। सबसे पहले उन्होंने ऐसे बच्चों के लिए खाने का इंतजाम किया। इसके बाद जब उन्होने उन बच्चों से बात की तो उन्होंने फैसला लिया कि वो इन बच्चों को पढ़ाने का काम भी करेंगे। इसके लिए उन्होंने ऐसे बच्चों को चुना जो पढ़ना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने उन बच्चों का ना सिर्फ स्कूल में दाखिला कराया बल्कि उनकी फीस, कपड़े और दूसरी चीजों का भी बोझ उठाया। आज कैप्टन गुलिया और उनकी संस्था गुड़गांव और उसके आसपास रहने वाले करीब 500 बच्चों की देखभाल कर रहे हैं। ये कैप्टन गुलिया की कोशिशों का ही नतीजा है वो ऐसे गांव में जागरूकता अभियान चलाते हैं जहां पर महिलाओं की संख्या काफी कम है। इसके अलावा वो गांव की लड़कियों को बॉक्सिंग की ट्रेनिंग भी देते हैं ना सिर्फ आत्मरक्षा के लिए बल्कि इसलिए भी ताकि वो खेल के मैदान में देश का नाम रोशन कर सकें। यही कारण है कि उनकी सिखाई कुछ लड़कियां अपने राज्य का प्रतिनिधित्व तक कर चुकी हैं। इसके अलावा ऐसे बच्चों की जरूरतों को भी पूरा किया जाता है जो शारीरिक रूप से अक्षम हैं। इन बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था करनी हो या फिर इनके इलाज की। कैप्टन गुलिया और उनका संगठन हर तरीके से जरूरत के मुताबिक उन बच्चों की मदद कर रहा है।
'अपनी दुनिया, अपना आशियाना' नाम का ये संगठन गरीब और कमजोर बच्चों के लिए समय समय पर मेडिकल कैम्प, भूखे बच्चों को खाना खिलाने का काम, गरीब बच्चों को कपड़े देने का काम आदि करता है। इसके अलावा ये संगठन बच्चों को उनकी पढ़ाई में भी मदद करता है। हरियाणा के पास मानेसर में रहने वाला एक बच्चा जिसका नाम सनी है उसकी ये लोग पिछले दस साल से पढ़ाई और उसके स्वास्थ्य में मदद कर रहे हैं। कैप्टन गुलिया बताते हैं कि ये बच्चा हर साल अपनी क्लास में पहले स्थान पर आता है इस बार दसवीं की परीक्षा में उसने 95 प्रतिशत से ज्यादा अंक हासिल किए।
इसी तरह गीता नाम की एक लड़की है जिसकी पढ़ाई पोलियो होने के कारण कुछ समय के लिए छूट गई थी। जिसके बाद जब वो इन लोगों से मिली तो ना सिर्फ उसने अपनी पढ़ाई पूरी की बल्कि आज वो टीचर बन गई है और दूसरे बच्चों को पढ़ाने का काम कर रही है। ऐसे दूसरे और भी बच्चे हैं जिनकी ये मदद करते हैं। ये लोग जिन बच्चों की मदद कर रहे हैं उनमें से ज्यादातर की उम्र 4 से 14 साल तक के बीच की है।
कैप्टन नवीन गुलिया ना सिर्फ गरीब बच्चों का बोझ उठा रहे हैं बल्कि वो एक शानदार लेखक भी हैं। बाजार में उनकी लिखी किताब 'वीर उसको जानिए' और 'इन क्विस्ट ऑफ द लास्ट विक्टरी' की काफी डिमांड है। कैप्टन गुलिया ने वो सब किया जो वो करना चाहते थे। आज भले ही वो व्हिल चेयर पर हों, लेकिन इनके नाम कई रिकॉर्ड दर्ज हैं। उन्होंने कई बार एडवेंचर ड्रॉइविंग की हैं। इसके अलावा उन्होने पॉवर हैडग्लाइडर में भी अपना हाथ अजमाया हुआ है।
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