हिन्दू दलित भाई, "सफ़ेद चोगे" वालों की बातों में आकर... या फिर मल-मूत्र निवासियों के बीच "छिपे बैठे मिशनरी एजेंटों" के बहकावे में आकर ईसाई तो बन जाते हैं, लेकिन उन्हें वहाँ भी भेदभाव और छुआछूत का शिकार होना पड़ता है...
ईसाई बनने के बाद भी या तो दलितों का चर्च अलग... या फिर चर्च में दलितों के बैठने का स्थान अलग... उनके कब्रिस्तान अलग... प्रशासनिक, अकादमिक और प्रमुख पदों पर सिर्फ मूल कैथोलिक बिशपों की नियुक्ति जैसे कई भेदभाव सहने पड़ते हैं... इस खबर के अनुसार स्थिति यह है कि जहाँ पर 70% "दलित ईसाई"(??) हैं, वहाँ पर भी नेतृत्त्व एवं सत्ता में उनकी भागीदारी सिर्फ 4% है... वेटिकन से शिकायत करने पर भी इनकी कोई सुनवाई नहीं होती...
मजे की बात यह है कि "प्रगतिशीलों" और "दलित चिंतकों" को यह सब दिखाई-सुनाई नहीं देता... उन्हें तो सिर्फ हिन्दू धर्म को गरियाने से काम है...
(खबर थोड़ी पुरानी है, लेकिन कैथोलिकों में "पुअर दलित क्रिश्चियन मूवमेंट" ऐसे भेदभाव से लगातार जूझ रहा है, संघर्ष कर रहा है...). लिंक के भिखारियों के लिए कमेन्ट में इस सूचना की लिंक देता हूँ...
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